जब तक यूपी के चुनाव परिणाम नहीं आये, तब तक मैंने तहेदिल से चाहा कि भले ही सपा ,वसपा या अखिलेश और राहुल का अस्थायी गठबंधन यूपी की सत्ता में आ जाए,किन्तु भाजपा की हार सुनिश्चित हो !और तमन्ना की थी कि मोदी जी और उनका पूँजीवादी कुनबा कभी कामयाब न हों ! लेकिन यूपी में सब कुछ उलटा -पुल्टा ही हो गया। किसी ने ठीक ही कहा है 'हर किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता' सो वह मुझे भी नहीं मिला ! यूपी की जनता ने भरपल्ले से -तीन चौथाई बहुमत के साथ भाजपा को जिता दिया।ऐंसा लगा जैसे दिल के अरमाँ आंसुओं में बह गए ! पुरानी भदेस कहावत याद आ गयी -'कौओं के कोसने से ढोर नहीं मरते' ! अब यदि मोदी जी और भाजपा नेता किसी काले चोर को मुख्यमंत्री बनायें या किसी छद्म योगी को मुख्यमंत्री बनायें या तीन चौथाई बहुमत का मजाक उड़ाएं ,यह उनका आंतरिक मामला है। हमें तो गोस्वामी तुलसीदास की यह चौपाई स्मरण रखना है की ''कोउ होय नृप हमें का हानी ,चेरी छोड़ होहिं का रानी ''!
मैं यूपी का मतदाता नहीं हूँ ,भाजपा समर्थक नहीं हूँ ,फिर भी यूपी की जनता के जनादेश का आदर करता हूँ !लेकिन भारतीय लोकतंत्र की हत्या होते नहीं देख सकता। ३२५ में से यदि एक भी 'योग्य' भाजपाई विधायक नहीं है तो एक नकली योगी पर भरोसा कैसे किया जा सकता है ? वह व्यक्ति 'योग्य' कैसे हो सकता है जिसे जनादेश ही नहीं दिया गया ? जिसके खिलाफ हत्या जैसे आधा दर्जन गंभीर मुकद्दमे कायम किये गए हों !यूपी की जनता को कमसे कम इस अंधेगर्दी पर अपना आक्रोश अवश्य व्यक्त करना चाहिये ! यदि मोदी जी या उनके कारकुन यूपी के नवनिर्वाचित ३२५ विधायकों में से किसी एक को भी मुख्यमंत्री लायक या उपमुख्यमंत्री लायक नहीं पाते तो यह यूपी की जनता का घोर अपराध है ! यदि जनता का कोई अपराध नहीं तो समस्त चुने गए ३२५ विधायकों का यह घोर अपमान क्यों ? जिन ४४ विधायकों को जातिगत आधार पर समायोजित करके यूपी का मंत्रिमंडल बनाया गया है, उसमें एक तिहाई तो वे चेहरे हैं जो चुनाव के पहले दल बदल करके कांग्रेस ,सपा,वसपा, भालोद से आये थे। जब वे भाजपा में नहीं थे तब पाप का घड़ा या घड़ियाल थे ,लेकिन अब वे भाजपा मंत्रिमंडल में शामिल हैं ,इसलिए प्रतिष्ठित हैं ,परम पवित्र हैं।
यूपी की जनता को और नव निर्वाचित विधायकों को भी गंभीरता से सोचना होगा कि मुख्यमंत्री के चुनाव में और सरकार के गठन में कहीं कोई चूक तो नहीं हुई ? कहीं लोकतंत्र का मजाक तो नहीं उड़ाया जा रहा है ?क्योंकि असली गोरखपंथी योगी सन्यास धारण कर घर-घर 'भवति भिक्षाम देहि'की अलख जगाता है !वह अपने आराध्य - महादेव शिवकी भांति 'अलख निरंजन' में नित्य लींन रहता है! वह सत्ताके लिए लोकतंत्र की उपासना नहीं करता!वह हिन्दू, मुस्लिम ,दलित, ब्राह्मण ,ठाकुर से भी परे होता है !क्या श्री आदित्यनाथ वाकई ऐसे ही सिद्ध योगी हैं ? यदि हाँ तो फिर उन्हें गोस्वामी तुलसीदास जी का यह आप्त वाक्य क्यों याद नहीं रहा कि- 'संतन्ह को का सीकरी सों का काम '?
