बुधवार, 6 जुलाई 2016

इस्लामिक आतंकवाद से भारत की धर्मनिरपेक्षता को गम्भीर खतरा - भाग एक

इस आलेख का मकसद किसी भी धर्म -मजहब पर अंगुली उठाना या उसकी आलोचना करना नहीं है। किन्तु इस विमर्श के बहाने हमारा पवित्र ध्येय यह अवश्य है कि सभी धर्म-मजहब को राजनीति से अलग रखा जाए।और भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में यथासम्भव 'धर्मनिरपेक्षता'को बचाया जाए ! दैवीय आस्था और आध्यात्मिकता को कट्टरवाद से मुक्त रखा जाए। मौजूदा दौर के इस्लामिक आतंकवाद के बरक्स उदारवादी  इस्लाम को पर्याप्त सम्मान दिया जाए। भारत में धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखते हुए उदारवादी इस्लाम और  'सनातन धर्म' सहित अन्य सभी धर्म-पंथ की खूबियों को सम्पूर्ण मानवता के हित में पालन करना सुधीजनों का   ऐतिहासिक दायित्व है। वैसे भी 'सनातन धर्म' और 'इस्लाम' में काफी समानताएँ हैं। दोनों ही सम्प्रदायों के अतीत का इतिहास यदि मानव मूल्यों के लिए उत्सर्ग की गाथाओं से भरा -पड़ा है तो कुछ इतिहास कुर्बानियों से भी लबालब है। नृशंश हत्याओं और षड्यंत्रों के दास्तान भी धर्म-मजहब के इतिहास में समान रूप से  स्याह पन्नों पर दर्ज हैं। कुरुक्षेत्र -कलिंग के युध्दों से लेकर 'कर्बला' के नृशंश संहार तक, येरुशलम से लेकर एथेंसके नर संहार तक और बेटिकन से लेकर फिलीपीन्स तक , अपने ही भाई-बंधुओं के हाथों मारे जाते रहे सहोदरों का रक्तरंजित  इतिहास हमारे सामने है। सभी धर्म-मजहब के धर्म संस्थापकों ,साधु-संतों,पीर-फकीरों ने सभी धर्मो के प्रति विनम्र सदाशय भाव दर्शाया है। किन्तु इस्लाम का रक्त रंजित दौर अभी तक जारी है। वह न केवल अपनी उग्रता के चरम पर है बल्कि अमनपसंद लोगों की चिंता का वॉयस भी है। उनके कारण भारतीय आवाम का धर्मनिरपेक्षतावादी -अहिंसावादी  मानव समाज बहुत ज्यादा हैरान-परेशान  है। भारत में धर्मनिरपेक्षता को इस्लामिक आतंकवाद से गम्भीर खतरा उतपन्न हो गया है।

आम तौर पर लोग जिसे 'हिन्दू धर्म 'कहते हैं,उसे मैं 'सनातन धर्म' कहता हूँ। क्योंकि गीता,वेद ,पुराण ,उपनिषद और संहिताओं में हिन्दू शब्द कहींउल्लेख नहीं है। अतएव 'हिन्दू धर्म' के नाम से किसी धर्म के होने का सवाल ही नहीं उठता। दुनिया की तमाम सभ्यताओं ने अपने-अपने धर्म-मजहब का नामकरण खुद ही किया है। सिवाय 'हिन्दू धर्म'के। क्योंकि यह नामकरण खुद हिन्दुओं ने नहीं किया , बल्कि यह  गैर हिन्दुओं द्वारा किया गया है। भारतीय उपमहाद्वीप में जब तक आर्यों की चली तो उन्होंने यहाँ 'आर्यधर्म'अथवा 'वेदमत' के नाम से अपना परचम फहराया । जब बौद्ध धर्म का बोलवाला रहा तो यहाँ 'बौद्ध धर्म' की अथवा 'धम्म'की साख परवान चढ़ी । जब आदिशंकराचार्य ने  वेदों और अद्वैत वेदांत की नवीन व्यख्या की तथा अपने पूर्ववर्ती सभी भारतीय मत-सिद्धांतों -पंथों का परिमार्जन करते हुए  भारतीय षड्दर्शन  की नवीन व्याख्या की, तब भारत की जनता ने उनके सिद्धांत 'ब्रह्म सत्यम जगन्मिथ्या 'को सर माथे लिया। सम्भवतः कालांतर में 'भक्तिमार्ग' तीर्थाटन और अवतारवाद के समिश्रण से सज्जित भारतीय धार्मिक परम्परा को ही सनातन धर्म कहा जाने लगा। बाद में कुछ विदेशी आक्रमणकारियों और यायावर  विदेशी धर्म प्रचारकों ने इस सनातन धर्म को 'हिंदू धर्म ' का नाम दिया।

