न नीति इनकी बदली न नियत उनकी बदली,
जब भी आते हैं वोट मांगने तो लगते हैं बदले-बदले।
माना कि गलियाँ बाज़ार हुई, शहरों की रौनक बढ़ी,
कस्बों के भी आकार - प्रकार कुछ बदले-बदले।।
पीने का स्वच्छ पानी भी नहीं सेकड़ों -हजारों गाँवों में,
किसान- मजदूर के दिन अभी नहीं लगते बदले-बदले।।
क्रय शक्ति जिस -जिस की बढती गई जैसे-जैसे,
बन चुका बाज़ार का हिस्सा ,रंग ढंग बदले-बदले।
बहुसंख्यक वंचित अभी भी विज्ञान के वरदान से
जाने कितने हुए बाज़ार से बाहर निधन -दबे-कुचले।।
गरीबों के श्रम को चूसकर न इतरायें अमीर-बुर्जुआ ,
आजकल नौजवानों के भी तेवर लगते हैं बदले-बदले।
श्रीराम तिवारी
जब भी आते हैं वोट मांगने तो लगते हैं बदले-बदले।
माना कि गलियाँ बाज़ार हुई, शहरों की रौनक बढ़ी,
कस्बों के भी आकार - प्रकार कुछ बदले-बदले।।
पीने का स्वच्छ पानी भी नहीं सेकड़ों -हजारों गाँवों में,
किसान- मजदूर के दिन अभी नहीं लगते बदले-बदले।।
क्रय शक्ति जिस -जिस की बढती गई जैसे-जैसे,
बन चुका बाज़ार का हिस्सा ,रंग ढंग बदले-बदले।
बहुसंख्यक वंचित अभी भी विज्ञान के वरदान से
जाने कितने हुए बाज़ार से बाहर निधन -दबे-कुचले।।
गरीबों के श्रम को चूसकर न इतरायें अमीर-बुर्जुआ ,
आजकल नौजवानों के भी तेवर लगते हैं बदले-बदले।
श्रीराम तिवारी
प्रेरक एवं समयोचित कविता है।
जवाब देंहटाएंthank you comrade,aap bhi bahut achchaa likh arhe hain....badhai!
जवाब देंहटाएं