भारतीय वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम से -इसरो की अद्व्तीय सक्रियता से ,गरीबों का पेट काटकर खर्च किये गए ४५० करोड़ रुपयों की बदौलत और भारत के पूर्व प्रधान मंत्रियों - इंदिरा गांधी एवं राजीव गांधी की भारत को महाशक्ति बनाने की चाहत के दूरदर्शी -महत योजनाओं के साकर होने पर निसंदेह भारत को गर्व है। बड़े दुःख की बात है कि इस मंगल अभियान की सफलता में जिनका रत्ती भर योगदान नहीं रहा , जिन्होंने अपने विगत ४ माह के कार्यकाल में इसरो की ओर नजर उठाने की जहमत भी नहीं उठाई -वे महान नेता जी -न केवल इसरो में जाकर फोटो खिचवा रहे हैं । न केवल अपनी पीठ ठोक रहे हैं बल्कि वे एक और काम कर रहे हैं कि अपनी अज्ञानता और प्रमादवश उन लोगों का नाम भी जुवां पर नहीं ला रहे हैं जिन्होंने देश को इस मुकाम पर पहुँचने के लिए बहुत कुछ किया है। प्रचार के बेहद भूंखे और खुद को हमेशा फोकश में रखने के जिद्दी नेता जी जैसा शायद ही दुनिया में और कहीं कोई मिलेगा । मीडिया के भोंपुओं उसके घोंचू विश्लेषकों और ऐंचकताने सम्पदकों को तो मानों पीलिया रोग हो चुका है। कोई चैनल या समाचार पत्र ,मंत्री या नेता यह नहीं बता रहा कि अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र-इसरो ,भाभा रिसर्च एटोमिक सेंटर या अटॉमिक पावर प्लांट्स के लिए कौन भारतीय नेता या वैज्ञानिक -सारे संसार में वेइज्जत होता रहा।इस महान इसरो की स्थापना किसने की थी ? क्या भाजपा ने ? क्या मोदी जी ने ? क्या मंगल अभियान की सफलता का श्रेय इन्हे है जो आज अपनी पीठ ठोक रहे हैं ? क्या इसरो के 'मार्श आर्बिटर ' अभियान की कल्पना उनके दिमाग की उपज थी जोअपने पूर्ववर्तियों की निंदा , गरवा ,गोधरा,लव जेहाद या वोटों के जातीय व् साम्प्रदायिक ध्रवीकरण से आगे नहीं सोच सकते ?
कौन प्रधानमंत्री था जिसने स्पेश प्रोजेक्ट को कामयाब बनाने के लिए न केवल सुपर कम्प्यूटर हासिल किये ,बल्कि क्रायोजनिक इंजन के शुष्क ईधन के लिए भी वह कभी अमेरिका तो कभी रूस भटकता रहा? इसरो की वर्तमान वैज्ञानिक टीम को सिलेक्ट करने वाले कौन थे ?फंड आवंटन किस मंत्री या प्रधानमंत्री ने किया ?भारत की नयी पीढ़ी को यह सच जरूर जानना चाहिए। इसरो को भी चाहिए कि सब नहीं तो कुछ नीति संबंधी जानकारी तो देश के नौजवानों को अवश्य ही उपलब्ध कराये।
शुक्र है की मार्श आर्बिटर' या इसरो के किसी भी प्लान के लिए विगत १६ मई से २२ सितम्बर तक राजनीति या नेताओं का तो कोई भी योगदान नहीं रहा। माना कि ये विभाग डायरेक्ट पीएम के अण्डर में है किन्तु सवाल यह है कि इस 'मंगल अभियान की अद्व्तीय सफलता' में उनका योगदान क्या है?मीडिया का एक हिस्सा और सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं का इस संदर्भ में स्वयंभू यशोगान बेहद भौंडा और हास्यापद है। उनके वयानों से तो यही लगता है कि ये नेता सत्ता में आये और मंगल रवाना कर दिया होगा। चार महीनों में वह मंगल की कक्षा में पहुंचकर वहाँ से कह रहा है की सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा ! हालाँकि मैं तो यही कहूँगा कि हिन्दोस्ताँ तो बहुत संकट में है। हाँ वेशक ! सारे जहाँ से अच्छा इसरो है हमारा !
श्रीराम तिवारी
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