 चूँकि  विदेशियों के मजहब  उनकी कौम के नाम से ही जाने जाते थे। इसलिए जिस तरह  ईसाइयों का ईसाई धर्म, यहूदियों का यहूदी धर्म ,पारसियों का पारसीधर्म ,मुसलमानों का इस्लाम नाम से मजहब  प्रचलन में आया ,उसी तरह उन्होंने सिंधु के इस पार भारत के खानदानी स्थाई निवासियों को हिन्दू कहा होगा। और हिन्दुओं के धार्मिक पूजा-पाठ ,दर्शन-विचार को 'हिन्दू धर्म' नाम दिया होगा । लेकिन वे यह नहीं जानते थे कि  जिसे वे 'हिन्दू धर्म' कहकर पुकारते हैं वह केवल कोरा मजहब या धार्मिक आडंबर मात्र नहीं है। बल्कि उसमें परा विद्या और आध्यत्म ज्ञान की अकूत सम्पदा सुरक्षित रखी है और उसमें मानवीय मूल्यों के अपार मोती भरे पड़े हैं। समुद्री मार्गों से भारत आने वाले इस्लामिक और यूरोपीय व्यापारियों ने भारत के पश्चिमी तटों पर अपने ठिकाने बनाये और इन समुद्र तटवर्ती मनुष्यों को मुसलमान बना लिया। बाद में जब इस्लामिक खलीफा के जंगजूओं ने फारस को जीता तो पारसी भी भागकर भारत में शरण लेने को मजबूर हो गए। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस्लाम के एक हाथ में तलवार थी और दूसरे  हाथ में कुरान। मुस्लिम क्रूर शासकों ने साम,दाम दण्ड ,भेद से भारत के गरीबों  दलितों- आदिवासियों को अपने मजहब में दीक्षित किया। उन्होंने क्षत्रिय राजाओं को या तो युद्ध में उलझे रखा या दोस्ती - रिस्तेदारी कर ली। उन्होंने लाखों ब्राह्मणों को मारा ,मंदिर ध्वस्त किये मस्जिदें बनाईं और जो उनके मजहब में शामिल नहीं हुआ उसे उन्होंने 'काफिर' मानकर जजिया कर और अन्य प्रकार से खूब सताया।

लम्बे अंतराल के बाद जब सभी विदेशी धर्मप्रचारकों और शासकों की कट्टरता चरम पर जा पहुंची तो भारत के अहिंसावादी और मानवतावादी धर्म-सम्प्रदाय में भी कुछ कुछ धार्मिक कट्टरता आ गयी। परिणामस्वरूप भारत के बहुसंखयक  हिन्दू समाज ने २०१४ में केंद्र की 'धर्मनिरपेक्ष' यूपीए सरकार को सत्ता से हटाकर 'हिन्दुत्ववादी मोदी सरकार को सत्ता में बिठा दिया। इस घटना से  शायद भारत के अंदर कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों को और दुनिया भर में आतंक मचाने वाले आईएसआईएस वालों अच्छा नहीं लगा। कदाचित उन्हें  मोदी जी का सत्ता में आना रास नहीं आया। पाकिस्तान के मजहबी- फौजी  हुक्मरान भी मोदी जी और 'संघ परिवार'से चिड़ते रहे हैं। गोकि मोदी सरकार के सत्ता में होने से भारत को क्या -क्या फायदा होने वाला है यह तो भविष्य तय करेगा। किन्तु इतना तय है कि इस्लामिक कट्टरवाद के सामने हिन्दुत्ववादी कट्टरवाद को खड़ा करने से 'संघ परिवार' की बल्ले-बल्ले हो गई है। लेकिन इससे भारत का कितना -क्या हित होगा ,अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। इससे दुनिया में अमन -शांति की भी कोई गारंटी नहीं ! साम्प्रदायिक कट्टरता का जबाब साम्प्रदायिक हो-हल्ला नहीं हो सकता । विशुद्ध धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की शक्ति ही मजहबी कट्टरवाद को कुचल सकती है। जैसे की चीन में ,रूस में,वियतनाम में, कम्बोडिया में और क्यूबा में ! दूसरा रास्ता इजरायल वाला भी है। यह जाहिर है कि दुनिया के ५६ इस्लामिक देश और सैकड़ों इस्लामिक आतंकवादी एक साथ मिलकर भी छोटे से इजरायल का बाल बांका नहीं कर पा रहे हैं। आईएसआईएस वाले इतने ही सूरमा हैं तो इजरायल से अपने उस अपमान का बदला क्यों नहीं लेते जो १९६९ में इजरायल ने इस्लामिक देशों के साथ किया था?  छोटा सा इजरायल ,छोटा सा जापान और छोटा सा क्यूबा इसलिए अजेय है क्योंकि इन देशों की जनता धार्मिक कट्टरता और साम्प्रदायिकता में नहीं 'राष्ट्रवाद'में यकीन रखती हैं। भारत के हिन्दू-मुसलमान का हित एक धर्मनिरपेक्ष भारत में ही है। भारत के लोगों को सभी प्रकार की धार्मिक कट्टरता के खिलाफ लड़ना होगा।  इस्लामिक आतंकवाद को हिन्दू कट्टरवाद से नहीं बल्कि धर्मनिरपेक्ष 'राष्ट्रवाद'की दवा से ही ठीक किया जा सकता है। इस 'राष्ट्रवादी 'दवा का निर्माण इस्लामिक मदरसों में नहीं,'संघ ' शाखाओं में नहीं ,बल्कि खेतों, खदानों, कारखानों ,स्कूल कालेजों और साहित्य के ठिकानों पर ही बन सकती है। इसके लिए संघ द्वारा रचित भारतीय इतिहास ,अंग्रेजों द्वारा रचित इतिहास,इस्लामिक साहित्यकारों द्वारा लिखित इतिहास ,वामपंथी नजरिए से लिखा गया इतिहास नहीं बल्कि दुनिया के तटस्थ लोगों द्वारा सही इतिहास पुनः लिखा जाना चाहिए।

