सचिन तेंदुलकर को दिए जाने के बाद तो मानों 'भारत रत्न ' भी धन्य हो गया है !चार दिन की चांदनी है क्रिकेट का खुमार! देश का मीडिया फिर अपने 'असली' काम पर लग जाएगा !फिर भी दुनिया में जब -जब क्रिकेट कि बात होगी ,जब-जब खेल के मैदान में खिलाड़ी भावना की चर्चा होगी , जब-जब अपने खेल जीवन से शानदार विदाई और संन्यास की बात होगी ,सबसे पहले सचिन सुरेश तेंदुलकर ही याद किये जायेंगे।सचिन जिस तरह की विदाई और राष्ट्रीय सम्मान के हकदार हैं वो उन्हें अवश्य ही नसीब हुआ है ! यह इस उक्ति की ही याद दिलाता है कि :-कभी किसी को मुकम्बल जहाँ नहीं मिलता … कहीं जमीं तो कहीं आसमां अन्हीं मिलता ....! यह केवल सचिन ही हैं जिन्हे सब कुछ मिला है । पैसा ,प्यार , यश और राष्ट्रीय सम्मान सब कुछ नसीब हुआ। यह सचिन ही हैं कि जिन्होंने दिखा दिया कि कड़ी मेहनत ,ईमानदारी से लाखों -करोड़ों कमाने के साथ -साथ इज्जत भी कमाई जा सकती है। ना केवल इज्जत कमाई जा सकती है अपितु बिना लोभ -लालच में पड़े बचाई भी जा सकती है। मुम्बई के बानखेड़े स्टेडियम में अपने जीवन के अंतिम टेस्ट मेच में सचिन भले ही शतक बनाने से चूक गए हों ! किन्तु भारतीय प्रशंसकों को गौरवान्वित करने और क्रिकेट प्रेमियों का प्यार पाने में उन्होंने कभी चूक नहीं की !
सचिन के गुरु श्री आचरेकर जी और मार्गदर्शक संजय जगदाले जी गर्व कर सकते हैं कि सभ्रांत लोक के भद्र आचरण और मान्य सिद्धांतों को आचरण में अंगीकृत करने में उनका परम शिष्य सचिन सदा सफल रहा। लक्ष्य के प्रति फोकस,कभी अधीर न होना,अनुशाशन और समर्पण ,विरोधियों का भी सम्मान ,टीम - भावना, निश्छलता और विनम्रता इत्यादि गुणों के धनी सचिन को देश के युवाओं ने शानदार विदाई दी है ! भारत सरकार ने' भारत रत्न' सम्मान दिया है यह भारतीय क्रिकेट को इक्कीस तोपों की सलामी से कम नहीं और खेल जगत के लिए तो यह स्वर्णिम काल भी कहा जा सकता है! जिसके मुख्य शिल्पकार सचिन सुरेश तेंदुलकर ही हो सकते हैं। अब यदि ब्रिटेन की संसद उन्हें कोई ऊँची उपाधि देकर सम्मानित करे तो कोई आश्चर्य नहीं! अमेरिका की सीनेट यदि अपने राष्ट्रीय सम्मान से नवाजे या आई सी सी उन्हें किसी खास सम्मान से सम्मानित करने का प्रस्ताव करती है तो कोई आश्चर्य नहीं ! ये विश्व सम्मान तो उनके लिए नज़ीर है जो अपने गरीब और पिछड़े देश की अधोगामी आर्थिक -सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था के दौर में भी ईमानदारी और सच्चरित्रता से सफलता की ऊंचाइयों को छूना चाहते हैं। निसंदेह आगामी पीढ़ी सचिन तेंदुलकर से न केवल क्रिकेट के खेल का बल्कि मानवीय मूल्यों के अनुशीलन का पाठ भी सीखना चाहेगी। सार्वजनिक जीवन में शुचिता का अनुपालन कैसे किया जाता है ?यह भी भावी पीढ़ी को सचिन तेंदुलकर से सीखना चाहिए !
वेशक सचिन को 'भारत रत्न' दिए जाने के कुछ राजनैतिक निहतार्थ भी हो सकते हैं। भृष्टाचार के विभिन्न आरोपों, प्रशासनिक नाकामयाबियों और कदाचरण की बदनामियों से घिरी केद्र की मनमोहन सरकार की आगामी लोकसभा चुनावों में महा पराजय की पूरी -पूरी सम्भावनाएं हैं। हालांकि एनडीए, वाम मोर्चा और तीसरे मोर्चे सहित सम्पूर्ण विपक्ष भी बुरी तरह बिखरा हुआ है. उनके पक्ष में भी कोई लहर नहीं है इसलिए कांग्रेस के 'इंतजाम अली'अभी भी आशान्वित हैं कि यूपीए-३ की सरकार बनाये जाने की सम्भावनाएं यदि नहीं भी हैं तो भी वे एन-केन प्रकारेण पैदा की जा सकती है ! चूँकि कांग्रेस को अच्छी तरह मालूम है कि भारत का अधिसंख्य जनमानस भावुक और क्षमाशील है, इसलिए कुछ सामाजिक ,सांस्कृतिक फ़िल्मी हस्तियों क्रिकेट खिलाडियों और धर्मनिरपेक्ष शख्सियतों को अपनी छतरी के नीचे लाकर, कांग्रेस रुपी वृद्ध एवं मुरझाये वट वृक्ष में नयी कोंपलें पनपने की आशा की जा सकती है। इसी उद्देश्य से ये भारत रत्न,पद्म भूषण या पद्मश्री जैसे सम्मान के प्रतीक याने तमगे लुटाये जा रहे हैं !
