जिन्हे अपनी ,अपने परिवार की , देश की , दुनिया की , मानव समाज की और भावी पीढ़ीयों की चिंता है , जो चाहते हैं कि इस पतनशील सिस्टम को बदलकर एक 'अतिमानवीय', सुसंस्कृत ,उर्ध्वगामी, मानवतावादी - समतावादी बेहतरीन व्यवस्था कायम की जाए - ऐंसे 'सुपरमैन' केवल काल्पनिक ही नहीं बल्कि हर देश में हर समाज में, हर सभ्यता में,हर मजहब -धर्म , जाति और हर दौर में मौजूद रहते हैं। भले ही उनके लिए कहा जाता रहा हो कि - "हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पै रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा "
वैसे तो मन के सच्चे , कौल के पक्के ,सदाचारी, विवेकशील और सर्वजनहिताय वाली -क्रांतिकारी सोच के नर-नारी किसी खास देश, काल ,समाज,जाति या राजनैतिक पार्टी की वपौती नहीं हुआ करते। ये बेहतरीन मानव सर्वकालिक और सार्वदेशिक और सार्वसामाजिक हुआ करते हैं । वे जाति -धर्म-वर्ण और देश-काल की सीमा से भी परे हुआ करते हैं। किन्तु अवतार वादी लोग केवल एक ही व्यक्ति को नायक मानकर -उसे अपोरषेय मानकर उसकी पूजा करने को भी बैचेन होते रहते हैं। इनमें केवल वे ही नहीं हुआ करते जो घंटों पूजा-पाठ करते हैं ,प्रबचन देते हैं और धार्मिक पाखंडियों की तरह यौन शोषण और व्यभिचार में भी लिप्त रहते हैं। इनमें केवल वे भी नहीं होते जो पांच वक्त की नमाज पढ़ते हैं,मस्जिदों में भड़काऊ तकरीरें देते हैं और मुल्क को तबाह करने निकल पड़ते हैं। बल्कि वे भी हो सकते हैं जो छद्म रूप धारण कर - स्वयं भू राष्ट्रवादी होकर -विशाल राष्ट्र का नेतत्व करने का दावा करते हैं। वे किसी गेंग लीडर की तरह,किसी फासिस्ट की तरह ,किसी बिगड़ेल सांड की तरह - जबरिया भावी प्रधानमंत्री पद की प्रत्याशा करने वाले ,अपनी पिछड़ी जाति के कारण अस्पृश्यता का रोना रोने वाले नरेंद्र मोदी भी हो सकते हैं ।
वे कांग्रेस के युवराज याने राहुल गांधी भी हो सकते हैं. वे कोई ऐरा-गैरा नत्थू-खेरा या अरविन्द केजरीवाल भी हो सकते हैं। जनता को मालूम है कि सभी के अपने-अपने सच हैं। अपनी जाति -धर्म और समुदाय की छाती पर चढ़कर वे न तो महान हो सकते हैं और न ही वे वर्तमान से बेहतर विकल्प दे सकते हैं। यह काम तो केवल जनता के सामूहिक प्रयाशों और सामूहिक संघर्ष से ही सम्भव है। इस महान कार्य के लिए किसी एक ख़ास नेता की या व्यक्ति विशेष की नहीं बल्कि पूरी की पूरी कौम के नैतिक - चारित्रिक और भौतिक रूप से संगठित अनथक परिश्रम की दरकार है।
आदर्शवादी सिर्फ एनजीओ चलाने वाले ही नहीं हुआ करते। जो 'मेगसेसे' जैसा कोई विदेशी पुरस्कार पा जाते हैं किन्तु अपने वतन की हर चीज को हेय दृष्टि से देखने लगते हैं ,वे आदर के पात्र नहीं हो सकते। जो संघठित समूह का नेत्तव करते हुए व्यवस्था पर दवाव बनाकर महज अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं। वे भी सच्चे राष्ट्रभक्त नहीं हो सकते जो अतिसंघर्षशील तो होते हैं किन्तु बिना आगा-पीछा सोचे-समझे ; बात-बात में केवल धरना-प्रदर्शन आंदोलन या हड़ताल करने को ही आमादा रहते हैं , वे भी सच्चे मानवीय आदर्शों के अनुरूप नहीं होते। जो केजरीवाल ,राज ठाकरे या नक्सलवादियों की तरह संविधान का अनादर करने में अपनी शान समझते हैं. विवेकहीन उत्साहीलाल स्वयं भू स्वामी-बाबा-समाज सुधारक और गैर राजनैतिक दर्शन का नित्य जाप करने वाले भी देश और समाज के पथ-प्रदर्शक नहीं हो