जब -जब इस धरती पर कोई नया भौतिक आविष्कार हुआ ,इंसान को लगा कि 'दुःख भरे दिन बीते रे भैया ,अब सुख आयो रे' इसी तरह जब-जब किसी निठल्ले आदमी ने धर्म-अध्यात्म के कंधेपरचढ़करअपनी शाब्दिक लफ्फाजी से समाज में आदर्श राज्यव्यवस्था स्थापित करने और परिवर्ती व्यवस्था
को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया तो तत्कालीन समाज के सकरात्मक परिवर्तनों की प्रक्रिया को ठेस पहुंची.मानव सभ्यताओं के राजनैतिक इतिहास में इन दोनों घटनाक्रमों के अंतहीन सिलसिले का ही परिणाम है आज की विश्व व्यवस्था.भारत के ज्ञात इतिहास का निष्कर्ष भी यही है.जब-जब धर्म और अध्यात्म ने राजनीति में हस्तक्षेप किया तब-तब अन्याय और अत्याचार में ,शोषण के सिलसिले में तेजी से बृद्धि होती चली गई.कई बार तो भारत [भरतखंड या जम्बू द्वीप]को इस वाहियात मक्कारी से पराजय का मुख देखना पड़ा.
मुहम्मद -बिन-कासिम ने जब सोमनाथ पर आक्रमण का ऐलान किया तो तत्कालीन गुर्जर नरेश
सौराष्ट्र वीर भीमसेन देव ने सोमनाथ की रक्षा का संकल्प व्यक्त किया.उनके निकट सहयोगी आचार्य गंग भद्र ने उन्हें युद्ध से विमुख करने की वह एतिहासिक गलती की जो बाद में भारत की बर्बादी का सबब बनी.सोमनाथ मंदिर के पुजारियों ने और आचार्य गंग भद्र ने यह विश्वाश व्यक्त किया था कि जो भगवान् सोमनाथ सारे संसार की रक्षा कर सकता है ,क्या वह अपनी स्वयम की रक्षा नहीं कर सकेगा? जैसा की सारे संसार को मालुम है कि न केवल मुहम्मद-बिन-कासिम बल्कि उसके बाद मुहम्मद गौरी , गजनवी और मालिक काफूर ने भरपल्ले से न केवल सोमनाथ न केवल काशी,मथुरा,द्वारका,अयोध्या बल्कि सुदूर दक्षिण में मह्बलिपुरम से लेकर देवगिरी तक भारत की अत्यंत समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यत्मिक धरोहर को कई-कई बार लूटा.इसके मूल में विजेताओं की भोग लिप्सा और उनकी जहालत को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है किन्तु विजित कौम भी अपने तत्कालीन तथाकथित 'दंड-कमंडल'या संघम शरणम् गच्छामि के अपराध से मुक्त नहीं हो सकती.
इन दिनों भारत में वही २ हजार साल पुरानी खडताल बजाई जा रही है,जिसमें कोरी शाब्दिक लफ्फाजी और मक्कारी के अलावा कुछ भी नहीं है.जबकि निकट पश्चिम में काल- व्याल कराल
के रूप में 'हत्फ' गौरी" गजनी'जैसे मिसाइल लांचर और घातक परमाणु बमों के जखीरे तैयार हो रहे हैं. यहाँ भारत कि जनता को धरम कीर्तन और नाटक-नौटंकी में उलझाया जा रहा वहाँ पाकिस्तान में साम्प्रदायिक तत्वों की कोशिश है कि न केवल पाकिस्तान में बल्कि समूचे भारतीय उप महाद्वीप में उनके मंसूबे कामयाब हों.बहरहाल तो अमेरिका के पाकिस्तान में घुसकर ओसामा को मार देने से भारत विरोध की जगह अमेरिका विरोध अन्दर-अन्दर सुलगने लगा है.भारत के प्रति पाकिस्तान की अमनपसंद जनता का रुख कुछ मामूली सा द्रवित हुआ है.किन्तु भारत में अमूर्त सवालों को लेकर कोहराम मचा हुआ है ,विदेशी हमलों से निपटने का जज्वा नदारत है. भारतीय मीडिया ने क्रिकेट की तरह सारे संसार में अपने वैभव का लोहा मनवाने का बीजमंत्र खोज लिया है.वह कभी भ्रस्टाचार को ,कभी सत्ता पक्ष को,कभी विपक्ष को,कभी भ्रुस्ट व्यवस्था को,कभी अन्ना एंड कम्पनी के जंतर-मंतर पर ज़न-लोकपाल विधेयक कि मांग को लेकर किये गए अनशन को और कभी दिल्ली के रामलीला मैदान में अभिनीत 'बाबा रामदेव के योग से राजनीती की और परिभ्रमण 'के प्रहसन को ,एक अद्द्य्तन प्रोडक्ट के रूप में संपन्न माध्यम वर्ग और साम्प्रदायिक तत्वों के समक्ष परोसने में जुटा है. बाबा रामदेव के वातावरण प्रदूश्नार्थ उबाऊ ,चलताऊ भाषणों और उनके पांच सितारा नकली सत्याग्रह को तमाम इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने लगातार महिमा मंडित करने की मानो शपथ ले रखी है.दूसरी ओर इसी दिल्ली में २३ फरवरी २०११ को देश भर से आये १० लाख नंगे भूंखे मजदूर-किसान और शोषित सर्वहारा न तो इस बिकाऊ मीडिया को दिखे और न ही अन्न्जी या रामदेव को दिखे.