लेकिन 'भारत रत्न' जैसा सर्वोच्च सम्मान दिए जाने का मतलब सौदेबाजी कदापि नहीं है ! हालांकि इस सम्मान में भी वर्गीय राजनैतिक हित ,संस्थागत सुरक्षा और अंतर्निहित भावनात्मक पक्ष सदाशयता से अवश्य जुड़ा हुआ हो सकता है। जिस तरह संघ परिवार और भाजपा के नेता अक्सर हिंदुत्व्वादी साधुओं , बाबाओं,सध्ध्वियों और मठाधीशों को यों ही साष्टांग दंडवत नहीं करते रहते बल्कि वक्त आने पर वे उसकी भरपूर कीमत भी वसूलते हैं। जब संसदीय या विधान सभा चुनाव आते हैं तो ये साधू सन्यासियों की फौज भी काम पर लग जाया करती है।रामदेव ,आसाराम ,रविशंकर और अशोक सिंघल यों ही अपनी जिदगी नहीं खपा रहे हैं। ये सभी संघ परिवार के गैर पेशेवर राजनेतिक कार्यकर्ता और परोक्ष 'काडर ' हैं। इसी तरह कांग्रेस सिर्फ उतनी ही नहीं है जितनी प्रतिपक्षियों को नजर आती है ,बल्कि उसका रूप और आकार उसके 'वर्ग चरित्र' और इतिहास के अनुरूप अदृश्य रूप से फैला हुआ है। भले ही उसमें संगठन स्तर पर 'फ्री एंड फेयर डेमोक्रेटिक फंक्शनिंग' का अभाव है किन्तु उसका शीर्ष नेतत्व दुनिया के सर्वाधिक शक्तिशाली नेतत्व में शुमार किया जाता है।
कांग्रेस का उसका अंदरूनी सहयोगी ताना -बाना बिखरा हुआ है । लेकिन जब -जब कांग्रेस पर संकट आया है ,उसके बौद्धिकों ने अतीत में यही सब किया है ! कभी मुस्लिम उत्थान, कभी दलित उत्थान ,कभी गरीबी हटाओ , और कभी 'हो रहा भारत निर्माण ' के सहारे केंद्र की सत्ता में कांग्रेस जो अब तक जमी हुई है उसका एक महत्वपूर्ण काऱण उसका यही संवेदनात्मक चुनावी व्यवस्थापन भी है । चूँकि इस दौर में संचार और सूचना प्रौद्द्गिकी के चलते, युवा जन-चेतना में आकांक्षाओं की सुनामी ने विराट रूप धारण किया हुआ है ,इसलिए कांग्रेस को कुछ नए और आकर्षक भावनात्मक हथकंडों की तलाश है. चूँकि आगामी चुनावों में , सत्ता प्राप्ति में सम्भावित २-३ प्रतिशत मतों के आ रहे अंतर को पाटने की मशक्कत के लिए सभी राजनैतिक -गैर राजनैतिक उपाय आजमाए जा रहे हैं । जिसमें 'भारत रत्न ' जैसा अमोघ अश्त्र भी शामिल है। कांग्रेस के रणनीतिकारों की सोच है कि कुछ ऐंसा किया जाए कि खिसकते जनाधार को स्थिर किया जा सके। बाकी का काम तो उसकी धर्मनिरपेक्षता की पगड़ी ,परम्परागत जनाधार का जामा और राष्ट्रव्यापी 'सेट-अप' के अश्त्र-शस्त्र से हो ही जाएगा।
इसीलिए एन आम चुनावों की पूर्व वेला में और पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के दरम्यान , कांग्रेस और यूपीए ने ब्र्ह्मास्त्र के रूप में श्रेष्ठ क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को और देश के शीर्ष वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर चिंतामणि नागेश रामचंद्रन राव को 'भारत रत्न' प्रदान किया है। इस राष्ट्रीय सर्वोच्च नागरिक सम्मान द्वारा इसकी स्थापना से लेकर अब तक दर्ज़नों लोग महिमामंडित किये जा चुके हैं. किन्तु सचिन को सम्मान दिए जाने के बाद इस सम्मान की चर्चा अब हर उस गली मुह्ह्ल्ले में हो रही हैं जहां छोटे-छोटे बच्चे भी टूटी -फूटी ईंट के विकेट और कबाड़ के बल्ले से क्रिकेट खेला करते हैं। कभी -कभी लगता है कि 'भारत रत्न' के सम्मान ने सचिन को सम्मान दिया है या कि सचिन को दिए जाने पर 'भारत रत्न' गौरवान्वित हो रहा है।केंद्र की यूपीए सरकार ने सचिन को सम्मानित कर कुछ तो राजनैतिक बढ़त हासिल की है।
प्रोफैसर रामचन्द्रन राव जो पहले से ही प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार हैं और "सॉलिड स्टेट एंड मटेरियल्स केमिस्ट्री "के अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतकार भी रहे हैं । उन्हें भारत रत्न देकर यूपीए-२ और केंद्र सरकार ने निसंदेह 'भारत रत्न' का ही मान बढ़ाया है। यह सम्मान मिलने पर प्रोफ़ेसर रामचंद्रन राव अपनी प्रतिक्रिया देने में ज़रा गच्चा खा गए। किन्तु सचिन तेंदुलकर को 'भारत रत्न' दिए जाने से उन्हें कोई घमंड या श्रेष्ठता का दम्भवोध नहीं व्याप सका। सचिन को 'भगवान्' मानने वालों से मुझे बेहद चिड़ है किन्तु जब सचिन के सम्पूर्ण व्यक्तित्व ,क्रिकेट से परे मर्यादित आचरण,विनम्रता और भारतीय मूल्यों के प्रति आस्था देखता हूँ तो मन कहता है कि क्या सचिन मर्यादा पुरषोत्तम नहीं है ?जिस सचिन ने १५ साल की उम्र में अपने देश में और १७ साल की उम्र में तमाम 'राष्ट्रमंडल ' देशों में धूम मचा दी जिस सचिन ने क्रिकेट जगत के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए , जिस सचिन ने सैकड़ों बार भारतीय क्रिकेट टीम को संकट से उबारा ,जिस सचिन ने कभी किसी दाऊद के आगे सर नहीं झुकाया , कभी किसी सटोरिये को घास नहीं डाली, कभी किसी मेच फिक्सिंगः का हथकंडा नहीं अपनाया वो सचिन क्या वास्तव में आम आदमी से कुछ ऊपर नहीं है ? यदि किसी को क्रिकेट में या फिल्मों में एक -दो चांस मिल जाएँ और खिलाड़ी या हीरो कुछ जम जाए तो आसमान में उड़ने लगता है। लड़का है तो शरीफ लड़कियों को बर्बाद करने के लिए हरामीपन की हद तक चला जाता है.लड़की है तो अमेरिका ,इंग्लेंड, पाकिस्तान या दुबई में रंगरेलियां मनाने पहुँच जायेगी। किन्तु सचिन ने अपने माँ-बाप और कुल खानदान का नाम तो रोशन किया ही साथ ही भारतीय पारम्परिक मर्यादाओं का मान रखा इसलिए वे यदि 'कुछ लोगों के लिए 'भगवान्' हैं तो गलत नहीं !
