भारत के वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य पर माथा पच्ची करने वालों में से अधिकांस ने आर्थिक , सामाजिक , राष्ट्रीय ,सामरिक और अंतर्राष्ट्रीय विमर्श से परे कुछ खास नेताओं को विमर्श के केंद्र में प्रतिष्ठित कर रखा है। इन लोगों के लिए नरेंद्र मोदी ,राहुल गांधी ,केजरीवाल और तीसरे मोर्चे के कुछ उत्साही नेताओं के नाम रग्वी घुड़ दौड़ के घोड़े जैसे हैं। आगामी प्रधानमंत्री कौन होगा ?इस सवाल के उत्तर में किसी का घोड़ा नरेंद्र मोदी ,किसी का राहुल गांधी , किसी का अरविन्द केजरीवाल ,किसी का कोई और नेता है ,अण्णा हजारे ने तो एक घोड़ी पर ही दांव लगा रखा है। विभिन्न सर्वे और सूचनाओं के आधार पर कहा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी बहुत आगे चल रहे हैं ,राहुल बहुत पीछे बताये जा रहे हैं और बाकी के नेता तो केवल 'खेल बिगाड़ू' ही बताये जा रहे हैं। हालांकि भाजपा और संघ परिवार ने राहुल गांधी को कभी चुनौती नहीं माना किन्तु फिर भी उन्हें अंदेशा है कि कांग्रेस का ऊंट कभी भी कोई अज्ञात करवट ले सकता है । चूँकि केजरीवाल ने अम्बानी के बहाने मोदी को तो घेर रखा है किन्तु संतुलन के लिए राहुल के बजाय मनमोहन सिंह को भी कठघरे में खड़ा कर रखा है इसलिए यह स्वाभाविक है कि इस पॉइंट पर मोदी की कमीज से ज्यादा राहुल गांधी की कमीज सफ़ेद दिख रही है। इन्ही आशंकाओं के बरक्स 'संघ परिवार'ने प्लान किया है कि कांग्रेस के सम्भावित प्रत्याशी याने राहुल गांधी की कमीज पर जबरन कीचड उछलकर उसे भी बदरंग दिखा दिया जाए।
कुछ लोगों को गलत फहमी है कि राहुल गांधी को प्रधान मंत्री बनने की बेजा खुवाइश है। वेशक हर कांग्रेसी चाह्ता होगा कि राहुल देश के प्रधानमंत्री बने। किन्तु कांग्रेस और राहुल दोनों को मालूम है कि भारत की जनता अभी बदलाव के मूड में है अतः २०१४ में न तो कांग्रेस के चांस हैं और न ही राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के कोई आसार हैं। वास्तव में राहुल गांधी और कुछ खुर्राट कांग्रेसी तो बहुत पहले से ही मिशन -२०१९ के काम पर लग चुके थे। लेकिन राहुल ने समय-समय पर अपनी ही यूपीए सरकार के खिलाफ जो वयानबाजी की है ,उन्होंने तमाम लोककल्याणकारी मुद्दों पर अपनी जो बेबाक प्रतिक्रया दी है और संसद के अंतम सत्र में जो अनेक प्रगतिशील कानूनों को पारित करने की पैरवी की है , राहुल ने यहाँ तक कोशिश की है कि यदि संसद के वर्तमान शीतकालीन सत्र का कार्यकाल नहीं बढाया जा सकता तो इस सूरत में राष्ट्रपति के माध्यम से ततसंबंधी 'अध्यादेश ' लाने की भी वकालत की है. राहुल की इन तमाम सक्रियताओं से आभासित होता है कि राहुल भी प्रधान मंत्री की दौड़ में अभी भी शिद्दत से डटे हुए हैं। यह सच है कि उन्होंने मनमोहनसिंह सरकार के कई जन विरोधी निर्णयों को पलटवाया है। वेशक यह राहुल को ही श्रेय जाता है कि खाद्द्य सुरक्षा - क़ानून,मनरेगा ,राजीव आवास योजना ,भृष्टाचार निरोशक बिल तथा स्वास्थ सुरक्षा विधेयक इत्यादि अनेक मामलों में सार्थक हस्तक्षेप के माध्यम से अमली जामा पहनाये जाने की निरंतर कोशिश की गई है। देश का जन मानस न केवल विबिधतापूर्ण है अपितु नित्य परिवर्तेनशील और गतिशील भी है इसलिए आगामी २०१४ के लोक सभा चुनाव की रग्वी घुड़ दौड़ में कौन आगे निकलेगा ये जनता के बहुमत की राष्ट्रीय आकांक्षा पर निर्भेर है। यदि मोदी की सम्भावनाएं हैं तो राहुल और अन्य की सम्भावनाओं से भी अभी इंकार करना केवल शोशेबाजी है।
