शनिवार, 9 जुलाई 2016

इस्लामिक आतंकवाद से भारत की धर्मनिर्पेक्षता को गम्भीर खतरा -भाग-2

इस्लामिक आतंकवाद मौजूदा दौर में अमनपसंद दुनिया के सामने एक अहम चुनौती है। इससे दुनिया की तमाम सभ्यताओं और कौमों को गम्भीर खतरा है। खास तौर से भारत जैसे 'अहिंसा के पुजारी' देश को, जाति -वर्ण,आरक्षण-विचक्षण में खण्ड-खण्ड बटे हिन्दू समाज को इस जुड़वाँ आतंकवाद से भारी   खतरा है। किन्तु इस कट्टरवादी इस्लामिक आतंकवाद से खुद इस्लाम को सबसे ज्यादा खतरा है। सारी दुनिया में इस मजहबी आतंकवाद के विरुद्ध आवाजें उठ रहीं हैं। दुनिया का हर सच्चा और अमनपसंद मुसलमान इस आतंकवाद से नफरत करता है। हालांकि दुनिया के अधिकांश आतंकवादी अपने आप को मुसलमान बताते हैं ,किन्तु वास्तव में वे इस्लाम के और इंसानियत के भी दुश्मन हैं। अधिकांश मुसलमान मानते हैं कि इन रक्तपिपासु आतंकियों ने इस्लाम को रुसवा किया है, और इस्लाम को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है। लेकिन दुनिया के अन्य धर्म-मजहब के लोगों को भारत के हिन्दुओं को इस्लाम की पवित्रता पर कोई संदेह नहीं है। एक सच्चा हिन्दू गीता के सन्देश की तरह  हुजूर स अ व  हजरत मुहम्मद की शिक्षाओं का भी आदर करता है । उसकी नजर में इस्लाम उतना ही पाक और अमनपसंद है जितना कि उसका 'सनातन धर्म'! यह बहुत जरुरी है कि  कट्टरपंथी आतंकवाद की आलोचना हो ,उसके खिलाफ संघर्ष किया जाये ,किन्तु इसके लिए यह बहुत जरूरी है कि, इस्लामिक जगत के अमनपसंद लोगों को, और ज्यादा शिद्द्त से इस आतंकवाद की मुखालफत करनी होगी।

प्रस्तुत आलेख का मकसद- किसी भी धर्म-मजहब की बाजिब -गैरबाजिब आलोचना करना ,उसके गुण -दोषों की विवेचना करना, या उनकी महत्ता का बखान करना नहीं है। वैसे भी दूसरे की रेखा का कुछ हिस्सा मिटाकर ,अपनी रेखा बढ़ाने वाले कभी सफल नहीं हो सके। प्रायः सभी जानते हैं कि मजहबी कट्टरवाद किस खास मजहब में ज्यादा परवान चढ़ा है।  यह भी कड़वा सच है  कि हिंसा का रास्ता अखत्यार करने में आईएसआईएस ,अलकायदा,तालिवान और बोको हरम की बराबरी का आतंकी संगठन इस दुनिया में कहीं नहीं ,किसी गैर इस्लामिक धर्म-मजहब और राष्ट्र में कहीं भी नहीं । लेकिन क्या अन्य धर्म-मजहब में पूरा अमन -चैन है ? और क्या इस्लामिक आतंकवाद के बहाने इस्लाम को निशाना बनाना उचित है ? भारत में 'हिंदुत्ववाद' का बड़ा हो हल्ला है। कुछ लोग इस्लामिक आतंकवाद बहाने दुनिया भर में अपनी बेबसी का रोना रोते  फिर रहे हैं। कुछ हिन्दूवादी संगठन और नेता हिन्दू कौम और सनातन- धर्म पर इस्लामिक अत्याचार का इतिहास बार-बार दुहराते रहते हैं।

धर्मावलम्बियों की दुर्दशा पर आंसू बहाकर राजनीतिक रोटियाँ सेंकने में सफल भी हुए हैं। कहीं इस्लामिक जिहाद ,लव जेहाद और हिन्दुओं की घटती आबादी का अरण्यरोदन है ,कहीं मस्जिद बनाम मन्दिर का द्रुतविलंबित बनावटी शोर है। इससे हिन्दुओं का या सनातन धर्म का कोई भला नहीं होने वाला। बल्कि पाकिस्तान और आईएसआईएस जैसे नापाक तत्वों को भारत के खिलाफ उनके दुष्टतापूर्ण उद्देश्यों को जस्टीफाई करने का मौका अवश्य मिलता है।   

