" लोग कहते हैं कि आन्दोलन-प्रदर्शन और जुलूस निकालने से क्या होगा ? इससे यह सिद्ध होता है कि हम [याने कौम के लोग ]जीवित हैं ,हम शोषण के खिलाफ चल रही दुनियावी लड़ाई के मैदान में डटे हैं, हम मैदान से हटे नहीं हैं , ये जुलूस -प्रदर्शन-धरने और आन्दोलन हमें राह दिखाते है-कि हम लाठियों-गोलियों-और शासक वर्ग के अत्याचारों से भयभीत होकर अपने महानतम लक्ष्य से डिगने वाले नहीं हैं .हम इस व्यवस्था का अंत करके ही दम लेंगे जो स्वार्थीपन और शोषण पर अवलंबित है "...... मुंशी प्रेमचंद ....
" दुनिया में जब तलक सबल व्यक्ति द्वारा निर्वल व्यक्ति का शोषण होता रहेगा,दुनिया में जब तलक सबल समाज द्वारा निर्बल समाजों का शोषण होता रहेगा ,दुनिया में जब तलक शक्तिशाली मुल्कों द्वारा निर्बल-व पिछड़े राष्ट्रों का शोषण होता रहेगा, क्रांति के लिए हमारा संघर्ष तब तलक जारी रहेगा ".....शहीद भगतसिंह ....
" भारत पर इंग्लैंड की विजय -ईसा-मसीह या बाइबिल की विजय नहीं है , भारत पर मुगलों-पठानों तुर्कों की विजय कुरआन की विजय नहीं थी, इन आक्रमणों के उदेश्य केवल और केवल 'सम्पदा की भूंख 'और राज्य विस्तार की कुत्सित लालसा ही थी, पाश्चात्य जगत में ही इस महामारी का भी निदान जन्म ले रहा है. उसकी लालिमा यूरोप और पाश्चात्य जगत के व्योम में दृष्टिगोचर होने लगी है , उसका फलाफल विचार कर आततायी लोग घबराने लगे हैं सोशलिज्म अनार्किज्म , नाह्लिज्म आदि नए सम्प्रदाय इस आगामी विप्लव[क्रांति] के आगे-आगे चलने वाली - नयी धर्म ध्वजाएं होंगीं …! " ... स्वामी विवेकानंद ..!
"दुनिया के मेहनतकशो -एक हो… एक हो ...." ..... कार्ल मार्क्स .....
एक मई अन्तर्रष्ट्रीय मजदूर दिवस पर दुनिया के तमाम क्रान्तिकारी साथियों को लाल -सलाम….! चे गुवेरा ..!
दोस्तो .....! औद्दोगिक क्रांति से पहले याने १ ६ वीं -१ ७ वीं शताब्दी तक दुनिया में 'काम के घंटों ' को लेकर कोई चर्चा नहीं होती थी . चूँकि उस जमाने में खेती को 'सर्वोत्तम' माना जाता था और किसान या मजदूर को जमीदारों द्वारा बेलों की तरह ही जोता जाता था . स्वतंत्र सीमान्त किसान भी हाड-तोड़ मेहनत के लिए मजबूर हुआ करता था क्योंकि तब 'उन्नत तकनालोजी' नहीं थी .यूरोप और अमेरिका में सम्पन्न 'औद्दोगिक क्रांति ' ने न केवल सामंतवाद को बल्कि उसके अभिन्न हितेषी ' रिलीजन ' [ भारतीय संदर्भ में 'देवोपासना'] को भी आपने-रंग-ढंग सुधारने पर मजबूर कर दिया था । जहां पहले के जमाने में दिहाड़ी मजदूर,बेगारी मजदूर ,ठेका मजदूर और कृषि-मजदूर को महीनों तक कोई 'अवकाश ' नहीं दिया जाता था वहीँ उनको ' उदर -भरण ' याने गुजारे लायक न्यूनतम मेहनताना दिए जाने की तो कोई गारंटी ही नहीं थी .काम के घंटों को कम करने या कमसेकम 'आठ' घंटे का कार्य दिवस हो ,इस तरह की मांग उठने लगी . अन्याय के प्रतिकार का भी सिलसिला चल पड़ा ,हालांकि ये सिलसिला भी उतना ही पुराना है जितना कि अन्याय और अत्याचार का पुरातन निर्मम इतिहास है , इस इतिहास के लेखन में मेहनतकशों के लहू को स्याही बनाया जाता रहा है।
औद्दोगिक क्रांति के आरंभिक काल अर्थात १ ९ वीं सदी में काम के घंटों को लेकर ,न्यूनतम मजदूरी को लेकर मजदूरों के संगठन बनने लगे और तब उन्होंने अन्याय के प्रतिकार का शंखनाद भी शुरू कर दिया . आज जो सारे संसार में सरकारी तौर पर काम के घंटे ' आठ' सुनिश्चित हैं , वो अतीत के अनेक संघर्षों और बलिदानों की थाती है . भले ही इन का पालन नहीं हो रहा . आज जो न्यूनतम मानवीय सुविधाएं सुलभ है इन्हें हासिल करने के लिए दुनिया भर के मेहनतकशों ने कई बार अनगिनत बलिदान किये हैं ., और जो अभी तक लड़कर हासिल किया है -उसे सुरक्षित रखने के लिए भी संघर्ष जारी हैं बलिदान किये जा रहे हैं . और ये संघर्षों का अंतहीन सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक कि मानव द्वारा मानव के शोषण का सिलसिला समाप्त नहीं हो जाता . मजदूर वर्ग की कुर्वानियाँ तत्सम्बन्धी संघर्ष - कुर्वानियों के इतिहास को याद करने के लिए "एक-मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस ' सारे संसार में मनाया जाता है . इसे वास्तव में मानवता का वैश्विक पर्व और नए सूर्योदय की तलाश का दिन कहें तो अतिशयोक्ति न होगी . यह मानवीय मूल्यों को पुन : परिभाषित किये जाने का अंतर्राष्ट्रीय संकल्प दिवस है . दुनिया में शायद ही ऐंसा कोई देश हो जहां के -समाज-नगर ,कारखाना ,खेत या खलिहान में 'एक मई -अन्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस 'जिन्दावाद का नारा नहीं लगाया जाता हो .
