शनिवार, 28 जून 2014

ठिकाने लगा देगी जनता ,आइन्दा इनकी भी अकल।



   नयी सरकार के सम्मुख ,

    सुनामी  लहरों की  हलचल।

      हिचकोले खाने लगी है  ,

      शासन की नाव  अभी से मुसलसल।

       मानसून गया है  फिसल ,

       किसान- कास्तकार हैं विकल।

      कैसे करें कब करें  बोनी ?

      इस माहौल में क्या खाक होगी फसल  ?

    नहीं होगी बुआई तो काहे की  फसल ?

    मँहगे  हो रहे  हैं खाद बीज ,

   बढ़ते जाते बिजली -पानी  के बिल।

   अजीब  हैं हुक्मरानों के मंसूबे,

  की जले पर नमक छिड़कते हैं ,

  कहते हैं 'कड़े फैसले लेंने होंगे ',

  धक-धक हो रहा निर्धन आवाम का दिल।

 सरकार के वयान मात्र से ,

जनता का  बजट हो रहा  विफल !

संकट निवारण की नहीं कोई युक्ति -

नीति-सिद्धांत उनके पास , 

 चुनौतियों का सामना करने में -

शासन -प्रशासन विफल।

पूंजीपतियों -सत्ता के दलालों

महत्वाकांक्षी निर्मम  शासकों के ,

 शायद अच्छे दिन आये हैं ,

 जिनके  मनोरथ हुए हैं सफल।

देश की -कौम की- आवाम की ,

 बदहाली योँ  ही रही बरकरार,

तो ठिकाने लगा  देगी जनता ,

आइन्दा इनकी भी  अकल।


   श्रीराम तिवारी  

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