गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

द्वंद्व का आह्वान

चिंतन की चटनी, मनन का मुरब्बा।
दर्शन की दाल, विचारों का हौवा।।
प्रसिध्दि के मोदक, हैं जिनके पास।
प्रशंसक-प्रकाशक, पालतू हैं खास।।
कविता में कल्पना की, आनंदानुभूति।।
शोषण के श्रृगांर से, उनको सहानुभूति।।
अभिजात्य कवि, स्वयंभू ख्यातनाम।
हिन्दू को राम-राम, मुस्लिम के सलाम।।

सत्ता से जिनको, दलाली मिली धांसू।
अव्यवस्था पर बहाते, घड़ियाली आंसू।।
पीर पैगम्बरों के, नित मंत्र नव रचते।
अपने आगे किसी को, कुछ न समझते।।
मानसिक अय्याशी का इंतजाम करते।
जीवन के यथार्थ को सरेआम ढंकते।।
कला-कला के लिए, जिनका तकिया-कलाम।
हिन्दू को राम-राम, मुस्लिम के सलाम।।

वेदना की कोदों रोटी, करूणा का कांदा।
श्रमस्वेद स्नान, हारा थका मांदा।।
कृषकाय कठोर, बेडौल खुरदुरे हाथ।
उतरे साहित्य एरिना में, उत्साह के साथ।।
संघर्ष का यथार्थ बोध, देता इल्हाम।
क्रांति की मशाल, सुलगती अविराम।।
भावों के अणुबम विचारों के नेपाम।
हिन्दू को राम-राम, मुस्लिम के सलाम।।

प्रगति शील अधुनातन अर्वाचीन।
छंदेतर अतुकांत नमकीन।।
रहस्यवादी-प्रयोगवादी गोरखधंधी।
छायोवादी सुबुक-सुबुकी अक्ल की अंधी।।
खोखली म्यान का क्या कीजिए?
मोल तो तीक्ष्ण तलवार का ही कीजिए।।
द्वंद्वात्मक भौतिकवादी है जिसका नाम।
हिन्दू को राम-राम, मुस्लिम के सलाम।

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