भाजपा की नियति - " पुनर्मूषको भव "
वह पौराणिक कथा सभी को मालूम है की 'एक ऋषि गंगा स्नान कर रहे थे,तभी बाज पक्षी एक मूषिकी याने चुहिया को अपने दांतों में दवाये आकाश में उड़ते हुए उन ऋषि महोदय के ऊपर से गुजरा और चुहिया उसके मुंह से छिटककर ऋषि महोदय की अँजली में जा गिरी .ऋषि ने उसे कन्या रूप देकर पुत्रीवत पालन किया ,किशोर वय में उस परम सुन्दरी के विवाह हेतु उन्होंने सारे संसार के देव-दनुज -नर-श्रेष्ठ वर उस कन्या के सामने उपस्थित किये ,सूर्य,चन्द्र,वायु वरुण तथा पर्वतों को अस्वीकार कर उस कन्या ने अंत में एक 'चूहे' को पसंद किया और ऋषि महोदय को मजबूरी में उस स्व पालित कन्या रुपी मूषिका को 'पुनर्मूषको भव् ' का शुभाशीष [वास्तव में अभिशाप] देना पड़ा .
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में गैर कांग्रेसवाद याने कांग्रेस विहीन राजनीतिक पार्टियों की और खास तौर से पहले के जमाने में 'जनसंघ' की और अब भाजपा की यह ;पुनर्मूषको भव : ' नियति भी लगभग इसी तरह विगत ६ ५ सालों से निरंतर चल रही है . देश की जनता का जनादेश एक-आध बार अपवाद मान भी लें तो कांग्रेस को 4 0 % से ज्यादा वोट कभी नहीं मिला , फिर भी वह एन -केन -प्रकारेण अधिकांस समय देश की सत्ता में रही है .और गैर कांग्रेस रुपी विपक्ष को 5 0 % से अधिक जनादेश सदैव मिलता रहा है किन्तु यह' सनातन अभिशप्त ' विपक्ष सत्ता में [केंद्र में] वमुश्किल दस साल भी नहीं रह पाया . वर्तमान राजनैतिक परिद्रश्य इंगित करता है कि वर्तमान विपक्ष ने २ ० १ ४ से आगे भी विपक्ष में ही बैठने की ठान रखी है . भाजपा और वामपंथ को छोड़ बाकी सारे गैर कांग्रेसी दल बाहर से कांग्रस को 'पाप का घड़ा' बताते हैं और चोरी छिपे उसी कांग्रेस रुपी घड़े का पानी पीने से भी बाज़ नहीं आते। ये क्या खाक तीसरा मोर्चा बनायेंगे ? वामपंथ के पास बेहतरीन आर्थिक-सामाजिक और राजनैतिक वैज्ञानिक विचारधारा और राजनैतिक विकल्प की सम्भावना के वावजूद ,उसके निरंतर संघर्ष और जन-चेतना अभियान के वावजूद केंद्र की सत्ता में आने की उसकी अभी तो दूर-दूर तक कोई सम्भावना नहीं है हाँ ये जरुर हो सकता है की त्रिपुरा में जीतने के बाद वो कांग्रेस से केरल और तृणमूल से पश्चिम बंगाल की सत्ता वापिस ले ले किन्तु केंद्र में आने के लिए अभी 'दिल्ली बहु दूर है'
वर्तमान में गैर कांग्रेसवाद के प्रमुख राष्ट्रीय विकल्प तीन हैं, पहला- भाजपा नीति नेशनल डेमोक्रिटिक अलायन्स याने - एन डी ए , दूसरा-माकपा नीति वाम मोर्चा और तीसरा -नेशनल कांफ्रेंस ,सपा ,बसपा ,द्रुमुक तृणमूल ,अकाली ,शिवसेना ,बीजद और जद {एस] इत्यादि तमाम दलों का तथाकथित तीसरा मोर्चा . इसके अलावा देश के अन्दर नक्सलवादियों -माओवादियों जैसे हिंसक और संसदीय प्रजातंत्र विरोधी याने चुनाव नहीं लड़ने और सत्ता 'बन्दूक की नोंक'से हासिल करने के लिए प्रयासरत है . अरविन्द केजरीवाल, अन्ना हजारे ,बाबा रामदेव जैसे अहिंसक किन्तु व्यक्तिवादी और बिना विचारधारा के ढपोरशंखी मात्र हैं -इनमे से कोई भी कांग्रेस नीति यूपीए का विकल्प बन पाने में फिल हाल सक्षम नहीं है . देश की जनता मंहगाई ,भृष्टाचार ,रिश्वतखोरी ,वेरोजगारी ,भुखमरी,ह्त्या बलात्कार