जो लोग धर्म,नैतिकता और आदर्श का लबादा ओढ़कर राजनैतिक बढ़त हासिल करते हैं ,उनकी धर्म -आस्था खोखली होती है। यदि उनका ईश्वरीय विश्वाश किसी पारलौकिक उन्नति के लिए नहीं अपितु इहलौकिक उन्नति के लिए होता है,तो फिर उनका परिव्राजक होना या योगी होना केवल ढोंग है। एक परिव्राजक या एक योगी के लिए इस धरती पर कोई भी वस्तु छद्म माया मात्र ही है। मायिक संसार का आनन्द लेने के लिए कोई व्यक्ति धर्म और आस्था का दुरूपयोग करता है तो वह पाखण्डी है। यदि कोई योगी अपना योग छोड़कर राजनीतिक पद अथवा राजसत्ता का मोह पालता है तो वह अपरिग्रही नहीं रहा । बिना अपरिग्रह के कोई मनुष्य योग को प्राप्त नहीं कर सकता। यदि कोई व्यक्ति असली योगी है तो वह 'ईशरीय इच्छा'का सम्मान अवश्य करेगा,वह अपने धर्म गुरुओं के पवित्र सन्देशों की अनदेखी नहीं करेगा और 'राग-द्वेष' में कभी नहीं फसेगा।मोदीजी कभी परिव्राजक थे, अब प्रधानमंत्री हैं। योगी आदित्यनाथ अभी भी 'योगी' की उपाधि धारण करते हैं और वे मुख्यमंत्री भी हैं। लोकतंत्र में वेशक उन्हें यह अधिकार है ,किन्तु हिंदुत्व की धार्मिक आस्था और ऋषि परम्परा के अनुसार कदाचित यह सही नहीं है। परिव्राजक होकर मोदी जा का पीएम हो जाना और योगी होकर आदित्यनाथ का सीएम हो जाना ही यदि 'हिंदुत्ववाद' है तो शंकराचार्यों को पीएम और सभी महामण्डलेश्वरों को सीएम क्यों नहीं बना देते ?
यूपी में इतना प्रचण्ड बहुमत मिलने के बाद लोगों को बहुत उम्मीद थी किशपथ ग्रहण समारोह के दरम्यान पीएम खुद कोई सार्थक घोषणा तत्काल करते। कम से कम चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने जो कुछ यूपी वालों से वादे किये ,उसका एक सहस्त्रांश वाक्य तो स्वीकार करते। किन्तु बजाय किसानों के कर्ज पर कोई बात करने के तमाम 'रामभक्त' जनता पर ऐंसे टूट पडे ,मानों पिंडारियों का गिरोह ही यूपी पर चढ़ आया हो ! टोल नाके पर मार कुटाइ,'रोमियो स्क्वाड' की असंवैधनिक गुंडागर्दी,सत्ताधारी दल के लोगों का उदण्ड स्वच्छन्द व्यवहार 'हिंदुत्व' तो कदापि नहीं है। खजुराहो,कोणार्क,अजन्ता, एलोरामें 'रति-कामदेव' की चित्र -विचित्र झाँकियाँ,नाथपन्थ -गोरखपंथ के परम आराध्य भगवान् शिव और उनकी अर्धांगनी -शक्तिस्वरूप पार्वती का रतिभाव प्रतीकात्मक विग्रह किसी 'रोमियो' या पिकासो ने नहीं बनाये हैं। भारत में फैली शैव परम्परा के खजुराहो नुमा दृश्य और राधाकृष्ण की प्रेम कहानी को अध्यात्म जागत ने सर माथे लिया है। यदि 'रोमियो जूलियट' या 'सीजर एन्ड क्लियोपेट्रा'अथवा एंटनी एंड क्लियोपेट्रा' इस भारत भूमिमें पैदा हुए होते,तो हिंदुत्ववादी भक्त 'राधेकृष्ण' सीताराम ,शिव -पार्वती की तरह उनका भी जाप करते। गनीमत है कि इस्लाम में बुतपरस्ती का कट्टर निषेध है,वरना तमाम कामुक और अश्लील मूर्तियोंके निर्माणका ठीकराभी मुसलमानों के माथे मढ़ दिया गया होता! हालांकि इसका आशय यह कदापि नहीं कि अतीत के हमलावर मुस्लिम शासक कोई दयालु-कृपालु संत महात्मा थे ! वे सौ फीसदी खूंखार और बर्बर थे!
