गुरुवार, 11 सितंबर 2014

ईमान दार और मेहनती इंसान के बजाय जेल का अपराधी बेहतर जिन्दगी क्यों जी रहा है ?


खबर -एक

      मध्यप्रदेश की जेलों में कैदियों के लिए अब  आइन्दा  कठोर -सूखी  रोटियाँ  खाकर दाँत  टूटने का खतरा नहीं रहा।पनीली कंकड़ युक्त दाल में  सूखे टिक्क्ड़ डुबोकर पेट नहीं भरना पडेगा। प्रदेश की भाजपा -शिवराज   सरकार -बिजली , पानी, बेकारी ,सूखा -बाढ़ , ओला -व्यापम ,महँगाई ,रेप ,हिंसा ,चेन-स्नेचिंग  और   इंफ्रास्टक्चरल डवलपमेंट  पर भले ही  कुछ न कर  सकी हो ,किन्तु -हत्या,रेप के मुलजिम ,सिमी के उग्रवादी ,व्यापम घोटाले के अपराधी  , चोर -उचक्के -डाकू , लोकायुक्त द्वारा लपेटे में लिए गए भृष्ट -रिश्वतखोर अफसर-बाबू-पटवारी तथा सजायफ्ता नेताओं को  अब जेल में गरमागरम  रोटियां  खिलाने का इंतजाम अवश्य कर दिया गया है।
                 
                 विगत सप्ताह भोपाल से  जेल  मुख्यालय   ने प्रदेश के सभी जेलरों-अधीक्षकों को निर्देशित किया है कि इस  संदभ में ततकाल कायवाही  करें। लकड़ी और थर्माकोल से बने नवीन आधुनिक डिब्बों  के प्रयोग या अन्य साधनों से कैदियों को बढियां ताजा  रोटियाँ  खिुलायें।  याने मुफ्तखोर अपराधियों  की शासन-प्रशासन को बड़ी -चिंता है  इसलिए उनके वास्ते - नास्ते के अलावा लंच  और  डिनर  में कम से कम -६-६ बढियां-बढियाँ  तंदूरी या मोटी -मोटी ,  गरम-गरम रोटियां  मुफ्त !

   खबर -दो
                  देश के -  प्रदेश  के  हजारों रोजनदारी मजदूर,ठेका मजदूर ,खेतिहर मजदूर ,खदान मजदूर ,मनरेगा मजदूर और यत्र-तत्र बाल मजदूर भी   महज १०० रोज  ही कमा पाते हैं। कभी-कभी तो इतने का भी काम नहीं मिल पाता।  १२-१२ घंटे काम करने के वावजूद  बिना आंदोलन या हड़ताल के समय पर उन्हें यह  मजदूरी भी नहीं मिलती।  प्रदेश में सीटू के नेतत्व में उनके आन्दोलनों की अनुगूँज सभी जगह सुनी जा सकती है। भयानक बीमारियों से घिरे -  महंगाई -ओला-सूखा-पाला की मार से पीड़ित  मध्य  प्रदेश  के लाखों छोटे -किसानों   की हालात सबसे अधिक चिंता जनक है। प्रदेश और देश की सरकार को  तो जापान-अमेरिका-इंग्लैंड  के निवेशकों की चिंता है  .इधर  मुनाफाखोर  पूँजीपतियों   और भृष्ट ठेकेदारों  की पौबारह है। उधर प्रदेश के करोड़ों  निर्धनों के यहाँ दो बक्त की सूखी रोटियाँ  का भी कोई स्थाई इंतजाम नहीं है।रोटी तो दूर की बात स्वच्छ पीने का पानी भी  गाँव के गरीबों को -प्रदेश के हजारों  गाँवों  में  आज भी नहीं है। जिस  दौर में अपराधी होना निरपराध से बेहतर हो  चुका हो उस दौर में अध्यात्म-धर्म-मजहब तथा सांस्कृतिक उत्थान की बातें करना  केवल मानसिक अय्यासी है।  चरित्रहीन लोग ही इन हवाई और धर्मान्धता की बातों को हवा देते हैं।  वे रोटी पर बात नहीं करते। क्योंकि इनके पेट भरे हैं। जबकि इनके हाथ पाप-पंक से सने हैं।  यह एक  अहम सवाल है कि -ईमान दार और मेहनती इंसान  के बजाय  जेल का अपराधी बेहतर जिन्दगी  क्यों जी रहा है ?

                       श्रीराम तिवारी 

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