१५ वीं लोक सभा के शीतकालीन सत्र का समापन मीडिया में देखने वालों को कुछ -कुछ फील गुड सा हुआ होगा कि चलो - कुछ हद तक भारतीय लोकतंत्र की गरिमा अभी भी अक्षुण है । इस दरम्यान जहाँ कुछ पार्टियां और उनके सांसद लगातार तेलांगना बनाम सीमांध्र तथा अन्य गैर ज्वलंत मुद्दों पर संसद में मिर्ची पावडर से जूझ रहे थे और अंतिम क्षणों तक कोहराम मचाये हुए थे , वहीँ राहुल गांधी खाद्द्य सुरक्षा विधेयक,स्वास्थ् सुरक्षा विधेयक ,भृष्टाचार निरोधक विधेयक पर दनादन पैरवी किये जा रहे थे। यही वह कर्त्तव्यनिष्ठा है जो एक प्रजातांत्रिक और परिपक्व नेत्तव कारी - व्यक्तित्व् का निर्धारण करती है । राहुल गांधी के खिलाफ सुषमा स्वराज इत्यादि ने अचानक सत्रावसान के अंतिम क्षणों में गजब की पैंतरेबाजी दिखाई जो सिद्ध करती है कि राहुल गांधी को देश की जनता के समर्थन से इंकार नहीं किया जा सकता।
प्रधानमंत्री डॉ मनमोहनसिंह ने सभी सांसदों का , मंत्रिमंडल के सदस्यों का , विपक्ष के सांसदों और नेताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया। विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने भी प्रधानमंत्री डॉ मनमोहनसिंह की विनम्रता ,सोनिया गांधी की मध्यस्थता ,मीरा कुमार की बौद्धिक क्षमता और आडवाणी जी की तथाकथित न्यायप्रियता का तहेदिल से गुणगान किया। उन्होंने सरकार -सत्ता पक्ष और विपक्ष समेत सभी की मुक्त कंठ से भूरि -भूरि प्रशंशा की। संसद की कार्यवाही सुनने वालों को देखने वालों को लगा कि शायद यही खाँटी - प्रजातांत्रिक परम्परा हो , यह चिंतनीय है कि भारतीय राजनीति में अब इन मूल्यों का दिनों दिन ह्रास होता जा रहा है। फिर भी गनीमत है कि सरकार और विपक्ष ने दिखावटी ही सही किन्तु सत्रावसान में गम्भीरता का परिचय तो दिया ,यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सुषमा जी ने अपने अंतिम भाषण में राहुल गांधी पर कोई सकरात्मक अनुकम्पा दर्शाने के बजाय उन पर बेहद आक्रामक रुख अपनाया। न केवल उन्हें अपरिपक्व सिद्ध करने की कोशिश की, बल्कि राहुल के संसद में दिए गए तात्कालिक बक्तव्य पर उनकी लानत-मलानत में भी कोई कसर बाकी नहीं रखी।
यह निष्पक्ष चिंतन और सार्थक सोच की बात है कि इससे देश में क्या सन्देश जाता है ? क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि सुषमा स्वराज जो कि विपक्ष की नेता हैं, जो मन ही मन कभी -कभार ही सही खुद भी प्रधानमंत्री की कुर्सी का सपना भी देखतीं होंगी , ये किसी से छिपा नहीं है। मोदी से भी नहीं। इस घटना के बाद वे राहुल गांधी जैसे नौसीखियाँ के सामने भी फिसड्डी राजनीतिग्य ही सावित हुईं हैं। सुषमा का और अन्य भाजपा नेताओं का यह आचरण 'क्राइसिस ऑफ कान्सस 'नहीं तो और क्या है ? कांग्रेस की या यूपीए की नाकामियों का ठीकरा राहुल गांधी के सर फोड़ने का मोदी का या सुषमा का या भाजपाई मंतव्य राजनैतिक पाखंड नहीं तो और क्या है ?