दुनिया भर में जितने भी त्यौहार मनाये जाते हैं उन में संभवत :"१ -मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर-दिवस" एकमात्र त्यौहार है जो सारे संसार में मनाया जाता है। दुनिया में जहां कहीं भी मजदूर -किसान-कारीगर-इंजीनियर-शिक्षक,डाक्टर , सरकारी कर्मचारी-अधिकारी या छात्र -नौजवान हैं वहाँ पर ये त्यौहार अवश्य मनाया जाता है . इसे हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई-बौद्ध-यहूदी ,पारसी ,सिख जैन ,आस्तिक-नास्तिक से लेकर दुनिया की प्रत्येक भाषा और नस्ल के लोग मनाते हैं . इस त्यौहार के चिंतन का केंद्र केवल काम के घंटों को लेकर हुए 'नर-संहार' तक सीमित नहीं है। ये त्यौहार तो मानवता के इतिहास में अनेक 'जन-क्रांतियों ' का उत्प्रेरक सिद्ध हुआ है . दुनिया के लगभग ८ ० देशों में सरकारी तौर पर इस त्यौहार को मान्यता प्राप्त हो चुकी है . इन देशों में एक-मई को 'राष्ट्रीय अवकाश' दिया जाता है .चीन,वियतनाम,कोरिया ,क्यूबा ,वेनेजुएला , स्वीडन ,फ़्रांस ,अमेरिका, इंग्लॅण्ड तुर्की दक्षिण अफ्रीका सीरिया, ,पोलैंड रूस जर्मनी, वोलिविया नेपाल, ,ब्राजील मिश्र ,ईराक ,ईरान .पकिस्तान ,बांग्ला देश और भारत समेत दुनिया के अधिकांस देशों और महा दीपों में इस त्यौहार को 'जोश और क्रांति के प्रतीक' रूप में मनाया जाता है .चीन में लगभग एक अरब जनता इस त्यौहार को अपनी क्रांती को अक्षुण रखने के संकल्प के रूप में मनाती है . भारत के बंगाल,केरल,त्रिपुरा ,उत्तरपूर्व ,में अधिकांस्तः और बाकी सारे देश में कहीं शानदार और कहीं रश्म अदायगी के रूप में नगर-नगर,गाँव-गाँव में एक-मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है .
एक -मई अंतर्राष्ट्रीय , मजदूर दिवस के मनाये जाने की शुरुआत का इतिहास अलग-अलग कारणों से बहुत पुराना है . केथोलिक चर्च में तो ' सेंट -जोसेफ 'के जन्म-दिन' से भी इसका ताल्लुक बताया गया है . पुरातन यहूदी कामगार और बेथलेहम के मिश्त्रियों में इसके मनाये जाने के प्रमाण हैं .वैसे सबसे महत्वपूर्ण और प्रेरक घटना अमेरिका स्थित शिकागो शहर की मानी जाती है .शिकागो के 'हे-मार्केट -स्क्वायर' पर मई- १ ८ ८ ६ को सरमायेदारों द्वारा जो रक्तपात किया गया वो इस मई-दिवस के इतिहास का सबसे यादगार ,अविस्मर्णीय एवं लोमहर्षक कालखंड है .हालांकि इस घटना का याने काम के घंटे कम करने और श्रम का सही दाम मांगे जाने का - बीज वपन भी फ्रांसीसी क्रांति ने ही किया था . जिस तरह अमेरिका की स्वतंत्रता और दुनिया भर के मुक्ति संग्रामो के लिए फ्रांसीसी क्रांति एवं रूसी क्रांति को श्रेय दिया जाता है, उसी तरह दुनिया भर में लोकतंत्र-जनवाद और प्रजातांत्रिक आकांक्षा के लिए भी इन्ही क्रांतियों को मूल मन्त्र के रूप मेंअवश्य ही स्मरण किया जाता है .फ्रांसीसी क्रांति के तीन मूल मन्त्र सारे संसार के लिए आज भी प्रासंगिक हैं .लिवेर्टी ,इक्वलिटी , फ्रेटरनिटी इत्यादि इन मानवीय मूल्यों का आविष्कार भले ही पूँजीवाद और औद्दोगिकीकरण की कोख से हुआ हो किन्तु जन्मदाता तो 'विश्व -सर्वहारा ' ही है.
