१९८० में जब जनता पार्टी टूटी तो उसके हिन्दुत्वादी धड़े ने मुम्बई में नई पार्टी बनाई। नाम रखा गया 'भारतीय जनता पार्टी '!तब उसके संस्थापक अध्यक्ष अटल बिहारी बाजपेई ने पार्टी घोषणा पत्र में 'गांधीवादी समाजवाद'का सिद्धांत पेश किया था। उसके दो साल बाद हुए लोक सभा चुनाव में भाजपा को ५४० लोक सभा सीटों में से सिर्फ दो सीटें मिलीं। दुनिया ने मजाक उड़ाया। मैंने भी खूब उपहास किया। लेकिन जब वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर हिन्दू समाज के दूध में आरक्षण का नीबू निचोड़ा तो साईं आडवाणीजी 'कमण्डल'लेकर रथ यात्रा पर निकल पडे। अयोध्याकाण्ड हुआ ,गोधराकांड हुआ और हरेक साम्प्रदायिक दंगे के बाद भाजपा का राजनैतिक कद बढ़ता चला गया। लेकिन यूपी और बिहार में मंडलवाद का खासा असर होने से कमण्डल पिछड़ गया था। जब मोदी जी ने 'विकासवाद' और 'हिंदुत्ववाद' दोनों का सहारा लेकर मोर्चा संभाला तो उन्हें पर्याप्त सफलता मिली। परिणाम स्वरूप यूपी में अभी तो सारे 'बाद' कोमा में हैं ! उम्मीद है कि भाजपा वाले अपनी इस जीत से बौरायेंगे नहीं। क्योंकि जनता का कोई भरोसा नही बड़ी जल्दी नाराज हो जाती है। १९७७ में इंदिराजी को बुरी तरह परास्त किए और जब जनता पार्टी ढाई साल में ढेर हो गई तो १९८० में फिर इंदिराजी को सत्ता सौंप दी।
आरक्षण की बढ़ती भूंख से हिन्दू समाज का अंदरूनी जातीय संघर्ष बहुत तेज होता जा रहा था। उत्तरप्रदेश की जनता ने ३० साल जो भुगता है उसके परिणामस्वरूप उतपन्न जनाक्रोश ने ही भाजपा को विजयश्री दिलाई है।हिन्दू समाज के इस विखण्डन का फायदा सिर्फ लालू,मुलायम या ममता, मायावती ने ही नहीं बल्कि का कुछ अल्पसंख्यक नेताओं ने भी बेजा फायदा उठायाहै। सिर्फ आजमख़ाँ ,ओवेसी ही नहीं नीतीश और केजरीवाल ने भी इसका बेजा फायदा उठाया। लेकिन यूपी की जनता ने अभी जो जनादेश दिया है ,उससे इस जातीयतावाद पर कुछ विराम लगेगा और बाकई ''सबका साथ -सबका विकास' ही भारत का मूल मन्त्र हो सकता है। इसलिए मोदी जी और अमित शाह के नेतत्व में भाजपा को मिली इस जीत का तहेदिल से स्वागत किए जाना चाहिए। इन चुनावों के मार्फ़त यूपी की जनता ने पिछड़ावाद,दलितवाद,अल्पसंख्यकवाद और गुण्डावाद पर जमकर प्रहार किया है। बधाई ! धन्यवाद ! यदि भाजपा के नेतत्व में देश का और गरीबों का उद्धार होता है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन मेहनतकश जनता को चाहिए कि अपने वर्गीय संगठनों का निर्माण करें। ताकि जब भाजपा और मोदी जी असफल हो जाएं तो 'वामपंथ' के नेतत्व में देश का मजूर-किसान सत्ता सम्भल सके !
