'मोदी सरकार' से पहले वाले किसी भी भारतीय नेता या प्रधान मंत्री ने चीन और पाकिस्तान के नेताओं पर कभी विश्वाश नहीं किया। और यही वजह है कि भारत को इन दुष्ट पड़ोसियों के सामने कभी इतना शर्मिंदा नहीं होना पड़ा ,जितना कि अब मोदी जी के राज में भारत को शर्मिन्दा होना पड़ रहा है। हमारे हिन्दू दर्शन पारंगत प्रधान मंत्री जी और उनके 'हमसोच' संघ बौद्धिकों की सिद्धांत निष्ठां में श्रीकृष्ण या चाणक्य का अक्स तो बिलकुल नहीं दिख रहा है। किन्तु पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान की रणनीति में भगवान 'श्रीकृष्ण की नीति 'का असर अवश्य झलक रहा है। कुरुक्षेत्र के मैदान में जब कर्ण के रथ का पहिया रुधिर जनित कीचड़ में धस गया तो वह रथ से नीचे उतर गया और पहिया उचकाने में जुट गया। जाहिर है कि कर्ण ने अपने धनुष बाण इत्यादि जमीन पर रख दिए होंगे ! उस निहत्थे कर्ण को मारने के लिए ही श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उकसाया था। परिणाम सामने था। दानवीर महाबली कर्ण छल-बल से मारा गया। झूँठे दम्भ में अपना ५६ इंची सीना ठोकने वाले भारतीय नेताओं की नादानी से अब जबकि भारत के रथ का पहिया धराशायी हो रहा है ,अदूर - दर्शिता ,कुशासन, गरीबी,सूखा ,आतंकवाद , आरक्षण आंदोलन ,भृष्टाचार के दल-दल में भारत बुरी तरह फंस गया है। ऐंसे में चीन रुपी श्रीकृष्ण ने पाकिस्तान रुपी अर्जुन को उकसाया है कि वह आतंकवाद रुपी शिखण्डी की ओट से भारत रुपी निहत्थे कर्ण पर प्राणघातक हमला करे !
पहले तो भारत के सत्ताधारी नेताओं ने विदेश नीति का सही आकलन किये बिना ,संसद को विश्वाश में लिए बिना,यूएनओ में चीन की भूमिका को जाने बिना -पाकिस्तानी आतंकी अजहर मसूद और जेश -ए-मुहम्म्द पर प्रतिबंधात्मक पस्ताव पेश कर दिया। चूँकि चीन ने वीटो कर दिया और भारत यूएनओ में हार गया।भारत की याने हमारी बहुत किरकिरी हुई। दुनिया में भारतीय विदेश नीति की खिल्ली उड़ाई जा रही है। इस गलती को सुधारने के लिए डोभाल साहब और सुषमा जी ने चीन के अलगाववादी उइगर नेता दोलकुंन इशा को भारत का बीजा दे दिया। इतना कदम उठाना तो फिर भी जायज लग रहा था। किन्तु चीन के एक इशारे पर दोलकुन का बीजा वापिस ले लिया यह किस देशभक्ति का सबूत है ? दोलकुन का बीजा किस मजबूरी में रद्द किया गया ?यह भारत की जनता को अवश्य जानना चाहिए।
भाजपा और संघ परिवार को बहुत गलत फहमी है कि ''चीन और पाक़िस्तान तो दूध के धुले पड़ोसी देश हैं ,वो तो हमारे पहले वाले प्रधान मंत्री ही नाकारा और नालायक थे इसलिए समस्याएं हल नहीं हुईं '' ! दरसल इसी गलत धारणा से संघ परिवार संचालित हो रहा है। वरना मोदी जी विदेशों में जाकर यह नहीं कहते कि 'भारत के पहले वालों सत्तारूढ़ नेताओं ने तो ६७ साल में कुछ भी नहीं किया अब हम आ गए हैं सो सब ठीक कर देंगे ''!इन संघियों को एक और बहुत बड़ी गलत फहमी है कि भारत के वामपंथी तो चीन के शुभचिंतक हैं। वास्तव में वे भारतीय वामपंथ और कम्युनिस्ट पार्टी आफ चायना ' के बीच के मतभेदों को न तो जानते हैं और न ही उन्हें यह सब जानने में कोई रूचि है। वे तो इस २१वीं शताब्दी में भी उसी ९० साल पुराने गोलवलकरी साहित्य से ही संचालितहो रहे हैं।जिसमें कम्युनिस्टों ,दलितों,मुस्लिमों ,ईसाइयों को संघ का स्थाई शत्रु मान लिया गया है।
