प्रतिगामी आर्थिक दिवालियापन के बरअक्स क्रांतिकारी मज़दूर संगठनों को चौतरफा संघर्ष करना पड़ रहा है। संगठनों को अपने-अपने उपक्रम या निगम को बचाने के लिए जूझना पड़ रहा है। एक्ज़ीक्यूटिव के सापेक्ष ग्रुप सी एण्ड डी कर्मचारियों को अपने वेतन भत्तों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। प्रतिस्पर्धा में इन सबको निजी क्षैत्र से भी संघर्ष करना पड़ रहा है। अतीत में निरंतर संघर्षों से प्राप्त पेंशन, ग्रैच्यूटी तथा अन्य सुविधाओं को बचाने के लिए भी निरंतर संघर्ष करना पड़ रहा है। संगठित मज़दूर वर्ग को अपने ही बीच में जयचंदों-मीरजाफ़रों, बदमाशों-मक्कारों से संघर्ष करना पड़ रहा है। सरकारी कंपनियों को देश की जनता अर्थात ग्राहकों को अपने साथ जोड़े रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। शासक वर्ग की मज़दूर-कर्मचारी एवं संपूर्ण श्रमिक वर्ग विरोधी नीतियों के खिलाफ भी अनवरत संघर्ष करना पड़ रहा है।
देश की जनता इन संघर्षों में शामिल हो, इसके लिए ये ज़रुरी है कि हम सरकारी-सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारी-अधिकारी साबित करें; कि हमारी (सरकारी) सेवाएं निजी क्षैत्र के सापेक्ष बेहतर हैं। न केवल सेवाएं अपितु उसकी गुणवत्ता एवं तात्कालिक उपलब्धता भी नितांत ज़रुरी है। बीएसएनएल मैनेजमेंट को भी समझना चाहिए की सरकार निर्देशित उन नीतियों का, जिससे बीएसएनएल का बेहद नुकसान होने जा रहा हो उन नीतियों को पलटने के लिए अपनी लालफीताशाही का कुछ कमाल दिखाएं। सरकार के समक्ष हमारे टॉप मैनेजर्स कह सकते हैं, कि सरकारी कंपनियों (ख़ासतौर से बीएसएनएल) के साथ अन्य PSUs के साथ समानता निर्धारित करते समय अपनाए गए मानदंडों में बेहद विसंगति है, अत: कंपनी समापन एक्ट 1956 के तहत बनाए गए PSUs और दूरसंचार अधिनियम 2000 के तहत बनाए गए PSUs के उद्देश्य एक समान नहीं हैं। 1956 में पं. जवाहर लाल नेहरु ने इन निगमों को बनाते समय कहा था कि ये “सार्वजनिक उपक्रम हमारे स्वतंत्र भारत के आधुनिक मंदिर है”। इस बात के कहे जाने के 50 साल से ज्यादा का वक़्त बीत जाने के बाद अब ये मंदिर ध्वस्त किये जा रहे हैं। ध्वस्त करने वालों को महिमा मंडित किया जा रहा है और राष्ट्र द्वारा इस भारी क़ीमत को चुकाने के बाद निजी क्षैत्र के दो चार घरानों को पुरस्कृत किया जा रहा है।
यह सर्वविदित है कि पं. नेहरु और श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा स्थापित देश के समग्र सार्वजनिक उपक्रमों की बदौलत ही वर्तमान दौर की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी से भारत लगभग सुरक्षित निकल जाने में सफल रहा है। हालांकि यूपीए की प्रथम पारी के दौरान वामपंथ के निरंतर दबाव के कारण सार्वजनिक उपक्रमों को निजी क्षैत्र में नहीं बदला जा सका और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम, नरेगा इत्यादि की योजनाएं लागू करने के लिए वामपंथ ने जो शर्तें रखी थी उसका राजनैतिक लाभ यूपीए को अपनी दूसरी पारी में भले ही हुआ हो, लेकिन अब सरकार के तथाकथित पूंजीवाद समर्थक आर्थिक सलाहकार इन्ही दुधारु सार्वजनिक उपक्रमों को ख़त्म करने पर तुले हुए हैं। बीएसएनएल, बैंक, बीमा और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों के बारे में नित नये-नये भ्रम फैलाए जा रहे हैं। निजीकरण की ज़हरीली गोली को तात्कालिक लाभ की चाशनी में डुबोकर परोसा जा रहा है।
बीएसएनएल सनातन से या 1956 से सार्वजनिक उपक्रम नहीं था अर्थात हम उस PSU में करते हैं जो कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत नहीं आता अत: स्पष्ट है कि प्रसार भारती की तरह बीएसएनएल के सेवारत कर्मचारियों को केंद्रिय सरकारी कर्मचारी का स्टेटस रखा जाना चाहिए। पहले से ही ये सुविधा आईटीएस अधिकारियों को प्राप्त है लेकिन ग्रुप सी एंड डी के कर्मचारियों को नज़रअंदाज़ क्यों किया जा रहा है? कुटिल प्रबंधन का प्रबल प्रतिरोध भी कर्मचारियों को झेलना पड़ रहा है, और मान्यता प्राप्त संगठन बीएसएनएलईयू तथा उसके महासचिव कॉ. वी ए एन नंबूदरी को अपमानित करने, उपेक्षा करने में सरकार को तथाकथित पालतु काग़ज़ी संगठनों का भी सहयोग मिल रहा है।
युनाईटेड फोरम तथा सीपीएसटीयू का आह्वान है कि बीएसएनएल के तीन लाख कर्मचारी-अधिकारी एकजुट होकर अपनी जायज़ आर्थिक मांगों के लिए तो संघर्ष करें ही, भयानक आर्थिक मंदी और गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में अपने उपक्रम- बीएसएनएल को बचाने के लिए भी संघर्ष की ज़रुरत है। इस बाबत कॉ. नंबूदरी ने सारे देश से सुझाव मंगाकर मैनेजमेंट के समक्ष ठोस कार्ययोजना भी प्रस्तुत की है। आशा है सभी शाखा सचिव/ज़िला सचिव/सर्कल सचिव अपने-अपने क्षैत्र में तत्संबंधी संघर्ष के लिए तैयार होंगे। क्रांतिकारी अभिवादन सहित। धन्यवाद
आपका साथी
श्रीराम तिवारी
संगठन सचिव- बीएसएनएलईयू
ब्लाग जगत में आपका स्वागत है। बहुत दिनों से आपके ब्लाग को देख रहा हूं। एक शानदार जनवादी ब्लाग देखने को मिला!
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही लिखा है आपने, अगर अब भी एकजुट न हुवे तो सब कुछ खत्म समझो।
धन्यवाद... सुझावों के इतंज़ार में.... साथी श्रीराम
जवाब देंहटाएंJeevan chalne ka naam chalte raho subah shaam ... nirashaa ki koi baat nahi , yaah baadal bhi chaat jayenge, kaali raat bhi beet jayegi, intzaar hai sunhari subah ka , bus jagte raho, satark raho, chor puri koshish kar raha hai, kahi hum batiyate hi naa rah jaaye aur choti si jeet ki khushi me sab kuch naa loot jaaye ....
जवाब देंहटाएंM K Yadav
PRATIKRIYA KE LIYE DHANYABAD
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