वेशक यूपीए सरकार अपनी अंतिम साँसे गिन रही है । लेकिन यह भी सच है कि राहुल गांधी को वैसा कोई भ्रम नहीं है या कोई 'फील गुड ' नहीं हो रहा है,जैसा कि २००४ में तत्कालीन एनडीए सरकार के समय भाजपा और संघ परिवार को हो रहा था। तब भी कांग्रेस में कोई सुर्खाब के पर नहीं लगे थे ! तब भी राहुल गांधी या सोनिया गांधी कोई तुर्रम खां नहीं थे। किन्तु उन्हें सत्ता मिली। यूपीए -१ के बाद यूपीए -२ लगातार 'राजयोग' चला आ रहा है। जबकि तब राहुल गांधी अब से ज्यादा अपरिपक्व और अबोध थे ,सोनिया जी को तो तब विदेशी मूल की जन्मना होने के कारण पहले ही हासिये पर धकेला जा चूका था. यही सोचने की बात है कि वो कौनसे तत्व हैं कि लाख बदनामियों और नाकामियों के वाबजूद कांग्रेस कभी यूपीए- वन, कभी यूपीए -२ और कभी किसी तीसरे मोर्चे के कंधे पर बन्दुक रखकर सत्ता में पुनः -पुनः वापिस आ जाया करती है ? इस प्रश्न का उत्तर यदि मोदी जानते तो वे कभी 'कांग्रेस मुक्त भारत ' का नारा नहीं देते। इस सवाल का जवाव यदि सुषमा के पास होता तोअब राहुल के खिलाफ और तब सोनिया के खिलाफ इतना जहर नहीं उगलतीं कि सर मुंडाने या जमीन पर सोने के संकल्प का पाखंड करने की नौबत आये। संघ परिवार और मोदी द्वारा राहुल गांधी को घेरने की कोशिशें साबित करते हैं कि राहुल में 'दम' है।
भाजपा और संघ परिवार पुनः फील गुड में आ चुके हैं। बार-बार के प्रायोजित सर्वे उन्हें ललचा रहे हैं कि डॉ मनमोहनसिंह के नेत्तव में यूपीए का यह अंतिम कार्यकाल है और अब यूपीए का सूपड़ा साफ़ होने जा रहा है। यूपीए गठबंधन के सबसे बड़े दल कांग्रेस को आगामी चुनावों में १०० सांसदों के आंकड़े से नीचे बताया जा रहा है। मोदी फेक्टर के कारण भाजपा को अकेले ही २२० सीटों के करीब बताया जा रहा है। अधिकांस लोगों को यकीन है कि आगामी लोक सभा चुनावों में देश की संसद की यही सूरते- हाल होने जा रही है। चूँकि भाजपा को यकीन है कि एनडीए की सरकार बनाने के लिए उसे ५०-६० सीटों की और जरुरत पड़ेगी । धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तब यदि कोई सैद्धांतिक ध्रुवीकरण नहीं हुआ तो भाजपा के मोदी जी सत्ता में प्रतिष्ठित हो जायेंगे। वशर्ते कांग्रेस को १०० के नीचे कसा जा सके।
चूँकि राहुल गांधी ने परोक्षतः कांग्रेस की कमान संभल ली है और वे भी फूंक-फूंककर ,छानवीन कर उम्मीदवार खड़े करने के लिए 'पायलट प्रोजेक्ट' लांच कर चुके हैं ,चूँकि उनकी व्यक्तिगत छवि अभी भी वेदाग है ,चूँकि वे राजनीति में भ्रष्टाचार उन्मूलन के पक्षधर हैं और अपनी ही सरकार को कई बार इस सन्दर्भ में रुसवा भी कर चुके हैं इसलिए देश में कांग्रेसियों को उम्मीद है कि वे भले ही सत्ता में न लोट पाएं किन्तु मोदी की पत्तल का रायता तो ढोल ही देंगें। उन्होंने दिल्ली विधान सभा चुनाव उपरान्त करारी हार के वावजूद 'आप' का समर्थन कर , डॉ हर्षवर्धन और भाजपा का जैसा खेल दिल्ली में बिगाड़ा था और डॉ हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया वैसा ही खेल वे आगामी २०१४ के लोक सभा चुनाव भी बिगाड़ सकते हैं। वशर्ते इस चुनाव में वे लगभग १५० सीटें जीतकर आयें।