१ ४ -जुलाई १ ७ ८ ९ से १ ७ ९ ९ के बीच सम्पन्न विश्व विख्यात 'फ्रेंच -रेवोलुशन' ने एक साथ कई कीर्तिमान स्थापित किये थे .रेडिकल,सोसल,राजनैतिक , औटोक्रेटिक ,और धर्म-मज़हब[ यूरोप में तब केवल चर्च और कहीं-कहीं इस्लाम भी था] सभी को वैज्ञानिक दृष्टी प्रदान करते हुए इस क्रांति ने 'महलों को कुटीरों के सामने ' औंधे मुंह गिराकर सारे संसार में ' श्रम' की ताकत को स्थापित किया। भले ही ये क्रांति तात्कालिक अर्थों में असफल रही हो किन्तु इसी फ्रांसीसी क्रांति के दूरगामी प्रभावों ने अमेरिका ,यूरोप,और एसिया समेत सारे संसार के मेहनतकशों को अपने सामूहिक हित सुरक्षित करने की क्षमता और दृष्टी प्रदान की 'थी . आगे चलकर लेनिन के नेत्रत्व में सोवियत वोल्शैविक क्रांति,माओ के नेत्रत्व में चीन की 'महान लाल क्रांति' और भारत-अफ्रीका समेत सारे संसार के गुलाम राष्ट्रों के राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन को ऊर्जा तथा प्रकारांतर से 'दिशा निर्देश भी इसी फ्रांसीसी क्रांति से ही प्राप्त हुए थे
.'शिकागो के अमर शहीदों को भी इसी क्रांति ने शहादत का जज्वा प्रदान किया था .उनका पैगाम था की सरमायेदारों को अपने-अपने मजदूरों को " आठ घंटे काम,आठ घंटे मनोरंजन,आठ घंटे विश्राम " देना ही होगा . प्रत्येक मजदूर का यह जन्म सिद्ध अधिकार है .इस मांग को लेकर लगातार कई सालों से चल रहे अलग-अलग आन्दोलनो को हालांकि कोई खास सफलता नहीं मिली किन्तु जब औद्दोगिक क्रांति ने मजदूरों को शिक्षित-कुशल और 'वर्ग-चेतना' से लेस करना शुरू किया तो स्थति ये आ गई की सारे अमेरिकी मजदूर बगावत पर उतर आये. " हे मार्केट स्कवायर पर काम के घंटे निर्धारित करने की मांग को लेकर ' धरना -प्रदर्शन और आम सभा ' चल रही थी ,यह बिलकुल शांतिपूर्ण और अहिंसक कार्यक्रम था- तभी भारत के जलियाँ वाला बाग़ काण्ड की तरह 'अमेरिकी पूंजीपतियों' की स्पेशल गार्ड के हिंसक दानवों ने सभा पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी .दर्जनों श्रोता प्रदर्शनकारी मजदूर और निरीह निर्दोष नागरिक तत्काल वहीँ ढेर होते चले गए . सेकड़ों घायल होकर वहीँ छटपटाने लगे।
इसी अवसर पर एक छोटी सी बच्ची रोती - बिलखती लाशों और घायलों के ढेर में अपने पिता को तलाश रही थी . वह अपने मृत पिता की देह पाकर उस से लिपटकर हिलाकर घर चलने को कहती है , इसी दौरान उसके नन्हे हाथों में अपने प्रिय पिता की रक्तरंजित 'लाल शर्ट ' का एक टुकडा हाथ आ जाता है, और तब वहाँ मौजूद बचे खुचे घायल मजदूर साथीऔर उन मजदूरों के सपरिजन उस नन्हीं बच्ची को गोद में उठा लेते हैं . वे उसके पिता की रक्तरंजित शर्ट के टुकड़े को हवा में लहरा देते हैं जो सारे संसार में लाल झंडे के जन्म लेने का प्रतीक था .... वे नारा लगाते हैं 'रेवोल्युशन लॉन्ग लिव .... रेड फ्लेग रेड सेलूट ... दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ .....और ..यहीं से जन्म लेता है ...दुनिया के मजदूरों-किसानों -क्रांतिकारियों-समाजवादियों और साम्यवादियों' का "लाल-झंडा"....! " एक- मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस" इस प्रकार मई दिवस को सारे संसार में मनाये जाने की तैयारियों का इतिहास जग जाहिर है .
१ ८ ८ ९ में "द्वतीय इंटरनेशनल ' की जब पेरिस में मीटिंग सम्पन्न हुई तब ये तय किया गया की आयन्दा १ ८ ९ ० के साल की एक-मई से" विश्व " स्तर पर 'मई-दिवस' मनाया जाएगा .इस तरह सारे संसार में यह त्यौहार मनाया जाने लगा . रूस की महान अक्तूबर क्रांति ,चीन की लाल क्रांति और क्यूबा - वियतनाम-वेनेजुएला इत्यादी में संभव हुई साम्यवादी क्रांतियों ने भी इस त्यौहार को भव्यता , गरिमा और वैश्विकता प्रदान की . इस दिन न केवल शिकागो के अमर शहीदों को बल्कि सारे संसार के स्वाधीनता सेनानियों-मजदूरों-किसानों -ट्रेड यूनियनों के त्याग और बलिदान को स्मरण किया जाता है .विश्व सर्वहारा की मुक्ति और श्रम का सम्मान करने वाली नयी समाज व्यवस्था के लिए कृत संकल्पित होते हैं . मजदूरों की बड़ी-बड़ी रैलियाँ और जुलुस निकाले जाते हैं . मजदूर किसान अपने-अपने देश की सरकारों और हुक्मरानों के सामने उनके शोषण -दमन का प्रतिकार और अपने समाजवादी एजेंडे का इजहार करते हैं . मजदूर संगठन अपने-अपने कार्यक्रम -नीतियाँ और प्रतिबद्धताओं को देश और दुनिया के सामने पेश करते हैं .