जब कभी तर्कबुध्धि और विवेकबुद्धि चकरघिन्नी होने लग जाए,तो भाववाद के उस सिद्धांत को इस्तेमाल करने में कोई उज्र नहीं,जिसके अनुसार ''जो होता है अच्छे के लिए होता है ,जो हो रहा है वह भी गुजर जाएगा,आगे भी जो होगा सही होगा,कर्मफल की इच्छा मत करो,तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने मात्र पर है ,कर्मफल तो ईश्वर के हाथ में है ''! चूँकि तार्किकता - बौद्धिकता का अब भारतीय राजनीति में कोई काम नहीं ,अब तो लठैतों के अच्छे दिन आये हैं। इसलिए यूपी की उस जनता को धन्यवाद, जिसने छोटे लठैत- लठैतनियों की जगह बड़े लठैतों को चुना है। आशा है कि केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होने से अब यूपी का उद्धार अवश्य होगा ! यदि यूपी का उद्धार होगा तो गंगा का उद्धार अवश्य होगा,यदि यूपी का विकास होगा तो बिहार भी जातिवाद से मुक्त हो जाएगा। यदि यूपी में जातिवादी- अल्पसंख्यकवादी टेक्टिकल वोटिंग असफल हो गयी तो पूरे भारत में स्वच्छ लोकतान्त्रिक चुनाव की सम्भावना बढ़ेगी। तब जातीय संघर्ष की जगह 'वर्ग संघर्ष' होने लगेगा और वर्ग चेतना का विस्तार होगा। वर्ग चेतना से असली समाजवादी क्रांति का सूत्रपात होगा। इसलिए प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष लोगों को चाहिए कि यूपी में भाजपा की जीत को सकारात्मक रूप में देखें। उत्तरप्रदेश की राजनीति को जो जातीयता और साम्प्रदायिकता का काँटा लगा था ,वो निकल गया। लेकिन जख्म अभी हरा है और काँटा निकालने वालों की नियत पर कुछ लोगों को शक है !
एक नजरिया काबिले गौर है। यूपी में भाजपा रुपी दक्षिणपंथ की महाविजय को देखने सुनने के वावजूद भी यदि कोई मेरी तरह अब भी 'सर्वहारा क्रांति' के प्रति आशावान है,तो उसे यह स्वीकार करना चाहिए कि जब तक यह भारत देश असुरक्षित है ,जबतक बहुसंख्यक हिन्दू समाज को यकीन नहीं हो जाता,कि अतीत के सामंती दौर की तरह अब उनका अस्तित्व खतरे में नही है,जब तक वे यह नहीं समझ लेते कि उन्हें अब इस्लाम या ईसाइयत से नहीं बल्कि जातीयतावाद और सम्प्रदायकता युक्त पूँजीवाद से ही भयानक खतरा है ,तब तक वे सर्वहारा क्रांति के लिए तैयार नहीं होंगे। यदि किसी की तमन्ना है कि भारत में मजूरों-किसानों की और आम जनता की वास्तविक सत्ता हो,तो उसे इस दौर की राजनैतिक स्थिति का स्वागत करना चाहिए! यदि कांग्रेस का विकल्प वामपंथ नहीं बन पाया तो इसमें किसी की कोई गलती नहीं ! क्योंकि भारत एक अर्ध सामंती अर्ध पूँजीवादी पुरातन पंथी धर्म -प्रधान राष्ट्र है। भारत का बहुसंख्यक हिन्दू समाज अभी भी अतीत की गुलामी को भूल नही पाया है।इसलिए उसे विदेशी शराब तो पसन्द है ,विदेशी औरत पसन्द है ,विदेशी चिकित्सा पद्धति पसन्द है ,विदेशी कम्प्यूटर,मोबाइल कपडे और जूते भी पसन्द हैं ,उसे विदेशी डेमोक्रसी और उसका संविधान भी पसन्द है ,उस विदेशी विचारधारा आधारित पूँजीवाद भी पसन्द है ,किन्तु मजदूर -किसान की पक्षधर शोषणमुक्त साम्यवादी शासन व्यवस्था पसन्द करने में झिझक रहा है। यही वजह है कि हिंदी भाषी राज्यों में वामपंथ को उचित रिस्पांस नहीं मिल पा रहा है !देश में जब तक कोई उचित व्यवस्था परिवर्तन नहीं होता तब तक कांग्रेस और भाजपा को यदि देश सम्भालने का अवसर मिलता है तो वह उतना बुरा नही जितना कि सपा,बसपा ,तृणमूल,अकाली,जदयू,राजद,एआईडीएमके और अन्य क्षेत्रीय दलों ने देश को और समाज को बरगलाया है। इसलिए यूपी में भाजपा की जीत पर पीएम मोदी और अमित शाह को बधाई दी जानी चाहिए।
