एकल विफल सब बड़े दल , नहिं सत्ता में ठौर .
ध्रुवीकरण ध्रुव सत्य है, गठबंधन का दौर ..
राजनीति पर अर्थ के ,रहे गिद्ध मंडराय .
धर्म -काम या मोक्ष को,साधन लिया बनाय ..
प्रजातंत्र में कथन है , जनता है सिरमौर .
अवसरवादी खा गए ,मेहनतकश का कौर ..
राजनीति अब हिन्द की , पुन : गई गर्माय .
अगले आम चुनाव की , चिंता रही सताय ..
कोई बड़ा न देश से , व्यक्ति -धरम-समाज .
सच्चा नेता है वही , करे दीन के काज ..
वंशवाद बैरी बुरा , ज्यों सामंती क्रूर
व्यक्तिपूजा जो करे , वो प्रजातंत्र से दूर ..
प्रजातंत्र को चाहिए ,जनता की जयकार .
जाति -धरम -भाषा निरत ,समता की दरकार ..
जनता का हित करे ना ,अपना स्वार्थ सधाय .
जिनके ह्रदय कपट छल , वो मंत्री पद पाय ..
जय -जय- जय -जनतंत्र की, जय गणतंत्र महान .
भारत-भारती का करो,मिलकर मंगल गान ...
श्रीराम तिवारी
समसामयिक रचना। श्रेष्ठ कृति।
जवाब देंहटाएंधारा ३७० है 'भारतीय एकता व अक्षुणता' को बनाये रखने की गारंटी और इसे हटाने की मांग है-साम्राज्यवादियों की गहरी साजिश
Andh rashrvadiyon ki jamaat ne or udhar algaavvadiyon ne is masle ko 'Naasoori Ghav' bana dala he...!
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