दुनिया के मजदूरों एक हो---एक हो…. !शिकागो के अमर शहीदों को लाल -सलाम…!एक-मई मजदूर दिवस -जिन्दावाद ....'मजदूर-मजदूर भाई- भाई ...! इत्यादि गगन भेदी नारों की पृष्ठभूमि में सारे संसार के मजदूर अपने अतीत के संघर्षों का सिंघावलोकन और विहंगावलोकन भी करते हैं ....!ताकि नईं युवा पीढी को मालूम हो की उन्हें आज जो कुछ सहज ही हासिल है वो पूर्वजों के खून की कीमत पर हासिल किया गया है . उन्हें याद दिलाया जाता है कि किस तरह -यूरोप और इंग्लॅण्ड और मध्य एशिया के यायावर लुटेरों ने पहले तो पूरी दुनिया को बलात अधिग्रहीत किया फिर जगह-जगह औपनिवेशिक कालोनिया बना डालीं . उन्हें अपने विशाल आर्थिक साम्राज्यों के विकाश और तदनुरूप आधारभूत अधोसंरचनाओं - के लिए निरंतर अबाध सस्ते श्रम की दरकार थी . जो उन्हें रोड,रेल,बंदरगाह,ब्रिज,नहरें स्कूल,कालेज,कारखाने ,डाक-तार-टेलीफोन समेत तमाम उन्नत तकनीकी उपलब्ध कराती . उसके संचालन के लिए कुशल-अकुशल श्रमिक उन्हें अमेरिका और यूरोप से तो मिल नहीं सकते थे। अतः उन्होंने अफ्रीकी ,एशियाई और तत्कालीन गुलाम देशों के नंगे-भूंखे गरीब-मजदूरों से , गैर यूरोपीय गैर अमेरिकी श्रमिकों से उन्हें कोड़े मार-मार कर १ ८ घंटे से ज्यादा काम लिया . सस्ती श्रम संपदा का भरपूर दोहन -शोषण और उत्पीडन किया। उन तत्कालीन नव-धनाड्यों ने राजनीती और प्रशाशन पर अपनी मज़बूत पकड़ बना रखी थी- वे अमेरिका ही नहीं दुनिया के तमाम सरमायेदारों के 'बुर्जुआ' आदर्श बन बैठे थे आज भी भारत जैसे देश के नेता उन्ही अमेरिकी पूंजीपतियों के चरणों में लौट लगाने को उतावले हो रहे हैं .हालांकि सारी दुनिया के मेहनतकश अभी भी यही मानते हैं कि न्याय भले ही ताकतवर के पक्ष में अभी भी खड़ा है किन्तु संघर्ष के सामने ये दीवारें भी टिक न सकेंगीं . तत्कालीन अमेरिकी समाज में श्रमिक क़ानून या विधिक कार्यवाहियां भी मिल मालिकों और पूंजीपतियों के इशारे पर ही हुआ करती थी . मजदूरों को महीनों तक कोई अवकाश नहीं मिल पाता था . काम के घंटे १ ६ से २ २ तक हो जाया करते थे . यह एक सौ पचास साल पहले भी सही था और आज भी सही है . इसीलिये मई-दिवस पर मजदूरों का शंखनाद भी सही है .
आज के दुर्दमनीय दौर में युवाओं का न केवल आज के उत्तर आधुनिक उदारीकरण-वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धी दौर के मार्फ़त अपितु धुनिक और कार्पो रेट जगत द्वारा शोषण पहले से ज्यादा बढ़ गया है . भारत में शहीद भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों ने ,स्वाधीनता सेनानियों ने और मजदूर संघों ने , न केवल फ्रांसीसी क्रांति बल्कि अमेरिकी स्वाधीनता संग्राम के मूल्यों पर आधारित सोच को जनता और प्रशाशन के सामने रखा था। किन्तु ' दुर्दांत मालिकों 'को ये कभी मंजूर न था और न मंजूर होगा . पूंजीपतियों ने तब 'हे मार्केट स्कवायर' पर चल रही सभा के बहाने 'केवल मजदूरों पर नहीं बल्कि -स्वतंत्रता-समानता और बंधुत्व' के सिद्धांत' पर ही हमला बोला था जिसका प्रतिवाद 'एक-मई अन्तर्रष्ट्रीय मजदुर-दिवस ' पर दुनिया के तमाम मेहनतकश मजदुर-किसान,छात्र-नौजवान प्रति वर्ष करते हैं .! दुनिया में जब तक शोषण रहेगा ..., जब तक ताकतवर लोग निर्बल को सतातॆ रहेंगे ...तब तक 'एक-मई अंतर्राष्ट्रीय-मजदूर दिवस' की प्रासंगिकता बनी रहेगी ......! आज भारत का सरमायेदार और पूंजीपति तो मुनाफाखोरी के लिए किसी भी सीमा तक गिर सकता है . भारत में तो सरकारें और पूंजीपति तथा भृष्ट व्यवस्था ने जनता का कचमूर तो निकाल ही दिया है, लेकिन देश की अस्मिता और सम्मान तथा महिलाओं बच्चियों और कमजोरों का उत्पीडन बेतहासा बढ़ता ही जा रहा है। असमानता और गरीबी बढ़ती ही जा रही है . दवंगों , भृष्ट नेताओं और अम्बानियों की सुरक्षा के लिए कमांडों रखे जा रहे हैं और देश को आतंकियों के रहमो -करम पर छोड़ दिया गया है . एक- मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर भारत के मेहनतकश मजदूर-किसान कृत संकल्पित हैं की वे दुनिया के मजदूरों और शोषितों से एकता कायम कर शोषण कारी ताकतों का मुकाबला करेंगे ....! अपने श्रम का बाजिब मूल्य हासिल करेगे और देश की हिफाजत भी करेंगे ......!
इन्कलाब -जिंदाबाद .......!
दुनिया के मेहनतकश -एक हो जाओ ....!
कौन बनाता हिन्दुस्तान .......?..... भारत का मजदूर किसान .......!
आयेगा भई ... आयेगा…ं ! इक नया ज़माना आयेगा .....!
कमाने वाला खायेगा ......! लूटने वाला जाएगा ......!
क्या मांगे मजदूर -किसान ....?... रोटी-कपडा और मकान .....!