यदि इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया मनोरंजन को माइनस कर दिया जाए, तो प्रस्तुत चुनावों में किसी ने कुछ नहीं खोया। ये बात अलग है कि मायावतीजी ने आपा खो दिया है और कुछ भाजपा समर्थक-मोदीभक्त भी आपा खोने की ओर अग्रसर हैं। इन चुनाव परिणामों से तो यही लगता है कि सबको वही मिला जो जिसके लायक था। जिनकी जमानत जब्त हुई वे उसी काबिल थे। जो भीतरघात या कम वोटिंग से कम मतों से हारे वे यह सोच कर सन्तोष करें कि 'हरि इच्छा भावी बलवाना' ! उनकी आस्था और पूजा में शायद कोई कमी रही होगी,इसलिए बाबा विश्वनाथ ने सौ -दो सौ वोटों से निपटवा दिया। क्योंकि बाबा विश्वनाथ तो इस बार अपने परम भक्त नरेन्द्र मोदीजी की झोली लबालब भरने में व्यस्त थे। इसलिए भौतिकवादी और भाववादी दोनों ही दर्शन के मुताबिक इन चुनावों में सब कुछ ठीक ही हुआ है।
विगत २०१४ के लोकसभा चुनाव में भाजपा को बम्फर बहुमत मिला था ,उसमें एमपी, यूपी-बिहार ,राजस्थान का सर्वाधिक योगदान रहा था।उसके कुछ समय बाद दिल्ली ,बिहार विधान सभा चुनाव में जब भाजपा और मोदीजी को बड़े बड़े झटके लगे,तो देश और दुनिया में कुछ इस तरह की धारणा बनने लगी कि नरेन्द्र मोदीके अश्वमेध का घोडा अब और आगे नहीं बढ़ सकता। मोदी सरकार की कालाधन स्कीम टांय-टॉय फीस होने पर आरोप लगे कि ये भी केवल बातों के धनी ही निकले। मोदीजी की तमाम घोषणाओं,वादों ,जुमलों और तूफानी दौरों से जनता को विगत ढाई-तीन साल में कोई उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल नहीं हुई। मोदी सरकार ने सिवाय कांग्रेसके कार्यक्रमों के नामपट्ट बदलने और नोटबंदी जैसे अदूरदर्शी फैसलों के अलावा अभी तक कुछ खास नहीं किया।किन्तु यूपी में बाबा विश्वनाथजी ने मोदीजी को उबार दिया! जयहो बाबा भोलेनाथ! इसी प्रकार देश के निर्धन शोषित जनपर भी कभी थोड़ी सी कृपा कर देना।
भारतीय लोकतंत्र की चुनावी नाव में इतने छेद हैं कि इसे वास्तविक किनारा कभी नहीं मिला। प्रस्तुत पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी ने व्यक्तिगत रूपसे बहुत बढ़चढ़कर अपनी पार्टीके लिए प्रचार किया। उनके अथक प्रयासों से अंततोगत्वा बहुसंख्यकवाद बनाम हिंदुत्ववाद की नाव को यूपी में किनारा मिल ही गया। उत्तराखण्ड और यू पी में भाजपा की बम्फर जीत का श्रेय निसन्देह पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम मोदीजी को ही जाता है। उनके धुंआधार जबरजस्त प्रचार के सामने गरीबी,भुखमरी ,बेकारी,नोटबन्दी ,राममंदिर ,हिदुत्व और विकास सब मुद्दे गौड़ होते चले गए। केवल एक ही नारा जनता को याद रह गया -'हर हर मोदी '!यूपी में जो कुछ हुआ उसके निहतार्थ यह हैं कि देश की जनता को जिन राजनैतिक दलों ने जाति ,धर्म,मजहब की राजनीती में धकेल दिया था वे अब आइंदा इतिहास के कूड़ेदान में जनर आएंगे।
