सोमवार, 18 नवंबर 2013

मध्यप्रदेश में चुनावी घमासान !सड़क, बिजली और विकाश के दावे झूंठे !

       



मध्यप्रदेश में  नई  सरकार १२-१२ -२०१३ को बनेगी। २५ नवम्बर -२०१३ को वोट पड़ेंगे।  ८ दिसंबर को  चुनाव परिणाम आयेंगे याने उम्मीदवारों के  भविष्य का फैसला होगा। सट्टा  बाजार की ताकतें बता रहीं हैं कि वेशक कांग्रेस और भाजपा का  मुक़ाबला  टक्कर का है , किन्तु  भाजपा की सम्भावनाएं फिर भी ज्यादा हैं । मध्यप्रदेश में कई जगहों पर मुकाबला सीधा नहीं है ,प्रदेश  में ३६ सीटें ऐंसी  हैं जहाँ भाजपा और कांग्रेस की नींद उड़ चुकी  है. यहाँ तीसरे मोर्चे -बसपा,सपा,माकपा, भाकपा ,गोंगपा  जदयू और भाजपा -कांग्रेस के  विद्रोही ताकतवर उम्मीदवार फैसला  करेंगे कि मामूली अंतर से वे  या तो स्वयं  जीत सकते हैं या  भाजपा और  कांग्रेस में से  किसी का भी  सूपड़ा -साफ़ कर सकते हैं । भाजपा के एकतरफा विज्ञापनों में उसके दस साल बनाम कांग्रेस के पचास साल का प्रचार किया जा रहा है। लगता है  कि मोदी की  तरह ही  शिवराज का सामान्य ज्ञान भी लचर और उथला ही है । इसीलिये वे मोदी के  गुजरात मॉडल की तरह केवल दुष्प्रचार में संलग्न हैं।  वे अपने गुरु सुंदरलाल पटवा,कैलाश जोशी ,वीरेन्द्रकुमार सकलेचा और 'जनसंघ' के दौर की संविद सरकार  के  संघर्षशील  कार्यकाल सहित  लगभग १७ सालों  को या तो जान बूझकर विस्मृत कर रहे  हैं, या फिर बाकई शिवराज को मध्यप्रदेश के राजनैतिक इतिहास का ज्ञान ही  नहीं है। जिन  दस सालों  का बखान करने  करने के लिए ,चुनावी दुष्प्रचार में - मध्यप्रदेश में शिवराज द्वारा जनता का  करोड़ों रुपया  पानी की तरह बहाया जा रहा है वो सब कुछ तो जमीन पर सबके सामने  बयाँ  हो  रहा है।
           भले ही शिवराज और भाजपा बार-बार  दिग्विजय सिंह के  नकारात्मक दस साल वाले कार्यकाल को  याद  कराते हुए उन्हें 'वंटाढार ' निरूपित कर रहे हों किन्तु वे प्रकारांतर से दिग्विजय सिद्धांत -
             "चुनाव तो मेनेज करके जीते जाते हैं काम करके नहीं''
         पर ही चल रहे हैं। तभी तो दनादन सैकड़ों घोषणांए ,हजारों शिलान्याश ,और लाखों वादे आनन फानन किये जा रहे हैं। जनता में फुसफुसाहट है कि जो  दस साल में नहीं कर पाये  वो  अब क्या खाक करेंगे।  केवल केंद्र सरकार की असफलता या सब्जियों की महंगाई का ही  सहारा है। इसके अलावा मध्यप्रदेश में  सत्ता पक्ष  के  एंटीइनकम्बेन्सी  फेक्टर को डायलूट करने के लिए 'आरएसएस' का जबर्दस्त नेटवर्क भी  है। ढपोरशंख प्रचार माध्यम ,जरखरीद मीडिया और ढेरों विज्ञापन चीख -चीख कर  बता रहे हैं कि  शिवराज सरकार के पास उपलब्धि के नाम पर रुसवाई और असफलताओं  के अलावा कुछ नहीं है।
                         चूँकि कांग्रेसी आपस में सर फुटौवल में लिप्त हैं , चूँकि उनका दिग्गी राज भी निराशाजनक रहा था  इसलिए भाजपा की उम्मीदें बरकरार हैं। बची - खुची कसर केंद्र सरकार याने - डॉ मनमोहन सिंह की यूपीए -२ सरकार ने भी  पूरी कर  ही दी है। याने  भाजपा  और शिवराज की तमाम नाकामियों और बदनामियों के वावजूद मध्यप्रदेश में कांग्रेस की  वापिसी अभी तक तो दूर ही लग रही है। मध्यप्रदेश में भाजपा की हालत कितनी पतली है यह  भाजपा वाले भी बखूबी जानते हैं। दो उदाहरण काफी हैं शिवराज और  उनकी सरकार की  विकाशवादी  असलियत बताने के लिए :-