'आवश्यकता आविष्कार की जननी है ' ! इस सिद्धांत के अनुसार धरती के सबसे 'समझदार प्राणी' कहे जाने वाले इंसान ने पहले तो जीवन निर्वाह के तमाम संसाधन जुटाए, फिर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती के निमित्त निरंतर नए-नए आविष्कार किये और  तदनुसार मानव समाज ने नित नूतन नव निर्माण किये।  सभ्यताओं के विकास क्रम में दुनिया के अधिकांश हिस्सों के आदिम कबीलों ने अपनी दैहिक,दैविक,भौतिक समस्याओं के निवारण के लिए सामाजिक रीति-रिवाज बनाए, अपने-अपने  नियम कानून बनाए और  कालान्तर में जब इन  कबीलाई समाजों ने सूखा,बाढ़ ,उल्कापात,आगजनी, हिमपात और महामारी जैसी बिकट समस्याओं-दुर्घटनायें देखीं-भोगीं और उनके निवारण में अपने आप को जब असहाय निरुपाय महसूस किया,तब उनके बीच मौजूद विवेक बुद्धि सम्पन्न इंसानों ने 'अज्ञात दैवीय शक्तियों' की उपासना का सिद्धांत तजबीज किया। लगभग इसी तर्ज पर दुनिया के तमाम  धर्म-मजहब अस्तित्व में आये। यह बात जुदा है कि बहुत बाद में इस दैवीय अनुष्ठान में चमत्कार,अवतार, धन दौलत के लुटेरे ,आडंबरपूर्ण उपासना गृह, अधार्मिक-मजहबी पाखण्ड,धार्मिक कट्टरता और आतँक के जल-जले पैदा होते चले गए।  ये तमाम नकारात्मक तत्व समय-समय पर राज्य सत्ता के ठिकाने  भी बनते रहे हैं । इस दौर का मजहबी आतंकवाद उसी नापाक तस्वीर की निशानी है।

दुनिया में जो धर्म-मजहब अपने आप को छुई-मुई समझते हैं या दूसरों के धर्म-मजहब से घृणा करते हैं,वे अतीत में भी मजहब के नाम पर दुनिया भर में हिंसा और लूट के लिए बदनाम रहे हैं। हिंसक -लूट के धन से 'खलीफा' का खजाना भरने और दुनिया भर से कमसिन जवान लड़कियों-ओरतों को लूटकर उसका 'हरम' भरने निकले मुहम्म्द बिन कासिम ,महमूद गजनबी,मुहम्म्द गौरी तो इस जहाँ से कब के रुखसत हो गए किन्तु वे शैतानियत की अमानवीय नजीर इस धरा पर अवश्य छोड़ गए। उनके वैचारिक उत्तराधिकारी ;अपने धर्म-मजहब के प्रचार-प्रसार और विस्तार की लालसा में रात -दिन हलकान हो रहे हैं। वैसे तो दुनिया के सभी धर्म-मजहब कटटरवाद,संकीर्णतावाद और पाखंडवाद से ग्रस्त हैं, किन्तु वैश्विक सरमायेदारी ने और आधुनिक मारक हथियारों की तिजारत ने 'इस्लामिक आतंकवाद 'को कुछ ज्यादा ही खाद-पानी दिया है। खुद सऊदी अरब ,जॉर्डन,सीरिया,सूडान ,यमन ,पाकिस्तान और अन्य पेट्रोलियम उत्पादक इस्लामिक देशों ने  दुनिया में   साम्प्रदायिक वैमनस्य  बढ़ावा दिया है।  जिन देशों ने मजहबी कट्टरता को हावी होने दिया ,अलकायदा,तालिवान,बोको हरम और आईएसआईएस को मजबूत किया ,वे इस्लामिक देश अब खुद ही इस भस्मासुर से भयभीत हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक,धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है ,यह बहुत खेदजनक और असहनीय है कि भारत के कुछ  भटके हुए युवा, कभी कश्मीर के अलगाववादियों से जुड़कर ,कभी पाकिस्तान के आतंकी संगठनों और प्रशिक्षण शिवरों से जुड़कर ,कभी अलकायदा ,कभी तालिवान ,कभी दुख्तराने मिल्लत,कभी आईएस,और कभी किसी अन्य आतंकी संगठन से जुड़कर , अपने ही मादरे -वतन भारत से गद्दारी करते हुए  बेमौत मर रहे हैं।  वे इस्लाम के पवित्र सिद्धांतों के बारे में और उसकी महानता के बारे में कुछ नहीं जानते। उनके आतंकी इतिहास से विचलित होकर कुछ  'हिन्दू ' भी उनकी नकल करना चाहते हैं,किन्तु वे भूल जाते हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और हिन्दू धर्म में 'अहिंसा' तत्व का समावेश बहुत गहरे तक पैठ बनाए हुए है, इसलिए 'हिंदूवादी आतंकवाद' केवल एक कोरी कल्पना या गप्प मात्र है।आरएसएस,   शिवसेना इत्यादि का मकसद हिन्दुत्ववादी ध्रुवीकरण के मार्फत सत्ता हासिल करना है ,ताकि वे पैसे वाले हिन्दू -वनियों को सुरक्षा प्रदान कर सकें!इसके बदले उन्हें 'गुरु दक्षिणा 'या चंदा मिलता है।  जिस प्रकार इस्लामिक आतंकवाद खुद इस्लाम का दुश्मन है उसी प्रकार 'संघ परिवार'का 'हिंदुत्ववाद' सनातन धर्म का शत्रु है।