यदि कांग्रेस के नेता आपस में झगड़ना छोड़ राहुल गांधी के नेत्तव में एकजुट होकर मैदान में उतर जाएँ तो ये काम और आसान हो सकता है । चूँकि राहुल इस दिशा में धीरे-धीरे आगे बढ़ते जा रहे हैं इसलिए भाजपा,संघ परिवार और मोदी का चिंतित होना स्वाभाविक है।
यह सार्वभौम सत्य है कि तीसरे मोर्चे के साथ कांग्रेस की गलबहियाँ कभी भी भाजपा के मोदी को सत्ता में नहीं आने देंगी। चूँकि राहुल की अधुनातन कोशिशों ने कांग्रेस की बिगड़ती सेहत को अपने आदर्शबाद का इंजेक्शन लगा दिया है, जो कांग्रेस को सैकड़ा पार सांसद जिताने के लिए काफी है। यह भी सच है कि कांग्रेसियों को हमेशा ही संघ परिवार से परशानी रही है किन्तु अब उनके निशाने पर मोदी हैं । ये लोग भले ही मोदी के खिलाफ जहर उगलते रहें किन्तु राहुल गांधी ने कभी भी सुषमा स्वराज ,जेटली ,मोहन भागवत या किसी अतिवादी हिंदुतव वादी के खिलाफ वैसा विष वमन नहीं किया। और तो और राहुल ने कभी भी सीधे - सीधे मोदी ,आडवाणी ,अटलजी या गांधी -नेहरू परिवार के अनन्य शत्रु सुब्र्मण्यम स्वामी जैसों को भी उनके वाहियात आरोपों का घटिया जबाब नहीं दिया।
कांग्रेस के दिग्गज यह उजागर करने में जूट हैं कि राहुल तो देश के 'हीरो' हैं। यूपीए सरकार की नाकामियों और बदनामियों से राहुल को ही राजनैतिक नुक्सान हुआ है। वे कांग्रेस के वर्तमान हश्र का श्रेय डॉ मनमोहनसिंह को देने में जत गए हैं । चूँकि डॉ मनमोहनसिंह १० वर्ष तक भारत के प्रधानमंत्री रह चुके हैं।उन्होंने देश को कितना आगे बढ़ाया ,कितनी मंहगाई बढ़ी ,कितना भृष्टाचार हुआ और उनकी क्या खूबियां-खामियां रहीं ये सभी मुद्दे प्रस्तुत आलेख की विषयवस्तु नहीं हैं । किन्तु यह तय है कि आइंदा डॉ मनमोहनसिंह को अब कोई भी देश का प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहेगा! याने भाजपा को या उनके पी एम् इन वैटिंग को डॉ मनमोहनसिंह से अब कोई खतरा नहीं है। इसलिए भाजपा नेत्री और लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा जी ने प्रधानमंत्री की तो खूब जमकर तारीफ़ कर डाली। जबकि राहुल को देश की दुर्दशा का जिम्मेदार बताया। उनकी इस बात से सच्चाई का सर शर्म से झुक जाएगा। , चूँकि सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने तथा प्रधानमन्त्री बनाये जाने के सवाल पर २००४ में इन्ही सुषमा स्वराज ने अपना सर मुंडवाने और जमीन पर सोने तथा चने खाकर जीवन गुजारने का संकल्प लिया था। उनके एक नारी होने के बाबजूद एक अन्य नारी के खिलाफ इतना सारा ज़हर उगलने के बाद यह स्वाभाविक था कि सोनिया गांधी या तो सुषमा के बोल-अबोल को नज़र अंदाज कर वही करती जो उनके तत्कालीन संसदीय बोर्ड ने तय किया था। याने या तो वे भारत की प्रधानमंत्री बन जाती या सुषमा और उमा भारती जैसी महान[?] भारतीय नारियों की 'भीष्म प्रतिज्ञाओं' का सम्मान करते हुए प्रधानमन्त्री पद को लात मारकर किसी और को मौका देतीं।