प्रायः हरेक प्रबुद्ध भारतीय को अपने वतन की फ़िक्र है। यही वजह है कि जब किसी खेल विशेष में भारत के खिलाड़ी जीत दर्ज कराते हैं ,तो पूरे भारत में आतिशबाजी होती है।वैसे तो भारत की अधिकांश जनता अपने सभी पड़ोसी मुल्कों से दोस्ताना मैत्रीभाव की कायल रही है। किन्तु जब कभी कोई पड़ोसी मुल्क भारत की ओर बुरी नजर डालता है तो भारत की आवाम उसे माकूल जबाब देने को सदैव तैयार रहती है। किन्तु इस संदर्भ में 'संघमित्रों' का रवैया नितांत अभद्र और बचकाना रहा है। उन्हें पता नहीं कौनसी जन्म घुट्टी पिलाई जाती है कि वे अपने अलावा बाकी सभी भारतीयों को देशद्रोही ही समझते हैं। भले ही उद्धव ठाकरे कहते रहें कि जेएनयू छात्र कन्हैया कुमार को देशद्रोही कहना गलत है । किन्तु संघ परिवार' के दुमछल्ले बाज नहीं आयंगे क्योंकि वे ओंधी खोपड़ी जो ठहरे ! श्रीराम तिवारी
पहले तो भारत के सत्ताधारी नेताओं ने विदेश नीति का सही आकलन किये बिना ,संसद को विश्वाश में लिए बिना,यूएनओ में चीन की भूमिका को जाने बिना -पाकिस्तानी आतंकी अजहर मसूद और जेश -ए-मुहम्म्द पर प्रतिबंधात्मक पस्ताव पेश कर दिया। चूँकि चीन ने वीटो कर दिया और भारत यूएनओ में हार गया।भारत की याने हमारी बहुत किरकिरी हुई। दुनिया में भारतीय विदेश नीति की खिल्ली उड़ाई जा रही है। इस गलती को सुधारने के लिए डोभाल साहब और सुषमा जी ने चीन के अलगाववादी उइगर नेता दोलकुंन इशा को भारत का बीजा दे दिया। इतना कदम उठाना तो फिर भी जायज लग रहा था। किन्तु चीन के एक इशारे पर दोलकुन का बीजा वापिस ले लिया यह किस देशभक्ति का सबूत है ? दोलकुन का बीजा किस मजबूरी में रद्द किया गया ?यह भारत की जनता को अवश्य जानना चाहिए।
भाजपा और संघ परिवार को बहुत गलत फहमी है कि ''चीन और पाक़िस्तान तो दूध के धुले पड़ोसी देश हैं ,वो तो हमारे पहले वाले प्रधान मंत्री ही नाकारा और नालायक थे इसलिए समस्याएं हल नहीं हुईं '' ! दरसल इसी गलत धारणा से संघ परिवार संचालित हो रहा है। वरना मोदी जी विदेशों में जाकर यह नहीं कहते कि 'भारत के पहले वालों सत्तारूढ़ नेताओं ने तो ६७ साल में कुछ भी नहीं किया अब हम आ गए हैं सो सब ठीक कर देंगे ''!इन संघियों को एक और बहुत बड़ी गलत फहमी है कि भारत के वामपंथी तो चीन के शुभचिंतक हैं। वास्तव में वे भारतीय वामपंथ और कम्युनिस्ट पार्टी आफ चायना ' के बीच के मतभेदों को न तो जानते हैं और न ही उन्हें यह सब जानने में कोई रूचि है। वे तो इस २१वीं शताब्दी में भी उसी ९० साल पुराने गोलवलकरी साहित्य से ही संचालितहो रहे हैं।जिसमें कम्युनिस्टों ,दलितों,मुस्लिमों ,ईसाइयों को संघ का स्थाई शत्रु मान लिया गया है।
प्रायः हरेक प्रबुद्ध भारतीय को अपने वतन की फ़िक्र है। यही वजह है कि जब किसी खेल विशेष में भारत के खिलाड़ी जीत दर्ज कराते हैं ,तो पूरे भारत में आतिशबाजी होती है।वैसे तो भारत की अधिकांश जनता अपने सभी पड़ोसी मुल्कों से दोस्ताना मैत्रीभाव की कायल रही है। किन्तु जब कभी कोई पड़ोसी मुल्क भारत की ओर बुरी नजर डालता है तो भारत की आवाम उसे माकूल जबाब देने को सदैव तैयार रहती है। किन्तु इस संदर्भ में 'संघमित्रों' का रवैया नितांत अभद्र और बचकाना रहा है। उन्हें पता नहीं कौनसी जन्म घुट्टी पिलाई जाती है कि वे अपने अलावा बाकी सभी भारतीयों को देशद्रोही ही समझते हैं। भले ही उद्धव ठाकरे कहते रहें कि जेएनयू छात्र कन्हैया कुमार को देशद्रोही कहना गलत है । किन्तु संघ परिवार' के दुमछल्ले बाज नहीं आयंगे क्योंकि वे ओंधी खोपड़ी जो ठहरे ! श्रीराम तिवारी
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