भारत में मुसलमानों के आगमन के बाद यहाँ के'सनातन -धर्मानुयायी अपने आपको मुस्लिमों द्वारा दिए गए नामों से पुकारने लगे। यदि भारत के स्थायी निवासी आर्य थे  तो उन्हें आर्य  ही लिखना चाहिए था , द्रविड़ थे  तो द्रविड़ लिखना चाहिए था । अनार्य या आदिवासी थे तो वह लिखना चाहिए। और यदि भारत में पहले वैदिक या सनातन धर्म था तो उसे ही लिखा-पढ़ा और बोला जाना चाहिए था। लेकिन पता नहीं कब किसने 'हिन्दू' शब्द पकड़ लिया और अब वह शब्द भारत समेत दुनिया के तमाम सनातन धर्मियों को मुँह चिड़ा रहा है। किसी आक्रमणकारी ने कहा तुम 'हिन्दू' हो ! तो आप अपने आपको हिन्दू कहने लगे। यदि आपका दावा है कि भारतीय आवाम का धर्म तो 'सनातन'है ,वह दुनिया के हर इंसान को एक समान मानता है ,उसका नारा ही -'धर्मो रक्षति रक्षितः' है !तो इसे प्रतिपादित क्यों नहीं किया गया ?यदि इस सिद्धांत को आप  ठीक से जान सके हैं तो गर्व से कहिये कि आप सनातनी हैं । आपका धर्म 'सनातन धर्म' है। आप वैष्णव,शैव,शाक्त ,गाणपत्य और बौद्ध  जैन और सिख जो भी हों , शर्त यह है कि आप किसी अन्य धर्म-मजहब से द्वेष या बैर न रखें। और 'अहिंसा' को ही परम धर्म समझे। तभी आप एक सच्चे 'सनातनी'हो सकते हैं। आपको अपनी  पुरातन -सनातन और पुरातात्विक पहचान बनाए रखना कोई गुनाह नहीं। वशर्ते उस पहिचान के बहाने,उग्रता या आतंक के खेल में आप शामिल न हों ! यदि आपके ह्रदय में दूसरों के धर्म-मजहब का सम्मान नहीं तो आपकी असहिष्णुता ही कट्टरवाद की जननी होगी। इस सोच का परिणाम हिंसा,द्वेष और अमानवीयता में झलकने लगता है।  