को वर्तमान सरकार की नीतिगत विफलताओं के रूप में लेती है और सत्ता परिवर्तन चाहती है . आगामी आम चुनाव जब भी होंगे कांग्रेस को एक सौ पचास सीट से ज्यादा नहीं मिलेंगीं .किन्तु विपक्ष में ३ ५ ० सीटें मिलने के वावजूद सरकार 'कांग्रेस नीति यूपीए ' की फिर से बन जाए तो कोई अचरज नहीं।
कांग्रेस के इस पुन राज्यारोहण के लिए कौन जिम्मेदार होगा ? इसकी भी मैं घोषणा कर सकता हूँ .सारा देश जानता है की कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने मैं अभी वर्तमान में केवल-और -केवल भाजपा नीति एन डी ए ही सक्षम हो सकता है हालांकि एन डी ऐ की आर्थिक नीतियाँ वही हैं जो डॉ मनमोहनसिंह की हैं , ये लोग २ ० ० ४ में इन्हीं नीतियों को 'फील गुड' और 'इंडिया शाइनिंग ' के रूप में केश कर चुके हैं . फिर भी देश की जनता बहरहाल तो कांग्रेस से बेहद नाराज़ है और सत्ता परिवर्तन चाहती है . किन्तु भाजपा शासित राज्यों में भी स्थिति बेहद दयनीय और निराशाजनक है . भाजपा के वर्तमान 'प्रबंधकों' ने भाजपा की नई टीम को जिस -किसी भी बाध्यता से आगामी कार्यवधि के लिए घोषित किया हो, लेकिन ये टीम आगामी चुनावों में और चुनाव के तत्काल बाद होने वाली सत्ता परिवर्तन की प्रक्रिया में रंचमात्र सहयोगी होने के बजाय 'गठबंधन ' की राजनीती को पलीता लगाने के लिए इतिहास में दर्ज होने जा रही है .
राजनाथ सिंह जी की ताज़ा टीम में नरेन्द्र मोदी,उमा भारती ,अमित शाह और वरुण गाँधी के शामिल होने , यशवंत सिन्हा,जसवंतसिंह ,शांताकुमार ,नजमा हेप तुल्लाह ,शिवराज सिंह,रमनसिंह को संसदीय बोर्ड से बाहर रखे जाने ,आडवानी जी ,सुषमा स्वराज जी के आग्रहों को दरकिनार करने , कट्टरतावादियों की गिरफ्त में आने के निहतार्थ किसी से छिपे नहीं हैं . इस टीम का लक्ष्य जिस ओर इंगित कर रहा है वो भी किसी से छिपा नहीं है। चुनाव के दरम्यान और ठीक चुनाव के बाद जो राजनीतिक विपक्ष 'धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र पर आधारित होकर अपनी संसदीय क्षमता को एन डी ए से जोड़कर देश की जनता को नई सरकार देने जा रहा हो वो उस जनता के सामने- किसी खास आकर्षण ,चाहे वो धर्मनिरपेक्षता ही क्यों न हो - किस मुंह से कहेगा की 'नरेन्द्र मोदी' प्रधान मंत्री होगे ! या कि दलित ,मुस्लिम,पिछड़ा और क्षेत्रीयता आधारित जनाधार जिसे गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी विपक्ष ने निरंतर भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ निरंतर विष वमन से पोषित किया हो वह अति मासूमियत' से चुपचाप थोक में 'कट्टर हिंदुत्व' की मांद में पानी पीने खीचा चला आयेगा ? या सीधी -सादी गाय की तरह भाजपा की 'थान ' पर खीचा चला आयेगा .