चूँकि डॉ मनमोहनसिंघ तब तक दुनिया में 'नामी अर्थशास्त्री' के रूप में नाम कमा चुके थे. अतः सोनिया जी को इस पद के लिए वे ही उचित लगे और उन्होंने दूसरा वाला विकल्प ही चुना। हमेशा के लिए यह फैसला लिया कि वे प्रधानमंत्री की कुर्सी की ओऱ अब आइंदा कभी देखेंगी भी नहीं। न केवल यूपीए प्रथम बल्कि २००९ में जब कांग्रेस को ज्यादा सफलता मिली तब भी उन्होंने डॉ मनमोहनसिंह को ही रिपीट किया। चूँकि अब जनता बदलाव या परिवर्तन चाहती है , इसीलिए भाजपा और संघ परिवार को अब सोनिया से कोई खतरा नहीं। किन्तु युवाओं के चहेते ,ईमानदार ,उत्साही विनम्र और प्रजातंत्र में आस्था रखने वाले राहुल गांधी की धर्मनिरपेक्ष छवि से भाजपा और मोदी को अभी भी खतरा है ।
चूँकि डॉ मनमोहनसिंह ने १० साल तक सोनिया प्रसाद पर्यन्त ही भारत राष्ट्र का प्रधानमंत्री होने का गौरव हासिल किया है इसलिए संघ परिवार और भाजपा के पेट में बार -बार यही दर्द उठता है कि कांग्रेस में गांधी-नेहरू परिवार का वर्चस्व जब तक रहेगा तब तक संघ परिवार और उसके आनुषांगिक -भाजपा को न तो देश की राज्यसत्ता मिल पाएगी और अपने साम्प्रदायिक एजेंडे को पूरा कर पाने का मौका भी मिल पाना मुश्किल है। चूँकि गांधी नेहरू परिवार के दो सदस्य प्रियंका बाड्रा और राहुल गांधी अभी भी कांग्रेस पर पूरा वर्चस्व रखने में सक्षम हैं और खास तौर से राहुल गांधी अब भी एक ऐंसा नाम हैं जो सापेक्ष रूप से यह कहने का हकदार है कि "मेरी कमीज नरेद्र मोदी की कमीज से ज्यादा सफेद है " न केवल मोदी से , बल्कि समस्त कांग्रेसियों से , समस्त भाजपाइयों से ,' आप'के केजरीवाल समेत अन्य पूंजीवादी दक्षिणपंथी दलों के नेताओं से तथा शेष सभी क्षेत्रीय दलों के नेताओं से भी उजली है। मार्क्सवादी और वामपंथी शायद दावा कर सकते हैं कि वे राहुल गांधी, मोदी और केजरीवाल इन सभी से ज्यादा पाक -साफ़ हैं ! चूँकि राहुल गांधी लगातार देश के युवाओं से सीधा संवाद करते हुए हरेक भारतीय के हित में वांछित राजनैतिक उपायों पर बहस को चला रहे हैं,चूँकि उन्होंने यूपीए सरकार के अनेक अनुदार फैसलों को बदला है ,चूँकि वे खाद्द्य सुरक्षा क़ानून के लिए ,लोकपाल बिल के लिए ,भ्रस्टाचार उन्मूलन वाबत सशक्त क़ानून के लिए , देश में नयी सर्वसमावेशी व्यवस्था कायम करने के लिए,धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के लिए ,जनहित के मुद्दों पर पेश किये गए बिलों को सत्रावसान के अंतिम क्षणों में भी पारित करने की वकालत करते रहे इसलिए वे सुषमा स्वराज और भाजपा की आँख में किरकिरी बन गए। भाजपा को अब दोहरा खतरा सता रहा है. भले ही विधान सभा चुनावों में कांग्रेस का पटिया उलाल हो गया हो किन्तु उसके बाबजूद भी निडर निर्भीक राहुल के कान्फीडेंस से भाजपा और मोदी तिलमिलाए हुए हैं । बची खुची कसर केजरीवाल ने पूरी कर दी है जो रोज-रोज, नए-नए स्केम खोजकर दनादन मोदी पर वैयक्तिक हमले किये जा रहे हैं।
