बाबा रामदेव को दिल्ली पुलिस द्वारा हेलीकाप्टर से वाया देहरादून उनके हरिद्वार स्थित दड्वे तक ससम्मान पहुंचाए जाने पर देश के तमाम विपक्षियों को केंद्र सरकार पर हमला करने का कोई औचित्य नहीं था. निसंदेह ४-५ जून २०११ की अर्धरात्रि को रामलीला मैदान में जो कुछ हुआ उसको किसी ने भी उचित और तार्किक नहीं माना.माओवादियों से लेकर नरम वामपंथियों ने और गरम धर्मांध धडों से लेकर वसपा,सपा,जद ,अकाली,और भाजपा ने अपनी -अपनी समझ औरयोग्यतानुसार
प्रतिक्रिया व्यक्त की थी.अब बाबाजी को ३-४ दिनों में अनशन पर रहते हुए जबरन देहरादून के अस्पताल में ले जाया गया है.बाबाजी शीघ्र स्वस्थ हों ,दीर्घायु हों और फिर से देश और समाज की सेवा में जुटें इस आशा और विश्ववास के साथ उनके द्वारा खड़े किये गए ११७३६ करोड़ के विशाल आर्थिक साम्राज्य की भी में वंदना करता हूँ.
मेने न केवल बाबा रामदेव ,न केवल अन्ना हजारे अपितु यदा-कदा जिस किसी भी गैर राजनैतिक व्यक्ति या संगठन ने सामाजिकता, साम्प्रदायिकता या आध्यात्मिकता का मुखौटा लगाकर अपनी लक्ष्मण रेखा को पार किया है,सदैव उसकी मुखालफत ही की है.हिंदी साहित्य के महान आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार वर्तमान दौर के सत्ता विरोधी संघर्ष की अगुवाई करने वाले दो स्वयम्भू योद्धा -अन्ना हजारे और स्वामी रामदेव निषेध की नकारात्मकता के प्रतिनिधि कहे जा सकते हैं.शुक्लजी ने श्रद्धा और प्रेम में जो अन्तर रेखांकित किया था वह यदि कोई भौतिक रूप से साकार देखना चाहता हो तो "अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के चरित्र-व्यक्तित्व-कृतित्व"का तुलनात्मक अध्यन करे.अन्ना हजारे में लोगों की श्रद्धा सहज ही उत्पन्न होती गई और बाबा रामदेव {उनकी संपत्ति से} से प्रेम करने वाले जुड़ते चले गए.
यहाँ यह बताने की जरुरत नहीं कि श्रद्धा में व्यापार या लेनदेन नहीं होता और किसी खास व्यक्ति या विचाधारा में यदि अन्य लोग भी श्रद्धा रखते हैं तो किसी को उज्र नहीं होता.प्रेम एकांगी होता है प्राणी मात्र जिससे प्रेम करता है वह नहीं चाहता कि उसके अभीष्ट से कोई और भी प्रेम करे.प्रेम में लेन-देन चलता है.वह भौतिक और आध्यात्मिक या सामाजिक और राजनैतिक किसी भी रूप में हो सकता है.
आजादी के बाद से ही जहां देश में शोषण की ताकतें और मजबूत हुई हैं वहीं शोषित जनों की तादाद बढ़ी है .शोषितों ने संगठित संघर्ष निरंतर चलाये हैं.असंगठित वर्ग को भी संगठित करने का काम देश के विशाल ट्रेडे यूनियन आन्दोलन ने किया है और आज जो भी देश में सकारात्मक तत्व जिन्दा हैं वे सब इन्ही महान संघर्षों के अनवरत सिलसिले का परिणाम है.प्रजातंत्र और उसके चारों स्तंभों को मजबूत करने में भी देश की ईमानदार ,मेहनत कश जनता ने अनेकों कुर्वानियाँ दीं हैं.चूँकि सोवियत पराभव से दुनिया में पूंजीवाद को चुनौती कहीं पर नहीं थी अतेव भारत के सर्वहारा वर्ग के संघर्षों को देश में पूंजीवादी व्यवस्था जन्य"भृष्टाचार ,महंगाई और आभाव" को पराजित नहीं किया जा सका. परिणाम स्वरूप आम जनता के बीच मौजूद जन-बैचेनी को पूंजीवाद ने बड़ी चतुराई और चालाकी से अपने पालतू बाबाओं और तथा कथित उज्जवल -धवल चरित्रों {अन्ना और रामदेव जैसे }की ओर ठेल दिया .इसमें पूंजीवाद ने अपने मानस पुत्र हिंदी मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया.अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओँ ने फिर भी संयम दिखाया.
