बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

ज्यों नदी बिन नीर...[दोहे]....!

            
         जनाक्रोश की तपिश  से,  सत्ता हुई हलकान .

        अगले आम चुनाव की , भनक  सुनी है कान ..



     ज्यों  चन्दा बिन चांदनी,और नदी बिन नीर .

      तेसई  शासक नीति बिन,ज्यों दूध बिन खीर ..



  दूरंदेशी  राष्ट्र - हितु  , जन- गण  का कल्याण .

  राहुल जी आगे बढ़ो,   चमचे     करे    बखान ..


      अफजल गुरु फांसी हुई, शिंदे हो गए शेर .

      हिन्दू मत-ध्रुवीकरण, भये विपक्षी ढेर ..


    टस  से मस  न नीतियाँ ,ज्यों अंगद का पाँव .

    मन मोहन जी दे रहे,निर्धन जन को घाव ..


हिचकोले खाने लगी, यूपीए की नाव .

  राहुल गाँधी के सभी,निष्फल होते   दांव ..


  अनगढ़ बजट चिदंबरम ,लोक लुभावन रूप .

  पूँजी के बाज़ार में,कहीं छाँव कहीं  धूप ..


   कांग्रेस की नीतियाँ , अर्थतंत्र      अनुदार .

   चितवत चकित चुनाव की,महिमा अपरम्पार ..


     विश्व बैंक आका हुआ ,  कार्पोरेट  को छूट .

    श्रम शोषण की छूट है, लूट सको तो लूट ..


   लोक लुभावन बजट से, मिले चुनावी जीत .

    लोकतंत्र में अभी तक , चली आई यह रीत ...


    जन-गण - मन की  सोच में ,  ना  होगा  बदलाव .

     भारत -जन को तब तलक   ,सहने होंगे घाव ..


        श्रीराम तिवारी ....!

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