सचिन के फेन हम जैसे क्या खाक होंगे जो क्रिकेट का ककहरा भी नहीं जानते। किन्तु हमें फक्र है कि हम सचिन के समकालीन हैं ,सचिन के व्यक्तित्व और कृतित्व के साक्षी हैं। हम जिनके चेले रहे हैं वे प्रभाष जोशी भी सचिन को 'भगवान्' ही मानते थे। वे सचिन के शानदार प्रदर्शन और सचिन की बेहतरीन खेल भावना के कारण ही क्रिकेट के दीवाने हो गए थे। यह सर्वविदित है कि सचिन का क्रिकेट देखते-देखते ही प्रभाष जोशी इस संसार से विदा हो गए थे। हम यदि कभी -कहीं सचिन तेंदुलकर की लफ्जों से कुछ तारीफ़ कर रहे होते हैं तो लगता है कि हम कोई 'देशभक्तिपूर्ण कार्य' कर रहे हैं । सचिन होना याने भगवान् होना भले ही अतिश्योक्तिपूर्ण हो किन्तु सचिन होना वास्तव में देशभक्तिपूर्ण होना तो अवश्य है।
सचिन को भारत रत्न दिए जाने के बाद न केवल राजनैतिक फ़तवेबाज़ी शुरूं हो गई है बल्कि देश और दुनिया में इस सन्दर्भ में भारी मतभेद भी उभरकर सामने आये हैं । ये मतभेद सचिन की लायकी या उनकी योग्यता के परिप्रेक्ष्य में कम किन्तु केंद्र की मनमोहन सरकार के 'नेक' इरादों के संदर्भ में ज़रा ज्यादा ही उमड़ -घुमड़ रहे हैं।कुछ लोगों को लगता है कि पहले राज्य सभा में भेजकर और अब 'भारत रत्न' से सचिन को सम्मानित कर कांग्रेस ,राकपा और यूपीए ने राजनैतिक बढ़त हासिल की है। कुछ लोगों को लगता है कि प्रधानमंत्री डॉ मनमोहनसिंह और केंद्र सरकार ने इस दौर के क्रिकेट प्रेमियों ,खेल प्रेमियों ,युवाओं और सचिन प्रेमियों को लुभाने और मतदाताओं का दिल जीतने की बेहतरीन कोशिश की है. यदि यह सच भी है तो इसमें क्या गलत है ? क्या अच्छे और महान लोगों को राजनीति से जोड़ना कोई गलत बात है ?क्या सचिन के राजनीती में आने से देश को खतरा है ? यह जरूरी भी नहीं की सचिन सक्रिय राजनीति में उतरेंगे ही । फिर भी कांग्रेस ने यदि सचिन को आनन्-फानन यह सम्मान दिलाया है तो कुछ तो उम्मीद की ही होगी! कांग्रेस की इस आशावादिता में बुरा कुछ नहीं है। हो सकता है कि सचिन रुपी एक बूँद अमृत से मृतप्राय कांग्रेस पुनर्जीवित हो उठे। यदि सचिन जैसे अच्छे लोग राजनीति में आयेंगे तो क्या देश का भला नहीं होगा ? कांग्रेस को फायदा होने की आशंका से भाजपा ,मोदी और संघ परिवार भी सचिन को 'भारत रत्न' दिए जाने का लगे हाथ स्वागत कर रहे हैं । किन्तु दबी जुबान से यह भी कहा जा रहा है कि अटलजी को भी भारत रत्न दिया जाना चाहिए था । उनकी इस मांग पर गौर किया जाये तो सूची बहुत लम्बी हो जायेगी। क्योंकि अटलजी से बड़े दीनदयाल उपाध्याय थे ,उनसे बड़े स्यामाप्रसाद मुखर्जी थे ,उनसे बड़े गोलवलकर थे और उनसे भी बड़े हेडगेवार थे। उनसे भी बड़े बाजीराव पेशवा थे ,उनसे भी बड़े छत्रपति शिवाजी थे ,उनसे भी बड़े समर्थ रामदास थे । उनसे बड़े महाराणा प्रताप थे ,उनसे बड़े कृष्ण थे ,उनसे बड़े श्रीराम थे और उनसे भी बड़े उनके पिता दशरथ थे। उनसे बड़े उनके बाप'अज' थे ,उनसे भी बड़े उनके बाप दिलीप थे और उनसे बड़े उनके बाप रघु थे। इन सबसे बड़े इनके गुरु वशिष्ठ थे. ये सभी एक बार नहीं लाख बार 'भारत रत्न' के हकदार हैं कि नहीं ? अब बोलो इन सबको कब कहाँ 'भारत रत्न दिया जाए ?
वेशक ! खेलों में हाकी के जादूगर दद्दा ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग करने वालों का मैं भी समर्थक हूँ। लेकिन मुझे मालूम है कि सूरज को किसी की उधार रौशनी नहीं चाहिए । ध्यानचंद तो भारत रत्न से भी महान हैं। आजकल के खिलाड़ी भले भी वे कितने ही महान क्यों न हों! महानतम खिलाड़ी ध्यानचंद की बराबरी नहीं कर सकते! फटे जूतों में ,गुलाम राष्ट्र का क्रांतिवीर ध्यानचंद जब जर्मनी में १५-अगस्त १९३६ के रोज हॉकी के मैदान में गोल पर गोल दागता है और दर्शक दीर्घा से एडोल्फ 'हिटलर ' भी ताली बजाने को मजबूर हो जाता है तो मेरे रोम-रोम में सिहरन उठती है ! अंतःकरण से आवाज आती है कि - 'मेजर ध्यानचन्द अमर रहे ! मेजर ध्यानचंद -जिन्दावाद !! तुम पर लाखों 'भारत रत्न' निछावर !!
राजनैतिक नफ़ा -नुक्सान के आधार पर सरकार की सोच हो सकती है कि महान हाकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को सम्मान देने से शायद केंद्र की सत्तारुढ़ गठबंधन सरकार को कोई राजनैतिक फायदा नहीं होगा। लेकिन यदि वह मेजर ध्यानचंद को सचिन से पहले 'भारत रत्न ' दे देती तो न केवल राजनैतिक फायदा होता बल्कि यूपीए-२ और मनमोहन सरकार इतिहास में अमर हो जाती। खैर इस संदर्भ में खेल मंत्री और केंद्र सरकार ने अभी तक जितनी कोशिश की है और शायद आगे वो अपनी भूल सुधार कर भी ले तो भी अब तो यही कहा जा सकता है कि 'रहिमन फाटे दूध का माथे न माखन होय' !
चुनावी वर्ष में वेवक्त 'भारत रत्न' या अन्य सम्मान पदक प्रदान करने या लाभ के किसी पद पर किसी व्यक्ति को बिठाने से यह कहना मुश्किल है कि आगामी लोक सभा चुनाव में इससे कांग्रेस ,राकपा और यूपीए को कितना राजनैतिक फायदा होगा? इसी उद्देश्य के मद्देनजर यूपीए सरकार ने प्रख्यात फ़िल्म गायिका लता मंगेशकर को भी 'भारत रत्न' दिया था और उम्मीद भी लगा रखी थी कि कांग्रेस और यूपीए को लता जी से कुछ राजनैतिक लाभ याने आशीर्वाद अवश्य ही मिलेगा । किन्तु राजनैतिक ज्ञान से शून्य लता जी ने कांग्रेस को कोई खास महत्व नहीं दिया। उन्होंने जब अपने चरणों में साष्टांग दंडवत कर रहे मोदी को 'प्रधान मंत्री भव ' कहा तो कांग्रेसी खेमे में बैचेनी होना स्वाभाविक थी। उस बैचेनी का परिणाम जल्दी ही सामने आ गया और सचिन तेंदुलकर 'भारत रत्न' हो गए। हालाँकि लता का मोदी को दिया गया यह आशीर्वाद भारतीय परम्परा का एक प्रतीक मात्र है। भारतीय परम्परा में बड़े-बूढ़े इस तरह का आशीर्वाद तो दुश्मनों को भी दे देते हैं. वशर्ते वो दुश्मन 'शरणम् गच्छामि' हो चूका हो !लोग यह भी कहते नहीं चूकते कि कांग्रेसियों को सिर्फ एक परिवार[गांधी परिवार] की चिरोरी करना ही आता है. इसलिए अन्य माननीयों,भारत रत्नों ,परम वीर चक्र - धारियों को संभालने का उन्हें वो हुनर नहीं आता जो संघ परिवार का पसंदीदा शगल रहा है। कहा जा रहा है कि लताजी ने भारत रत्न को खूंटी पर टांगकर कांग्रेस को चिढ़ाने की कोशिश की है।कांग्रेस के जिन 'समझदारों' ने लता मंगेशकर को 'भारत रत्न ' दिए जाने की सिफारिश की होगी उन्हें अपने किये पर पछतावा हो रहा होगा।
कुछ लोगों का कहना है कि लता जी राजनैतिक समझ बूझ से दूर हैं और भोलेपन या वातसल्य वश ही उन्होंने मोदी को "प्रधानमंत्री भव '' का आशीर्वाद दे डाला होगा! अब लाख टके का सवाल ये है कि क्या 'भारत रत्न ' देना एक राजनैतिक सौदेबाजी है ? क्या सरकार सम्मान मुँह देखकर देती है ? यदि हाँ! तो जिसे तोका गया वो तो धोखा दे गई ! यदि न कहते हो तो ! फिर लता जी ने नरेंद्र मोदी को आशीर्वाद क्यों दिया ? यदि कोई ये विचार रखता है कि इसमें राजनीति कहाँ से घुस आई ? तो ऐंसे तटस्थ व्यक्ति को साधुवाद !उसे चाहिए कि लता जी को जाकर कहे कि दीदी आप तो सबकी हैं !देश की हैं ! हिंदु-मुसलमान- सिख -ईसाई -जैन-बौद्ध और पारसी -सबकी हैं ! फ़िल्म जगत की पूँजी हैं! एक भारतीय आत्मा हैं ! आपको क्या पडी कि कहने लगीं आ बैल मुझे मार! यानि फ़ोकट में बोल दिया कि 'नमो' प्रधान मंत्री भव ! अब कांग्रेस को ,शिव सेना को और राकापा याने शरद पंवार को आशीर्वाद देने से मना कर पाएंगी क्या ? नहीं ! बल्कि सोनियाजी,राहुल गांधी, मनमोहनसिंह ,नीतीश ,मुलायम सीताराम येचुरी ,मायावती या वृंदा कारात भी लताजी को नमन करेंगे तो उन्हें भी शायद यही आशीर्वाद मिलेगा कि 'प्रधान मंत्री भव् ' ! वशर्ते लताजी को एडवांस सूचित कर दिया जाए कि किसकी क्या ख्वाइश है ?जैसा की मोदी समर्थकों ने इंतजाम किया कि उनकी यह पवित्र[?] अभिलाषा है। जबसे लताजी ने मोदी को आशीर्वाद दिया है तभी से कांग्रेसी खेमें में यह कोशिश चल रही थी कि महाराष्ट्र में किसी दूसरे गैर पेशेवर राजनैतिक व्यक्तित्व के बहाने डेमेज कंट्रोल किया जाए। कोई ऐंसा नाम उभारा जाए जो लता मंगेशकर की चमक से भी ज्यादा आकर्षक हो। सचिन इस शर्त को पूरा करने के लिए बेहतर विकल्प सावित हुए !