घटना -एक :-
                       श्रीमती सुषमा स्वराज   १७ नवम्बर को ग्वालियर के भितरवार  क्षेत्र में चुनावी आम सभा अटेंड  करने पहुँची।  हेलीकाप्टर के अलावा जितनी देर वे जमीन पर या  कार  में सड़क पर चलीं उतनी देर तक  न केवल  गढ्ढों को कोसती रहीं अपितु  मन ही मन  शिवराज सरकार  और मध्यप्रदेश  के  लोक निर्माण विभाग  को  ही कोसतीं  रहीं।  वे मंच पर शिवराज सरकार को विकाश की सरकार ,गरीबों की सरकार,कन्याओं भानजे-भांजियों की सरकार, किसानों की मजदूरों की सरकार  न जाने किस किस की  सरकार बताती  रहीं ,किन्तु जब मंच से उतरकर  कार में  बैठीं  तो कराह उठीं।  वे अपनों से ही छुब्ध लग रहीं थीं।  शायद अपने असत्य कथन पर शर्मिन्दा भी होतीं होंगी ! क्योंकि मध्यप्रदेश में सड़कों कि हालत जितनी बुरी है उतनी दुर्गति   तो  बिहार ,यूपी या राजस्थान में  भी नहीं है।सड़कों के बड़े-बड़े  गड्ढे  सुषमाजी को सपने में भी दो-चार दिन तक दिखाई  देंगे ही । वशर्ते वे किसी सड़क दुर्घटना का शिकार न हो जाएँ। ईश्वर  करे वे सही सलामत दिल्ली पहुंचें। क्योंकि  देश को उनकी  सेवाओं की बहुत जरुरत है ,खास तौर  पर तब, जब कि आगामी लोक सभा चुनाव में यदि एनडीए अलायंस ने   मोदी को समर्थन देने के बजाय भाजपा से किसी सेकुलर  चेहरे की मांग कर डाली तो सुषमा जी से  बेहतर-धर्मनिरपेक्ष  चेहरा भाजपा और संघ परिवार में  कौन हो सकता है ? लेकिन यदि मध्यप्रदेश में या केंद्र में भाजपा को शिकस्त मिली तो  उसमें   शिवराज का झूंठा   विकाशवादी वितंडावाद , करप्शन, मध्यप्रदेश में सड़क-बिजली -पानी का अभाव  और क़ानून व्यवस्था की खस्ता हालत  जरुर याद की जायेगी ! नमूने के तौर  पर  ही इन  घटनाओं का एडवांस जिक्र  किया जा रहा है ताकि भविष्य में काम आ सके !