मेरी नजर में बाबा रामदेव या अन्ना हजारे से श्री लाल कृष्ण आडवानी और बुद्धदेव भट्टाचार्य ज्यादा जिम्मेदार ,ज्यादा देशभक्त ,ज्यादा वुद्धिमान और ज्यादा ईमानदार हैं.भले ही इन दोनों राजनीतिज्ञों की विचारधारा में ३६ का आंकड़ा है किन्तु इन दोनों ने अपनी दीर्घायु में देश और समाज को कभी अपने खुद के स्वार्थ के लिए कभी नहीं ठगा.जितना सम्भव हुआ अपने -अपने ढंग से देश और समाज के लिए निरंतर संघर्ष किया.अब यदि कोई बाबा या समाज सुधारक देश में अवतरित होकर कहे कि सारे राजनीतिग्य भ्रष्ट हैं और सबने विदेशों में कला धन जमा करा रखा है सो हम अनशन या सत्याग्रह करके उसे देश में लायेंगे और देश में भृष्टाचार के लिए अमुक व्यक्ति जिम्मेदार है अतः जब तक वो हमारे चरणों में लोट नहीं लगता ,हमारा अनशन{नाटक}जारी रहेगा.
मेने सिर्फ दो नेताओं के नाम दिए हैं ऐंसे हर पार्टी में हैं और कम से कम कांग्रेस -भाजपा और माकपा में तो जरुर हैं.क्योकि इन पार्टियों के अपने संविधान और मेनिफेस्टो भी होते हैं ,जिनके अनुसार समय समय पर बड़े से बड़े नेता को बाहर का दरवाजा देखना पड़ता है.माकपा के सोमनाथ हों या भाजपा के जश्वन्तसिंह कांग्रेस के अर्जुनसिंह एक बार बाहर होकर अन्दर बड़ी मुश्किल से लौट पाए किन्तु अपना सब कुछ लुटाकर.आज भले ही आडवानी जी 'पी एम् इन वेटिंग' ही हैं और बुद्धदेव सातवीं बार राईटर्स बिल्डिंग में लाल झंडा फहराने में विफल रहे हों किन्तु उनके विचार कभी भी कालातीत
नहीं होंगे.भाजपा और माकपा को किसी अन्ना या रामदेव को फालो न करते हुए अपने स्वयम के स्टैंड लेना चाहिए.
यहाँ यह बताने की जरुरत नहीं कि श्रद्धा में व्यापार या लेनदेन नहीं होता और किसी खास व्यक्ति या विचाधारा में यदि अन्य लोग भी श्रद्धा रखते हैं तो किसी को उज्र नहीं होता.प्रेम एकांगी होता है प्राणी मात्र जिससे प्रेम करता है वह नहीं चाहता कि उसके अभीष्ट से कोई और भी प्रेम करे.प्रेम में लेन-देन चलता है.वह भौतिक और आध्यात्मिक या सामाजिक और राजनैतिक किसी भी रूप में हो सकता है.
आजादी के बाद से ही जहां देश में शोषण की ताकतें और मजबूत हुई हैं वहीं शोषित जनों की तादाद बढ़ी है .शोषितों ने संगठित संघर्ष निरंतर चलाये हैं.असंगठित वर्ग को भी संगठित करने का काम देश के विशाल ट्रेडे यूनियन आन्दोलन ने किया है और आज जो भी देश में सकारात्मक तत्व जिन्दा हैं वे सब इन्ही महान संघर्षों के अनवरत सिलसिले का परिणाम है.प्रजातंत्र और उसके चारों स्तंभों को मजबूत करने में भी देश की ईमानदार ,मेहनत कश जनता ने अनेकों कुर्वानियाँ दीं हैं.चूँकि सोवियत पराभव से दुनिया में पूंजीवाद को चुनौती कहीं पर नहीं थी अतेव भारत के सर्वहारा वर्ग के संघर्षों को देश में पूंजीवादी व्यवस्था जन्य"भृष्टाचार ,महंगाई और आभाव" को पराजित नहीं किया जा सका. परिणाम स्वरूप आम जनता के बीच मौजूद जन-बैचेनी को पूंजीवाद ने बड़ी चतुराई और चालाकी से अपने पालतू बाबाओं और तथा कथित उज्जवल -धवल चरित्रों {अन्ना और रामदेव जैसे }की ओर ठेल दिया .इसमें पूंजीवाद ने अपने मानस पुत्र हिंदी मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया.अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओँ ने फिर भी संयम दिखाया.