सकते। बल्कि सुर्खुरू तो वे ही होते हैं जो हमेशा चाहते हैं कि समाज के हर क्षेत्र में खास तौर से राजनीति में साम्प्रदायिकता , जातिवाद , अप्रजातांत्रिक -अराजकता , हिंसक आलोचना और व्यक्ति पूजा को महिमामंडित न किया जाए। देश की सम्पदा को सिर्फ कुछः लुटेरों की ऐय्यासी का साधन नहीं बनने दिया जाए। सभी को साथ लेकर चलने की भावना से उद्दीप्त यही क्रांतिकारी और यही वास्तविक राष्ट्रवादी सोच है। वास्तविक राष्ट्रवाद वो नहीं जो बहुसंख्यकता के दम्भ से घृणा -नफरत और हिंसा का बीजारोपण करता है। अल्पसंख्यकवाद ,जातिवाद और संघठित समूहों की ताकत का बेजा दबाब डालकर निहित स्वार्थों की पूर्ति में लिप्त कोई भी -कितना भी बड़ा व्यक्ति या नेता क्यों न हो, सत्ता का लाभ उठाने वाले ऐंसे अवसरवादी कभी भी 'सच्चे -राष्ट्रवादी नहीं हो सकते।
अण्णा हजारे जैसे अनेक स्वनाम धन्य नकली क्रांतिकारी तत्व जो वर्तमान व्यवस्था को रात-दिन गरियाते रहते हैं। वे इसी सिस्टम के हाथों पुरस्कृत किये जाने की कामना से भी आकंठ बिंधे हुए रहते हैं। उनसे जब राजनीति में आकर इस पाखंडपूर्ण सिस्टम को बदलने की बात करो तो वे दम दवाकर या तो व्यवस्था शरणम गच्छामी हो जाते हैं या केजरीवाल जैसे असफल आफीसर -कम -अर्धकुशल नेता को राजनीति के चक्रव्यूह में फड़फड़ाता देख ,उसके हश्र को चटखारे के साथ वयाँ करने लगते हैं। उन्हें कभी नरेद्र मोदी ईमानदार लगते थे अब महा पाखंडी और दम्भी ममता बेनर्जी पाक साफ़ दिखने लगी है। ऐंसे उजबक और ईमानदारी के ठेकेदारो को जनता और मीडिया जब तक सम्मान देता रहेगा तब तक देश में इसी तरहग राजनैतिक कुकरहाव मचता रहेगा।
स्वामी रामदेव,किरण वेदी ,संतोष हेगड़े ,मेघा पाटकर मल्लिका सारा भाई और अन्य अनेक विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता ,एनजीओ संचालक , और राजनीति का महत्वपूर्ण एवं ताकतवर - गैर कांग्रेसवादी -गैरभाजपाई केवल इस सोच के लोग हैं कि देश में भगतसिंह तो पैदा हो किन्तु उनके घर में नहीं ! वे शहादत के लिए अपनी अंगुली तो क्या नाखून भी कटाने के लिए तैयार नहीं हैं। याने सच्चे -राष्ट्रभक्त होने का दम भरने की दम्भवाणी से लोक-कुख्यात -स्वघोषित क्रांतिकारी कहे जाने वाले ये लोग कल तक केवल 'आप' के असमय निधन की वाट जोह रहे थे ।अब देश में केंद्र की सत्ता के लिए गरेबाँ तोड़ने को उतारू हैं।
उनकी मनोकामना पूरी हो गई । दुर्जन राजनीति के दोगले लोग ४९ दिन तक लगातार केवल अरविन्द केजरीवाल और 'आप' के हजारों दोष एक सांस में गिनाते रहे किन्तु जन-लोकपाल या भृष्टाचार निरोध के बरक्स कोई सार्थक चेष्टा उन्होंने नहीं की। क्रूर काल के इतिहास में ये स्थापित राजनीति के धूर्त चालाक शकुनि स्वयं निष्पाप नहीं हो सकेंगें। जिस तरह कृष्ण के उकसावे पर संकटगरस्त कर्ण को अर्जुन ने न चाहते हुए भी बाणों से बींध दिया था, जबकि उसके रथ का पहिया कीचड़ में फंसा हुआ था। इसी प्रकार अल्पमत 'आप' की सरकार को कांग्रेस +भाजपा + भृष्ट पूँजीपति +रामदेव +किरण वेदी + पागल मीडिया +वगैरह बगैरह . . . ! सभी ने मिलकर उन्हें मैदान छोड़ने पर मजबूर कर ही दिया। 