नयी सरकार के सम्मुख ,
सुनामी लहरों की हलचल।
हिचकोले खाने लगी है ,
शासन की नाव अभी से मुसलसल।
मानसून गया है फिसल ,
किसान- कास्तकार हैं विकल।
कैसे करें कब करें बोनी ?
इस माहौल में क्या खाक होगी फसल ?
नहीं होगी बुआई तो काहे की फसल ?
मँहगे हो रहे हैं खाद बीज ,
बढ़ते जाते बिजली -पानी के बिल।
अजीब हैं हुक्मरानों के मंसूबे,
की जले पर नमक छिड़कते हैं ,
कहते हैं 'कड़े फैसले लेंने होंगे ',
धक-धक हो रहा निर्धन आवाम का दिल।
सरकार के वयान मात्र से ,
जनता का बजट हो रहा विफल !
संकट निवारण की नहीं कोई युक्ति -
नीति-सिद्धांत उनके पास ,
चुनौतियों का सामना करने में -
शासन -प्रशासन विफल।
पूंजीपतियों -सत्ता के दलालों
महत्वाकांक्षी निर्मम शासकों के ,
शायद अच्छे दिन आये हैं ,
जिनके मनोरथ हुए हैं सफल।
देश की -कौम की- आवाम की ,
बदहाली योँ ही रही बरकरार,
तो ठिकाने लगा देगी जनता ,
आइन्दा इनकी भी अकल।
श्रीराम तिवारी
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