युग सहस्त्र में मार्तण्ड का, रश्मि भ्रूण जब गिरा धरनि पर।
तब नर बन जाते नारायण, भू भार हरण करते हैं।।
भरते जो संक्रांति शून्य, हांकते मानवता का रथ।
सत्य न्याय के लिए समर में, विजय वरण करते हैं।।
हम उनको ही अवतार, उन्हें देव कहा करते हैं।
जो अज्ञानी बनता दीवार, क्रांति के पथ पर रावण।
उनसे इतिहासों के गंदे, कूड़ेदान भरा करते हैं।।
गर्वोन्मत सम्राटों के स्वर्ण मुकुट, गिरते जिनके श्री चरणों में।
उनके पावन स्मरण से, भय के भूत भगा करते हैं।।
हम उनको ही अवतार, उन्हें देव कहा करते है।
मर मिटकर ही होता दाना, महाविट्प तरुणाई में।
स्वारथ अंधे रंगे स्यार, न सिंह बनें बनराई में।।
जिनने बांधा सप्त सिंधु को, नर-वानर संयोजन से।
उनके भक्त मानव-मानव में, क्यों फर्क किया करते हैं।।
युध्द भूमि में नहीं थे जिनके, रथ सारथी पदत्राण तक।
हम उनको ही अवतार, उन्हें ही देव कहा करते हैं।।
पर पीड़क पर निंदक दुर्जन, दोनों लोक गंवाते जाते।
हिंसा रेगिस्तानों में न, अमन के फूल खिला करते हैं।।
विश्व विजय की जिन अशोक ने, वो न अस्त्र उठाया करते।
बिना शस्त्र के कुंभज योगी, खारा सिन्धु पिया करते हैं।।
महा सिन्धु मंथन से जिनको, चौदह रत्न मिला करते हैं।
हम उनको ही अवतार, उन्हें ही देव कहा करते हैं।।
मातृभूमि को लज्जित करती, रिश्वत की सूर्पणखा देखो।
ये तो घास फूस का नकली, भ्रष्टाचार का असली रावण देखो।।
अब तो हर गली मुहल्ले में स्वयं को सगर्व लंकेश कहा करते हैं।
इन्हें भस्म करने को युग-युग, जो श्रीराम हुआ करते हैं।।
हम उनको ही अवतार, उन्हें ही देव कहा करते हैं।
मानव जब दानव बन जाये, सुरा सुन्दरी में रम जाये।
ईमानदारी की सीता माता, सिसिक-सिसिक रोती ही जाये।।
वृद्ध जटायु सदाचार का, रावण से उपहास कराये।
मरघट की ज्वाला को पागल, दनुज किया करते हैं।।
काल चक्र के हवनकुण्ड में, स्वाहा होते वे नरपुंगव।
हम उनको ही अवतार, उन्हें ही देव कहा करते है।।
चारों ओर असुरों के झुण्ड, वतन की लूट किया करते हैं।
आतंकवाद के अहिरावण, अट्टाहास किया करते हैं।।
रक्षक हो जायें कुम्भकरण, तो गुण्डे राज किया करते हैं।
ओ! राम के अनुयायी, ये तुम किसको जला रहे।।
असली रावण तो डगर-डगर, छुट्टा सांड फिरा करते हैं।
उनका काम तमाम करैं, मर्यादा पुरुषोत्तम आकर के।।
हम उनको ही अवतार, उन्हें ही देव कहा करते हैं।
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