रामदेव यदि बाबा या स्वामी होते तो अनशन को सत्याग्रह में क्यों बदलते?पतंजलि योगसूत्र के स्वद्ध्याय से क्रमिक विकाश की मंजिल राजनीती की गटर गंगा नहीं होती -समझे बाबा रामदेव!यम ,नियम,आसन,प्रत्याहार,प्राणायाम ,ध्यान,धारणा और समाधी में से आप किसी एक को ही आजीवन करते रहेंगे तो दोई दीन से जायेंगे.क्योंकि अष्टांगयोग एक सम्पूर्ण विधा और ब्रहम विद्द्या है ,आप अकेले लोम-विलोम या शारीरिक आसनों को योग बताकर भारत के सम्पूर्ण योग शाश्त्रों का मखौल उड़ा रहे हैं अस्तु आप न तो योगी हैं और न स्वामी ,आप केवल नट-विद्द्या और शाब्दिक राष्ट्रवादी लफ्फाजी में सिद्धहस्त हैं .आप कभी भारत स्वाभिमान,कभी विदेशी वस्तू बहिष्कार,कभी
आयुर्वेद बनाम एलोपैथी का विरोध,कभी विदेशी बैंकों में जमा काला धन और अब ४ जून २०११ को पूर्व लिखित स्क्रिप्ट अनुसार आपने ऐंसी तमाम मांगें रामलीला मैदान में बखान की कि बरबस ही वाह!वाह!कहना पड़ा.तब तो आपने हद ही कर दी जब 'व्यवस्था परिवरतन'का नारा दे दिया .अब यह तो सारा संसार जानता है कि इसका तात्पर्य होता है 'क्रांति' जो कि साम्यवादियों,समाजवादियों,नक्सलवादियों और मओवादिओं का पेटेंट है. मान गए बाबा रामदेव आपने संघ परिवार को तो पहले से ही साध रखा थाकिन्तु कांग्रेस को साधने में गच्चा खा गए. बाबा रामदेव ने वही गलती की जो एक बन्दर ने की थी और नाई कीदेखा देखी अपने हाथों अपनी गर्दन काट ली थी.रामदेव इतने मूर्ख हो सकते हैं ये तो जनता को तब मालूम
पड़ा जब कपिल सिब्बल ने आचार्य बालकृष्ण का हस्ताक्षक्षारित सहमती पत्र मीडिया के सामने खोला.उस पत्र के खुलासे ने न केवल बाबाजी के चटुकारकरता-धर्ता बल्कि मीडिया भी अब बाबाजी की जड़ें खोदने में जुट गया है. ,अबबाबा जी के नकली सत्याग्रह की कहानिया चठ्कारे लेकर लिखी जाएँगी.पढ़ी भी जाएगी. ४ जून से २० जून २०११ तक दिल्ली के रामलीला मैदान में पूर्वानुमति से और पूर्ण सहमती से कांग्रेस और केंद्र सरकार को साधकर ही बाबा रामदेव ने ये नकली सत्याग्रह किया है .अब तक परिस्थतियों ने कांग्रेस और खास तौर से दिग्विजय सिंह का साथ दिया है.उन्होंने बाबा पर और बाबा के शुभ चिंतकों पर जो-जो आरोप लगाये थे वे सहज ही सच सवित होते जा रहे हैं.
पड़ा जब कपिल सिब्बल ने आचार्य बालकृष्ण का हस्ताक्षक्षारित सहमती पत्र मीडिया के सामने खोला.उस पत्र के खुलासे ने न केवल बाबाजी के चटुकारकरता-धर्ता बल्कि मीडिया भी अब बाबाजी की जड़ें खोदने में जुट गया है. ,अबबाबा जी के नकली सत्याग्रह की कहानिया चठ्कारे लेकर लिखी जाएँगी.पढ़ी भी जाएगी. ४ जून से २० जून २०११ तक दिल्ली के रामलीला मैदान में पूर्वानुमति से और पूर्ण सहमती से कांग्रेस और केंद्र सरकार को साधकर ही बाबा रामदेव ने ये नकली सत्याग्रह किया है .अब तक परिस्थतियों ने कांग्रेस और खास तौर से दिग्विजय सिंह का साथ दिया है.उन्होंने बाबा पर और बाबा के शुभ चिंतकों पर जो-जो आरोप लगाये थे वे सहज ही सच सवित होते जा रहे हैं.
भोली भाली देश भक्त जनता जो कि भ्रष्टाचार से आजिज आकर किसी अवतार या क्रांति कि तलबगार हो चुकी थी उसे एक बार फिर उल्लू बनाया गया और बनाने वाले भले ही रंगे हाथ पकडे गए किन्तु धन-दौलत को मान -सम्मान से ऊँचा समझने वाले बाबा रामदेव आप ! वाकई आज इस भारत भूमि पर सबसे बड़े वैश्विक कलाकार हो.आपके उज्जवल भविष्य की शुभकामनाओं के साथ ,क्रांति के लिए वेस्ब्री से इन्तजार करता आपका एक चिर आलोचक विनम्र निवेदन करता है किअपने गुनाहों को छिपाने के लिए धर्म -अध्यात्म और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को दांव पर न लगायें.धन्यवाद. आपके दकियानूसी भाषणों और कोरी राष्ट्रवादी लफ्फाजी से आहात आपका एक चिर आलोचक.
श्रीराम तिवारी
श्रीराम तिवारी
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