जनाक्रोश की तपिश से, सत्ता हुई हलकान .
अगले आम चुनाव की , भनक सुनी है कान ..
ज्यों चन्दा बिन चांदनी,और नदी बिन नीर .
तेसई शासक नीति बिन,ज्यों दूध बिन खीर ..
दूरंदेशी राष्ट्र - हितु , जन- गण का कल्याण .
राहुल जी आगे बढ़ो, चमचे करे बखान ..
अफजल गुरु फांसी हुई, शिंदे हो गए शेर .
हिन्दू मत-ध्रुवीकरण, भये विपक्षी ढेर ..
टस से मस न नीतियाँ ,ज्यों अंगद का पाँव .
मन मोहन जी दे रहे,निर्धन जन को घाव ..
हिचकोले खाने लगी, यूपीए की नाव .
राहुल गाँधी के सभी,निष्फल होते दांव ..
अनगढ़ बजट चिदंबरम ,लोक लुभावन रूप .
पूँजी के बाज़ार में,कहीं छाँव कहीं धूप ..
कांग्रेस की नीतियाँ , अर्थतंत्र अनुदार .
चितवत चकित चुनाव की,महिमा अपरम्पार ..
विश्व बैंक आका हुआ , कार्पोरेट को छूट .
श्रम शोषण की छूट है, लूट सको तो लूट ..
लोक लुभावन बजट से, मिले चुनावी जीत .
लोकतंत्र में अभी तक , चली आई यह रीत ...
जन-गण - मन की सोच में , ना होगा बदलाव .
भारत -जन को तब तलक ,सहने होंगे घाव ..
श्रीराम तिवारी ....!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें