यह सोलह आने सच है कि पाकिस्तान का जन्म ब्रिटिश साम्राज्य और उसकी पालित-पोषित मुस्लिम लीग के 'द्विराष्ट्र' सिद्धांत की असीम अनुकम्पा से हुआ था। पाकिस्तान के जन्म के फौरन बाद उसके फौजी हुक्मरानों ने अमेरिका और सऊदी अरब की खेरात हासिल की। उन्होंने अपनी फौजी ताकत को बढ़ाया। कश्मीर पर कबाइली हमले की आड़ में भी पाकिस्तानी फौज ने ही हमला किया था । नेशनल कांफ्रेंस और डोगरा राजा हरिसिंह की खींचातानी का नाजायज फायदा उठाकर पाकिस्तान ने एक-तिहाई कश्मीर [पीओके]हथिया लिया। इसके बाद उन्होंने भारतीय हिस्से वाले कश्मीर में निरंतर मजहबी आतंकवाद फैलाना जारी रखा ।चूँकि तब दुनिया में शीतयुद्ध का भी दौर था। अमेरिका और सोवियत यूनियन [अब रूस] दुनिया में अपने -अपने खेमें की ताकत और रुतवा बढ़ा रहे थे। पाकिस्तान के नेताओं ने अमेरिका के आगे जल्दी घुटने टेक दिए। लेकिन भारतीय नेताओं ने 'गुटनिरपेक्षता' और धर्मनिरपेक्षता में यकीन बनाए रखा। भारत-पाकिस्तान के बीच का यह बुनियादी फर्क ही भारत को पाकिस्तान के सापेक्ष बढ़त दिलाता है और भारत का यह धर्मनिरपेक्ष ,गुटनिरपेक्ष स्वरूप उसे इंसानियत की ओर ले जाता है। जबकि अपने दुष्कर्मों से पाकिस्तान आज सारी दुनिया में आतंकवाद का बाप माना जाता है।
सीमा विवाद और कश्मीर विवाद में भारत ने जब अपनी अस्मिता से कोई समझौता नहीं किया तो चीन,पाकिस्तान और अमेरिका सभी भारत को घेरने लगे। तब इंदिराजी के प्रधानमंत्रित्व में भारत ने सोवियत संघ से के साथ सम्मानजनक 'संधि' कर ली। उस महान संधि की बदौलत ही भारत ने १९७१ के युद्ध में पाकिस्तान को पटकनी दी थेी । उस सोवियत संधि की बदौलत ही भारत ने १९७४ में पोखरण परमाणु विस्फोट भी कर लिया। भारत में अटॉमिक और स्पेस टेक्नालॉजी के विकास एवं स्टील उत्पादन के आधुनिकीकरण में भी सोवियत संघ की महती भूमिका रही है। सोवियत यूनियन की सोहबत का एक सकारात्मक असर यह भी रहा कि भारत ने जनवाद और धर्मनिरपेक्षता का दामन कभी नहीं छोड़ा। किन्तु पाकिस्तान का मजहबी- आतंकवादी हमला बदस्तूर जारी रहा। पाकिस्तान की शह पर कश्मीर आज भी धधक रहा है। भारत में कुछ लोग इस फसाद की जड़ 'धर्मनिरपेक्षता' और 'तुष्टीकरण' की नीति को मानते हैं। चूँकि अब इस धर्मनिरपेक्षता और तुष्टिकरण की नीति वाले सत्ता से बाहर हैं और 'राष्ट्रवादी' विचारधारा के लोग केंद्र सरकार में विराजित हैं।