चूँकि इस दौर में क्रिकेट प्रेमियों के दिलों में भगवान् बन चुके सचिन तेंदुलकर का अपने क्रिकेट जीवन से संन्यास लेने का भी ऐलान किया जाना प्रस्तावित था। अतः इस मौके पर स्वयं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मुम्बई के बानखेड़े स्टेडियम पहुंचकर न केवल सचिन का हौसला आफजाई किया अपितु उनके कान में यह बात भी एडवांस में डाल दी कि अब आप भी 'भारत रत्न' होने जा रहे हैं।बधाई! राहुल और कांग्रेस की यह सकारात्मक किन्तु सकाम चेष्टा भविष्य में क्या अवदान देगी इसका आकलन करना कठिन नहीं है. किन्तु यह राजनैतिक विमर्श का विषय जरुर है. इस आलेख की अंतर्वस्तु का अभिन्न अंग होते हुए भी इसे यहाँ उल्लेखित कर पाना आलेख के कलेवर की दॄष्टि से सम्भव नहीं है।चूँकि भारत रत्न या कोई मानद उपाधि शासक वर्ग द्वारा तभी दी जाती है जब वो व्यक्ति विशेष न केवल उसके काबिल हो बल्कि अपने सम्मान प्रदाताओं के प्रति कृतज्ञता का भाव भी रखता हो ! ये मानद उपाधियों की चोंचलेबाजी हम भारतीयों को ही नहीं बल्कि उन तमाम राष्ट्रों को जो कामनवेल्थ के पुछल्ले याने ब्रिटिश साम्राजयवाद के भूतपूर्व गुलाम हैं- उन सभी को अपने अंग्रेज हुक्मरानो से विरासत में मिली है। जो लोग आजादी के बाद इस भारत रत्न या अन्य पदकों के लिए लालायित हैं वे समझ लें कि ये ब्रिटिश राज में सर ,सेठ,नगरसेठ,लम्बरदार , रायबहादुर ,राजा ,नाइट,प्रिंस आफ फलाँ -फलाँ और प्रिंसेस आफ फलाँ -फलाँ इत्यादि लालीपापों से नवाजे जाते थे। ताकि तत्कालीन लुटेरे शासक वर्ग के हाथों की कठपुतली बनकर वफादारी सावित करते रहेंऔर अपने ही हमवतन साथियों पर जुल्म और अन्याय कर सकें। देश के साथ गद्दारी कर सकें। किसी -किसी को तो अपने ही देश के मेहनतकश लोगों को जान से मार डालने की भी छूट थी। याने 'तीन खून माफ़' नामक पदवी भी प्राप्त हुआ करती थी। ये पदक खास तौर से पूंजीपतियों ,सामंतों और उन हिन्दुस्तानियों को दिए जाते थे जो ब्रिटिश साम्राज्य के पालतू हुआ करते थे। ये पदक और मानद उपाधियाँ शहीद भगत सिंह ,चंद्रशेखर आजाद ,बिस्मिल ,सुभाष चन्द्र बोस , पंडित नेहरू , मौलाना आजाद ,सरोजनी नायडू या महात्मा गांधी को नहीं बल्कि कौम के गद्द्दारों को दिए जाते थे । फौजी सम्मान भी उन्हें ही दिए जाते थे जो देश और दुनिया में अंग्रेज कौम के लिए अपनी जान देते थे। आजाद भारत के अधिकांस पदक ,सम्मान और प्रतीक चिन्ह - भारत रत्न ,पदम् विभूषण ,पदमश्री इत्यादि सभी खटराग गुलाम भारत की परम्पराओं के आधुनिक भारतीय संस्करण मात्र हैं। इनके मिलने या न मिलने से किसी बेहतरीन व्यक्तित्व की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ता ! फिर भी सरकार और समाज की अभिरुचि को प्रकट करने के माध्यम तो ये अवश्य हैं !
वेशक ! महाराष्ट्र और मुम्बई ही नहीं सम्पूर्ण भारत में तो क्रिकेट के हीरो सचिन ही हैं। वे किसी भी राष्ट्रीय क्या अंतर्राष्ट्रीय सम्मान के हकदार हैं। इसीलिये यदि सरकार ने उन्हें भारत रत्न से नवाजा है तो यह उसका एक शानदार कदम है। सचिन को न केवल भारत में ,न केवल राष्ट्रमंडल देशों में बल्कि इंग्लेंड ,अमेरिका और ब्राजील समेत सारी दुनिया में भी वाहवाही मिल रही है। क्रिकेट की लोकप्रियता और उसकी अनुगूँज जहाँ - जंहाँ तक है सचिन तेंदुलकर के करिश्माई व्यक्तित्व और क्रिकेट में उनके द्वारा स्थापित किये गए कीर्तिमानों की धूम भी वहाँ-वहाँ तक मची हुई है। वेशक सचिन से भी कई भूलें और चूकें हुईं होंगी ,कुछ प्रतिष्पर्धी ,मित्र और क्रिकेट से जुड़े लोग या साथी खिलाड़ी नाराज भी रहे होंगे। हो सकता है सचिन राजनीती में आये और मुक्केबाज मुहम्मद अली , क्रिकेटर इमरान खान ,हॉकी खिलाड़ी असलम, शेरखान या फुटवालर - मेराडोना की तरह असफल हो कर गुमनामी के अँधेरे में को जाएँ ! हो सकता है कि उन्हें मिले भारत रत्न से किसी को ईर्षा या दुःख भी पहुंचा हो! किन्तु यह नितांत सत्य है कि सचिन ने शायद ही कभी जान बूझकर किसी के साथ कोई गलत व्यवहार किया हो ! उन्होंने क्रिकेट के मैदान में मानवीय मूल्यों को परवान चढ़ाया,अपने व्यक्तित्व् को काजल की कोठरी में भी दागदार होने से बचाया। सचिन का यह अवदान मानवता के लिए चिर स्म्रणीय रहेगा । सचिन का क्रिकेट जीवन से सन्यास अभी तो सिर्फ एक अल्प विराम है ,अभी तो उन्हें राष्ट्रीय पटल पर देश हित में पूरा पेज लिखना है !उम्मीद है वे इसमें भी खरे उतरेंगे ! आमीन !
