शनिवार, 24 जून 2023

वेदान्त दर्शन:-

भारतीय / हिन्दू दर्शन की आस्तिक धाराओं

में वेदान्त दर्शन ज्ञानयोग का एक स्रोत है,जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद हैं, जो वेद ग्रंथो और वैदिक साहित्य का सार समझे जाते हैं। उपनिषद् वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसीलिए इसको वेदान्त कहते हैं।
कर्मकांड और उपासना का मुख्यत: वर्णन मंत्र और ब्राह्मण ग्रंथों में है, ज्ञान का विवेचन उपनिषदों में है ! 'वेदान्त' का शाब्दिक अर्थ है - 'वेदों का अंत' (अथवा सार)।
वेदान्त की तीन शाखाएँ जो सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं वे हैं: अद्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत। आदि शंकराचार्य, रामानुज और श्री मध्वाचार्य जिनको क्रमश: इन तीनो शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता है! इनके अलावा भी ज्ञानयोग की अन्य शाखाएँ भी हैं। ये शाखाएँ अपने प्रवर्तकों के नाम से जानी जाती हैं!
जिनमें भास्कर, वल्लभ, चैतन्य, निम्बार्क, वाचस्पति मिश्र, सुरेश्वर और विज्ञान भिक्षु। आधुनिक काल में जो प्रमुख वेदान्ती हुये हैं उनमें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, अरविंद घोष,स्वामी शिवानंद करपात्री जी महाराज और रमण महर्षि उल्लेखनीय हैं। ये आधुनिक विचारक अद्वैत वेदान्त शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
दूसरे वेदान्तो के प्रवर्तकों ने भी अपने विचारों को भारत में भलीभाँति प्रचारित किया है परन्तु भारत के बाहर उन्हें बहुत कम जाना जाता है।संत ज्ञानेश्वर महाराज, तुकाराम महाराज आदि. संत पुरुषोने वेदांत के ऊपर बहुत ग्रंथ लिखे है ! आज भी लोग इन संतो के उपदेशों का अनुकरण करते है।

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