लाल-लाल लहराएगा ...!...जब नया ज़माना आयेगा .....!!
पूंजीवाद का नाश हो ...! समाजवाद ...जिन्दावाद .....!
संघर्षों का रास्ता ...! सही रास्ता ...सही रास्ता .....!
मई दिवस के शहीदों को लाल सलाम ......!
श्रीराम तिवारी ......
" दुनिया में जब तलक सबल व्यक्ति द्वारा निर्वल व्यक्ति का शोषण होता रहेगा,दुनिया में जब तलक सबल समाज द्वारा निर्बल समाजों का शोषण होता रहेगा ,दुनिया में जब तलक शक्तिशाली मुल्कों द्वारा निर्बल-व पिछड़े राष्ट्रों का शोषण होता रहेगा, क्रांति के लिए हमारा संघर्ष तब तलक जारी रहेगा ".....शहीद भगतसिंह ....
" भारत पर इंग्लैंड की विजय -ईसा-मसीह या बाइबिल की विजय नहीं है , भारत पर मुगलों-पठानों तुर्कों की विजय कुरआन की विजय नहीं थी, इन आक्रमणों के उदेश्य केवल और केवल 'सम्पदा की भूंख 'और राज्य विस्तार की कुत्सित लालसा ही थी, पाश्चात्य जगत में ही इस महामारी का भी निदान जन्म ले रहा है. उसकी लालिमा यूरोप और पाश्चात्य जगत के व्योम में दृष्टिगोचर होने लगी है , उसका फलाफल विचार कर आततायी लोग घबराने लगे हैं सोशलिज्म अनार्किज्म , नाह्लिज्म आदि नए सम्प्रदाय इस आगामी विप्लव[क्रांति] के आगे-आगे चलने वाली - नयी धर्म ध्वजाएं होंगीं …! " ... स्वामी विवेकानंद ..!
"दुनिया के मेहनतकशो -एक हो… एक हो ...." ..... कार्ल मार्क्स .....
एक मई अन्तर्रष्ट्रीय मजदूर दिवस पर दुनिया के तमाम क्रान्तिकारी साथियों को लाल -सलाम….! चे गुवेरा ..!
दोस्तो .....! औद्दोगिक क्रांति से पहले याने १ ६ वीं -१ ७ वीं शताब्दी तक दुनिया में 'काम के घंटों ' को लेकर कोई चर्चा नहीं होती थी . चूँकि उस जमाने में खेती को 'सर्वोत्तम' माना जाता था और किसान या मजदूर को जमीदारों द्वारा बेलों की तरह ही जोता जाता था . स्वतंत्र सीमान्त किसान भी हाड-तोड़ मेहनत के लिए मजबूर हुआ करता था क्योंकि तब 'उन्नत तकनालोजी' नहीं थी .यूरोप और अमेरिका में सम्पन्न 'औद्दोगिक क्रांति ' ने न केवल सामंतवाद को बल्कि उसके अभिन्न हितेषी ' रिलीजन ' [ भारतीय संदर्भ में 'देवोपासना'] को भी आपने-रंग-ढंग सुधारने पर मजबूर कर दिया था । जहां पहले के जमाने में दिहाड़ी मजदूर,बेगारी मजदूर ,ठेका मजदूर और कृषि-मजदूर को महीनों तक कोई 'अवकाश ' नहीं दिया जाता था वहीँ उनको ' उदर -भरण ' याने गुजारे लायक न्यूनतम मेहनताना दिए जाने की तो कोई गारंटी ही नहीं थी .काम के घंटों को कम करने या कमसेकम 'आठ' घंटे का कार्य दिवस हो ,इस तरह की मांग उठने लगी . अन्याय के प्रतिकार का भी सिलसिला चल पड़ा ,हालांकि ये सिलसिला भी उतना ही पुराना है जितना कि अन्याय और अत्याचार का पुरातन निर्मम इतिहास है , इस इतिहास के लेखन में मेहनतकशों के लहू को स्याही बनाया जाता रहा है।
औद्दोगिक क्रांति के आरंभिक काल अर्थात १ ९ वीं सदी में काम के घंटों को लेकर ,न्यूनतम मजदूरी को लेकर मजदूरों के संगठन बनने लगे और तब उन्होंने अन्याय के प्रतिकार का शंखनाद भी शुरू कर दिया . आज जो सारे संसार में सरकारी तौर पर काम के घंटे ' आठ' सुनिश्चित हैं , वो अतीत के अनेक संघर्षों और बलिदानों की थाती है . भले ही इन का पालन नहीं हो रहा . आज जो न्यूनतम मानवीय सुविधाएं सुलभ है इन्हें हासिल करने के लिए दुनिया भर के मेहनतकशों ने कई बार अनगिनत बलिदान किये हैं ., और जो अभी तक लड़कर हासिल किया है -उसे सुरक्षित रखने के लिए भी संघर्ष जारी हैं बलिदान किये जा रहे हैं . और ये संघर्षों का अंतहीन सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक कि मानव द्वारा मानव के शोषण का सिलसिला समाप्त नहीं हो जाता . मजदूर वर्ग की कुर्वानियाँ तत्सम्बन्धी संघर्ष - कुर्वानियों के इतिहास को याद करने के लिए "एक-मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस ' सारे संसार में मनाया जाता है . इसे वास्तव में मानवता का वैश्विक पर्व और नए सूर्योदय की तलाश का दिन कहें तो अतिशयोक्ति न होगी . यह मानवीय मूल्यों को पुन : परिभाषित किये जाने का अंतर्राष्ट्रीय संकल्प दिवस है . दुनिया में शायद ही ऐंसा कोई देश हो जहां के -समाज-नगर ,कारखाना ,खेत या खलिहान में 'एक मई -अन्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस 'जिन्दावाद का नारा नहीं लगाया जाता हो .