चूँकि भारतीय उपमहाद्वीप में कोई एक दर्शन अथवा पंथ कभी नहीं रहा। यहाँ सिंधु घाटी सभ्यता ,आर्य सभ्यता ,द्रविड़ सभ्यता ,मूल आदिवासी अर्थात लोक परम्परा की आदिम सभ्यता और इस्लाम से पहले जो अन्य गैरइस्लामिक कबीले भारत आते रहे उन तमाम कबीलों -यवनों,यूनानियों,शकों,हूणों,कुषाणों और तोरमाँणों की सभ्यता के मिलन से धर्म का जो  एक रोचक और पाचक समिश्रण तैयार हुआ, मैं  उसे ही 'सनातन धर्म 'कहता हूँ । हो सकता है कि विद्वान मेरे इस सिद्धांत से सहमत न हों । किन्तु मेरा मानना है कि अरब-फारस के इस्लामिक हमलावरों ने जब आर्यवर्त या भरतखण्ड पर हमला किया तब इस भूभाग को उन्होंने 'हिन्दोस्ताँन कहा होगा। और तब उन्होंने  सिंधु पार के इस तरफ वाले निवासियों को 'हिन्दू' और उनके धर्म को 'हिन्दू धर्म' नाम दिया होगा। जब अंग्रेजो से आजादी मिलने के पूर्व हिन्दुस्तान के चार टुकड़े हो गए और भारत,पाकिस्तान,बांग्लादेश और म्यांमार बन गए,जब पाकिस्तान के लोग पाकिस्तानी हो गए , जब पूर्वी बंगाल के नागरिक बांग्लादेशी हो गए, जब चीन के चीनी हो कहलाए,तो भारत के निवासी हिन्दू कैसे हो गए ? कम से कम आजादी के उपरांत तो भारत में भारतीयता की गूँज होनी चाहिए थी !हिन्दू,हिन्दुस्तान तो अतीत की यादें भर हैं। आम तौर पर दुनिया के अधिकांश धर्म-मजहब में काफी समानताएं हैं।  खास तौर से 'सनातन धर्म' और इस्लाम में काफी  समानताएं हैं। इधर  सत्य हरिशचन्द्र  की करुण कहानी है , मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम का वन गमन है और उदात्त चरित्र है , कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव-पांण्डव [भाई-भाई]के बीच 'महाभारत 'का युद्ध है ! उधर इस्लामिक इतिहास में भी ऐंसी ही घटनाएँ बाहरी पडी हैं। फर्क सिर्फ पात्रों-प्रतीकों और देश-काल-परिस्थितियों का है। यहाँ शहादत के लिए रोहित है ,श्रवणकुमार है ,अभिमन्यु हैं। वहाँ उस्मान गनी हैं ,हुसैन हैं ,हसन हैं और कर्बलाका मैदान है !

सिंधु नदी पार कर ईरान के रास्ते या खैवर दर्रा पार करके कश्मीर के रास्ते भारत आने वाले  हमलावरों ने- भारत के सनातन धर्म को ही 'हिन्दू धर्म' कहा।  यह विचित्र बिडंबना है कि 'सभ्य'अंग्रेजों ने इस विशाल 'अखण्ड भारत' भूमि को जीतकर उसे 'इण्डिया' नाम दिया। और गुलाम भारत के बहुसंख्यक समाज को ''ब्लेडि इंडियंस '' कहा ! जब तक यहाँ आजादी की मांग नहीं उठी तब तक यहाँ के मुसलमान ,हिन्दू,सिख बौद्ध ,जैन और नास्तिक सभी अंग्रेजों की नजर में 'ब्लेडी इंडियन्स' ही थे। किन्तु जब इस आवाम ने स्वाधीनता का सिंहनाद किया ,तो वे हिन्दू,मुस्लमान,जैन,बौद्ध सिख ,दलित,पिछड़े और सवर्ण हो गए। क्योंकि भारत को गुलाम बनाए रखने में यह 'फूट डालो राज करो' की नीति उनके लिए बहुत माकूल थी। भारत में  मजहबी अलगाव और मत -भिन्नता तो पहले भी थी किन्तु साम्प्रदायिकता और बैमनस्य की आंधी के लिए यह ब्रिटिश नीति ही जिम्मेदार है। इस घृणित दुरनीति के कारण 'भारतीय राष्ट्रवाद'हासिये पर चला गया और धर्म-मजहब आपसी वैमनस्य एवं संघर्ष के केंद में आ गए। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान फ्री फंड में हासिल किया, वहाँ लोकतंत्र या राष्ट्रवाद को प्रमुखता देने के बजाय भारत और हिन्दुओं के खिलाफ निरंतर षड्यंत्र रचे गए । विश्व साम्राज्यवाद और अन्य इस्लामिक राष्ट्रों ने इन षड्यंत्रों में पाकिस्तान को सहयोग दिया । जब भारत -चीन अपने सीमा विवाद पर उलझ गए तो पाकिस्तान ने चीन का भी दामन थाम लिया। इन सभी ने भारतीय मुसलमानों को भी बरगलाने की खूब कोशिशें कीं,किन्तु कामयाब नहीं हुए.चूँकि विभाजन के वक्त जो मुसलमान पाकिस्तान चले गए उनकी दुर्दशा, भारत में रुक गए  मुसलमानों ने खुद अपनी आँखों से  देखी।   