श्रीराम तिवारी
सचिन के गुरु श्री आचरेकर जी और मार्गदर्शक संजय जगदाले जी गर्व कर सकते हैं कि सभ्रांत लोक के भद्र आचरण और मान्य सिद्धांतों को आचरण में अंगीकृत करने में उनका परम शिष्य सचिन सदा सफल रहा। लक्ष्य के प्रति फोकस,कभी अधीर न होना,अनुशाशन और समर्पण ,विरोधियों का भी सम्मान ,टीम - भावना, निश्छलता और विनम्रता इत्यादि गुणों के धनी सचिन को देश के युवाओं ने शानदार विदाई दी है ! भारत सरकार ने' भारत रत्न' सम्मान दिया है यह भारतीय क्रिकेट को इक्कीस तोपों की सलामी से कम नहीं और खेल जगत के लिए तो यह स्वर्णिम काल भी कहा जा सकता है! जिसके मुख्य शिल्पकार सचिन सुरेश तेंदुलकर ही हो सकते हैं। अब यदि ब्रिटेन की संसद उन्हें कोई ऊँची उपाधि देकर सम्मानित करे तो कोई आश्चर्य नहीं! अमेरिका की सीनेट यदि अपने राष्ट्रीय सम्मान से नवाजे या आई सी सी उन्हें किसी खास सम्मान से सम्मानित करने का प्रस्ताव करती है तो कोई आश्चर्य नहीं ! ये विश्व सम्मान तो उनके लिए नज़ीर है जो अपने गरीब और पिछड़े देश की अधोगामी आर्थिक -सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था के दौर में भी ईमानदारी और सच्चरित्रता से सफलता की ऊंचाइयों को छूना चाहते हैं। निसंदेह आगामी पीढ़ी सचिन तेंदुलकर से न केवल क्रिकेट के खेल का बल्कि मानवीय मूल्यों के अनुशीलन का पाठ भी सीखना चाहेगी। सार्वजनिक जीवन में शुचिता का अनुपालन कैसे किया जाता है ?यह भी भावी पीढ़ी को सचिन तेंदुलकर से सीखना चाहिए !
वेशक सचिन को 'भारत रत्न' दिए जाने के कुछ राजनैतिक निहतार्थ भी हो सकते हैं। भृष्टाचार के विभिन्न आरोपों, प्रशासनिक नाकामयाबियों और कदाचरण की बदनामियों से घिरी केद्र की मनमोहन सरकार की आगामी लोकसभा चुनावों में महा पराजय की पूरी -पूरी सम्भावनाएं हैं। हालांकि एनडीए, वाम मोर्चा और तीसरे मोर्चे सहित सम्पूर्ण विपक्ष भी बुरी तरह बिखरा हुआ है. उनके पक्ष में भी कोई लहर नहीं है इसलिए कांग्रेस के 'इंतजाम अली'अभी भी आशान्वित हैं कि यूपीए-३ की सरकार बनाये जाने की सम्भावनाएं यदि नहीं भी हैं तो भी वे एन-केन प्रकारेण पैदा की जा सकती है ! चूँकि कांग्रेस को अच्छी तरह मालूम है कि भारत का अधिसंख्य जनमानस भावुक और क्षमाशील है, इसलिए कुछ सामाजिक ,सांस्कृतिक फ़िल्मी हस्तियों क्रिकेट खिलाडियों और धर्मनिरपेक्ष शख्सियतों को अपनी छतरी के नीचे लाकर, कांग्रेस रुपी वृद्ध एवं मुरझाये वट वृक्ष में नयी कोंपलें पनपने की आशा की जा सकती है। इसी उद्देश्य से ये भारत रत्न,पद्म भूषण या पद्मश्री जैसे सम्मान के प्रतीक याने तमगे लुटाये जा रहे हैं !
लेकिन 'भारत रत्न' जैसा सर्वोच्च सम्मान दिए जाने का मतलब सौदेबाजी कदापि नहीं है ! हालांकि इस सम्मान में भी वर्गीय राजनैतिक हित ,संस्थागत सुरक्षा और अंतर्निहित भावनात्मक पक्ष सदाशयता से अवश्य जुड़ा हुआ हो सकता है। जिस तरह संघ परिवार और भाजपा के नेता अक्सर हिंदुत्व्वादी साधुओं , बाबाओं,सध्ध्वियों और मठाधीशों को यों ही साष्टांग दंडवत नहीं करते रहते बल्कि वक्त आने पर वे उसकी भरपूर कीमत भी वसूलते हैं। जब संसदीय या विधान सभा चुनाव आते हैं तो ये साधू सन्यासियों की फौज भी काम पर लग जाया करती है।रामदेव ,आसाराम ,रविशंकर और अशोक सिंघल यों ही अपनी जिदगी नहीं खपा रहे हैं। ये सभी संघ परिवार के गैर पेशेवर राजनेतिक कार्यकर्ता और परोक्ष 'काडर ' हैं। इसी तरह कांग्रेस सिर्फ उतनी ही नहीं है जितनी प्रतिपक्षियों को नजर आती है ,बल्कि उसका रूप और आकार उसके 'वर्ग चरित्र' और इतिहास के अनुरूप अदृश्य रूप से फैला हुआ है। भले ही उसमें संगठन स्तर पर 'फ्री एंड फेयर डेमोक्रेटिक फंक्शनिंग' का अभाव है किन्तु उसका शीर्ष नेतत्व दुनिया के सर्वाधिक शक्तिशाली नेतत्व में शुमार किया जाता है।
कांग्रेस का उसका अंदरूनी सहयोगी ताना -बाना बिखरा हुआ है । लेकिन जब -जब कांग्रेस पर संकट आया है ,उसके बौद्धिकों ने अतीत में यही सब किया है ! कभी मुस्लिम उत्थान, कभी दलित उत्थान ,कभी गरीबी हटाओ , और कभी 'हो रहा भारत निर्माण ' के सहारे केंद्र की सत्ता में कांग्रेस जो अब तक जमी हुई है उसका एक महत्वपूर्ण काऱण उसका यही संवेदनात्मक चुनावी व्यवस्थापन भी है । चूँकि इस दौर में संचार और सूचना प्रौद्द्गिकी के चलते, युवा जन-चेतना में आकांक्षाओं की सुनामी ने विराट रूप धारण किया हुआ है ,इसलिए कांग्रेस को कुछ नए और आकर्षक भावनात्मक हथकंडों की तलाश है. चूँकि आगामी चुनावों में , सत्ता प्राप्ति में सम्भावित २-३ प्रतिशत मतों के आ रहे अंतर को पाटने की मशक्कत के लिए सभी राजनैतिक -गैर राजनैतिक उपाय आजमाए जा रहे हैं । जिसमें 'भारत रत्न ' जैसा अमोघ अश्त्र भी शामिल है। कांग्रेस के रणनीतिकारों की सोच है कि कुछ ऐंसा किया जाए कि खिसकते जनाधार को स्थिर किया जा सके। बाकी का काम तो उसकी धर्मनिरपेक्षता की पगड़ी ,परम्परागत जनाधार का जामा और राष्ट्रव्यापी 'सेट-अप' के अश्त्र-शस्त्र से हो ही जाएगा।
इसीलिए एन आम चुनावों की पूर्व वेला में और पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के दरम्यान , कांग्रेस और यूपीए ने ब्र्ह्मास्त्र के रूप में श्रेष्ठ क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को और देश के शीर्ष वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर चिंतामणि नागेश रामचंद्रन राव को 'भारत रत्न' प्रदान किया है। इस राष्ट्रीय सर्वोच्च नागरिक सम्मान द्वारा इसकी स्थापना से लेकर अब तक दर्ज़नों लोग महिमामंडित किये जा चुके हैं. किन्तु सचिन को सम्मान दिए जाने के बाद इस सम्मान की चर्चा अब हर उस गली मुह्ह्ल्ले में हो रही हैं जहां छोटे-छोटे बच्चे भी टूटी -फूटी ईंट के विकेट और कबाड़ के बल्ले से क्रिकेट खेला करते हैं। कभी -कभी लगता है कि 'भारत रत्न' के सम्मान ने सचिन को सम्मान दिया है या कि सचिन को दिए जाने पर 'भारत रत्न' गौरवान्वित हो रहा है।केंद्र की यूपीए सरकार ने सचिन को सम्मानित कर कुछ तो राजनैतिक बढ़त हासिल की है।