देश के प्रगतिशील वामपंथी सोच वालों की हमेशा हार्दिक तमन्ना रही है कि भारत के केंद्र में और सभी राज्यों में मजूरों -किसानों की सरकार हो। और जबतक यह नहीं हो जाता तबतक देश में कम से कम कोई ऐंसी पूँजीवादी सरकार हो जो कमजोर वर्गों और शोषित पीड़ित जनताके लिए कुछ राहत प्रदान करे। कांग्रेस ने इस बाबत बहुत कुछ किया,किन्तु वह भृष्टाचार पर अंकुश लगानेमें असमर्थ रही। कांग्रेसकी यही गंभीर चूक भाजपा और मोदीजी के लिए वरदान सावित हुई। यही स्थिति यूपी में सपा ,वसपा के लंबे कार्यकाल की रही है। विगत ३० साल से यूपी की जनता जातिवादी राजनैतिक अखाड़ों के पहलवानों की गुलाम रही है ! पीएम नरेन्द्र मोदी ने यूपी विधान सभा चुनाव में मायावती ,मुलायम और आजमखां के उस मिथ को ध्वस्त कर दिया है कि जातीय -सम्प्रदायिक दलों के वोट अहस्तांतरणीय हैं। उत्तरप्रदेश में आरएसएस का 'सकल हिन्दू एकत्वाद' सफल रहा है। २०१४ के लोकसभा वाला अक्स अभी बरकरार है।यह सिलसिला २०१९ और २०२४ तक जारी रहेगा। जब मंदिर नहीं बनाये जाने पर अभी ये आलम है,तो मंदिर बनाये जाने पर हिन्दुत्वाद का उभार कितना प्रवल होगा? इसका अंदाज लगाना भी कठिन नहीं है।
यूपी में भाजपा को जीत मिली इससे देश की राजनीति के कुछ सकारात्मक सन्देश भी हैं। बक्त आने पर वामपंथ को भी मौका मिलेगा। जब १९८२ में दो सीट पाने वाली भाजपा आज बुलन्दियों को छू सकती है तो केडरबेस औरविचारधारा आधारित वामपंथ को जनता क्यों अवसर नही देगी ?लेकिन जिस तरह जनता ने कांग्रेस को अवसर दिया और उनकी नीतियों से नाराज होकर सत्ता से हटा दिया ,उसी तरह भाजपा भी जब उसके एजेंडे पूरे नहीं करेगी ,जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरेगी तब वामपंथ को भी अवसर मिलेगा ,बशर्ते आप,सपा और बसपा जैसी क्षेत्ररीय पार्टियों की खरपतवार समाप्त हो ! इसलिए यदि मोदी जी और अमित शाह इस खरपतवार को खत्म कर रहे हैं तो यह कांग्रेस और वामपंथ के लिए सुविधाजनक और अनुकूल ही है। श्रीराम तिवारी
आरक्षण की बढ़ती भूंख से हिन्दू समाज का अंदरूनी जातीय संघर्ष बहुत तेज होता जा रहा था। उत्तरप्रदेश की जनता ने ३० साल जो भुगता है उसके परिणामस्वरूप उतपन्न जनाक्रोश ने ही भाजपा को विजयश्री दिलाई है।हिन्दू समाज के इस विखण्डन का फायदा सिर्फ लालू,मुलायम या ममता, मायावती ने ही नहीं बल्कि का कुछ अल्पसंख्यक नेताओं ने भी बेजा फायदा उठायाहै। सिर्फ आजमख़ाँ ,ओवेसी ही नहीं नीतीश और केजरीवाल ने भी इसका बेजा फायदा उठाया। लेकिन यूपी की जनता ने अभी जो जनादेश दिया है ,उससे इस जातीयतावाद पर कुछ विराम लगेगा और बाकई ''सबका साथ -सबका विकास' ही भारत का मूल मन्त्र हो सकता है। इसलिए मोदी जी और अमित शाह के नेतत्व में भाजपा को मिली इस जीत का तहेदिल से स्वागत किए जाना चाहिए। इन चुनावों के मार्फ़त यूपी की जनता ने पिछड़ावाद,दलितवाद,अल्पसंख्यकवाद और गुण्डावाद पर जमकर प्रहार किया है। बधाई ! धन्यवाद ! यदि भाजपा के नेतत्व में देश का और गरीबों का उद्धार होता है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन मेहनतकश जनता को चाहिए कि अपने वर्गीय संगठनों का निर्माण करें। ताकि जब भाजपा और मोदी जी असफल हो जाएं तो 'वामपंथ' के नेतत्व में देश का मजूर-किसान सत्ता सम्भल सके !
