सोमवार, 27 जून 2011

इंसानियत की राह में धर्म के गतिरोधक.

 इंसान  ने अपनी पृकृति प्रदत्त नैसर्गिक वौद्धिक बढ़त से जब पृथ्वी पर थलचरों ,जलचरों और नभचरों पर विजय हासिल की  होगी तो उसके सामने नित नई-नई प्राकृतिक ,कबीलाई और पाशविक वृत्तियों की  चुनौतियां भी आयीं  होगी.पहिये और आग के आविष्कार से लेकर परिवार,कुटुंब,समाज,राष्ट्र और 'वसुधेव कुटुम्बकम' तक आते -आते इंसान जागतिक स्तर पर भौतिकवादी,ईश्वरवादी,अनीश्वरवादी,भोगवादी,अपरिग्राहवादी,करुनावादी और प्रुकृतिवादी बन बैठा होगा.
पुरातन पाषाण कालीन बर्बर आदिम कबीलाई समाजों ने भोगौलिक और अन्यान्य कारणों से जब आग,पानी,हवा,समुद्र,नदियाँ ,पर्वतों से हार मानी होगी तभी वह किसी अदृश्य अबूझ अलौकिक परा शक्ति के चक्कर में पड़ा होगा. इस पृष्ठभूमि पर आधारित धर्मों-दर्शनों के पास अपनी प्रकृति निष्ठता का अवदान मौजूद है.इन प्राचीन धर्म-दर्शनों में मानवीय उदात्त आदर्शों ,त्याग,बलिदान और समस्त संसार को सुखमय -निर्भय करने का अतुलनीय आह्वान किया गया है.इन प्राचीन धर्मों में 'सनातन-भारतीय-वैदिक धर्म' पारसी धर्म,और यहूदी धर्म प्रमुख है.
    कहने को भारत समेत अखिल विश्व में  दर्जनों धर्म -मजहब हैं किन्तु वे सभी अपनी -अपनी परिधि में किसी खास गुरु,पैगम्बर,या उसके संस्थापक की शिक्षाओं पर केन्द्रित रहते हुए ,निरंतर आक्रामक रहते हैं.क्योकि उन्हें  अपने धर्म मज़हब की जीवन्तता के अलावा उससे जुड़े अन्य सरोकारों की निरंतर फ़िक्र रहती है. कुछ धर्म मजहब तो पूर्ण रूपेण शस्त्र आधारित रहे हैं.कुछ ही हैं जिन्होंने अपने पूर्ववर्ती प्राचीन धर्मों की शास्त्र परम्परा की नक़ल की है.
 जो मध्य युगीन सामंती दौर के धर्म मज़हब हैं उनमें अपने  कुटुंब और समाज की रक्षा हेतु किया गए सांसारिक प्रयासों का अवदान निहित है.पहले वाले पुरातन धर्म-दर्शन खास तौर से भारतीय सनातन धर्म का ऐलान थ कि;-

    
  अयं निजः परोवेति  गणना  लघु चेतसाम !
 उदार चरितानाम तू वसुधैव कुटुम्बकम !!

प्राचीन वैदिक ऋषि कहता है:-

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया !
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ,माँ कश्चिददुख्भागवेत !!

 भारतीय 'सनातन धर्म'जिसे कतिपय विदेशी आक्रान्ताओं और विधर्मियों ने  हिन्दू धर्म' बना दिया है
आज न केवल स्वयम अपने ही नादान अनुशरण कर्ताओं से बल्कि अपने अनुषंगी उप्धर्मों से परेशान है.दुनिया में कुछ धर्म केवल आतंक और उन्माद की शक्ल अख्त्यार कर चुके हैं वे भी भारत में आने के बाद तो और ज्यादा ही आक्रामक और कंजर्वेटिव हो गए हैं.इन सभी मध्ययुगीन व्यक्ति आधारित धर्म-मज्हवों के निरंतर प्रहारों से  दुनिया के प्राचीन धमों{हिन्दू,यहूदीइत्यादि}ने भी अतीत के आदर्शवाद,पुन्य्वाद,मानवतावाद और करुना-प्रेम के सिद्धांतों को परे धकेल दिया हैजो धर्म अपने अनुयाइयों को सुबह -सुबह प्रार्थना में सिखाता था कि "सभी सुखी हों -सभी निरोगी हों'  वह अब  तिजारत,सियासत और प्रतिहिंसा का कीर्तीमान गढ़ रहा है.