प्रोफैसर रामचन्द्रन राव जो पहले से ही प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार हैं और "सॉलिड स्टेट एंड मटेरियल्स केमिस्ट्री "के अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतकार भी रहे हैं । उन्हें भारत रत्न देकर यूपीए-२ और केंद्र सरकार ने निसंदेह 'भारत रत्न' का ही मान बढ़ाया है। यह सम्मान मिलने पर प्रोफ़ेसर रामचंद्रन राव अपनी प्रतिक्रिया देने में ज़रा गच्चा खा गए। किन्तु सचिन तेंदुलकर को 'भारत रत्न' दिए जाने से उन्हें कोई घमंड या श्रेष्ठता का दम्भवोध नहीं व्याप सका। सचिन को 'भगवान्' मानने वालों से मुझे बेहद चिड़ है किन्तु जब सचिन के सम्पूर्ण व्यक्तित्व ,क्रिकेट से परे मर्यादित आचरण,विनम्रता और भारतीय मूल्यों के प्रति आस्था देखता हूँ तो मन कहता है कि क्या सचिन मर्यादा पुरषोत्तम नहीं है ?जिस सचिन ने १५ साल की उम्र में अपने देश में और १७ साल की उम्र में तमाम 'राष्ट्रमंडल ' देशों में धूम मचा दी जिस सचिन ने क्रिकेट जगत के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए , जिस सचिन ने सैकड़ों बार भारतीय क्रिकेट टीम को संकट से उबारा ,जिस सचिन ने कभी किसी दाऊद के आगे सर नहीं झुकाया , कभी किसी सटोरिये को घास नहीं डाली, कभी किसी मेच फिक्सिंगः का हथकंडा नहीं अपनाया वो सचिन क्या वास्तव में आम आदमी से कुछ ऊपर नहीं है ? यदि किसी को क्रिकेट में या फिल्मों में एक -दो चांस मिल जाएँ और खिलाड़ी या हीरो कुछ जम जाए तो आसमान में उड़ने लगता है। लड़का है तो शरीफ लड़कियों को बर्बाद करने के लिए हरामीपन की हद तक चला जाता है.लड़की है तो अमेरिका ,इंग्लेंड, पाकिस्तान या दुबई में रंगरेलियां मनाने पहुँच जायेगी। किन्तु सचिन ने अपने माँ-बाप और कुल खानदान का नाम तो रोशन किया ही साथ ही भारतीय पारम्परिक मर्यादाओं का मान रखा इसलिए वे यदि 'कुछ लोगों के लिए 'भगवान्' हैं तो गलत नहीं !
सचिन के फेन हम जैसे क्या खाक होंगे जो क्रिकेट का ककहरा भी नहीं जानते। किन्तु हमें फक्र है कि हम सचिन के समकालीन हैं ,सचिन के व्यक्तित्व और कृतित्व के साक्षी हैं। हम जिनके चेले रहे हैं वे प्रभाष जोशी भी सचिन को 'भगवान्' ही मानते थे। वे सचिन के शानदार प्रदर्शन और सचिन की बेहतरीन खेल भावना के कारण ही क्रिकेट के दीवाने हो गए थे। यह सर्वविदित है कि सचिन का क्रिकेट देखते-देखते ही प्रभाष जोशी इस संसार से विदा हो गए थे। हम यदि कभी -कहीं सचिन तेंदुलकर की लफ्जों से कुछ तारीफ़ कर रहे होते हैं तो लगता है कि हम कोई 'देशभक्तिपूर्ण कार्य' कर रहे हैं । सचिन होना याने भगवान् होना भले ही अतिश्योक्तिपूर्ण हो किन्तु सचिन होना वास्तव में देशभक्तिपूर्ण होना तो अवश्य है।
सचिन को भारत रत्न दिए जाने के बाद न केवल राजनैतिक फ़तवेबाज़ी शुरूं हो गई है बल्कि देश और दुनिया में इस सन्दर्भ में भारी मतभेद भी उभरकर सामने आये हैं । ये मतभेद सचिन की लायकी या उनकी योग्यता के परिप्रेक्ष्य में कम किन्तु केंद्र की मनमोहन सरकार के 'नेक' इरादों के संदर्भ में ज़रा ज्यादा ही उमड़ -घुमड़ रहे हैं।कुछ लोगों को लगता है कि पहले राज्य सभा में भेजकर और अब 'भारत रत्न' से सचिन को सम्मानित कर कांग्रेस ,राकपा और यूपीए ने राजनैतिक बढ़त हासिल की है। कुछ लोगों को लगता है कि प्रधानमंत्री डॉ मनमोहनसिंह और केंद्र सरकार ने इस दौर के क्रिकेट प्रेमियों ,खेल प्रेमियों ,युवाओं और सचिन प्रेमियों को लुभाने और मतदाताओं का दिल जीतने की बेहतरीन कोशिश की है. यदि यह सच भी है तो इसमें क्या गलत है ? क्या अच्छे और महान लोगों को राजनीति से जोड़ना कोई गलत बात है ?क्या सचिन के राजनीती में आने से देश को खतरा है ? यह जरूरी भी नहीं की सचिन सक्रिय राजनीति में उतरेंगे ही । फिर भी कांग्रेस ने यदि सचिन को आनन्-फानन यह सम्मान दिलाया है तो कुछ तो उम्मीद की ही होगी! कांग्रेस की इस आशावादिता में बुरा कुछ नहीं है। हो सकता है कि सचिन रुपी एक बूँद अमृत से मृतप्राय कांग्रेस पुनर्जीवित हो उठे। यदि सचिन जैसे अच्छे लोग राजनीति में आयेंगे तो क्या देश का भला नहीं होगा ? कांग्रेस को फायदा होने की आशंका से भाजपा ,मोदी और संघ परिवार भी सचिन को 'भारत रत्न' दिए जाने का लगे हाथ स्वागत कर रहे हैं । किन्तु दबी जुबान से यह भी कहा जा रहा है कि अटलजी को भी भारत रत्न दिया जाना चाहिए था । उनकी इस मांग पर गौर किया जाये तो सूची बहुत लम्बी हो जायेगी। क्योंकि अटलजी से बड़े दीनदयाल उपाध्याय थे ,उनसे बड़े स्यामाप्रसाद मुखर्जी थे ,उनसे बड़े गोलवलकर थे और उनसे भी बड़े हेडगेवार थे। उनसे भी बड़े बाजीराव पेशवा थे ,उनसे भी बड़े छत्रपति शिवाजी थे ,उनसे भी बड़े समर्थ रामदास थे । उनसे बड़े महाराणा प्रताप थे ,उनसे बड़े कृष्ण थे ,उनसे बड़े श्रीराम थे और उनसे भी बड़े उनके पिता दशरथ थे। उनसे बड़े उनके बाप'अज' थे ,उनसे भी बड़े उनके बाप दिलीप थे और उनसे बड़े उनके बाप रघु थे। इन सबसे बड़े इनके गुरु वशिष्ठ थे. ये सभी एक बार नहीं लाख बार 'भारत रत्न' के हकदार हैं कि नहीं ? अब बोलो इन सबको कब कहाँ 'भारत रत्न दिया जाए ?