जब कभी तर्कबुध्धि और विवेकबुद्धि चकरघिन्नी होने लग जाए,तो भाववाद के उस सिद्धांत को इस्तेमाल करने में कोई उज्र नहीं,जिसके अनुसार ''जो होता है अच्छे के लिए होता है ,जो हो रहा है वह भी गुजर जाएगा,आगे भी जो होगा सही होगा,कर्मफल की इच्छा मत करो,तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने मात्र पर है ,कर्मफल तो ईश्वर के हाथ में है ''! चूँकि तार्किकता - बौद्धिकता का अब भारतीय राजनीति में कोई काम नहीं ,अब तो लठैतों के अच्छे दिन आये हैं। इसलिए यूपी की उस जनता को धन्यवाद, जिसने छोटे लठैत- लठैतनियों की जगह बड़े लठैतों को चुना है। आशा है कि केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होने से अब यूपी का उद्धार अवश्य होगा ! यदि यूपी का उद्धार होगा तो गंगा का उद्धार अवश्य होगा,यदि यूपी का विकास होगा तो बिहार भी जातिवाद से मुक्त हो जाएगा। यदि यूपी में जातिवादी- अल्पसंख्यकवादी टेक्टिकल वोटिंग असफल हो गयी तो पूरे भारत में स्वच्छ लोकतान्त्रिक चुनाव की सम्भावना बढ़ेगी। तब जातीय संघर्ष की जगह 'वर्ग संघर्ष' होने लगेगा और वर्ग चेतना का विस्तार होगा। वर्ग चेतना से असली समाजवादी क्रांति का सूत्रपात होगा। इसलिए प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष लोगों को चाहिए कि यूपी में भाजपा की जीत को सकारात्मक रूप में देखें। उत्तरप्रदेश की राजनीति को जो जातीयता और साम्प्रदायिकता का काँटा लगा था ,वो निकल गया। लेकिन जख्म अभी हरा है और काँटा निकालने वालों की नियत पर कुछ लोगों को शक है !
एक नजरिया काबिले गौर है। यूपी में भाजपा रुपी दक्षिणपंथ की महाविजय को देखने सुनने के वावजूद भी यदि कोई मेरी तरह अब भी 'सर्वहारा क्रांति' के प्रति आशावान है,तो उसे यह स्वीकार करना चाहिए कि जब तक यह भारत देश असुरक्षित है ,जबतक बहुसंख्यक हिन्दू समाज को यकीन नहीं हो जाता,कि अतीत के सामंती दौर की तरह अब उनका अस्तित्व खतरे में नही है,जब तक वे यह नहीं समझ लेते कि उन्हें अब इस्लाम या ईसाइयत से नहीं बल्कि जातीयतावाद और सम्प्रदायकता युक्त पूँजीवाद से ही भयानक खतरा है ,तब तक वे सर्वहारा क्रांति के लिए तैयार नहीं होंगे। यदि किसी की तमन्ना है कि भारत में मजूरों-किसानों की और आम जनता की वास्तविक सत्ता हो,तो उसे इस दौर की राजनैतिक स्थिति का स्वागत करना चाहिए! यदि कांग्रेस का विकल्प वामपंथ नहीं बन पाया तो इसमें किसी की कोई गलती नहीं ! क्योंकि भारत एक अर्ध सामंती अर्ध पूँजीवादी पुरातन पंथी धर्म -प्रधान राष्ट्र है। भारत का बहुसंख्यक हिन्दू समाज अभी भी अतीत की गुलामी को भूल नही पाया है।