 घटना -दो :-

            मध्यप्रदेश  भाजपा के भूतपूर्व अध्यक्ष -राज्य सभा सांसद  श्री प्रभात झा इंदौर के पास देपालपुर में  भाजपा की चुनावी  आम सभा को सम्बोधित कर रहे थे।  रात के नौ बज चुके थे। हल्की -हल्की ठण्ड पड़ने लगी  तो लोग इधर -उधर खिसकने लगे।  देपालपुर में कांग्रेस के कद्दावर नेता सत्यनाराणयन  पटेल का वहाँ वर्चस्व होने से भाजपा की आम सभा में  श्रोताओं का  पहले से ही टोटा  था। चूँकि भाजपा पैसे वालों की  और व्यापारी वर्ग की पसंदीदा  पार्टी है इसलिए यह चुनावी आम सभा  भी बीच बाजार में ही रखी गई  थी।  आचार संहिता के खौफ से सभी वक्ता अपना -अपना भाषण  जल्दी -जल्दी समाप्त कर रहे थे।  प्रभात झा  प्रमुख वक्ता थे। प्रभात जी ने अपने सम्बोधन में केंद्र सरकार की नाकामियों और शिवराज सरकार की अनेक उपलब्धियां  गिनाईं। उन्होंने  राज्य सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को  बखूबी रेखांकित किया और कहा कि शिवराज सरकार ने ये किया! वो किया !  हालाँकि  सब जानते हैं कि ये शिवराज ही थे जिन्होंने प्रभात झा को बड़ी बेरहमी से अपमानित कर 'अध्यक्ष ' पद से महरूम  करवाया  था। फिर भी प्रभात झा शिवराज का गुणगान करते हुए  जब बोलने लगे  कि शिवराज ने मध्यप्रदेश में २४ घंटे बिजली की आपूर्ती  का वादा पूरा किया है  ,ठीक तभी बिजली चली गई !  बिजली जो गई तो  एक घंटे तक नहीं आई। तब तक रात  के दस बज चुके थे याने आदर्श आचार संहिता का खौफ सर चढ़कर बोलने लगा ! फिर सभा विसर्जित हो गई !प्रभात जी  भी वही अनुभव  कर  रहे होंगे! जो  सुषमा जी ने ग्वालियर में अनुभव किया होगा ! शिवराज भी अनुभव कर रहे हैं तभी तो चुनाव जीतने के लिए धरती आसमान एक किये हुए हैं।      