वेशक ! खेलों में हाकी के जादूगर दद्दा ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग करने वालों का मैं भी समर्थक हूँ। लेकिन मुझे मालूम है कि सूरज को किसी की उधार रौशनी नहीं चाहिए । ध्यानचंद तो भारत रत्न से भी महान हैं। आजकल के खिलाड़ी भले भी वे कितने ही महान क्यों न हों! महानतम खिलाड़ी ध्यानचंद की बराबरी नहीं कर सकते! फटे जूतों में ,गुलाम राष्ट्र का क्रांतिवीर ध्यानचंद जब जर्मनी में १५-अगस्त १९३६ के रोज हॉकी के मैदान में गोल पर गोल दागता है और दर्शक दीर्घा से एडोल्फ 'हिटलर ' भी ताली बजाने को मजबूर हो जाता है तो मेरे रोम-रोम में सिहरन उठती है ! अंतःकरण से आवाज आती है कि - 'मेजर ध्यानचन्द अमर रहे ! मेजर ध्यानचंद -जिन्दावाद !! तुम पर लाखों 'भारत रत्न' निछावर !!
राजनैतिक नफ़ा -नुक्सान के आधार पर सरकार की सोच हो सकती है कि महान हाकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को सम्मान देने से शायद केंद्र की सत्तारुढ़ गठबंधन सरकार को कोई राजनैतिक फायदा नहीं होगा। लेकिन यदि वह मेजर ध्यानचंद को सचिन से पहले 'भारत रत्न ' दे देती तो न केवल राजनैतिक फायदा होता बल्कि यूपीए-२ और मनमोहन सरकार इतिहास में अमर हो जाती। खैर इस संदर्भ में खेल मंत्री और केंद्र सरकार ने अभी तक जितनी कोशिश की है और शायद आगे वो अपनी भूल सुधार कर भी ले तो भी अब तो यही कहा जा सकता है कि 'रहिमन फाटे दूध का माथे न माखन होय' !
चुनावी वर्ष में वेवक्त 'भारत रत्न' या अन्य सम्मान पदक प्रदान करने या लाभ के किसी पद पर किसी व्यक्ति को बिठाने से यह कहना मुश्किल है कि आगामी लोक सभा चुनाव में इससे कांग्रेस ,राकपा और यूपीए को कितना राजनैतिक फायदा होगा? इसी उद्देश्य के मद्देनजर यूपीए सरकार ने प्रख्यात फ़िल्म गायिका लता मंगेशकर को भी 'भारत रत्न' दिया था और उम्मीद भी लगा रखी थी कि कांग्रेस और यूपीए को लता जी से कुछ राजनैतिक लाभ याने आशीर्वाद अवश्य ही मिलेगा । किन्तु राजनैतिक ज्ञान से शून्य लता जी ने कांग्रेस को कोई खास महत्व नहीं दिया। उन्होंने जब अपने चरणों में साष्टांग दंडवत कर रहे मोदी को 'प्रधान मंत्री भव ' कहा तो कांग्रेसी खेमे में बैचेनी होना स्वाभाविक थी। उस बैचेनी का परिणाम जल्दी ही सामने आ गया और सचिन तेंदुलकर 'भारत रत्न' हो गए। हालाँकि लता का मोदी को दिया गया यह आशीर्वाद भारतीय परम्परा का एक प्रतीक मात्र है। भारतीय परम्परा में बड़े-बूढ़े इस तरह का आशीर्वाद तो दुश्मनों को भी दे देते हैं. वशर्ते वो दुश्मन 'शरणम् गच्छामि' हो चूका हो !लोग यह भी कहते नहीं चूकते कि कांग्रेसियों को सिर्फ एक परिवार[गांधी परिवार] की चिरोरी करना ही आता है. इसलिए अन्य माननीयों,भारत रत्नों ,परम वीर चक्र - धारियों को संभालने का उन्हें वो हुनर नहीं आता जो संघ परिवार का पसंदीदा शगल रहा है। कहा जा रहा है कि लताजी ने भारत रत्न को खूंटी पर टांगकर कांग्रेस को चिढ़ाने की कोशिश की है।कांग्रेस के जिन 'समझदारों' ने लता मंगेशकर को 'भारत रत्न ' दिए जाने की सिफारिश की होगी उन्हें अपने किये पर पछतावा हो रहा होगा।
कुछ लोगों का कहना है कि लता जी राजनैतिक समझ बूझ से दूर हैं और भोलेपन या वातसल्य वश ही उन्होंने मोदी को "प्रधानमंत्री भव '' का आशीर्वाद दे डाला होगा! अब लाख टके का सवाल ये है कि क्या 'भारत रत्न ' देना एक राजनैतिक सौदेबाजी है ? क्या सरकार सम्मान मुँह देखकर देती है ? यदि हाँ! तो जिसे तोका गया वो तो धोखा दे गई ! यदि न कहते हो तो ! फिर लता जी ने नरेंद्र मोदी को आशीर्वाद क्यों दिया ? यदि कोई ये विचार रखता है कि इसमें राजनीति कहाँ से घुस आई ? तो ऐंसे तटस्थ व्यक्ति को साधुवाद !उसे चाहिए कि लता जी को जाकर कहे कि दीदी आप तो सबकी हैं !देश की हैं ! हिंदु-मुसलमान- सिख -ईसाई -जैन-बौद्ध और पारसी -सबकी हैं ! फ़िल्म जगत की पूँजी हैं! एक भारतीय आत्मा हैं ! आपको क्या पडी कि कहने लगीं आ बैल मुझे मार! यानि फ़ोकट में बोल दिया कि 'नमो' प्रधान मंत्री भव ! अब कांग्रेस को ,शिव सेना को और राकापा याने शरद पंवार को आशीर्वाद देने से मना कर पाएंगी क्या ? नहीं ! बल्कि सोनियाजी,राहुल गांधी, मनमोहनसिंह ,नीतीश ,मुलायम सीताराम येचुरी ,मायावती या वृंदा कारात भी लताजी को नमन करेंगे तो उन्हें भी शायद यही आशीर्वाद मिलेगा कि 'प्रधान मंत्री भव् ' ! वशर्ते लताजी को एडवांस सूचित कर दिया जाए कि किसकी क्या ख्वाइश है ?जैसा की मोदी समर्थकों ने इंतजाम किया कि उनकी यह पवित्र[?] अभिलाषा है। जबसे लताजी ने मोदी को आशीर्वाद दिया है तभी से कांग्रेसी खेमें में यह कोशिश चल रही थी कि महाराष्ट्र में किसी दूसरे गैर पेशेवर राजनैतिक व्यक्तित्व के बहाने डेमेज कंट्रोल किया जाए। कोई ऐंसा नाम उभारा जाए जो लता मंगेशकर की चमक से भी ज्यादा आकर्षक हो। सचिन इस शर्त को पूरा करने के लिए बेहतर विकल्प सावित हुए !