दुनिया भर में जितने भी त्यौहार मनाये जाते हैं उन में संभवत :"१ -मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर-दिवस" एकमात्र त्यौहार है जो सारे संसार में मनाया जाता है। दुनिया में जहां कहीं भी मजदूर -किसान-कारीगर-इंजीनियर-शिक्षक,डाक्टर , सरकारी कर्मचारी-अधिकारी या छात्र -नौजवान हैं वहाँ पर ये त्यौहार अवश्य मनाया जाता है . इसे हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई-बौद्ध-यहूदी ,पारसी ,सिख जैन ,आस्तिक-नास्तिक से लेकर दुनिया की प्रत्येक भाषा और नस्ल के लोग मनाते हैं . इस त्यौहार के चिंतन का केंद्र केवल काम के घंटों को लेकर हुए 'नर-संहार' तक सीमित नहीं है। ये त्यौहार तो मानवता के इतिहास में अनेक 'जन-क्रांतियों ' का उत्प्रेरक सिद्ध हुआ है . दुनिया के लगभग ८ ० देशों में सरकारी तौर पर इस त्यौहार को मान्यता प्राप्त हो चुकी है . इन देशों में एक-मई को 'राष्ट्रीय अवकाश' दिया जाता है .चीन,वियतनाम,कोरिया ,क्यूबा ,वेनेजुएला , स्वीडन ,फ़्रांस ,अमेरिका, इंग्लॅण्ड तुर्की दक्षिण अफ्रीका सीरिया, ,पोलैंड रूस जर्मनी, वोलिविया नेपाल, ,ब्राजील मिश्र ,ईराक ,ईरान .पकिस्तान ,बांग्ला देश और भारत समेत दुनिया के अधिकांस देशों और महा दीपों में इस त्यौहार को 'जोश और क्रांति के प्रतीक' रूप में मनाया जाता है .चीन में लगभग एक अरब जनता इस त्यौहार को अपनी क्रांती को अक्षुण रखने के संकल्प के रूप में मनाती है . भारत के बंगाल,केरल,त्रिपुरा ,उत्तरपूर्व ,में अधिकांस्तः और बाकी सारे देश में कहीं शानदार और कहीं रश्म अदायगी के रूप में नगर-नगर,गाँव-गाँव में एक-मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है .
एक -मई अंतर्राष्ट्रीय , मजदूर दिवस के मनाये जाने की शुरुआत का इतिहास अलग-अलग कारणों से बहुत पुराना है . केथोलिक चर्च में तो ' सेंट -जोसेफ 'के जन्म-दिन' से भी इसका ताल्लुक बताया गया है . पुरातन यहूदी कामगार और बेथलेहम के मिश्त्रियों में इसके मनाये जाने के प्रमाण हैं .वैसे सबसे महत्वपूर्ण और प्रेरक घटना अमेरिका स्थित शिकागो शहर की मानी जाती है .शिकागो के 'हे-मार्केट -स्क्वायर' पर मई- १ ८ ८ ६ को सरमायेदारों द्वारा जो रक्तपात किया गया वो इस मई-दिवस के इतिहास का सबसे यादगार ,अविस्मर्णीय एवं लोमहर्षक कालखंड है .हालांकि इस घटना का याने काम के घंटे कम करने और श्रम का सही दाम मांगे जाने का - बीज वपन भी फ्रांसीसी क्रांति ने ही किया था . जिस तरह अमेरिका की स्वतंत्रता और दुनिया भर के मुक्ति संग्रामो के लिए फ्रांसीसी क्रांति एवं रूसी क्रांति को श्रेय दिया जाता है, उसी तरह दुनिया भर में लोकतंत्र-जनवाद और प्रजातांत्रिक आकांक्षा के लिए भी इन्ही क्रांतियों को मूल मन्त्र के रूप मेंअवश्य ही स्मरण किया जाता है .फ्रांसीसी क्रांति के तीन मूल मन्त्र सारे संसार के लिए आज भी प्रासंगिक हैं .लिवेर्टी ,इक्वलिटी , फ्रेटरनिटी इत्यादि इन मानवीय मूल्यों का आविष्कार भले ही पूँजीवाद और औद्दोगिकीकरण की कोख से हुआ हो किन्तु जन्मदाता तो 'विश्व -सर्वहारा ' ही है.