इसलिए उसे विदेशी शराब तो पसन्द है ,विदेशी औरत पसन्द है ,विदेशी चिकित्सा पद्धति पसन्द है ,विदेशी कम्प्यूटर,मोबाइल कपडे और जूते भी पसन्द हैं ,उसे विदेशी डेमोक्रसी और उसका संविधान भी पसन्द है ,उस विदेशी विचारधारा आधारित पूँजीवाद भी पसन्द है ,किन्तु मजदूर -किसान की पक्षधर शोषणमुक्त साम्यवादी शासन व्यवस्था पसन्द करने में झिझक रहा है। यही वजह है कि हिंदी भाषी राज्यों में वामपंथ को उचित रिस्पांस नहीं मिल पा रहा है !देश में जब तक कोई उचित व्यवस्था परिवर्तन नहीं होता तब तक कांग्रेस और भाजपा को यदि देश सम्भालने का अवसर मिलता है तो वह उतना बुरा नही जितना कि सपा,बसपा ,तृणमूल,अकाली,जदयू,राजद,एआईडीएमके और अन्य क्षेत्रीय दलों ने देश को और समाज को बरगलाया है। इसलिए यूपी में भाजपा की जीत पर पीएम मोदी और अमित शाह को बधाई दी जानी चाहिए।
यदि इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया मनोरंजन को माइनस कर दिया जाए, तो प्रस्तुत चुनावों में किसी ने कुछ नहीं खोया। ये बात अलग है कि मायावतीजी ने आपा खो दिया है और कुछ भाजपा समर्थक-मोदीभक्त भी आपा खोने की ओर अग्रसर हैं। इन चुनाव परिणामों से तो यही लगता है कि सबको वही मिला जो जिसके लायक था। जिनकी जमानत जब्त हुई वे उसी काबिल थे। जो भीतरघात या कम वोटिंग से कम मतों से हारे वे यह सोच कर सन्तोष करें कि 'हरि इच्छा भावी बलवाना' ! उनकी आस्था और पूजा में शायद कोई कमी रही होगी,इसलिए बाबा विश्वनाथ ने सौ -दो सौ वोटों से निपटवा दिया। क्योंकि बाबा विश्वनाथ तो इस बार अपने परम भक्त नरेन्द्र मोदीजी की झोली लबालब भरने में व्यस्त थे। इसलिए भौतिकवादी और भाववादी दोनों ही दर्शन के मुताबिक इन चुनावों में सब कुछ ठीक ही हुआ है।
विगत २०१४ के लोकसभा चुनाव में भाजपा को बम्फर बहुमत मिला था ,उसमें एमपी, यूपी-बिहार ,राजस्थान का सर्वाधिक योगदान रहा था।उसके कुछ समय बाद दिल्ली ,बिहार विधान सभा चुनाव में जब भाजपा और मोदीजी को बड़े बड़े झटके लगे,तो देश और दुनिया में कुछ इस तरह की धारणा बनने लगी कि नरेन्द्र मोदीके अश्वमेध का घोडा अब और आगे नहीं बढ़ सकता। मोदी सरकार की कालाधन स्कीम टांय-टॉय फीस होने पर आरोप लगे कि ये भी केवल बातों के धनी ही निकले। मोदीजी की तमाम घोषणाओं,वादों ,जुमलों और तूफानी दौरों से जनता को विगत ढाई-तीन साल में कोई उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल नहीं हुई। मोदी सरकार ने सिवाय कांग्रेसके कार्यक्रमों के नामपट्ट बदलने और नोटबंदी जैसे अदूरदर्शी फैसलों के अलावा अभी तक कुछ खास नहीं किया।किन्तु यूपी में बाबा विश्वनाथजी ने मोदीजी को उबार दिया! जयहो बाबा भोलेनाथ! इसी प्रकार देश के निर्धन शोषित जनपर भी कभी थोड़ी सी कृपा कर देना।
