मंगलवार, 19 मार्च 2024

मानव शरीर धारण करने का यही अभीष्ठ है!

 संस्कृत वाँज्ञ्मय में कहा गया है :-

“परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः !
परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् !!"
अर्थ -: परोपकार के लिए ही वृक्ष फल देते हैं, नदियाँ परोपकार के लिए ही बहती हैं और गायें परोपकार के लिए ही दूध देती हैं।
अर्थात् यह मानव शरीर और मन बचन कर्म परोपकार के लिए ही हैं! मानव शरीर धारण करने का यही अभीष्ठ है!
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