इस्लामिक आतंकवाद और पाकिस्तान की काली करतूतों से आजिज आकर कुछ कट्टरपंथी हिन्दुओं ने भी 'राष्ट्रीय स्वाभिमान' के नारे लगाना शुरुं कर दिए। चूँकि भारत की सभ्यता में उत्पन्न सभी धर्म -दर्शन और मत 'अहिंसा' आधारित हैं ,वे अच्छी तरह जानते हैं कि दुनिया का कोई भी मजहबी कट्टरपंथ अपने नापाक इरादों में कभी कामयाब नहीं हो सकता। खास तौर से 'सनातन धर्म' वेदों का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। इसलिए भारत के तमाम प्राचीन धर्मों में कट्टरवाद को कभी पसन्द नहीं किया गया । यहाँ हमेशा उदारवादियों का ही वर्चस्व रहा है। आरएसएस वाले ,विश्व हिन्दू परिषद वाले, शिवसेना वाले चाहे कितना ही कट्टरपंथ का दिखावा या हो हल्ला करें किन्तु वे आईएसआईएस जैसे तो कदापि नहीं हैं। अधिकांश 'सनातन धर्मी' हिन्दू जनता 'धर्मनिरपेक्षता और सर्व धर्म समभाव को ही पसंद करती है। किन्तु इस्लामिक जगत का खूनी इतिहास और वर्तमान वीभत्स हालात  देखकर बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि इस्लामिक उदारवादियों पर उसका 'बहावी' कट्टरपंथ  हावी  है। इस वैज्ञानिक और लोकतंत्रात्मक युग में जहाँ दुनिया के तमाम धर्म-मजहब  अपने मानवीय मूल्यों को सहेजने में जुटे हैं, वहीँ आईएसआईएस ,अलकायदा ,तालिवान और बोको हरम जैसे आतंकी संगठन और पाकिस्तान में पल रहे अंडर वर्ल्ड माफिया डॉन जैसे तत्व 'इस्लाम' को लगातार  बदनाम कर रहे हैं।

भारत में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने उदारवादी मुसलमानों पर ,शियाओं -अहमदियों पर ,सूफियों पर जो जुल्म किये हैं , सिख गुरुओं पर जो अत्याचार किये हैं। हिन्दुओं ,जैनों,बौद्धों और काफिरों पर जो जुल्म किये हैं ,उन्हें भुलाकर भी भारत की बहुसंख्यक 'अहिंसावादी'जनता  आगे बढ़ना चाहती है। खेद की बात है कि भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान या बांग्ला देश न जाकर भारत में ही रुक जाने और यहीं अन्न -पानी ग्रहण करने के बाद भी यदि कोई संसद पर हमला करता है, कोई मुंबई पर हमला करता है , कोई पठानकोट एयरबेस पर हमला करता है ,कोई आईएसआईएस -अलकायदा -सिमी- तालिवान का एजेंट बनकर भारत में दहशत और हिंसा का तांडव करता है ,तो उसक साथ क्या सलूक किया जाए ? ऐंसे मजहबी कट्टरपंथियों की हरकतों से उन आरोपों की पुष्टि होती है जो आईएस के  अभियान का हिस्सा हैं। जिसमें  आईएस ने भारत को 'खुरासान' नाम देकर इसे 'दारुल हरब ' बनाने का मंसूबा पेश किया  है। जहाँ-तहाँ कुछ जीवित पकडे गए आतंकियों से यह पता चला है कि उनके वास्तविक इरादे क्या हैं ? दरअसल ये इस्लामिक आतंकी इस्लाम की कोई सेवा नहीं करते। बल्कि ये इतिहास के हर दौर में विभिन्न शासकों और राजनैतिक शक्तियों के षड्यंत्रों के काम आते रहे हैं। ये शैतान के हाथों खेलते हुए कभी सद्दाम हुसैन, कभी कर्नल गद्दाफी,कभी अनवर सादात, कभी बेनजीर भुट्टो ,कभी मलाला युसूफ जाई  पर हमले करते हैं। वे कभी सूफी गायक साबरी ,कभीअहमदियों ,कभी शियाओं ,कभी सूफियों पर हमले करते हुए किस इस्लाम की सेवा कर रहे हैं ?