वर्तमान में 'संघ परिवार'के प्रसाद पर्यन्त महबूबा मुफ्ती जी कश्मीर की मुख्य्मंत्री हैं। इसलिए अब सवाल उठता है कि यदि कश्मीर समस्या के लिए 'धर्मनिरपेक्षता' जिम्मेदार रही है ,कांग्रेस जिम्मेदार रही है , उसके पूर्व प्रधान मंत्री जिम्मेदार रहे हैं ,तो अब 'हिंदुत्तववादी' सूरमा क्या कर रहे हैं ? देश में शुध्द 'राष्ट्रवादियों' की सरकार की सरकार होते हुए कश्मीर की वादियों में मरघट की ज्वाला क्यों धधक रही है ? अब सारा भारत आतंकवाद की गिरफ्त में क्यों है? सत्ता के लिए दुष्प्रचार करना, धर्मनिरपेक्षता को गाली देना ,किसी को 'सेकुलरिस्ट' कह देना ,और किसी को 'हिन्दू विरोधी' करार देना बहुत आसान है , किन्तु खुद सत्ता में आने के बाद जब समस्याएँ और बिकराल हो उठीं हैं तो अब नए-नए बहाने खोजे जा रहे हैं ! जिनका जमीर नहीं मरा उन्हें खुद से अवश्य पूंछना चाहिए कि सभी समस्याएं यथावत मुँह बाए क्यों खड़ी हैं ? अब कांग्रेस ,वामपंथ या धर्मनिरपेक्षता वाले तो इस परिदृश्य में कहीं भी नहीं हैं !
जो लोग भारत में आतंकी समस्याओं के लिए,अलगाववाद के लिए -कभी कांग्रेस,कभी वामपंथ कभी आरएसएस को कोसते रहे हैं , वे ईमानदार नहीं हैं दरअसल कांग्रेस ,वामपंथ और 'संघ परिवार 'से भारत को कोई खतरा नहीं। बल्कि ये तीनों हीअपने-अपने ढंग से भारत की भलाई चाहते हैं। लेकिन वोट की राजनीति को घृणा की राजनीति में बदलने के लिए कुछ हद तक भारत के 'इस्लामिक धड़े' और 'संघ परिवार' अवश्य जिम्मेदार हैं। हालाँकि अतीत में कांग्रेस ने भी कटटरपंथी अल्पसंख्यक वर्ग को काफी सहलाया है। किन्तु भारत के पूर्व प्रधान मंत्रियों पर कश्मीर की अराजकता या विलय की असफलता का ठीकरा नहीं फोड़ा जा सकता। यदि मान भी लें कि यह सब कांग्रेस की और धर्मनिरपेक्ष दलों की मुस्लिम परस्त विचारधारा का परिणाम है ,लेकिन अब तो केंद्र में 'देशभक्त' लोग राज कर रहे हैं और कश्मीर में भी 'देशभक्तों' के समर्थन से पीडीएफ का राज है। फिर कुछ करते क्यों नहीं ? महज एक आतंकी बुरहान बानी के मारे जाने पर पूरा कश्मीर क्यों उबल रहा है ? यदि इन समस्याओं के लिए भारत के लोग एक दूसरे पर आरोप लगाते रहेंगे, तो पाकिस्तान को कसूरबार कैसे कह सकते हैं ? और यदि पाकिस्तान बेक़सूर है ,तो उधमपुर से लेकर ढाका तक जो आतंकी खून बहा रहे हैं, क्या वे कांग्रेसी हैं ? क्या वे कम्युनिस्ट हैं? क्या वे संघी हैं ? नहीं ! नहीं ! नहीं !
जो लोग कम अक्ल हैं ,जिनको इतिहास का ज्ञान नहीं है और जो 'धर्मनिरपेक्षता' का अर्थ भी नहीं जानते वे यह भी नहीं जानते कि भारत का असली दुश्मन कौन है ? सारी दुनिया को मालूम है कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ दुनिया भर में नाना-प्रकार के षड्यंत्र रचे। आजादी के तुरंत बाद से ही पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने भारत के अंदर मुस्लिम अपराधियों, सट्टा कारोबारियों, फिल्म निर्माताओं,हवाला कारोबारियों और मदरसा प्रबंधनों में अपनी घुसपैठ बढ़ा ली और उसने भारत को परोक्ष युद्ध में निरंतर उलझाए रखा । पाकिस्तान निर्माता मुहम्मद अली जिन्ना के मनोमष्तिष्क में शायद उतनी साम्प्रदायिक नफरत नहीं थी। जितनी कि उसकी पाकिस्तानी फौज और मजहबी कठमुल्लों की कट्टरतावादी सोच में भारत विरोध अंदर तक धसा हुआ था। इसी वजह से लगातार भारत - पाकिस्तान के बीच बैमनस्य और अविस्वास की खाई बढ़ती ही चली गयी। नतीजा सामने है कि भारत पर दो बार हमला करने के बाद ,बुरी तरह पिटने के बाद , पाकिस्तान अब पहले से जयादा हिंसक और आक्रामक हो गया है।
देश में ज्वंलत समस्याएं और बदतर हालात हों और यदि प्रधान मंत्री विदेशों में जाकर कभी टॉयलेट बनवाने की घोषणा करते हों ,,कभी योग की ,कभी युवाओं की और कभी विश्व आतंकवाद की चर्चा करते हों ,कभी भारत को 'कांग्रेस मुक्त' करवाने की बात करते हों , तो देश की निराशा स्वाभाविक है। क्या इसी बलबूते पर धारा -३७० हटाने का प्रण लिया था ? एक समान क़ानून ,एक समान अवसर की उपलब्धता और 'आतंकवाद'को पाकिस्तान में घुसकर मारने का माद्दा ,,,,,,ये सब कहाँ है? क्या यह सब कुछ कर पाने के लिए धर्मनिरपेक्षता का खात्मा जरुरी है ? क्या इसके लिए कांग्रेस मुक्त भारत जरुरी है ? क्या कश्मीर समस्या इसी तरह सुलझेगी ? जैसे कि फौजी संगीनों के साये में और दहशतगर्दों की पत्थरबाजी से अभी सुलझ रही है ? यदि नहीं , तो धर्मनिरपेक्षता को कोसने का मकसद क्या है ? महत् ऊर्जावान प्रधान मंत्री जी और उनका अनुगामी 'संघ परिवार' निरंतर कांग्रेस और विपक्ष पर हमले करने के बजाय अपनी ऊर्जा पाकिस्तान को ठीक करने में और उसके पालित -पोषित आतंकवाद को नष्ट करने में खर्च क्यों नहीं करते ?
विभाजन के दौर में मुस्लिम लीग के मन में केवल हिंदुत्व विरोध का भाव मात्र था। लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ-साथ जब पाकिस्तान के नेताओं को लगा कि वे अपनी घरेलु समस्याओं और उससे उत्पन्न जनाक्रोश का सामना नहीं कर सकते , जब पाकिस्तान में डेमोक्रेटिक फंकशनिंग भी असफल होने लगी, जब पाकिस्तान में पंजाब,सिंध,बलोच,पख्तून इत्यादि का क्षेत्रीयतावाद उग्र होने लगा ,जब बलोच और मुहाजिरों का आक्रोश बढ़ने लगा तो पाकिस्तान के नेताओं ने और याह्या खान और अयूब खान जैसे फौजी जनरलों ने ,पूर्वी पाकिस्तान की 'बांग्लाभाषी' जनता पर अत्याचार करना शुरुं कर दिए। बांग्लाभाषियों पर उर्दू भाषा जबरन थोपी जाने से पूर्वी पाकिस्तान जल उठा। किन्तु जब बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान के नेतत्व में आवामी लीग को असेम्ब्ली चुनाव में भारी बहुमत मिला तो पश्चिमी पाकिस्तानी हुक्मरानों के हाथों से तोते उड़ने लगे। उन्होंने जनता का ध्यान बटाने के लिए भारत विरोध का हौआ खड़ा किया ।मजबूर होकर इंदिराजी को हस्तक्षेप करना पड़ा। और नतीजे में पाकिस्तान की इतनी बुरी गत हुई कि लाखों पाकिस्तानी फौजियों को भारतीय जनरलों के समक्ष हथियार डालने पडे। पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए गए। बांग्लादेश का उदय हुआ। पश्चिमी पाकिस्तान की जनता ने अपनी बलात्कारी -बर्बर बी- हरल्ली फौज को खूब गालियाँ दीं। जनता ने तुरंत बाद के चुनावों में जुल्फीकार अली भुट्टो को सत्ता सौंप दी। भारत से हारे पाकिस्तानी फौजी जनरल कुछ तो दोजख चले गए और कुछ रिटायर होकर वहाँ की सत्ता पर परोक्ष रूप से काबिज हो गए। कभी जिया-उल हक ,कभी परवेज मुहम्मद,कभी राहिल शरीफ सत्ता पर काबिज हो गए। पकिस्तान के लोकतांत्रिक अर्थात जम्हूरी नेता तो सिर्फ मुखौटा हैं। असल ताकत तो फौज के हाथों में है। जिस पाकिस्तानी फौज ने पहले ओसामा बिन लादेन को छिपाया,जिसने दाऊद -छोटा शकील- हाफिज सईद -अजहर मसूद और कश्मीरी युवाओं को जहरीला बनाया, वही पाकिस्तानी फौज अब कश्मीर के बहाने भारत, बांग्लादेश और पूरे दक्षिण एसिया मे आतंकवाद की फसल काट रही है। कश्मीर के पत्थरबाज लोंढे इस पाकिस्तानी षड्यंत्र के सबसे अभागे और वेवकूफ मोहरे हैं ! वे नहीं जानते कि उनके शैतानी मंसूबे कभी पूरे ! जिन्होंने वेवजह कश्मीर की वादियों को लहूलुहान किया वे हिंसक दंगाई यह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान के बलोचिस्तान में क्या हो रहा है ?
आजादी के बाद से पाकिस्तानी मदरसों में बच्चों में को मजहबी कट्टरवाद शिद्द्त से सिखाया जा रहा है । वे अपने ही बच्चों को भारतीय उपमहाद्वीप का गलत-सलत इकतरफा इतिहास पढ़ा रहे हैं । जिसमें केवल हिन्दु विरोध और तमाम अल्पसंख्य्क वर्ग के खिलाफ घृणा का बोलवाला है। न केवल भारत और उसके बहुसंखयक हिन्दू समाज के खिलाफ ,बल्कि मुस्लिम अहमदिया,शिया और सूफी सम्प्रदायों को भी 'गैर इस्लामिक' बताकर सताया गया । नाना प्रकार के कटटरपंथी कानून बनाकर उन का दमन -उत्पीड़न किया गया । उनके अत्याचार की चरम परिणीति यह है कि पाकिस्तान में आर्मी वाले खुद अपने बच्चों की जिंदगी नहीं बचा पाये। मजहबी आतंकियों ने उनके बच्चों का भी सामूहिक नरसंहार किया है। उनके द्वारा कभी मस्जिदों में खून की होली खेली गयी , कभी भारत की सीमाओं पर बेकसूर लोगों को आपस में लड़वाया -मरवाया गया । आईएसआई ,सिमी अलकायदा, तालिवान आईएसआईएस,दुख्तराने हिन्द, जेश-ऐ-मुहम्म्द ये सब पाकिस्तानी फौज के ही हिस्से हैं। भले ही इस कट्टरपंथी बहशीपन से पाकिस्तान दुनिया में बुरी तरह बदनाम हो चुका है। लेकिन उनकी देखा देखि या न्यूटन के गति के नियम* की तर्ज पर भारत में भी कुछ लोग 'हिंदुत्ववाद' जैसा नाटक खेलने की हास्यपद कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यह पक्का है कि इस बचकानी हरकत में भारत की हिन्दू-जैन-बौद्ध जनता को कोई खास दिलचस्पी नहीं है। चूँकि भारत के सनातनधर्मी लोग 'अहिंसा परमोधर्म' को ही जीवन आदर्श मानते हैं। और एनडीए -भाजपा- मोदी जी को वोट देकर भारत की बहुसंख्यक जनता उनके वीरोचित करिश्में के इंतजार में है। किसी भी नेक इंसान को आईएसआईएस या अलकायदा जैसा संगठन में बलि बकरा बनने में कोई रूचि नहीं ! धर्मनिपेक्षता भारत के अन्तस् में वसी है। ये बात जुदा है कि कुछ मुठ्ठी भर नेता सत्ता के लिए इसी धर्मनिरपेक्षता को गालियाँ देते हैं। धर्मनिरपेक्षता को गालियाँ देने वाले लोग जड़मति अथवा अभद्र तो हो सकते हैं ,किन्तु वे आईएसआईएस,अलकायदा या तालिवान जैसे कदापि नहीं हैं ! श्रीराम तिवारी :-
सीमा विवाद और कश्मीर विवाद में भारत ने जब अपनी अस्मिता से कोई समझौता नहीं किया तो चीन,पाकिस्तान और अमेरिका सभी भारत को घेरने लगे। तब इंदिराजी के प्रधानमंत्रित्व में भारत ने सोवियत संघ से के साथ सम्मानजनक 'संधि' कर ली। उस महान संधि की बदौलत ही भारत ने १९७१ के युद्ध में पाकिस्तान को पटकनी दी थेी । उस सोवियत संधि की बदौलत ही भारत ने १९७४ में पोखरण परमाणु विस्फोट भी कर लिया। भारत में अटॉमिक और स्पेस टेक्नालॉजी के विकास एवं स्टील उत्पादन के आधुनिकीकरण में भी सोवियत संघ की महती भूमिका रही है। सोवियत यूनियन की सोहबत का एक सकारात्मक असर यह भी रहा कि भारत ने जनवाद और धर्मनिरपेक्षता का दामन कभी नहीं छोड़ा। किन्तु पाकिस्तान का मजहबी- आतंकवादी हमला बदस्तूर जारी रहा। पाकिस्तान की शह पर कश्मीर आज भी धधक रहा है। भारत में कुछ लोग इस फसाद की जड़ 'धर्मनिरपेक्षता' और 'तुष्टीकरण' की नीति को मानते हैं। चूँकि अब इस धर्मनिरपेक्षता और तुष्टिकरण की नीति वाले सत्ता से बाहर हैं और 'राष्ट्रवादी' विचारधारा के लोग केंद्र सरकार में विराजित हैं।वर्तमान में 'संघ परिवार'के प्रसाद पर्यन्त महबूबा मुफ्ती जी कश्मीर की मुख्य्मंत्री हैं। इसलिए अब सवाल उठता है कि यदि कश्मीर समस्या के लिए 'धर्मनिरपेक्षता' जिम्मेदार रही है ,कांग्रेस जिम्मेदार रही है , उसके पूर्व प्रधान मंत्री जिम्मेदार रहे हैं ,तो अब 'हिंदुत्तववादी' सूरमा क्या कर रहे हैं ? देश में शुध्द 'राष्ट्रवादियों' की सरकार की सरकार होते हुए कश्मीर की वादियों में मरघट की ज्वाला क्यों धधक रही है ? अब सारा भारत आतंकवाद की गिरफ्त में क्यों है? सत्ता के लिए दुष्प्रचार करना, धर्मनिरपेक्षता को गाली देना ,किसी को 'सेकुलरिस्ट' कह देना ,और किसी को 'हिन्दू विरोधी' करार देना बहुत आसान है , किन्तु खुद सत्ता में आने के बाद जब समस्याएँ और बिकराल हो उठीं हैं तो अब नए-नए बहाने खोजे जा रहे हैं ! जिनका जमीर नहीं मरा उन्हें खुद से अवश्य पूंछना चाहिए कि सभी समस्याएं यथावत मुँह बाए क्यों खड़ी हैं ? अब कांग्रेस ,वामपंथ या धर्मनिरपेक्षता वाले तो इस परिदृश्य में कहीं भी नहीं हैं !