राहुल गांधी ने ही शेष वांछित संसदीय कार्यवाही के लिए संसद का सत्र बढ़ाये जाने की गुजारिस की थी । यह खेद की बात है कि देश की जनता ने मीडिया प्रायोजित वो कुकरहाव तो देखा तो देखा जो संसद में हिंसक और शर्मनाक गतिविधियों के लिए कुख्यात है , किन्तु सत्रावसान धुंधलके में विपक्ष की राहुल गांधी विरोधी प्रस्तुति को अधिकांस लोगों ने नजर अंदाज किया। चूँकि राहुल गांधी ने देशहित और जनहित के तमाम मुद्दे एक साथ और हड़बड़ी में रख दिए , इसलिए भी प्रेस-मीडिया और जनता ने उचित संज्ञान नहीं लिया। राहुल गांधी में वनावटी पन या नाटकीय संस्कार नाम मात्र को नहीं है। दरशल वे अनायास वाले सिद्धांत में फिट बैठे हैं। जबकि व्यक्तिशः अन्य समकालीन नेता वर्चुअल इमेज इसके अलावा वे जन- ध्यानाकर्षण के लटके -झटके भी नहीं जानते इसीलिये चाहे संसद हो या जन-सभा हर जगह वे बड़ी बात को भी हल्के ढंग से रख देते हैं। मानवीय दृष्टी से यह मौलिक और सच्चरित्र विशेषता हो सकती है किन्तु यही सद्गुण राजनीति में अवगुण बन जाता है तथा असफलता का कारक बन सकता है।
संघ परिवार ,सुबर्मण्यम स्वामी ,रामदेव और नरेद्र मोदी और 'आम आदमी पार्टी ' के कुमार विश्वाश हमेशा मजाक उड़ाते रहते हैं कि राहुल गांधी 'असली गांधी ' नहीं हैं। दूसरी ओऱ यही नेता राहुल के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान कर देश और दुनिया में 'मशहूर' हो रहे हैं। उनका आशय क्या है यह किसी से छिपा नहीं है। ये लोग राहुल गाँधी के सामने इतने बौने हैं कि उनसे लड़ने मात्र से मिलने वाली शोहरत को भी चमत्कार मानकर राजनीति में स्थापित होने की असफल कोशिश करने में जुटे हैं। सुब्रमन्यम स्वामी के ,नरेद्र मोदी के या कुमार विश्वाश के घटिया तंज का जबाब राहुल गांधी ने कभी नहीं दिया। यही महान लोगों के धीरोदात्त चरित्र का असल प्रमाण है। यही राहुल गांधी को नरेद्र मोदी पर ,केजरीवाल पर और अन्य समकालिक नेताओं पर बढ़त दिलाता है। संघ प्रायोजित सर्वे में मोदी नबर -वन हो सकते हैं किन्तु देश की जनता के सर्वे में राहुल बाबा नबर वन की ऒर तेजी से अग्र्सर होते जा रहे हैं। किन्तु 'आप' के नेताओं ने मोदी को निपटाने के लिए कमर कस रखी है। उन्होंने 'असली गांधी ' याने मोहनदास करमचंद गांधी के पोते राजमोहन गांधी को पटा लिया है और अब मोदी में हिम्मत हो तो उनका मजाक उड़ा लें या उनसे चुनाव लड़ लें। दरसल भाजपा, संघ परिवार और नरेद्र मोदी को लगता है कि उनके सत्ता में आने की सम्भावनाएँ तो भरपूर हैं किन्तु उनकी राह में कांग्रेस के नेता नबर दो-कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी आड़े आ रहे हैं। इसलिए समस्त संघ परिवार राहुल को 'घेरने' और 'आप' को 'निहारने' में जुट गया है।
श्रीराम तिवारी