  वर्तमान समय में इस्लामिक कट्टरपंथियों से न केवल इस्लाम को  बल्कि सम्पूर्ण धरती को ही खतरा पैदा हो गया है। लेकिन 'सनातन धर्म' से दुनिया में  किसी को कोई खतरा नहीं। 'संघ परिवार' से हिंदुत्व को और धर्मनिरपेक्षता को खतरा अवश्य है किन्तु उससे इस्लाम को या भारत में किसी धर्म-मजहब  को कोई खतरा नहीं है । 'संघ' वाले इन्देशकुमार,सुधींद्र जैसे लोग खुद ही अल्पसंख्यकों को 'संघ' की छतरी के नीचे लाने में जुटे हैं।  अपने स्वभाव से ही यह 'सनातन धर्म' चाहकर भी किसी बिधर्मी का बलात धर्म परिवर्तन नहीं कर सकता ,क्योंकि उसकी जाति -गोत्र-खाप की संरचना में नवआगुंतक को कोई स्थान नहीं। और न ही यह 'सनातन धर्म' किसी  व्यक्ति अथवा समाज पर तलवार या बन्दूक की ताकत से थोपा जा सकता  है। हालांकि इस सनातन धर्म के अंदर 'कर्मयोग,ध्यानयोग और सुदर्शन क्रिया इत्यादि आध्यात्मिक गुण सूत्र ऐंसे हैं कि  संसार का कोई भी मनुष्य बिना धर्म परिवर्तन के ही 'सनातन धर्म'का अनुशरण कर सकता है। हालाँकि इस्लाम ,बौद्ध ,जैन ,सिख और ईसाइयों की भाँति 'सनातन धर्म' में भी अनेक मत-मतांतर और झगड़े हैं। किन्तु इसके कुछ सिद्धांत और सूत्र वैज्ञानिकता ,तार्किकता से परिपूर्ण  हैं। उपनिषद,वेदांत दर्शन और गीता की शिक्षाएं अपनी रचनात्मक बुनावट में सार्वभौम और कालजयी हैं। और इसकी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार धाम और ज्योति पीठ की परम्परा ,द्वादश ज्योतर्लिंग की भारत में भौगोलिक स्थति और प्रमुख नदियों में  'कुम्भ स्नान' वाली  परम्परा 'सनातन धर्म' को मानवीय सम्वेदनाओं से जोड़कर और ज्यादा  महान बनाती है। शायद इसीलिये 'इसे सनातन धर्म 'कहा गया है। और उसके प्रमुख आर्ष ग्रंथों -वेदों को 'अपौरषेय' कहा गया है। इनमें  'सनातन धर्म' की उदारता ,विनम्रता और महानता के लाखों मन्त्र दर्ज यहीं। उनमें से एक -दो मंत्र यहाँ प्रस्तुत है :

''इन्द्रम् मित्रम् वरुणं अग्निम अहुरथो,दिव्या सा सुपर्णों गरुत्मान,एकम सद  विप्रः बहुधा बदन्ति''

अर्थात :-इंद्र,मित्र ,वरुण ,अग्नि ,अहुरमज्द एवं संसार के सभी देवी -देवता ,नैतिक आदर्श ,धर्म सिद्धांत  मूलतः एक ही  हैं। विद्वान लोग उन्हें भिन्न -भिन्न नामों से याद करते हैं, उनके नाम और उपासना  के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं ,किन्तु अंततोगत्वा वह 'सत् 'एक ही है !