जो लोग भारत में आतंकी समस्याओं के लिए,अलगाववाद के लिए -कभी कांग्रेस,कभी वामपंथ कभी आरएसएस को कोसते रहे हैं , वे ईमानदार नहीं हैं दरअसल कांग्रेस ,वामपंथ और 'संघ परिवार 'से भारत को कोई खतरा नहीं। बल्कि ये तीनों हीअपने-अपने ढंग से भारत की भलाई चाहते हैं। लेकिन वोट की राजनीति को घृणा की राजनीति में बदलने के लिए कुछ हद तक भारत के 'इस्लामिक धड़े' और 'संघ परिवार' अवश्य जिम्मेदार हैं। हालाँकि अतीत में कांग्रेस ने भी कटटरपंथी अल्पसंख्यक वर्ग को काफी सहलाया है। किन्तु भारत के पूर्व प्रधान मंत्रियों पर कश्मीर की अराजकता या विलय की असफलता का ठीकरा नहीं फोड़ा जा सकता। यदि मान भी लें कि यह सब कांग्रेस की और धर्मनिरपेक्ष दलों की मुस्लिम परस्त विचारधारा का परिणाम है ,लेकिन अब तो केंद्र में 'देशभक्त' लोग राज कर रहे हैं और कश्मीर में भी 'देशभक्तों' के समर्थन से पीडीएफ का राज है। फिर कुछ करते क्यों नहीं ? महज एक आतंकी बुरहान बानी के मारे जाने पर पूरा कश्मीर क्यों उबल रहा है ? यदि इन समस्याओं के लिए भारत के लोग एक दूसरे पर आरोप लगाते रहेंगे, तो पाकिस्तान को कसूरबार कैसे कह सकते हैं ? और यदि पाकिस्तान बेक़सूर है ,तो उधमपुर से लेकर ढाका तक जो आतंकी खून बहा रहे हैं, क्या वे कांग्रेसी हैं ? क्या वे कम्युनिस्ट हैं? क्या वे संघी हैं ? नहीं ! नहीं ! नहीं !
जो लोग कम अक्ल हैं ,जिनको इतिहास का ज्ञान नहीं है और जो 'धर्मनिरपेक्षता' का अर्थ भी नहीं जानते वे यह भी नहीं जानते कि भारत का असली दुश्मन कौन है ? सारी दुनिया को मालूम है कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ दुनिया भर में नाना-प्रकार के षड्यंत्र रचे। आजादी के तुरंत बाद से ही पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने भारत के अंदर मुस्लिम अपराधियों, सट्टा कारोबारियों, फिल्म निर्माताओं,हवाला कारोबारियों और मदरसा प्रबंधनों में अपनी घुसपैठ बढ़ा ली और उसने भारत को परोक्ष युद्ध में निरंतर उलझाए रखा । पाकिस्तान निर्माता मुहम्मद अली जिन्ना के मनोमष्तिष्क में शायद उतनी साम्प्रदायिक नफरत नहीं थी। जितनी कि उसकी पाकिस्तानी फौज और मजहबी कठमुल्लों की कट्टरतावादी सोच में भारत विरोध अंदर तक धसा हुआ था। इसी वजह से लगातार भारत - पाकिस्तान के बीच बैमनस्य और अविस्वास की खाई बढ़ती ही चली गयी। नतीजा सामने है कि भारत पर दो बार हमला करने के बाद ,बुरी तरह पिटने के बाद , पाकिस्तान अब पहले से जयादा हिंसक और आक्रामक हो गया है।
देश में ज्वंलत समस्याएं और बदतर हालात हों और यदि प्रधान मंत्री विदेशों में जाकर कभी टॉयलेट बनवाने की घोषणा करते हों ,,कभी योग की ,कभी युवाओं की और कभी विश्व आतंकवाद की चर्चा करते हों ,कभी भारत को 'कांग्रेस मुक्त' करवाने की बात करते हों , तो देश की निराशा स्वाभाविक है। क्या इसी बलबूते पर धारा -३७० हटाने का प्रण लिया था ? एक समान क़ानून ,एक समान अवसर की उपलब्धता और 'आतंकवाद'को पाकिस्तान में घुसकर मारने का माद्दा ,,,,,,ये सब कहाँ है? क्या यह सब कुछ कर पाने के लिए