भारत के केन्द्रीय श्रम संगठनों की व्यापक एकता का मंजर बीस -इक्कीस फरवरी-2 013 को सारी दुनिया देखेगी . देश के ग्यारह केन्द्रीय श्रम संगठनों के नेत्रत्व में , सभी स्वतंत्र फेडरेशन ,राज्य सरकार के कर्मचारी ,बैंक,बीमा, बी एस एल एन एल के कर्मचारी तमाम सार्वजानिक उपकर्मों के मजदूर-कर्मचारी, ,गुडगाँव से लेकर मानेसर तक ,कश्मीर से कन्याकुमारी तक,त्रिपुरा से लेकर कच्छ के रन तक - विराट एतिहासिक राष्ट्र व्यापी 'आम हड़ताल' का शंखनाद आज मध्यरात्रि से करने जा रहे हैं .
प्रमुखत : सीटू ,एटुक ,इंटक और भारतीय मजदूर संघ इस महासंघर्ष के सूत्रधार है।भारतीय ट्रेड यूनियन आन्दोलन के इतिहास में यह पहला अवसर है कि देश की सभी विचारधारा की यूनियनो ने केंद्र और राज्यसरकारों की 'मजदूर विरोधी ' नीतियों और आम जनता के सवालों को लेकर व्यापक एकता कायम कर विगत कई महीनो से शांतिपूर्ण प्रदर्शन,हस्ताक्षर अभियान चला रखे थे. संयुक धरना,भूंख हड़ताल तथा रेलियाँ की हैं . लेकिन केंद्र की यूपीए सरकार और विभिन्न राज्यों की अधिकांस सरकारों ने देश की आवाम को न तो महंगाई ,वेकारी,छटनी से निजात दिलाई और न ही उन्हें चिकित्सा सुविधा,पेन्सन,सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के माध्यमों में शामिल किया उलटे जन-कल्याणकारी योजनाओं को जान बूझकर ध्वस्त किया और विश्व बैंक के अजेंडे को आगे बढाने में घातक परिणामों के लिए सक्रिय भूमिका अदा की. हद तो तब हो गई जब कांग्रेस समर्थित यूनियन -इंटक के राष्ट्रीय महासचिव श्री संजीव रेड्डी जी ने अपनी ही यूपीए सरकार को इस बाबत आगाह किया की यदि उनके सुझाओं को अमल में लाने की कोशिश की जाए तो देश की मेहनतकश जनता को कुछ राहत मिल जायेगी तो प्रधानमंत्री जी और यूपीए चेयर पर्सन श्रीमती सोनिया गाँधी ने उनके सुझावों को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया . इसी तरह विभिन्न राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा और एन डी ऐ की सरकारों से जब उन्ही की विचारधारा वाले 'भारतीय मजदूर संघ' ने श्रम कानून के पालन की बात ,मंहगाई कम करने हेतु टैक्स कम करने की बात,अस्थाई मजदूरों को स्थाई करने की बात की तो उन्हें अपमानित किया गया, उनकी खिल्ली उड़ाई गई 'कहा गया क्या 'वामपंथियों की भाषा बोल रहे हो?