आज भाजपा फिरसे भगवाकरण की ओर चल पडी है . लगता है की विकाश और सबको साथ लेकर चलने की युक्ति पर विगत दो आम चुनावों में लगातार कांग्रेस से मात खाने के बाद भाजपा का तथाकथित धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक उदारवाद से मोह भंग हो चूका है . उसे लगता है कि नरेन्द्र मोदी के कट्टर हिन्दुत्ववादी नायकत्व और विकाश पुरुष की वर्चुअल इमेज से देश के हाई टेक हिन्दू युवाओं का अपार समर्थन मिल जाएगा और सत्ता में साझेदारी के लिए किसी 'धर्मनिरपेक्षतावादी ' की चिरोरी नहीं करनी पड़ेगी .इस टीम के माध्यम से राजनाथसिंह ने स्पष्ट सन्देश दे दिया है कि वे अटल बिहारी वाजपेई के माध्यम मार्ग से च्युत होने के लए कटिबद्द हैं .चरम पंथियों कट्टर हिदुत्व वादियों को प्रश्रय और नरम पंथियों को हासिये पर धकेलकर भाजपा हाइकमान ने एक भ्रम और पाल रखा है कि आम चुनाव तक नरेन्द्र मोदी को 'हिंदुत्व' का आइकान बनाकर रखेंगे ताकि हिन्दुत्वादी वोट बैंक में माकूल इजाफा किया जा सके . भाजपा को तब यदि २ ० ० से ज्यादा सीटें आतीं हैं तो इस टीम और इसी कट्टरवाद को केन्द्रित कर नरेन्द्र मोदी के नेत्रत्व में सरकार बनाई जायेगी .
यदि भाजपा के सांसद संख्या बल में १ ५ ० के नीचे रहते हैं तो मोदी जी गुजरात का ही गौरव गान करते रहेंगे और धर्मनिरपेक्ष गैर कांग्रेसी विपक्षी 'अलायन्स पार्टनर' की मंसा या भावनाओं का आदर करते हुए तदनुरूप अपने बीच से कोई 'धर्मनिरपेक्ष' चेहरा प्रस्तुत करेंगे। इस कट्टरता वादी जुए के खेलने वाले इतने भोले कैसे हो सकते हैं कि तथाकथित तीसरा मोर्चा + वाम मोर्चा और कांग्रेस नीति यु पी ए उनके इस पेंतरे का जबाब नहीं देंगे . वे तो वैसे ही इस भाजपाई कट्टरपंथी टीम की घोषणा को अभी से अपने लिए अनुकूल मानकर ,परम आन्नदित हो रहे होंगे .
भाजपा और संघ ने अपने ही पुराने अनुभवी और स्थापित जिन 'उदारवादियों ' धर्मनिरपेक्षतावादियों को चाहे वे येशवंत सिन्हा हों,जसवंत सिंह हों, नजमा हेपतुल्लाह हों,शिवराज हों,रमनसिंह हों,शांताकुमार हों या सुष्माजी और आडवाणी जी हों -इन सबको किनारे लगाकर ,उनका मान मर्दन कर जिस तरह से नरेन्द्र मोदी को अप्रत्याशित बढ़त दी है वो भाजपा को पुनः विपक्ष में बैठने अर्थात 'पुनर्मूषको ' भव कराने की ओर इंगित कर रही है .
श्रीराम तिवारी
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