धर्मनिरपेक्षता का खात्मा जरुरी है ? क्या इसके लिए कांग्रेस मुक्त भारत जरुरी है ? क्या कश्मीर समस्या इसी तरह सुलझेगी ? जैसे कि फौजी संगीनों के साये में और दहशतगर्दों की पत्थरबाजी से अभी सुलझ रही है ? यदि नहीं , तो धर्मनिरपेक्षता को कोसने का मकसद क्या है ? महत् ऊर्जावान प्रधान मंत्री जी और उनका अनुगामी 'संघ परिवार' निरंतर कांग्रेस और विपक्ष पर हमले करने के बजाय अपनी ऊर्जा पाकिस्तान को ठीक करने में और उसके पालित -पोषित आतंकवाद को नष्ट करने में खर्च क्यों नहीं करते ?
विभाजन के दौर में मुस्लिम लीग के मन में केवल हिंदुत्व विरोध का भाव मात्र था। लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ-साथ जब पाकिस्तान के नेताओं को लगा कि वे अपनी घरेलु समस्याओं और उससे उत्पन्न जनाक्रोश का सामना नहीं कर सकते , जब पाकिस्तान में डेमोक्रेटिक फंकशनिंग भी असफल होने लगी, जब पाकिस्तान में पंजाब,सिंध,बलोच,पख्तून इत्यादि का क्षेत्रीयतावाद उग्र होने लगा ,जब बलोच और मुहाजिरों का आक्रोश बढ़ने लगा तो पाकिस्तान के नेताओं ने और याह्या खान और अयूब खान जैसे फौजी जनरलों ने ,पूर्वी पाकिस्तान की 'बांग्लाभाषी' जनता पर अत्याचार करना शुरुं कर दिए। बांग्लाभाषियों पर उर्दू भाषा जबरन थोपी जाने से पूर्वी पाकिस्तान जल उठा। किन्तु जब बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान के नेतत्व में आवामी लीग को असेम्ब्ली चुनाव में भारी बहुमत मिला तो पश्चिमी पाकिस्तानी हुक्मरानों के हाथों से तोते उड़ने लगे। उन्होंने जनता का ध्यान बटाने के लिए भारत विरोध का हौआ खड़ा किया ।मजबूर होकर इंदिराजी को हस्तक्षेप करना पड़ा। और नतीजे में पाकिस्तान की इतनी बुरी गत हुई कि लाखों पाकिस्तानी फौजियों को भारतीय जनरलों के समक्ष हथियार डालने पडे। पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए गए। बांग्लादेश का उदय हुआ। पश्चिमी पाकिस्तान की जनता ने अपनी बलात्कारी -बर्बर बी- हरल्ली फौज को खूब गालियाँ दीं। जनता ने तुरंत बाद के चुनावों में जुल्फीकार अली भुट्टो को सत्ता सौंप दी। भारत से हारे पाकिस्तानी फौजी जनरल कुछ तो दोजख चले गए और कुछ रिटायर होकर वहाँ की सत्ता पर परोक्ष रूप से काबिज हो गए। कभी जिया-उल हक ,कभी परवेज मुहम्मद,कभी राहिल शरीफ सत्ता पर काबिज हो गए। पकिस्तान के लोकतांत्रिक अर्थात जम्हूरी नेता तो सिर्फ मुखौटा हैं। असल ताकत तो फौज के हाथों में है। जिस पाकिस्तानी फौज ने पहले ओसामा बिन लादेन को छिपाया,जिसने दाऊद -छोटा शकील- हाफिज सईद -अजहर मसूद और कश्मीरी युवाओं को जहरीला बनाया, वही पाकिस्तानी फौज अब कश्मीर के बहाने भारत, बांग्लादेश और पूरे दक्षिण एसिया मे आतंकवाद की फसल काट रही है। कश्मीर के पत्थरबाज लोंढे इस पाकिस्तानी षड्यंत्र के सबसे अभागे और वेवकूफ मोहरे हैं ! वे नहीं जानते कि उनके शैतानी मंसूबे कभी पूरे ! जिन्होंने वेवजह कश्मीर की वादियों को लहूलुहान किया वे हिंसक दंगाई यह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान के बलोचिस्तान में क्या हो रहा है ?