बात सही भी है कि विगत कई सालों से केवल सीटू और एटक तथा अन्य वामपंथ समर्थक श्रम संघ ही इन मुद्दों को लेकर संघर्ष करते आ रहे थे. जब सार्वजनिक उप्केमों पर हमले हुए तो वे इनके साथ आ गये. जब मनमोहन सिंह जी के नेत्रत्व में यूपीए प्रथम के दौरान ये प्रतिगामी नीतियाँ लागू करने या महंगाई बढाने की कोशिश की जाती थी तो उस समय 'वामपंथ' का बाहरी समर्थन वीटो का काम करता था और मनमोहन सरकार को वो सब नहीं करने दिया गया जो वे इस यूपीए द्वतीय के दौरान करते चले जा रहे है। सरकारी संपदा को निजी हाथों में बेचने के लिए अटल जी के नेत्रत्व में एनडीए सरकार जितनी गुनाहगार थी उससे ज्यादा गुनाहगार ये यूपीए द्वतीय की मनमोहनी सरकार है जिसने अमीरों को तो अरबो-खरबों डालर की छूटें दीं हैं और गरीब को राशन की दूकान से खाद्यान देने में बेईमानी की है. यहाँ तक की माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का भी सम्मान नहीं किया जिसमे कहा गया था की अति दरिद्रों को वो अनाज मुफ्त में बाँट दिया जाए जो खुले आसमान के नीचे बारिस में खराब होने को है. पेट्रोल डीजल केरोसिन की तो बात छोडो रसोई गेस पर भी सब्सिडी को राजकोषीय घाटे का मुख्य कारण साबित करने में जुटे है। केंद्र राज्यों के कर्मचारियों /अधिकारीयों के संचित पेन्सन कोष को शेयर बाज़ार का हिस्सा बनाने ,अधिकांस ठेकेदारों से कराने,शिक्षा स्वास्थ और जनकल्याण पर राज्य केंद्र की जिम्मेदारी नितांत शून्य तक पहुंचाने के घातक षड्यंत्र को न केवल वामपंथी ट्रेड यूनियनो ने बल्कि कांग्रेस की इंटक और भाजपा की बी एम् एस ने भी पहंचान लिया है और इसीलिये २ ० -२ १ फरवरी -२० १ ३ की दो दवसीय हड़ताल का सभी श्रम संघों ने एकजुट होकर आह्वान किया है.
इस आम हड़ताल के माँग पत्र का बिन्दुवार विवरण निम्नानुसार है-:
[१] मंगाई रोको -सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मज़बूत बनाओ ,उपभोक्ता वस्तुओं के वायदा व्यापार पर रोक लगाओ, किसी भी श्रमिक को कम से कम मजदूरी 1000 रूपये प्रतिमाह करो.
[२] स्थाई प्रकृति के कार्यों में ,निरंतर चलने वाले सरकारी कामों का ठेकाकरण बंद करो. ठेके पर काम करने वाले मजदूरों को सम्बंधित उद्द्योग का नियमित मजदूर मानकर तदनुसार वेतन,चिकित्सा और सेवा निव्रत्ती उपरान्त के हक दिए जावे
[३] सरकार और उद्द्योग् पतियों द्वारा श्रम कानूनों का यथोचित पालन किया जावे.
[४]असंगठित क्षेत्र के , पेकेज्धारी युवाओं को ,आई टी सेक्टर में कार्यरत युवाओं को को,मीडिया और फिल्म उद्योग सहित तमाम मजदूरों के लिए राष्ट्रीय सामजिक कोष बनाया जाए,भविष्य निधि ,पेंशन,प्रोविडेंट फंड,सुनिश्चित किया जाये.
[५] किसी भी उद्द्योग्पति को सरकार की ओर से दिए जाने वाले राहत या प्रोत्साहन को उस उद्योग के श्रमिकों के हितों के अनुरूप जोड़ा जाए .
[६]केंद्र और राज्य सरकारें अपने अधीनस्थ सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश या निजीकरण करने या आउट सोर्सिंग करने -कराने से सर्वथा दूर रहे।
[७]'अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ ' के दिशा निर्देशों का पालन किया जाए .
[८] बंद पड़े कारखानों, मिलो और और सार्वजनिक उपक्रमों को पुनर्जीवित कर देश की संपदा को संरक्षित किया जाए और इनमें युवाओं को रोजगार दिया जाये.
[९] सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सर्वसमावेशी और सर्व सुलभ बनाया जाये. खद्द्यान्न के नकदीकरण से देश का विकाश नहीं होगा लोगों को काम दिया जाए और काम का दाम दिया जाये.
इस मांगपत्र पर कोई ध्यान देने के बजाय संघर्ष रत श्रमिक /कर्मचारी/अधिकारी वर्ग को ये मनमोहन सरकार धमका रही है
मजदूर संघर्ष के लिए अडिग हैं। ये एतिहासिक हड़ताल भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखी जायेगी और पूंजीवाद के पराभव का पैगाम भी देती रहेगी .
इन्कलाब जिंदाबाद ....! हड़ताली साथी लाल सलाम ......!!
श्रीराम तिवारी