                    मैं  मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के जिस क्षेत्र में रहता हूँ  वहाँ के भाजपा  नेता-दो नंबरी कहलाते हैं। यह  द्विअर्थी सम्बोधन है जो आलोचकों को और  प्रशंसकों -दोनों को ही भाता है। वास्तव में यह  क्षेत्र कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान -मिल क्षेत्र कहलाता था। यहाँ कामरेड होमी ऍफ़ दाजी के नेत्तव में  वाम मोर्चे का वर्चस्व था। गुलजारीलाल नंदा,वी वी द्रविण,रामसिंह भाई   और इंटकइयों  ने मिल मालिकों से मिलकर कम्युनिस्टों को  लगभग खत्म कर दिया था ।  यह  क्षेत्र १० साल पहले धूल ,धुँआ ,धुंध और अपराधों के लिए जगतविख्यात था।  यहाँ श्रमिक वर्ग की कच्ची  चालें याने गंदी बस्तियाँ  हुआ करती थी । मजदूर पुत्र किन्तु 'संघनिष्ठ' कैलाश विजयवर्गीय  जब पहली बार महापौर बने तो उन्होंने इस क्षेत्र को विकाश के रास्ते आगे बढ़ाने की कोशिश की।  स्वाभाविक है कि उनका और उनकी मण्डली का भी खूब 'विकाश' हुआ है।  विगत १० साल में  उनकी टीम ने इस क्षेत्र को मध्यप्रदेश में अव्वल बना दिया है। चौतरफा विकाश हुआ और यह क्षेत्र  भू माफिया रियल स्टेट ,हवाला  घोटाला,पेंसन घोटाला ,ह्त्या -लूट डकेती और बलात्कार  में  भी अव्वल  हो गया।  इस क्षेत्र का महत्व इस उदाहरण से आंका जा सकता है कि भारत के सबसे बड़े पूँजीपति  याने मुकेश अम्बानी और उनकी धर्मपत्नी नीता अम्बानी ने इसी  क्षेत्र में - इंदौर विकाश प्रधिकरण से  एक बड़ा भूखंड २६७ करोड़ में  खरीदा है। 
                                इस  महानगर के नौ विधान सभा क्षेत्रों  में से  -विधान सभा क्षेत्र क्रमांक -दो  की महिमा  सारे जग से न्यारी है। यहाँ भाजपा अजेय है। यहाँ रमेश मेंदोला,मुन्नालाल यादव,चंदू शिंदे,सुरेश करवड़े और सूरज कैरों जैसे दिगज नेता निवास  करते हैं।  इन सबके उस्ताद और गुरु  'दवंग' नेता कैलाश विजयवर्गीय जी  ही  हैं। वे पहले पार्षद ,फिर   विधायक -महापौर   हुआ करते  थे। अब  मध्यप्रदेश की केविनेट में वे विगत १० साल से नंबर -दो पर हैं।विगत २००८ के विधान सभा चुनाव में उन्होंने अपने  विधान सभा क्षेत्र क्रमांक -दो से  अपने 'पट्ट शिष्य' रमेश मेंदोला को  चुनाव लड़ाया था जो मध्यप्रदेश में सर्वाधिक वोटों से जीतकर विधान सभा में पहली बार पहुंचे  थे। इस बार भी मेंदोला ही यहाँ से भाजपा के उम्मीदवार हैं। कैलाश जी महू से चुनाव लड़ रहे हैं। इस बार  चूँकि एंटी इन्कम्बेंसी फेक्टर है इसलिए शिवराज  जी स्वयं बुधनी और विदिशा -दो जगहों से लड़ रहे हैं और कैलाश जी को जान बूझकर महू  जैसी कांग्रेसी परम्परागत सीट से  लड़वाया  है ताकि वे मध्यप्रदेश में  नंबर दो से नंबर एक न बन पाएं !
                                 आम जनता में जन चर्चा है कि  उमा  भारती के शागिर्द विजयवर्गीय यदि मध्यप्रदेस के मुख्यमंत्री होते तो पूरा मध्यप्रदेश क्षेत्र क्रमांक -दो  की तरह चमन हो जाता। मोदी और आडवाणी के संघर्ष में संघ के सुरेश सोनी दरकिनार कर दिए जाने से कैलाश  विजयवर्गीय कुछ कमजोर हुए हैं इसलिए अब वे भी मध्यप्रदेश की राजनीती से तौबा करने और मोदी गुट में शामिल होकर केंद्र की राजनीती में जाने कि फिराक में हैं।  कांग्रेसियों का आरोप है कि   शिवराजसिंह चौहान ने  विकाश कार्यों की बजाय मामा-भांजिया ,सामूहिक  शादियां ,तीर्थताटन  और जाति -विरादरी के सम्मेलनो में  ही जनता को भरमा रखा  है। उन्होंने अपने ८-९ साल के कार्यकाल में मध्यप्रदेश में सन्नी गौड़ ,दिलीप सूर्यबंसी सुधीर शर्मा  जैसे  कुछ नए पूंजीपति  ही  पैदा किये हैं। उन्होंने महांभृष्ट अधिकारीयों को पनपाया है संरक्षण दिया है ।  डम्फर काण्ड ,खाना माफिया और मुन्ना भाइयों से पूरा मध्यप्रदेश गुंजायमान हो रहा है। लोकायुक्त को मजाक बना कर रख छोड़ा है। सड़क-बिजली -पानी  सब गायब है  केवल अखवारों में विकाश के झूंठे इस्तहार  हैं ,केंद्र सरकार और सोनिया जी , राहुल  गांधी या दिग्विजयसिंह की आलोचना के अलावा बाकी सब केवल ढपोरशंखी दुष्प्रचार है। फिर भी यदि शिवराज की हैट्रिक  बनती है तो इसका श्रेय शिवराज को नहीं बल्कि  कांग्रेस की आपसी फूट,संघ कार्यकर्तोंओं  की  भाजपा के पक्ष में हिंदुत्व्वादी  वैचारिक कट्टरता और भाजपा को पालने पोसने वाले पूंजीपति वर्ग को ही भाजपा की  जीत का श्रेय मिलेगा।  

               श्रीराम तिवारी  

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