रविवार, 4 मार्च 2012

भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्टून्स- India for Sale....


करप्शन के खिलाफ आंदोलनों और उस पर सरकार के बचाव के तरीकों के बीच, देश के जाने माने कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग के भ्रष्टाचार पर बनाए गए कार्टून्स पर उनकी किताब India for Sale का विमोचन किया गया। इस कार्यक्रम का दिलचस्प पहलू ये रहा कि जिस सरकार पर और खास तौर पर सरकार के जिस मंत्री पर इस किताब में बहुत तीखे प्रहार किए गए उन्हीं मंत्री जी ने किताब का विमोचन किया।


India for sale, किसी भी किताब का ये टाइटल चौंकाने वाला हो सकता है। खासकर तब जब इसका विमोचन करने के लिए खुद एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री आए हो। खुद मंत्री जी के खिलाफ इस किताब में बहुत कुछ है लेकिन हंसते मुस्कुराते हुए उन्होने किताब का विमोचन किया। ये भी एक विरला ही मौका होता है जब तीन धुर विरोधी पार्टी के दिग्गज नेता एक साथ एक मंच पर बिना किसी के खिलाफ कुछ बोले हंसते मुस्कुराते दिखे। इन सबको एक मंच पर लाने का श्रेय जाता है देश के जाने माने कार्टूनिस्ट पद्मश्री सुधीर तैलंग को। India for sale तैलंग के corruption पर बनाए गए कार्टून्स की किताब है। तैलंग ने इस किताब के कवर पेज पर अन्ना और बाबा रामदेव को छापने का कारण 62 सालों की छटपटाहट के बाद एक उम्मीद की किरण दिखना बताया।

केंन्द्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल, बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव रविशंकर प्रसाद और सीपीएम पोलिट ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी एक मंच पर दिखाइ दिए और वो भी बेहद दोस्ताना अंदाज में। संसद में और संसद के बाहर सरकार पर जमकर प्रहार करने वाले रविशंकर प्रसाद ने भी यहां सरकार पर कोई टिप्पणी करने के बजाय कपिल सिब्बल की eye brows को निशाना बनाया। उन्होंने कहा की कार्टूनिस्टों को सिबल साहब की भौंहे बहुत पसंद हैं। इस किताब में सिबल साहब और उनकी सरकार पर भी कई बेहतरीन कार्टून्स बनाए गए हैं, यहां पहुंचते हैं रविशंकर प्रसाद ने फटाफट किताब के पन्नों को पलटा और सिबल और उनकी सरकार पर कुछ कार्टून्स को नोट कर अपने भाषण में सबके सामने भी रखा।

अमूमन विपक्ष के किसी भी हमले पर तुरंत reaction देने वाले कपिल सिब्बल इस मंच पर रविशंकर प्रसाद की इस टिप्पणी पर मुस्कुराते रहे। हालांकि सिब्बल की इस मुस्कुराहट के पीछे का दर्द समझा जा सकता है क्योंकि वो सरकार में हैं और जो भी सरकार में होता है वो कार्टूनिस्टों के ज्यादा निशाने पर होता हैं। इस हंसी के माहौल में गंभीर लहजे में सिब्बल ने इसे लोकतंत्र की खूबसूरती बताया और कहा की यही तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सही मायने हैं। उन्होने ये भी साफ कहा की ये कार्टूनिस्ट के अपने विचार हैं और वो इस किताब के टाइटल से इत्तेफाक नहीं रखते। उन्होंने कड़े लहजे में कहा कि न तो भारत बिकाऊ है और न बिकाऊ होगा।