मोदी जी ने स्वेच्छा से यदि आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बनाया है तब और अधिक चिंता की बात है क्योंकि यूपी विजय का श्रेय इन योगी जी को कदापि नहीं है। बल्कि मोदीजी अमित शाह के प्रयत्नों की बदौलत और सपा-बसपा के कुकर्मों के कारण यह विजय सम्भव हुई है। लोकतंत्र की परम्परा के मुताबिक जीते हुए विधायकों में से ही किसी एक को यूपी विधान सभा का नेता चुना जाना चाहिए था। लेकिन एक सांसद को सीएम और एक अन्य सांसद को डिप्टी सीएम यह किसीभी दृष्टि से बाजिब नहीं है। पूर्व में कांग्रेस और अन्य दलों ने भी ऐंसा किया होगा। किन्तु 'राष्ट्रवाद' और 'देशभक्ति' का दावा करने वाली 'पार्टी बिथ डिफरेंट' को यह कतई मुनासिब नहीं था की वह गलत परम्परा का अनुगमन करे ! यदि मोदीजी ने किसी मजबूरी में योगी आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बनाया है तो यह भाजपा में सिर फुटौवल को बयाँ करने के लिए काफी है!इससे यह सावित होता है कि यूपी में जीते हुए नेताओं पर मोदी जी का नियंत्रण नहीं है। और जब अपनी पार्टी पर ही उनका नियंत्रण नहीं है, तो यूपी की जनता का उद्धार वे कैसे कर सकेंगे ?
प्रसिद्ध विधिवेत्ता 'फाली नरीमन ' के इस विचार से सहमत होना कठिन है कि मोदीजी ने यूपी में एक योगी को मुख्यमंत्री बना दिया तो भारतीय संविधान खतरे में पढ़ गया है । भारतीय संविधान की चिंता उन्हें बिलकुल नहीं करनी चाहिए। क्योंकि भारतीय संविधान इतना कमजोर नहीं है कि एक मुख्यमंत्री के गेरूवे वस्त्रों से खतरे में पड़ जाए ! नरीमन साहब भारतीय सम्विधान कोई कुम्हड़े की वेलि नहीं 'जो तर्जनी देख मुरझाहीं '! वैसे भी जिन्हें इस मौजूदा संविधान की बदौलत बड़े-बड़े मंत्री पद और सरकारी पद मिले ,नौकरियाँ मिलीं और आधी शताब्दी जिन्होंने बिना योग्यता के केवल संविधान की आड़ में ऐश किया वे भी तो इस संविधान की कुछ चिन्ता करेंगे !