'आप' को आधी -अधूरी सत्ता तो मिली किन्तु बिना नख-दन्त के बिना पुलिस प्रशाशन पर नियंत्रण के अधिकार के इस संकट की वेला में 'आप' का मार्ग दर्शन करने को कोई तैयार नहीं था। सब कृष्ण की तरह उसे निरतर भड़का रहे थे कि "चढ़ जा बेटा सूली पर राम भली करेंगे "चारों ओर से उसे हांक लगाईं जा रही थी -आक्रमण ! आक्रमण ! ! भृष्टाचार पर आक्रमण ! बिजली बिलों पर आक्रमण ! पानी बिलों पर आक्रमण ! बलात्कारियों पर आक्रमण ! किन्तु उन्हें सही राह दिखने वाले दूर से ही तमाशा देख रहे थे.उन्हें जिज्ञाषा थी कि ये धूमकेतु कब अस्त होता है ? कोई सार्थक या सकारात्मक मदद कर ना उन्हें गवारा नहीं हुआ हाई टेक मध्यम वर्गीय युवाओं को तो किसी भी राजनैतिक विचारधारा के सार्थक विमर्श से कोई वास्ता नहीं। यह वर्ग घोर-दासत्व बोध से पीड़ित होकर अधिनायकवाद, व्यक्तिवाद ,अराजकतावाद और मौका परस्त नेताओं के पीछे भागने के लिए मशहूर है। वैसे तो अपना केरियर और अपनी निजी आकांक्षाएं ही उसका अभीष्ट है। किन्तु बाज मर्तवा वह र्भृष्ट व्यवस्था से ठोकर खाने के बाद क्रांतिकारी लफ्फाजी के बहकावे में आ जाता है। लफ्फाजी करने वाले नेताओं के पीछे भी भागने लगता है। जैसा कि इन दिनों वह कभी मोदी ,कभी राहुल और कभी केजरीवाल के पीछे भागता हुआ नजर आता है। सर्वहारा के शोषण का ,मुनाफाखोरों का और पूँजीवादी व्यवस्था का राजनैतिक दर्शन समझने वाले किसी व्यक्ति विशेष के पीछे नहीं भागते , बल्कि वैज्ञानिक - सिद्धांतों और क्रांतिकारी प्रगतिशील विचारों के अनुसार सामूहिक नेत्तव और सकरात्मक क्रांतिकारी परिवर्तन के समर्थक हुआ करते हैं। ऐंसे लोग वेशक भारत में करोड़ों हैं. किन्तु मौजूदा दौर की राजनैतिक -सामाजिक , आर्थिक और सांस्कृतिक विसंगतियों के कारण संगठित नहीं हैं। जनहितेषी - मूलगामी मुद्दों पर, देश की जनता को एकजुट करने और अभीष्ट की आकांक्षा पूरी करने के रास्ते पर वे अब भी अडिग हैं । वे देश में 'असली-लोक तंत्र' की स्थापना और सुराज कायम करने के लिए केवल संसदीय लोकतंत्र की राजनीति के कुरुक्षेत्र में ही अपना शोर्य दिखाने में यकीन नहीं करते । बल्कि जल-जंगल -जमीन और समूचे राष्ट्रीय संसाधनों का न्यायपूर्ण बटवारा करने के प्रबल पक्षधर भी हैं। उन्हें मालूम है कि केवल नकारात्मक आलोचना का कोई औचित्य नहीं हो सकता है ? बल्कि क्रांति का पथ अनवरत आबाद होना चाहिए।
कम्युनिस्ट या वामपंथी कभी किसी व्यक्ति विशेष को राष्ट्र का कर्णधार ,नेता या प्रधानमंत्री जैसे पद का प्रत्याशी मानकर नहीं चला करते। वे सिद्धांतों ,नीतियों , कार्यक्रमों और निर्मम संघर्ष के प्रवल पक्षधर भी हुआ करते हैं. चूँकि ऐंसे विचारवान नागरिकों की संख्या कम नहीं है ,और जनता के सवालों का हल केवल उन्ही के दर्शन में निहित है इसीलिये वाम मोर्चे का भविष्य अभी भी उज्जवल है । वर्तमान दौर की पूंजीवादी व्यवस्था ,पूंजीवादी मीडिया ,साम्प्रदायिक घटाटोप और आवारा पूँजी ने राजनीति को इतना गंदला कर दिया है कि पढ़े -लिखे युवा भी वैचारिक चिंतन से परे ,राष्ट्र-समाज का हित -अनहित जाने बिना केवल व्यक्ति विशेष के पीछे भाग रहे हैं। यही वजह है कि इन दिनों क्रांति की कोई बात नहीं करता। अधिकांस भारतीय केवल सत्ता परिवर्तन की संसदीय राजनीति और 'महानायकवादी' मृगमारीचिका में ही विचरण कर रहे हैं। कोई मोदी ,कोई राहुल और कोई केजरीवाल की चर्चा कर रहा है। राष्ट्र निर्माण ,भृष्टाचार उन्मूलन , महंगाई नियंत्रण,मुद्रा -अवमूलेन , पानी-बिजली -आजीविका इत्यादि जुटाने के विषय पीछे रह गए हैं। खुदा खैर करे !
श्रीराम तिवारी
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