कार्टून्स के बारे में ये भी कहा जाता है की ये politicians के लिए एक certificate की तरह होते हैं। जिसके जितने ज्यादा कार्टून्स बनते हैं समझिए वो उतना ही बड़ा politician होता है। इस बात को मज़ाकिया अंदाज़ में रखते हुए सीताराम येचूरी ने उन पर बहुत ज्यादा कार्टून्स नहीं छपने पर दुख जताया।  दरअसल इस किताब में 150 कार्टून्स हैं और इनमें कहीं भी सीताराम येचुरी नहीं दिखाई देते हैं। लेकिन ये भी सही है की जो सत्ता में होते हैं या जिनके पास अधिकार होते हैं उन पर कार्टून ज्यादा बनते हैं।

पुरानी कहावत है एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है और नई कहावत ये है कि अगर वो तस्वीर कार्टून हो तो उसकी कीमत लाख शब्दों के बराबर हो जाती है। क्योंकि हंसी हंसी में कार्टून सत्ता और सत्तधारियों पर तीखे प्रहार करता है और कोई उसका बुरा भी नहीं मानता। कार्टून की यही ताकत है जो कार्टूनिस्ट को और पत्रकारों के मुकाबले और कड़े तरीके से अपनी बात कहने का मौका देती है। मूर्तियों से लेकर नेताओं के एक एक बयान को बारीकी से सुनने वाले चुनाव आयोग के लिए ये कार्टून क्या मायने रखते हैं और क्या कार्टून के जरिए कही जा रही बात पर भी उनकी नजर रहती है जैसे मसलों पर मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना था कि एस. वाय कुरैशी साहब का कहना था कि कई बार उन पर भी कार्टून बनते हैं और वो इन्हें बहुत पंसद भी करते हैं। जहां तक नजर रखने की बात है तो कार्टून्स इस दायरे में नहीं आते। अलबत्ता तैलंग कभी चुनाव लड़ेंगे तो उन पर नजर रखी जाएगी। चुनाव में गंभीर दिखने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त भी हंसी मजाक के इस माहौल में अलग अंदाज में ही दिखे।



सुधीर तैलंग की लिए तीन politician किसी वरदान से कम नहीं रहे जिन पर उन्होंने सबसे ज्यादा कार्टून्स बनाए। पहले पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहराव दूसरे लालू प्रसाद यादव और तीसरे लालकृष्ण आडवाणी। तैलंग ने अपनी किताब India for Sale के लांच पर ये बात में यहां मौजूद लोगों से साझा की कि इन सभीको उनके कार्टून्स बहुत पसंद आते हैं और आडवाणी ये तो अपने published कार्टून्स की original copy भी उनसे मांगते हैं। इस कार्यक्रम में उनकी बेटी प्रतिभा आडवाणी भी मौजूद थी वो इन कार्टून्स के बारे में क्या सोचती है और क्या कभी कोई कार्टून उन्हे ठेस भी पहुंचाता है जैसे मसलों पर उनसे बात हुई। प्रतिभा का कहना है की उनके पिता इन कार्टून्स को बहुत पसंद करते हैं और कार्टून्स बेहद असरदार भी होते है लेकिन कभी इनका बुरा नहीं लगता। अगर कार्टूनिस्ट करारा कार्टून नहीं बनाएगा तो फिर मजा कैसे आएगा।

बेशक कुछेक ही कार्टूनिस्ट लोगों के जेहन में अपनी छाप छोड़ पाते हैं लेकिन कार्टून्स के जबरदस्त असर को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। आर के लक्ष्मण बिना किसी पर सीधी टिप्पणी किए भी अपनी बात को बहुत असरदार तरीके से कह जाते थे। सुधीर तैलंग का अपना अंदाज है और वो तीखे प्रहार भी इस तरीके से करते हैं कि उनके शिकार politicians भी हंस कर अपने दर्द को छिपाते हैं। फिर भी पत्रकारिता का ये बेहतरीन औजार धीरे धीरे अपनी धार खो रहा है क्योंकि न तो अब वो कार्टूनिस्ट हैं जो इस कला का सही इस्तेमाल कर पाए और न ही उनकी कदर करने वाले अखबार ही बचे हैं। अपने इस दर्द को भी सुधीर तैलंग ने यहां मौजूद लोगों के साथ बांटा।

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