अयं निजः परोवेत्ति ,गणना लघुचेतसाम। उदार चरितानाम तु वसुधैव कुटुम्बकम।।

अर्थात : ये मेरा है ,ये तेरा है  इस प्रकार की सोच 'निम्नकोटि' के लोगों की हुआ करती है। उदार चरित्र के लोग तो सारे संसार को अपना कुटुंम्ब मानते हैं।

 ये सूत्र मन्त्र केवल दर्शन झाड़ने के लिए नहीं बने थे। सत्य हरिशचन्द्र ,नल दमयन्ती, मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम और महर्षि दधीचि जैसे पात्रों में इन सिद्धांतों को व्यवहृत हुआ भी देखा जा सकता है।

यह अद्भुत एव विचित्र किन्तु सत्य तथ्य है कि दस हजार साल पहले जब इन मन्त्रों  की रचना की गयी , तब दुनिया में जितने धर्म-मजहब थे ,उन सबका सादर उल्लेख इस मन्त्र में किया गया है। इसमें उल्लेखित अग्नि और अहुरमज्द पारसियों और सुमेरियन सभ्यता के देवता हैं ,इस मन्त्र में आये नाम  किसी मानव या आदमजात के नहीं अपितु अलौकिक शक्तियों के हैं। इसमें प्रकृति की अज्ञात शक्तियों को उस एक 'सत्य'का स्वरूप मानकर  मान्यता दी गयी है। वेशक कोई  भी यह सवाल उठा सकता है कि जब यह सार्वभौम और कालजयी  मंत्र है तो इस मन्त्र में गॉड,अल्लाह, बुद्ध,महावीर और नानक का उल्लेख  क्यों नहीं है ?इस प्रश्न का उत्तर बहुत सहज और सरल है। ईसाई धर्म का अभ्युदय दो हजार साल पहले हुआ है ,इस्लाम का उदय चौदह सौ साल पहले हुआ है,बौद्ध धर्म का अवतरण २५०० साल पहले हुआ है। लेकिन इस मन्त्र की रचना  दस हजार साल पहले हो चुकी थी। दूसरा सवाल यह भी उठ सकता है कि तब तो  हिन्दू शब्द ही इस धरा पर मौजूद नहीं था ,तो इस मन्त्र को हिन्दू धर्म से  कैसे जोड़ा जा सकता है ? इस प्रश्न का जबाब ही 'सनातन धर्म' है। अर्थात जो सनातन से है ,काल से परे  है और जिसमें संसार के सभी धर्म-मजहब का सार है। हिन्दू धर्म ,हिन्दू कौम और हिन्दू राष्ट्र ,ये शब्द ही सारे झगड़े की जड़ हैं।

भारत में सिंधु घाटी सभ्यता ने ,हिमालय पर्वत की सभ्यता ने ,दक्षिण की द्रविड़ सभ्यता ने और गंगा-यमुना के मैदानों की सभ्यता ने अपने अलग-अलग स्वतंत्र विकास किये । इन आदिम कबीलाई सभ्यताओं के प्रारम्भ में आपसी संबंध बहुत कम थे ,उनके रीति-रिवाज, धर्म और पूजा पद्धति इत्यादि भी अलग-अलग थे। कुछ कबीले तो बहुत काल तक किसी भी तरह के धर्म- मजहब और 'सभ्यता'से वंचित रहे। इसीलिये इनमें से अधिकांश लोग 'हिंदोस्तान' में इस्लाम के आगमन पर मुसलमान हो गए। और जो शेष बचे वे  अंग्रेजों-ईसाइयों  के 'इंडिया' आगमन पर ईसाई हो गए । वास्तव में सिंधु नदी को अरब-फारस के लोगों ने 'हिन्दू' पुकारा और  जिसे आज  सारी दुनिया 'हिन्दू धर्म' कहती  है ,उसका नामकरण संस्कार भी 'इस्लामिक 'विद्वानों ने  ही किया था। लेकिन इस नामकरण से पहले इसे केवल 'सनातन धर्म' कहा जाता था। जिसके वेद ,उपनिषद और षड दर्शन सारे  संसार को लुभाते रहे हैं।