फाली नरीमन साहब का ऐलान है कि एक योगी को यूपी का मुख्यमंत्री बना देने से भारत में हिन्दुराष्ट्र की बुनियाद रखी गई है। इसी तरह कुछ धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्रवादी भी बैचेन हैं कि भगवा वस्त्र धारण किये हुए एक योगी को ही मुख्य मंत्री बना दिया-हाय अब क्या होगा? अव्वल तो यह 'गांव वसा नहीं -मांगने वाले पहले पहुँच गए' जैसी बात हो गयी ! आलोचना गेरुए वस्त्रों की अथवा किसी योगी की नहीं, बल्कि आलोचना उन खतरनाक नीतियों की और कार्यक्रमों की होनी चहिये जिनसे देश को खतरा है। संविधान तो देशका रक्षाकबच है यदि वह रक्षाकबच ही खतरे में है तो उसे गले में लटकाये हुए उसकी असफलता का मातम मनाना बुद्धिमानी नहीं है !दरसल भारत को मोदीजी और योगी जी से नहीं बल्कि उद्दंड पूँजीवाद ,बेरोजगारी और भृष्ट सिस्टम से खतरा है। इसके लिए सिर्फ योगी जी या मोदी जी ही जिम्मेदार नहीं हैं। इसके लिए अतीत का हर शासक जिम्मेदार है।
यूपी चुनाव में सपा,वसपा तथा कांग्रेस की हार के बहाने पिछड़ावाद,दलितवाद और अल्पसन्ख्यकवाद के चुनावी सिद्धांत की बुरी तरह धुनाई हुई है। ऊपर से तुर्रा यह कि जले पर नमक छिड़कते हुए कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया है। लेकिन इस दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावाद से लड़ने का माद्दा केवल उसी में हो सकता है जो धर्मनिरपेक्षतावादी हो ,जो लोकतंत्रवादी हो ! असदुददीन ओवेसी या आजमखाँ की औकात नहीं कि वे अपनी साम्प्रदायिक जुबान से योगी आदित्यनाथ या नरेद्र मोदी का सामना कर सकें ! क्योंकि नमक से नमक नहीं खाया जाता ! ईसा मसीह का बचन भी स्मरण रखें कि पापी को पत्थर वही मारे जिसके हाँथ पाप से अछूते हों !
आजमख़ाँ को आइंदा अब अपनी भैंसों पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि यूपी पुलिस अब दूसरे काम पर लगाने वाली है। और असदुद्दीन ओवेसी को उन भटके हुए भारतीय युवा लड़कों की फ़िक्र करनी चाहिए जो सीरिया-ईराक में आईएसआईएस की चपेट में आकर बर्बाद हो रहे हैं ! हिन्दुत्वाद से लड़ने की तो वे बात ही ना करें !उसके लिए भारत की ७० % धर्मनिरपेक्ष जनता सक्षम हैं!जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी शामिल हैं !इस धर्मनिरपेक्ष जनता ने वक्त आने पर हर दौर में अपनी शानदार भूमिका अदा की है।अभी यूपी चुनाव की बात कुछ जुदा है! वहां ३० साल से जातीयवाद, और अल्पसंख्यकवाद का गठजोड़ चल रहा था, उसमें सड़ांध आ गई थी , इसलिए इस बार जनता की गफलत से योगी सरकार बन गयी। लेकिन ध्यान रहे कि 'रहिमन हांडी काठ की चढ़े न दूजी बार !' वक्त आने पर भारत की जनता शहीद भगतसिंह के वोल्शेविक सिद्धांतों को जरूर अपनाएगी !
यूपी की राजनीति में आगामी दिनों में कुछ भी सामान्य नही रहने वाला !क्योंकी जो 30 साल से जीम रहे थे वे अब खाली बैठे हैं और खाली दिमाग शैतान का घर होता है ,इसलिये बड़ी द्वंदात्मक स्थिति निर्मित होने वाली है !भाजपा को प्रचण्ड बहुमत मिलने और योगी आदित्यनाथ के सी एम बनने से धर्म -अध्यात्म की पूँछ परख बढ़ने की कोई सम्भावना भले न हो किन्तु साम्प्रदायिक वैमनस्य जरूर बढेंगा !नाथपंथ का अब तक आप्त वाक्य था -" जाग मछन्दर गोरख आया " आइन्दा नया मंत्र यह हो सकता है -" जाग बबंण्डर योगी आया " !
श्रीराम तिवारी !
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