भारतीय लोकतंत्र की चुनावी नाव में इतने छेद हैं कि इसे वास्तविक किनारा कभी नहीं मिला। प्रस्तुत पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी ने व्यक्तिगत रूपसे बहुत बढ़चढ़कर अपनी पार्टीके लिए प्रचार किया। उनके अथक प्रयासों से अंततोगत्वा बहुसंख्यकवाद बनाम हिंदुत्ववाद की नाव को यूपी में किनारा मिल ही गया। उत्तराखण्ड और यू पी में भाजपा की बम्फर जीत का श्रेय निसन्देह पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम मोदीजी को ही जाता है। उनके धुंआधार जबरजस्त प्रचार के सामने गरीबी,भुखमरी ,बेकारी,नोटबन्दी ,राममंदिर ,हिदुत्व और विकास सब मुद्दे गौड़ होते चले गए। केवल एक ही नारा जनता को याद रह गया -'हर हर मोदी '!यूपी में जो कुछ हुआ उसके निहतार्थ यह हैं कि देश की जनता को जिन राजनैतिक दलों ने जाति ,धर्म,मजहब की राजनीती में धकेल दिया था वे अब आइंदा इतिहास के कूड़ेदान में जनर आएंगे।
देश के प्रगतिशील वामपंथी सोच वालों की हमेशा हार्दिक तमन्ना रही है कि भारत के केंद्र में और सभी राज्यों में मजूरों -किसानों की सरकार हो। और जबतक यह नहीं हो जाता तबतक देश में कम से कम कोई ऐंसी पूँजीवादी सरकार हो जो कमजोर वर्गों और शोषित पीड़ित जनताके लिए कुछ राहत प्रदान करे। कांग्रेस ने इस बाबत बहुत कुछ किया,किन्तु वह भृष्टाचार पर अंकुश लगानेमें असमर्थ रही। कांग्रेसकी यही गंभीर चूक भाजपा और मोदीजी के लिए वरदान सावित हुई। यही स्थिति यूपी में सपा ,वसपा के लंबे कार्यकाल की रही है। विगत ३० साल से यूपी की जनता जातिवादी राजनैतिक अखाड़ों के पहलवानों की गुलाम रही है ! पीएम नरेन्द्र मोदी ने यूपी विधान सभा चुनाव में मायावती ,मुलायम और आजमखां के उस मिथ को ध्वस्त कर दिया है कि जातीय -सम्प्रदायिक दलों के वोट अहस्तांतरणीय हैं। उत्तरप्रदेश में आरएसएस का 'सकल हिन्दू एकत्वाद' सफल रहा है। २०१४ के लोकसभा वाला अक्स अभी बरकरार है।यह सिलसिला २०१९ और २०२४ तक जारी रहेगा। जब मंदिर नहीं बनाये जाने पर अभी ये आलम है,तो मंदिर बनाये जाने पर हिन्दुत्वाद का उभार कितना प्रवल होगा? इसका अंदाज लगाना भी कठिन नहीं है।
यूपी में भाजपा को जीत मिली इससे देश की राजनीति के कुछ सकारात्मक सन्देश भी हैं। बक्त आने पर वामपंथ को भी मौका मिलेगा। जब १९८२ में दो सीट पाने वाली भाजपा आज बुलन्दियों को छू सकती है तो केडरबेस औरविचारधारा आधारित वामपंथ को जनता क्यों अवसर नही देगी ?लेकिन जिस तरह जनता ने कांग्रेस को अवसर दिया और उनकी नीतियों से नाराज होकर सत्ता से हटा दिया ,उसी तरह भाजपा भी जब उसके एजेंडे पूरे नहीं करेगी ,जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरेगी तब वामपंथ को भी अवसर मिलेगा ,बशर्ते आप,सपा और बसपा जैसी क्षेत्ररीय पार्टियों की खरपतवार समाप्त हो ! इसलिए यदि मोदी जी और अमित शाह इस खरपतवार को खत्म कर रहे हैं तो यह कांग्रेस और वामपंथ के लिए सुविधाजनक और अनुकूल ही है। श्रीराम तिवारी
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