किन्तु धरती पर किसी बड़ी उथल-पुथल के कारण 'इंडोयूरोपियन सभ्यता' के कुछ कबीले जब मध्य एसिया से उत्तर-पश्चिम भारत में आ वसे तब उन्होंने उस प्रदेश नामकरण 'पंचनद प्रदेश ' के रूप में किया। सम्भवतः रावी, विपस्त्ता,सतलुज,व्यास और झेलम नदियों का नामकरण संस्कार इन्ही आदिम आर्यों ने किया होगा। सिन्धु,सप्त सिंधु और आर्यावर्त नाम भी इस भूमि को इन यायावर आर्यों ने ही दिया होगा।
जब पूर्व वैदिक आर्यों के कबीले मध्य एसिया से 'पंचनद'प्रदेश में  आये तब तक भारतीय उपमहाद्वीप का नामकरण संस्कार भी नहीं हुआ था।  में 'आर्यावर्त' भरत खण्ड ,द्रविड़ देश,दक्षिणापथ और कदाचित या जम्बूद्वीप  नामकरण से पहले कुछ स्थानीय कबीले जम्बूद्वीप कहा करते थे एवं दैवीय आस्था का श्रीगणेश  प्रारम्भ हुआ होगा।  सनातन धर्म और भारत 

जब कुदरती बिघ्न बाधाओं पर मनुष्य का जोर नहीं चला ,जब उसकी विवेक बुद्धि चुकने लगी , तो उसने देश-काल-परिस्थिति एवं सामाजिक रहन -सहन के मुताबिक दैवीय अदृश्य शक्ति के रूप में  'धर्म-मजहब -दर्शन' का अनुसन्धान किया। कालांतर में समय -समय पर अपनी-अपनी भाषाओँ में दुनिया के तमाम कबीलों,गोत्रों के धर्मगुरुओं ने , सुधीजनों ने विभिन्न सिद्धांत -सूत्र और 'मन्त्र- नियम' बनाए। मानव सभ्यता के इतिहास में ऐंसे कई मौके भी आये जब  यह 'धर्म-मजहब' का चलन एक क्रूर गोरख धंधा बन गया। कभी-कभी तो दुनिया भर में 'धर्म-मजहब' के बहाने सामूहिक नरसंहार का रक्तरंजित इतिहास भी लिखा गया है। कहीं-कहीं , कभी-कभी धर्म-मजहब  को शैतानी जामा पहनाया जाता रहा है। इसीलिये यह 'धर्म-मजहब' मानव समाज का हित करने के बजाय उसकी  मौत का फंदा ही बन गया। कुछ समाजों के खुरापाती लोग अपने आदिम कबाइली उसूलों को मजहबी अंधश्रद्धा में घोंटकर पी गए और  इंसान से हैवान बन गए हैं ।यह अनुसन्धान का विषय है कि  इस आधुनिक वैज्ञानिक युग के तरक्की पसंद रोशनख्याल इंसान ने, 'अंध-उन्मादी मजहबी आतंकवाद ' के समक्ष अपने बुद्धि -विवेक ,ज्ञान-विज्ञान से सज्जित जग कल्याणकारी  हथियार क्यों डाल दिए हैं ?  दुनिया के किसी भी धर्म को किसी अन्य धर्म से खतरा नहीं -बल्कि हरएक के विनाशक उसके अंदर मौजूद हैं। दुनिया के किसी भी धर्म-मजहब को हिंदुत्व से कोई खतरा नहीं  है ! लेकिन इस्लामिक आतंकवाद से भारत की लोकतांत्रिक -धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को गम्भी खतरा अवश्य है। यदि इस्लामिक कट्टरतावाद और उग्र होगा तो प्रतिक्रिया स्वरूप 'हिंदुत्ववाद' भी जोर पकड़ेगा। तब हिन्दू राष्ट्र की मांग भी जोर पकड़ेगी. और यदि इस्लामिक आतंकवाद ने टेक्टिकल वोटिंग से भारतीय लोकतंत्र को कैप्चर करने की कोशिश की तब भी परिवर्तित व्यवस्था में मजहबों का दखल बढ़ेगा. तब धर्मनिरपेक्षता केवल दिखावटी ही होगी। श्रीराम तिवारी !



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