चूँकि इस दौर में क्रिकेट प्रेमियों के दिलों में भगवान् बन चुके सचिन तेंदुलकर का अपने क्रिकेट जीवन से संन्यास लेने का भी ऐलान किया जाना प्रस्तावित था। अतः इस मौके पर स्वयं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मुम्बई के बानखेड़े स्टेडियम पहुंचकर न केवल सचिन का हौसला आफजाई किया अपितु उनके कान में यह बात भी एडवांस में डाल दी कि अब आप भी 'भारत रत्न' होने जा रहे हैं।बधाई! राहुल और कांग्रेस की यह सकारात्मक किन्तु सकाम चेष्टा भविष्य में क्या अवदान देगी इसका आकलन करना कठिन नहीं है. किन्तु यह राजनैतिक विमर्श का विषय जरुर है. इस आलेख की अंतर्वस्तु का अभिन्न अंग होते हुए भी इसे यहाँ उल्लेखित कर पाना आलेख के कलेवर की दॄष्टि से सम्भव नहीं है।चूँकि भारत रत्न या कोई मानद उपाधि शासक वर्ग द्वारा तभी दी जाती है जब वो व्यक्ति विशेष न केवल उसके काबिल हो बल्कि अपने सम्मान प्रदाताओं के प्रति कृतज्ञता का भाव भी रखता हो ! ये मानद उपाधियों की चोंचलेबाजी हम भारतीयों को ही नहीं बल्कि उन तमाम राष्ट्रों को जो कामनवेल्थ के पुछल्ले याने ब्रिटिश साम्राजयवाद के भूतपूर्व गुलाम हैं- उन सभी को अपने अंग्रेज हुक्मरानो से विरासत में मिली है। जो लोग आजादी के बाद इस भारत रत्न या अन्य पदकों के लिए लालायित हैं वे समझ लें कि ये ब्रिटिश राज में सर ,सेठ,नगरसेठ,लम्बरदार , रायबहादुर ,राजा ,नाइट,प्रिंस आफ फलाँ -फलाँ और प्रिंसेस आफ फलाँ -फलाँ इत्यादि लालीपापों से नवाजे जाते थे। ताकि तत्कालीन लुटेरे शासक वर्ग के हाथों की कठपुतली बनकर वफादारी सावित करते रहेंऔर अपने ही हमवतन साथियों पर जुल्म और अन्याय कर सकें। देश के साथ गद्दारी कर सकें। किसी -किसी को तो अपने ही देश के मेहनतकश लोगों को जान से मार डालने की भी छूट थी। याने 'तीन खून माफ़' नामक पदवी भी प्राप्त हुआ करती थी। ये पदक खास तौर से पूंजीपतियों ,सामंतों और उन हिन्दुस्तानियों को दिए जाते थे जो ब्रिटिश साम्राज्य के पालतू हुआ करते थे। ये पदक और मानद उपाधियाँ शहीद भगत सिंह ,चंद्रशेखर आजाद ,बिस्मिल ,सुभाष चन्द्र बोस , पंडित नेहरू , मौलाना आजाद ,सरोजनी नायडू या महात्मा गांधी को नहीं बल्कि कौम के गद्द्दारों को दिए जाते थे । फौजी सम्मान भी उन्हें ही दिए जाते थे जो देश और दुनिया में अंग्रेज कौम के लिए अपनी जान देते थे। आजाद भारत के अधिकांस पदक ,सम्मान और प्रतीक चिन्ह - भारत रत्न ,पदम् विभूषण ,पदमश्री इत्यादि सभी खटराग गुलाम भारत की परम्पराओं के आधुनिक भारतीय संस्करण मात्र हैं। इनके मिलने या न मिलने से किसी बेहतरीन व्यक्तित्व की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ता ! फिर भी सरकार और समाज की अभिरुचि को प्रकट करने के माध्यम तो ये अवश्य हैं !
वेशक ! महाराष्ट्र और मुम्बई ही नहीं सम्पूर्ण भारत में तो क्रिकेट के हीरो सचिन ही हैं। वे किसी भी राष्ट्रीय क्या अंतर्राष्ट्रीय सम्मान के हकदार हैं। इसीलिये यदि सरकार ने उन्हें भारत रत्न से नवाजा है तो यह उसका एक शानदार कदम है। सचिन को न केवल भारत में ,न केवल राष्ट्रमंडल देशों में बल्कि इंग्लेंड ,अमेरिका और ब्राजील समेत सारी दुनिया में भी वाहवाही मिल रही है। क्रिकेट की लोकप्रियता और उसकी अनुगूँज जहाँ - जंहाँ तक है सचिन तेंदुलकर के करिश्माई व्यक्तित्व और क्रिकेट में उनके द्वारा स्थापित किये गए कीर्तिमानों की धूम भी वहाँ-वहाँ तक मची हुई है। वेशक सचिन से भी कई भूलें और चूकें हुईं होंगी ,कुछ प्रतिष्पर्धी ,मित्र और क्रिकेट से जुड़े लोग या साथी खिलाड़ी नाराज भी रहे होंगे। हो सकता है सचिन राजनीती में आये और मुक्केबाज मुहम्मद अली , क्रिकेटर इमरान खान ,हॉकी खिलाड़ी असलम, शेरखान या फुटवालर - मेराडोना की तरह असफल हो कर गुमनामी के अँधेरे में को जाएँ ! हो सकता है कि उन्हें मिले भारत रत्न से किसी को ईर्षा या दुःख भी पहुंचा हो! किन्तु यह नितांत सत्य है कि सचिन ने शायद ही कभी जान बूझकर किसी के साथ कोई गलत व्यवहार किया हो ! उन्होंने क्रिकेट के मैदान में मानवीय मूल्यों को परवान चढ़ाया,अपने व्यक्तित्व् को काजल की कोठरी में भी दागदार होने से बचाया। सचिन का यह अवदान मानवता के लिए चिर स्म्रणीय रहेगा । सचिन का क्रिकेट जीवन से सन्यास अभी तो सिर्फ एक अल्प विराम है ,अभी तो उन्हें राष्ट्रीय पटल पर देश हित में पूरा पेज लिखना है !उम्मीद है वे इसमें भी खरे उतरेंगे ! आमीन !
श्रीराम तिवारी
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