१ ४ -जुलाई १ ७ ८ ९ से १ ७ ९ ९ के बीच सम्पन्न विश्व विख्यात 'फ्रेंच -रेवोलुशन' ने एक साथ कई कीर्तिमान स्थापित किये थे .रेडिकल,सोसल,राजनैतिक , औटोक्रेटिक ,और धर्म-मज़हब[ यूरोप में तब केवल चर्च और कहीं-कहीं इस्लाम भी था] सभी को वैज्ञानिक दृष्टी प्रदान करते हुए इस क्रांति ने 'महलों को कुटीरों के सामने ' औंधे मुंह गिराकर सारे संसार में ' श्रम' की ताकत को स्थापित किया। भले ही ये क्रांति तात्कालिक अर्थों में असफल रही हो किन्तु इसी फ्रांसीसी क्रांति के दूरगामी प्रभावों ने अमेरिका ,यूरोप,और एसिया समेत सारे संसार के मेहनतकशों को अपने सामूहिक हित सुरक्षित करने की क्षमता और दृष्टी प्रदान की 'थी . आगे चलकर लेनिन के नेत्रत्व में सोवियत वोल्शैविक क्रांति,माओ के नेत्रत्व में चीन की 'महान लाल क्रांति' और भारत-अफ्रीका समेत सारे संसार के गुलाम राष्ट्रों के राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन को ऊर्जा तथा प्रकारांतर से 'दिशा निर्देश भी इसी फ्रांसीसी क्रांति से ही प्राप्त हुए थे
.'शिकागो के अमर शहीदों को भी इसी क्रांति ने शहादत का जज्वा प्रदान किया था .उनका पैगाम था की सरमायेदारों को अपने-अपने मजदूरों को " आठ घंटे काम,आठ घंटे मनोरंजन,आठ घंटे विश्राम " देना ही होगा . प्रत्येक मजदूर का यह जन्म सिद्ध अधिकार है .इस मांग को लेकर लगातार कई सालों से चल रहे अलग-अलग आन्दोलनो को हालांकि कोई खास सफलता नहीं मिली किन्तु जब औद्दोगिक क्रांति ने मजदूरों को शिक्षित-कुशल और 'वर्ग-चेतना' से लेस करना शुरू किया तो स्थति ये आ गई की सारे अमेरिकी मजदूर बगावत पर उतर आये. " हे मार्केट स्कवायर पर काम के घंटे निर्धारित करने की मांग को लेकर ' धरना -प्रदर्शन और आम सभा ' चल रही थी ,यह बिलकुल शांतिपूर्ण और अहिंसक कार्यक्रम था- तभी भारत के जलियाँ वाला बाग़ काण्ड की तरह 'अमेरिकी पूंजीपतियों' की स्पेशल गार्ड के हिंसक दानवों ने सभा पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी .दर्जनों श्रोता प्रदर्शनकारी मजदूर और निरीह निर्दोष नागरिक तत्काल वहीँ ढेर होते चले गए . सेकड़ों घायल होकर वहीँ छटपटाने लगे।
इसी अवसर पर एक छोटी सी बच्ची रोती - बिलखती लाशों और घायलों के ढेर में अपने पिता को तलाश रही थी . वह अपने मृत पिता की देह पाकर उस से लिपटकर हिलाकर घर चलने को कहती है , इसी दौरान उसके नन्हे हाथों में अपने प्रिय पिता की रक्तरंजित 'लाल शर्ट ' का एक टुकडा हाथ आ जाता है, और तब वहाँ मौजूद बचे खुचे घायल मजदूर साथीऔर उन मजदूरों के सपरिजन उस नन्हीं बच्ची को गोद में उठा लेते हैं . वे उसके पिता की रक्तरंजित शर्ट के टुकड़े को हवा में लहरा देते हैं जो सारे संसार में लाल झंडे के जन्म लेने का प्रतीक था .... वे नारा लगाते हैं 'रेवोल्युशन लॉन्ग लिव .... रेड फ्लेग रेड सेलूट ... दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ .....और ..यहीं से जन्म लेता है ...दुनिया के मजदूरों-किसानों -क्रांतिकारियों-समाजवादियों और साम्यवादियों' का "लाल-झंडा"....! " एक- मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस" इस प्रकार मई दिवस को सारे संसार में मनाये जाने की तैयारियों का इतिहास जग जाहिर है .
१ ८ ८ ९ में "द्वतीय इंटरनेशनल ' की जब पेरिस में मीटिंग सम्पन्न हुई तब ये तय किया गया की आयन्दा १ ८ ९ ० के साल की एक-मई से" विश्व " स्तर पर 'मई-दिवस' मनाया जाएगा .इस तरह सारे संसार में यह त्यौहार मनाया जाने लगा . रूस की महान अक्तूबर क्रांति ,चीन की लाल क्रांति और क्यूबा - वियतनाम-वेनेजुएला इत्यादी में संभव हुई साम्यवादी क्रांतियों ने भी इस त्यौहार को भव्यता , गरिमा और वैश्विकता प्रदान की . इस दिन न केवल शिकागो के अमर शहीदों को बल्कि सारे संसार के स्वाधीनता सेनानियों-मजदूरों-किसानों -ट्रेड यूनियनों के त्याग और बलिदान को स्मरण किया जाता है .विश्व सर्वहारा की मुक्ति और श्रम का सम्मान करने वाली नयी समाज व्यवस्था के लिए कृत संकल्पित होते हैं . मजदूरों की बड़ी-बड़ी रैलियाँ और जुलुस निकाले जाते हैं . मजदूर किसान अपने-अपने देश की सरकारों और हुक्मरानों के सामने उनके शोषण -दमन का प्रतिकार और अपने समाजवादी एजेंडे का इजहार करते हैं . मजदूर संगठन अपने-अपने कार्यक्रम -नीतियाँ और प्रतिबद्धताओं को देश और दुनिया के सामने पेश करते हैं .