आजादी के बाद से पाकिस्तानी मदरसों में बच्चों में को मजहबी कट्टरवाद शिद्द्त से सिखाया जा रहा है । वे अपने ही बच्चों को भारतीय उपमहाद्वीप का गलत-सलत इकतरफा इतिहास पढ़ा रहे हैं । जिसमें केवल हिन्दु विरोध और तमाम अल्पसंख्य्क वर्ग के खिलाफ घृणा का बोलवाला है। न केवल भारत और उसके बहुसंखयक हिन्दू समाज के खिलाफ ,बल्कि मुस्लिम अहमदिया,शिया और सूफी सम्प्रदायों को भी 'गैर इस्लामिक' बताकर सताया गया । नाना प्रकार के कटटरपंथी कानून बनाकर उन का दमन -उत्पीड़न किया गया । उनके अत्याचार की चरम परिणीति यह है कि पाकिस्तान में आर्मी वाले खुद अपने बच्चों की जिंदगी नहीं बचा पाये। मजहबी आतंकियों ने उनके बच्चों का भी सामूहिक नरसंहार किया है। उनके द्वारा कभी मस्जिदों में खून की होली खेली गयी , कभी भारत की सीमाओं पर बेकसूर लोगों को आपस में लड़वाया -मरवाया गया । आईएसआई ,सिमी अलकायदा, तालिवान आईएसआईएस,दुख्तराने हिन्द, जेश-ऐ-मुहम्म्द ये सब पाकिस्तानी फौज के ही हिस्से हैं। भले ही इस कट्टरपंथी बहशीपन से पाकिस्तान दुनिया में बुरी तरह बदनाम हो चुका है। लेकिन उनकी देखा देखि या न्यूटन के गति के नियम* की तर्ज पर भारत में भी कुछ लोग 'हिंदुत्ववाद' जैसा नाटक खेलने की हास्यपद कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यह पक्का है कि इस बचकानी हरकत में भारत की हिन्दू-जैन-बौद्ध जनता को कोई खास दिलचस्पी नहीं है। चूँकि भारत के सनातनधर्मी लोग 'अहिंसा परमोधर्म' को ही जीवन आदर्श मानते हैं। और एनडीए -भाजपा- मोदी जी को वोट देकर भारत की बहुसंख्यक जनता उनके वीरोचित करिश्में के इंतजार में है। किसी भी नेक इंसान को आईएसआईएस या अलकायदा जैसा संगठन में बलि बकरा बनने में कोई रूचि नहीं ! धर्मनिपेक्षता भारत के अन्तस् में वसी है। ये बात जुदा है कि कुछ मुठ्ठी भर नेता सत्ता के लिए इसी धर्मनिरपेक्षता को गालियाँ देते हैं। धर्मनिरपेक्षता को गालियाँ देने वाले लोग जड़मति अथवा अभद्र तो हो सकते हैं ,किन्तु वे आईएसआईएस,अलकायदा या तालिवान जैसे कदापि नहीं हैं ! श्रीराम तिवारी :-
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