सामन्तकालीन भारत में इस्लामिक बादशाही भले ही तलवार के जोर पर स्थापित हुई हो,किन्तु यहाँ इस्लाम की स्थापना  सूफी संतों,इस्लामिक विद्वानों और उदारवादी मुसलमानों के बलबूते ही हुई है। शेख सलीम चिस्ती , गरीब नवाज -ख्वाजा मोइनुद्दीन चिस्ती ,हजरत निजामुद्दीन औलिया,अमीर खुसरो, मलिक मुहम्म्द जायसी,अकबर, रहीम,रसखान,दारा शिकोह ,बाजिद अली शाह और बहादुर शाह जफर जैसे बेहतरीन इंसानों की बदौलत ही तत्कालीन हिन्दुस्तान में इस्लाम का प्रादुर्भाव हुआ। आजादी की जंग के दौरान सीमान्त गांधी अब्दुल गफ्फार खान ,मौलाना अबुल कलाम आजाद ,फैज अहमद फैज ,कैफी आजमी जैसे नेक मुसलमानों ने गांधी के 'अहिंसा' सिद्धांत का समर्थन किया था। अल्लामा इकबाल जैसे मुस्लिम नायकों ने खुद को मुसलमान के बजाय 'हिंदुस्तानी' ही माना। आजादी के बाद भारत के प्रगतिशील आंदोलन में हिन्दू-मुस्लिम क्रांतिकारियों ने 'गंगा-जमुनी' संस्कृति की खूब वकालत की। धर्मनिरपेक्षता के गीत लिखे गए। भारत को आजादी मिली। किन्तु दुर्दैव इतिहास ने सदा के लिए  भारत की गर्दन पर पाकिस्तान का बैर टांग दिया। और हिन्दू-मुस्लिम खुनी संघर्ष का अमिट दाग मानवता की छाती पर जड़ दिया। अधिकांश  सियासी दलों ने अपने-अपने धर्म-मजहब -जात -खाप का खूंटा 'भारत राष्ट्र ' के माथे मढ़ दिया। 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' लिखने वाला शख्स  खुद ही 'पाकिस्तान जिंदाबाद' का नारा  लगाते हुए इस्लामाबाद पहुंच गया। वक्त की आंधी और इस कट्टरपंथी साम्प्रदायिक सोच ने  भारत की  हिन्दू जनता को निराश किया है।और 'हिंदुत्ववाद' की ओर धकेलने का असफल प्रयास भी किया है । इसका खामयाजा  पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को भुगतना पड़ रहा है ।

वेशक राष्ट्रवाद का ठेका केवल 'हिन्दुओं'के पास नहीं है और देशभक्ति के लिए किसी हिन्दूवादी संगठन के सर्टिफिकेट की जरुरत  भी नहीं है। किन्तु भारत समेत सारे संसार में आतंक की जो तस्वीर उमड़-घुमड़ कर सामने आ रही है ,उससे स्पष्ट जाहिर है कि मजहबी आतंक के मामले में इस्लामिक आतंक के बराबर खूंखार -बर्बर और इंसानियत का दुश्मन  और कोई  नहीं है। भारत का प्रत्येक हिन्दू स्त्री पुरुष इस्लाम की शिक्षाओं का ,क़ुरआने-पाक और हदीस का तथा मुहम्मद पैगंबर साहब का बहुत आदर करता है। क्योंकि हिन्दूओं को उनके महान पथप्रदर्शकों और संतों ने यही सिखाया है कि ''सबका  मालिक एक ''!गोस्वामी तुलसीदास जी ने मस्जिद में बैठकर 'रामचरित मानस 'लिखा! स्वामी  रामकृष्ण परमहंस देवी दुर्गा के सामने दुर्गा सप्तपदी और मस्जिद में जाकर वे कुरान की आयतें पढ़ते थे।  उनके शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने तो इस्लाम को भारत का शरीर और 'हिन्दू धर्म'को उसकी आत्मा कहा है। शिर्डी के साईं बाबा जो कि लाहिड़ी महाशय [हिन्दू योगी ]के शिष्य थे ,उन्होंने अपना गुरु मंत्र ही 'अल्लाह मालिक ' चुन लिया था ।लेकिन कट्टरपंथी सोच वाले आतंकवाद और वैश्विक पूँजीवाद ने इस गंगा जमुनी तहजीव को ,इस धार्मिक -मजहबी उदारता को आतंकवादियों के सामने घुटने टेकु स्थति में लाकर खड़ा कर दिया ।