मेरी नजर में बाबा रामदेव या अन्ना हजारे से श्री लाल कृष्ण आडवानी और बुद्धदेव भट्टाचार्य ज्यादा जिम्मेदार ,ज्यादा देशभक्त ,ज्यादा वुद्धिमान और ज्यादा ईमानदार हैं.भले ही इन दोनों राजनीतिज्ञों की विचारधारा में ३६ का आंकड़ा है किन्तु इन दोनों ने अपनी दीर्घायु में देश और समाज को कभी अपने खुद के स्वार्थ के लिए कभी नहीं ठगा.जितना सम्भव हुआ अपने -अपने ढंग से देश और समाज के लिए निरंतर संघर्ष किया.अब यदि कोई बाबा या समाज सुधारक देश में अवतरित होकर कहे कि सारे राजनीतिग्य भ्रष्ट हैं और सबने विदेशों में कला धन जमा करा रखा है सो हम अनशन या सत्याग्रह करके उसे देश में लायेंगे और देश में भृष्टाचार के लिए अमुक व्यक्ति जिम्मेदार है अतः जब तक वो हमारे चरणों में लोट नहीं लगता ,हमारा अनशन{नाटक}जारी रहेगा.
मेने सिर्फ दो नेताओं के नाम दिए हैं ऐंसे हर पार्टी में हैं और कम से कम कांग्रेस -भाजपा और माकपा में तो जरुर हैं.क्योकि इन पार्टियों के अपने संविधान और मेनिफेस्टो भी होते हैं ,जिनके अनुसार समय समय पर बड़े से बड़े नेता को बाहर का दरवाजा देखना पड़ता है.माकपा के सोमनाथ हों या भाजपा के जश्वन्तसिंह कांग्रेस के अर्जुनसिंह एक बार बाहर होकर अन्दर बड़ी मुश्किल से लौट पाए किन्तु अपना सब कुछ लुटाकर.आज भले ही आडवानी जी 'पी एम् इन वेटिंग' ही हैं और बुद्धदेव सातवीं बार राईटर्स बिल्डिंग में लाल झंडा फहराने में विफल रहे हों किन्तु उनके विचार कभी भी कालातीत
नहीं होंगे.भाजपा और माकपा को किसी अन्ना या रामदेव को फालो न करते हुए अपने स्वयम के स्टैंड लेना चाहिए.
भाजपा को या किसी भी विपक्षी पार्टी को यह उचित नहीं की किसी एक गैर राजनैतिक व्यक्ति या संगठन के द्वारा जमाई गई जाजम पर था -था थैया करे,
भाजपा नीत एन ड़ी ऐ गठबंधन को भृष्टाचार के मुद्द्ये पर पूरे देश में या दिल्ली के राजघाट पर नाचने कून्दने की जरुरत नहीं ,क्योंकि अटल सरकार ने अपने ६ साल के क्रूर कार्यकाल में ६ पैसे का काला धन विदेशों से वापिस लाने में रूचि नहीं दिखाई .अब जबकि अन्ना और रामदेव ने आम जनता में न केवल सत्ता पक्ष {यु पी ऐ}बल्कि भाजपा सहित सम्पूर्ण विपक्ष को अप्रासंगिक बना दिया तो उन सम्वैधानैतर सत्ता अभिलाषियों की भीड़ जुटाऊ भूमिका पर फ़िदा हो रहे हैं.इतिहास साक्षी है की हिटलर मुसोलनी ,लेक बालेसा,खुमैनी ,भिंडरावाला,प्रभाकरण और पोप ने जब कभी सत्ता या प्रतिष्ठा पाई है तो उसकी परवरिश करने वाले संवैधानिक सत्ता केंद्र और राजनीतिक संगठनो की भूमिका अनिवार्य रही है .भारत में प्रजातंत्र को चुनौती देने वाले नक्सलवादियों और धर्म-आदर्शवाद के धपोर्शंखियों -व्यक्तिवादियों को जन समर्थन उतना नहीं है जितना की मीडिया बता रहा है ,हाँ!यदि भाजपा या विपक्ष चाहे तो इन बाबाओं या गैर जिम्मेदार राजनीतिज्ञों को हीरो बनाकर देश की तकदीर बदल सकती है.भले ही वो तस्वीर वर्तमान से भी ज्यादा बदरंग हो .
श्रीराम तिवारी
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