दुनिया के मजदूरों एक हो---एक हो…. !शिकागो के अमर शहीदों को लाल -सलाम…!एक-मई मजदूर दिवस -जिन्दावाद ....'मजदूर-मजदूर भाई- भाई ...! इत्यादि गगन भेदी नारों की पृष्ठभूमि में सारे संसार के मजदूर अपने अतीत के संघर्षों का सिंघावलोकन और विहंगावलोकन भी करते हैं ....!ताकि नईं युवा पीढी को मालूम हो की उन्हें आज जो कुछ सहज ही हासिल है वो पूर्वजों के खून की कीमत पर हासिल किया गया है . उन्हें याद दिलाया जाता है कि किस तरह -यूरोप और इंग्लॅण्ड और मध्य एशिया के यायावर लुटेरों ने पहले तो पूरी दुनिया को बलात अधिग्रहीत किया फिर जगह-जगह औपनिवेशिक कालोनिया बना डालीं . उन्हें अपने विशाल आर्थिक साम्राज्यों के विकाश और तदनुरूप आधारभूत अधोसंरचनाओं - के लिए निरंतर अबाध सस्ते श्रम की दरकार थी . जो उन्हें रोड,रेल,बंदरगाह,ब्रिज,नहरें स्कूल,कालेज,कारखाने ,डाक-तार-टेलीफोन समेत तमाम उन्नत तकनीकी उपलब्ध कराती . उसके संचालन के लिए कुशल-अकुशल श्रमिक उन्हें अमेरिका और यूरोप से तो मिल नहीं सकते थे। अतः उन्होंने अफ्रीकी ,एशियाई और तत्कालीन गुलाम देशों के नंगे-भूंखे गरीब-मजदूरों से , गैर यूरोपीय गैर अमेरिकी श्रमिकों से उन्हें कोड़े मार-मार कर १ ८ घंटे से ज्यादा काम लिया . सस्ती श्रम संपदा का भरपूर दोहन -शोषण और उत्पीडन किया। उन तत्कालीन नव-धनाड्यों ने राजनीती और प्रशाशन पर अपनी मज़बूत पकड़ बना रखी थी- वे अमेरिका ही नहीं दुनिया के तमाम सरमायेदारों के 'बुर्जुआ' आदर्श बन बैठे थे आज भी भारत जैसे देश के नेता उन्ही अमेरिकी पूंजीपतियों के चरणों में लौट लगाने को उतावले हो रहे हैं .हालांकि सारी दुनिया के मेहनतकश अभी भी यही मानते हैं कि न्याय भले ही ताकतवर के पक्ष में अभी भी खड़ा है किन्तु संघर्ष के सामने ये दीवारें भी टिक न सकेंगीं . तत्कालीन अमेरिकी समाज में श्रमिक क़ानून या विधिक कार्यवाहियां भी मिल मालिकों और पूंजीपतियों के इशारे पर ही हुआ करती थी . मजदूरों को महीनों तक कोई अवकाश नहीं मिल पाता था . काम के घंटे १ ६ से २ २ तक हो जाया करते थे . यह एक सौ पचास साल पहले भी सही था और आज भी सही है . इसीलिये मई-दिवस पर मजदूरों का शंखनाद भी सही है .
आज के दुर्दमनीय दौर में युवाओं का न केवल आज के उत्तर आधुनिक उदारीकरण-वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धी दौर के मार्फ़त अपितु धुनिक और कार्पो रेट जगत द्वारा शोषण पहले से ज्यादा बढ़ गया है . भारत में शहीद भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों ने ,स्वाधीनता सेनानियों ने और मजदूर संघों ने , न केवल फ्रांसीसी क्रांति बल्कि अमेरिकी स्वाधीनता संग्राम के मूल्यों पर आधारित सोच को जनता और प्रशाशन के सामने रखा था। किन्तु ' दुर्दांत मालिकों 'को ये कभी मंजूर न था और न मंजूर होगा . पूंजीपतियों ने तब 'हे मार्केट स्कवायर' पर चल रही सभा के बहाने 'केवल मजदूरों पर नहीं बल्कि -स्वतंत्रता-समानता और बंधुत्व' के सिद्धांत' पर ही हमला बोला था जिसका प्रतिवाद 'एक-मई अन्तर्रष्ट्रीय मजदुर-दिवस ' पर दुनिया के तमाम मेहनतकश मजदुर-किसान,छात्र-नौजवान प्रति वर्ष करते हैं .! दुनिया में जब तक शोषण रहेगा ..., जब तक ताकतवर लोग निर्बल को सतातॆ रहेंगे ...तब तक 'एक-मई अंतर्राष्ट्रीय-मजदूर दिवस' की प्रासंगिकता बनी रहेगी ......! आज भारत का सरमायेदार और पूंजीपति तो मुनाफाखोरी के लिए किसी भी सीमा तक गिर सकता है . भारत में तो सरकारें और पूंजीपति तथा भृष्ट व्यवस्था ने जनता का कचमूर तो निकाल ही दिया है, लेकिन देश की अस्मिता और सम्मान तथा महिलाओं बच्चियों और कमजोरों का उत्पीडन बेतहासा बढ़ता ही जा रहा है। असमानता और गरीबी बढ़ती ही जा रही है . दवंगों , भृष्ट नेताओं और अम्बानियों की सुरक्षा के लिए कमांडों रखे जा रहे हैं और देश को आतंकियों के रहमो -करम पर छोड़ दिया गया है . एक- मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर भारत के मेहनतकश मजदूर-किसान कृत संकल्पित हैं की वे दुनिया के मजदूरों और शोषितों से एकता कायम कर शोषण कारी ताकतों का मुकाबला करेंगे ....! अपने श्रम का बाजिब मूल्य हासिल करेगे और देश की हिफाजत भी करेंगे ......!
इन्कलाब -जिंदाबाद .......!
दुनिया के मेहनतकश -एक हो जाओ ....!
कौन बनाता हिन्दुस्तान .......?..... भारत का मजदूर किसान .......!
आयेगा भई ... आयेगा…ं ! इक नया ज़माना आयेगा .....!
कमाने वाला खायेगा ......! लूटने वाला जाएगा ......!
क्या मांगे मजदूर -किसान ....?... रोटी-कपडा और मकान .....!
लाल-लाल लहराएगा ...!...जब नया ज़माना आयेगा .....!!
पूंजीवाद का नाश हो ...! समाजवाद ...जिन्दावाद .....!
संघर्षों का रास्ता ...! सही रास्ता ...सही रास्ता .....!
मई दिवस के शहीदों को लाल सलाम ......!
श्रीराम तिवारी ......
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