 महिलाओं के साथ घाट रहीं निंदनीय घटनाओं  की बाढ़ से स्पष्ट दिख रहा है कि भारत में 'लव जेहाद'और पाकपरस्त आतंकी फर्मावरदारी का कुछ तो असर है। इतिहास गवाह है कि सामन्तकाल और मुगलकाल में मुस्लिम राजा और सेनापति अपने हरम में मुसलमान कम हिन्दू ओरतें ज्यादा ठूंस-ठूंस कर भरते रहे। नारी उत्पीड़न की और पुर्षत्ववादी कबीलाई मानसिकता बीसवीं-इक्कीसवीं शताब्दी में भी मौजूद है। बालीबुड के कुछ ऐयाश मुस्लिम नायकों ने ,निर्माता -निर्देशकों ने और अन्य मुस्लिम फ़िल्मी हस्तियों ने मुंबई से लेकर दुबई तक अपने -अपने हरम बना रखे हैं ।अधिकांश मुस्लिम  फ़िल्मी स्टेक होलडर और हीरो वगैरह किसी न किसी हिन्दू लड़की को फांसने उसे बर्बाद करने में लिप्त रहे हैं ! शंका होना स्वाभाविक है कि कहीं यह लव जेहाद का हिस्सा तो नहीं है ? सीधा सवाल यह  है कि इन फ़िल्मी और जुल्मी हस्तियों की हर दूसरी या तीसरी बीबी  हिन्दू युवती ही क्यों होती  है ? भाजपा के अधिकांश मुस्लिम नेताओं की बीबियाँ  भी हिन्दू ही क्यों हैं ?दाऊद ,अबु सालेम की तरह ही अन्य तश्करों स्मगलरों के हरम में हिन्दू लड़कियों को रखेल बनाकर बर्बाद करने का मकसद सिर्फ शारीरिक भोग लिप्सा नहीं है। ये नशीली वस्तुओं की तस्करी ,नकली करन्सी  और कश्मीर समेत  अन्य अलगाववादियों -नक्सलवादियों को गोल बारूद की आपूर्ति में लिप्त हैं ,वे अन्य सभ्यताओं और धर्म-मजहबोंको घृणा की नजर से देखते हैं। जिनकी नजर में यह सब हिंसक अमानवीय  कार्यवाही इस्लाम की रिवायत है ,वे सनातन धर्म के सत्य और शील कैसे देख सकते हैं ? यदि अरब और मध्य एशियाई देशों से भारत में आकर बसने वाले मुसलमानों की नयी पीढ़ी को इंडोनेशिया और मलेशिया के मुसलमानों की तरह नयी  धर्मनिपेक्ष सोच  'आधुनिक राष्ट्रवाद' नहीं सिखाया गया  तो  गुनहगार कौन है ? काश ! बहावी मदरसा संस्कृति की मजहबी दुनिया में कट्टरपंथ की जगह प्रगतिशीलता और रोशन ख्याली को सम्मान दिया जाता , तब  भारत सहित सारी दुनिया को इस्लामिक आतंकवाद का यह भयानक चेहरा नहीं देखना पड़ता।  

सिमी और अन्य मजहबी आतंकी नशीली वस्तुओं की तस्करी में व्यस्त हैं। वे नेपाल,बांग्लादेश और श्रीलंका के रास्ते  भारत में घुसपैठ करते रहते हैं। भारत में नकली करन्सी खपाना ,कश्मीरी और अन्य अलगाववादियों का वित्त पोषण करना ,नक्सलवादियों को गोला बारूद की आपूर्ति कराना, देश भर में दंगे कराना , चुनावों में मजहबी आधार पर टेक्टिकल वोटिंग कराना,इत्यादि धतकरम करने के उपरान्त ,इन दहशतगर्दों की अकाल मौत पर आंसू बहाने के लिए उनके प्रेरणा स्त्रोत भी हाजिर नहीं होते। उनके रहनुमा खुद ही नजरबंद होने के लिए तैयार रहते हैं ,ताकि पुलिस प्रोटेक्शन में अपनी निजी जिंदगी अमन-चैन से जियें ! यह  मंजर केवल क़ानून व्यवस्था की चुनौती नहीं है। यह केवल भारत की सभ्यता और संस्कृति पर प्राणघातक हमला है। बल्कि ये मजहबी आतंकी तत्व तो प्रायः सभी सभ्यताओं और धर्म-मजहबों में केवल कुफ्र ही देखते हैं। मदरसे में काफिर शब्द की जो व्याख्या उन्हें समझाई गयी वह विज्ञानसम्मत -न्यायसंगत कहाँ   है?  पहले तो अंग्रेजों के बहकाने पर मुस्लिम लीग ने 'पाकिस्तान' मांग लिया। अब बचे -खुचे धर्मनिरपेक्ष भारत पर भी उनकी कुदृष्टि है। जो पाकिस्तान चले गए उनको शायद कुछ मलाल रहा होगा ,किन्तु जो मुसलमान भारत छोड़कर नहीं गए ,वे आगे बढ़कर 'खुरासान' सिद्धांत का विरोध क्यों नहीं करते ? उनके मन में यदि दारुल हरम या दारुल  हरब की लिप्सा नहीं है तो  खुलकर कहते क्यों नहीं ?

