महाशिवरात्रि के दिन नहीं हुआ था शिव पार्वती या शिव सती का विवाह
आइए शिव पुराण से देखते हैं-:
शिव और भगवती सती के विवाह के विषय में शिव पुराण के रुद्र संहिता के सती खंड में अध्याय नंबर 18 में श्लोक संख्या 20 में तथा
1) चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में रविवार को पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में भगवान महेश्वर ने विवाह के लिए यात्रा तथा विवाह कार्य संपन्न किया
( रुद्र संहिता सती खंड शिव महापुराण)
अब भगवान शंकर और माता पार्वती के विवाह तिथि के विषय में शिव पुराण क्या कहती है देखते हैं
शिव पुराण के रूद्र संहिता के पार्वती खंड के अध्याय नंबर 35 के श्लोक संख्या 58 से 60 तक मे
वशिष्ठ जी हिमालय जी को कहते हैं कि-:
एक सप्ताह बीतने पर एक दुर्लभ उत्तम शुभ योग आ रहा है उस लग्न में लग्न का स्वामी स्वयं अपने घर में स्थित है और चंद्रमा भी अपने पुत्र बुद्ध के साथ स्थिति रहेगा। चंद्रमा रोहिणी युक्त होगा मार्गशीर्ष का महीना है।
सोमवार का दिन है।
इस शुभ योग में आप अपनी पुत्री को शिवजी के लिए समर्पित करके कृत्य हो जाइए
( शिव महापुराण रूद्र संहिता पार्वती खंड)
इन दोनों प्रमाणो से यह बात सिद्ध होती है कि शिव जी का विवाह महाशिवरात्रि के दिन नहीं हुआ था क्योंकि महाशिवरात्रि तो फाल्गुन मास में पड़ती है।
तो आईए जानते हैं की महाशिवरात्रि के दिन असल में हुआ क्या था। क्यों इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है और यह इतनी महत्वपूर्ण क्यों है जानते हैं इसका भी उत्तर शिव महापुराण में ही दिया गया है।
शिव महापुराण के विद्येश्वर संहिता के
अध्याय नंबर 8 के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शंकर जी ने सबसे पहले ब्रह्मा और विष्णु को अपने साकार स्वरूप का दर्शन कराया था।
निराकार से साकार हुए थे
तथा शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे
इसलिए इस दिन शिवरात्रि मनाई जाती है और शिव पूजन किया जाता है
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