शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

भारत की मेहनतकश जनता खुद अपने वर्ग की सत्ता के लिए संघर्ष क्यों नहीं करती ?

    

  गनीमत है कि  इंटरनेसनल मॉनिटरी फंड याने 'आईएमएफ 'की वर्तमान मेनेजिंग डायरेक्टर महोदया -   क्रिस्टीना लेगार्ड की अंतरात्मा जागृत हो गई और उन्होंने वो सच कह दिया जो दुनिया के सरमायेदारों को उचित नहीं लगा होगा ! भारत और अमेरिका के पूँजीपतियों  को तो क्रिस्टीना लेगार्ड का यह  खुलासा  कतई  पसंद नहीं  आयेगा।  लन्दन में आयोजित किसी सेमीनार के अवसर पर अपने लिखित दस्तावेज  में उन्होंने आईएमएफ की गोपनीय रिपोर्ट के आधार पर बजा फरमाया कि "दुनिया में अमेरिका और भारत जैसे दो बड़े जनतांत्रिक देशों में आर्थिक असमानता की खाई खतरनाक स्तर  पर जा पहुँची है.भारत में अरबपतियों के नेट बर्थ पिछले १५ सालों में १२  गुना   बढ़ी हैं, जो इस देश में दो बार गरीबी पूरी तरह से खत्म करने के लिए पर्याप्त है" उनका यह भी कथन उल्लेखनीय है कि " आर्थिक सुधारों और उन्मुक्त बाजारीकरण से  दुनिया के ज्यादातर देशों में असमानता बढ़ रही है.  किन्तु अमेरिका और भारत में असमानता की दर भयावह है। खास तौर  से  दुनिया  के १० में से ७ लोग  भारत में रह रहे हैं जो निर्धनता की मार झेल रहे हैं "  आईएमएफ की एमडी क्रिस्टीना लेगार्ड  के  द्वारा  प्रस्तुत लेक्चर पत्रिका के अनुसार भारत एक ऐंसा अमीर देश है जहां दुनिया के सर्वाधिक गरीब और पिछड़े लोग रहते  हैं। आर्थिक असमानता की इस  भयावह तश्वीर को लेकर  वाम मोर्चे ने और सीटू -एटक ने हजारों बार  धरना  -प्रदर्शन और आंदोलन किये हैं. भारत के गरीब मजदूर -किसान और सर्वहारा  बुरी तरह अशिक्षित होने, आपस में बँटे  होने से राज्य सत्ता पर अपनी पकड़ बनाने में  अभी तक सफल   नहीं हो  पाये हैं. चूँकि कांग्रेस और भाजपा का वर्ग चरित्र पूंजीवादी और अर्ध सामंती है इसलिए वे पूँजीपतियों  और बड़े किसानों की जी हजूरी करते रहते हैं। भारत में  आर्थिक असमानता का ग्राफ दुनिया में  सबसे बदतर है फिर भी यहाँ   सब कुछ शांत है. यह एक दुखांत बिडंबना है कि  भारत के गरीब और निर्धन -जन   ज़रा ज्यादा ही  कभी मोदी कभी राहुल या किसी और पूंजीवादी एजेंट  को जिताने की बात तो  करते हैं. किन्तु  भारत की मेहनतकश जनता खुद अपने वर्ग की सत्ता के लिए  संघर्ष क्यों नहीं करती ?

                      श्रीराम तिवारी    

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