    आज धरम मजहब के नाम पर सरकारी जमीन और भोली भाली जनता को सरे आमलुटते  देखा जा सकता है. आजादी के बाद पाकिस्तान से भागकर आने वालों में धार्मिक कट्टरता का असर होना लाजिमी  था किन्तु ततकालीन नेहरु सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया कि जो लोग पाकिस्तान से विस्थापित होकर आ रहे हैं वे सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा कर कालोनियां काट कर अरब पति बनजायेंगे.साथ ही जहां सड़क बनने की योजना थी   वहाँ मंदिर,मस्जिद,चर्च,और गुरुद्वरा बना कर जनता और देश के विकाश में निरंतर बाधाएँ खडी करेंगे.
  आज देश के हर शहर में जबकि  जमीनों के भाव आसमान पर हैं और विकाश के लिए सड़कों का चौडीकरण नितांत आवश्यक है ,ऐंसे में कुछ धर्मांध और स्वार्थी लोगों कि पूरी कोशिश रहती है कि भले सड़क का काम सालों -साल रुका रहे,लेकिन उनके पूजा स्थल[मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा,चर्च}को आंच नहीं आना चाहए.आज कोई भी आकर देख ले मेरे शहर इंदौर में ये बीभत्स नज़र आज भी मौजूद है.
               इंदौर के किनारे से होकर एक राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरा है जिसे आगरा-बाम्बे रोड कहते हैं.
राज्य सरकार ,केंद्र सरकार और स्थानीय प्रशाशन के संयुक्त प्रयाशों से [सभी राजनैतिक पार्टियों के सहयोग से}यह रोड बी आर टी एस योजनान्तर्गत सिक्स लेन किया जा रहा है.यह काम लगभग चार सालों से चल रहा है इस रोड के चोड़ीकरण  में अरबों रूपये खर्च हो चुके हैं.यह देवास से महू तक कुछ इस प्रकार बंना है कि शहर की दुर्दशा हो रही है.इस रीड पर जहां कहीं मंदिर थे {जैन और हिन्दू} वे तो हटा दिए गए किन्तु जहां कहीं मस्जिद और गुरुद्वारा हैं उन्हें बीच सड़क पर ज्यों
का त्यों छोड़कर सड़क कहीं बहुत चौड़ी तो कहीं इतनी सकरी बनाई गई   है कि अतिक्रमण स्पष्ट नज़र आता है. हजार मिन्नत खुशामद के बावजूद ये धर्म स्थल हट नहीं प् रहे हैं.
    क्या मंदिर ,मस्जिद,गुरुद्वारा  बीच सड़क पर होना जरुरी है?तरक्की और आम आदमी की सुविधा के लिए यदि सड़क चौड़ी हो जायेगी तो कोनसा धर्म कहता है कि नहीं हमें तो सड़क नहीं बीच सड़क पर अपने धर्म की दूकान चलाना है.
    हम तो धरम के ठेकेदार हैं,हमें बड़ा मज़ा आता है जब कलेक्टर-एसपी हमारी चिरोरी करते हैं.और हम उन्हें दुत्कार कर दंगा भड़काने की धमकी देते हैं. यही पर अमन पसंद नागरिक ,धर्मनिरपेक्ष नागरिक को नरेंद्र मोदी भाने लगता है.गुजरात में साम्प्रदायिक उन्माद को किसी ने सही नहीं नहीं माना किन्तु पूरे गुजरात में सभी धर्मस्थलों को सड़कों से हटाने में नरेंद्र मोदी जी ने जिस धर्मनिरपेक्षता का शिद्दत से पालन किया क्या शिवराजसिंह चौहान को मध्य प्रदेश और खास तौर से इंदौर में लागू करने के लिए किसी के हुक्म की दरकार है ?
           क्या धर्मस्थलों को सड़क किनारेया बीच सड़क पर  ही होना जरुरी है?धर्म मज़हब क्या हठधर्मिता का ही दूसरा नाम है?
          बच्चा बोला देखकर मस्जिद [मंदिर,गुरुद्वरा,चर्च] आलीशान!
         एक अकेले खुदा का ,इतना बड़ा  मकान!!!



    क्या बंनाने आये थे ?क्या बना बैठे? कहीं मंदिर बना बैठे ,कहीं मस्जिद बना बैठे!
    हमसे तो परिंदे अच्छे ,जो कभी मंदिर पै जा बैठे,कभी मस्जिद पै जा बैठे!!
  
          श्रीराम तिवारी

2 टिप्‍पणियां:

  1. इंदौर ही नहीं सभी जगह एक ही आलम है.पूजा पद्धति और उपासना स्थल युद्ध /संघर्ष के वाहक हो रहे हैं वे धर्म नहीं हैं.जैसा आपने इशारा किया प्र्रचीन धर्म समष्टिवादी ही है.

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  2. dhanywad mathur saheb aapki prernaaspad tippniyaan hosla badhatee hain.

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