हजरत मुहम्मद के जन्नतनशींन होने के बाद उनके नवप्रवर्तित मजहब - इस्लाम की 'खिलाफत'के लिए उनके उत्तराधिकारियों का खूनी संघर्ष जग जाहिर है। हजरत अबूबक्र ,हजरत उमर ,हजरत गनी ,हजरत अली ,हजरत बनु उमैया ,हजरत रुकइया ,हजरत कुलसुम और अन्य कबीलों के बीच जो अंदरूनी खूनी संघर्ष चला ,उसकी भयानक परिणिति तो कर्बला के मैदान में हुई थी । जिस खून खराबे को लेकर आज की अमन पसंद दुनिया बैचेन है ,इस्लाम के शुरआती दौर ने सबसे पहले खुद हजरत उस्मान गनी, हजरत इमाम हुसैन और हसन समेत तमाम निर्दोष मुसलमान भोग चुके थे। इस्लाम के उस आंतरिक हिंसक द्वन्द का सिलसिला कभी का खत्म हो जाना चाहिए था। हालाँकि इस्लाम के आगमन से पहले वाली दुनिया का इतिहास भी कम रक्तरंजित नहीं रहा। और भारत का पुरातन इतिहास , रामायण काल,महाभारत काल,गुप्तकाल,और मौर्यकाल भी हिंसा के मामले में इस्लाम से कुछ कम नहीं था। किन्तु इस्लाम के उदय के बाद अरब कबीलों  को उम्मीद थी कि वे न केवल उनके कबीलाई समाजों में बल्कि  शेष दुनिया में  भी अमन का पैगाम पहुँचेगा। लेकिन हजरत मुहम्मद की बेहतर शिक्षाओं के वावजूद दुनिया में खून-खराबा बंद नहीं हुआ। बल्कि जेहाद के नाम पर दुनिया में जो मारकाट मची उसमें सर्वाधिक शिया मुसलमान ही मारे गए। और यह भी सच है कि मारने वाले ये बहावी -सुन्नी कट्टरपंथी खुद भी अपने सगोत्रीयों के द्वारा ही मारे गए । कभी जेहादी के रूप में ,कभी तथाकथित काफिरों को मारने के रूप में ,कभी अपने भाई-बंधुओं को ही मारने के रूप में, कभी फिदायीन के रूप में, ज्यादातर मुसलमान ही बेमौत मरते रहे हैं ।

इस्लामिक जगत में अमेरिकी दखल के बाद , सद्दाम हुसैन और ओसामा के कत्ल के बाद आईएसआईएस  [इस्लामिक स्टेट आफ ईराक एण्ड सीरिया ] के हिंसक आतंकियों ने विध्वंस का मोर्चा सम्भल लिया है। वे मक्का से लेकर ढाका तलक ,फ्रांस से लेकर फिलीपीन्स तक,चेचन्या से लेकर लन्दन तलक खून की होली खेल रहे हैं। वेशक उनके नापाक मंसूबे कभी सफल नहीं होंगे, क्योंकि दुनिया का हर सच्चा मुसलमान उनसे नफरत करता है और इंसानियत का तरफदार है। चूँकि भारत को बर्बाद करने के उद्देश्य से पाकिस्तान के कुछ सिरफिरे कट्टरपंथी और १९७१ में बांग्ला देश मुक्ति संग्राम में भारतीय फौज के हाथों  मार खाए पाकिस्तानी फौजी जनरल ,पूरे भारत में और विशेषकर कश्मीर क्षेत्र में विगत ४५ सालों से लगातार आग उगल रहे हैं। वे  कुछ सिरफिरे युवाओं को 'फिदायीन' के रूप में तैयार कर, बेमौत मरने  के लिए भारत की सीमाओं में धकेलते रहते हैं। अब आईएसआईएस वालों ने भी भारत के खिलाफ विष वमन शुरू कर दिया है। अतएव भारत के हिन्दू-मुसलमान और तमाम धर्मनिरपेक्ष जनता का चिंतित होना लाजिमी है।

 यहाँ इसकी तुलना सामन्तयुगींन भारत के क्षत्रिय योद्धाओं के आचरण से की जा सकती है। तत्कालीन क्षत्रिय योद्धा बारह बरस की उम्र में ही युद्द के लिए तैयार हो जाते थे। तब उनकी माता,बहिन या पत्नी खुद अपने बेटे ,भाई या पति को ख़ुशी-ख़ुशी युद्ध  में भेजते हुए उत्साहित करती थी - 'खुशी-ख़ुशी युद्ध में जाओ , और भले ही वीरगति को प्राप्त हो जाओ किन्तु पीठ दिखाकर मत लौटना ! क्योंकि यही क्षत्रिय कुल का व्यवहार है।यही शूरवीरों की कुल रीति है।' युद्ध में मरने मारने के लिए खूब  उकसाया जाता था और यह सन्देश सुनाया जाता था :- 

''बारह बरस तक कुत्ता जीवे ,सोलह बरस तक जीवे स्यार।
तीस बरस तक क्षत्रिय जीवे ,आगे जीवे  खों धिक्कार।।  [ जगनिक कृत -परिमल रासो ]

अर्थ :- कुत्ता १२ साल ही जीवित रहता है ,स्यार १६ साल और क्षत्रिय को ३० साल से ज्यादा जीने पर धिक्कार है। यह शिक्षा मुहम्म्द साहिब की नहीं है बल्कि यह शिक्षा सूर्यवंशियों ,चन्द्रवंशियों को उनकी आदिम परम्परा से प्राप्त हुई थी। 

श्रीराम तिवारी



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