"आज नई दिल्ली में शाम के पांच बजकर सत्रह मिनिट पर , राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या हो गई " उनका हत्यारा एक हिन्दू है ' वह एक ब्राम्हण है ' उसका नाम नाथूराम गोडसे है ' स्थान बिरला हॉउस ..........ये आल इंडिया रेडिओ है ........{पार्श्व में शोक धुन }......
उस वैश्विक शोक काल में तत्कालीन सूचना और संचार माध्यमों ने जिस नेकनीयती और मानवीयता के साथ सच्चे राष्ट्रवाद का परिचय दिया वह भारत के परिवर्ती-सूचना और संचार माध्यमों का दिक्दर्शन करने का प्रश्थान बिंदु है. यदि गाँधी जी का हत्यारा कोई अंग्रेज या मुस्लिम होता तो भारतीय उपमहादीप की धरती रक्तरंजित हो चुकी होती. तमाम आशंकाओं के बरक्स आल इण्डिया रेडिओ और अखवारों की तात्कालिक भूमिका के परिणाम स्वरूप देश एक और महाविभीशिका से बच गया .........
लेरी कार्लिस और डोमनिक लेपियर द्वारा १९७५मे लिखी पुस्तक 'फ्रीडम एट मिडनाइट' में भारतीय स्वाधीनता संग्राम की आद्योपांत कहानी का वर्णन है ...इसमें गांधी जी की हत्या का विषद और प्रमाणिक वर्णन भी है .....
मोहनदास करमचंद गाँधी के जीवन का अंतिम दिन -की दिन चर्या में सूर्योदय से पहले लगभग ०३.३० बजे उनका जागना और ईश्वर आराधना .दोपहर के आराम के बाद वे १०-१२ प्रतीक्षारत आगंतुको से मिले ,बातचीत की .अंतिम मुलाकाती के साथ चर्चा उनके लिए घोर मानसिक वेदना दायक रही .वे अंतिम मुलाकाती थे सरदार वल्लव भाई पटेल . उन दिनों पंडित जी और पटेल के बीच नीतिगत मतभेद चरम पर थे . पटेल तो संभवत: नेहरु मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देने के मूड में थे ; लेकिन गांधीजी उन्हें समझा रहे थे कि यह देश हित में नहीं होगा .
गांधीजी ने समझाया कि नवोदित स्वाधीन भारत के लिए यह उचित होगा कि तमाम मसलों पर हम तीनो -याने गांधीजी .नेहरूजी और पटेल सर्वसम्मत राय बनाए जाने कि अनवरत कोशिश करेंगे .आपसी मतभेदों में वैयक्तिक अहम् को परे रखते हुए देश को विश्व मानचित्र पर पहचान दिलाएंगे .पटेल से बातचीत करते समय गांधीजी कि निगाह अपने चरखे और सूत पर ही टिकी थी .जब बातचीत में तल्खी आने लगी तो मनु और आभा जो श्रोता द्वय थीं ,वे नर्वस होने लगीं ,लगभग ग़मगीन वातावरण में उन दोनों ने गांधीजी को इस गंभीर वार्ता से न चाहते हुए भी टोकते हुए याद दिलाया कि प्रार्थना का समय याने पांच बजकर दस मिनिट हो चुके हैं .
पटेल से बातचीत स्थगित करते हुए गांधीजी बोले 'अभी मुझे जाने दो. ईश्वर कि प्रार्थना-सभा में जाने का वक्त हो चला है ' आभा और मनु के कन्धों पर हाथ रखकर गाँधी जी अपने जीवन कि अंतिम पद यात्रा पर चल पड़े ,जो बिरला हॉउस के उनके कमरे से प्रारंभ हुई और उसी बिरला हॉउस के बगीचे में समाप्त होने को थी .....
अपनी मण्डली सहित गांधीजी उस प्रार्थना सभा में पहुंचे जो लॉन के मध्य थी और जहाँ .नियमित श्रद्धालुओं कि भीड़ उनका इंतज़ार कर रही थी और उन्हीं के बीच हत्यारे भी खड़े थे .गांधीजी ने सभी उपस्थित जनों के अभिवादानार्थ नमस्कार कि मुद्रा में हाथ जोड़े ..... करकरे कि आँखें नाथूराम गोडसे पर टिकी थीं ...जिसने जेब से पिस्तौल निकालकर दोनों हथेलियों के दरम्यान छिपा लिया .....जब गांधीजी ३-४ कदम फासले पर रह गए तो नाथूराम दो कदम आगे आकर बीच रास्ते में खड़ा हो गया ...उसने नमस्कार कि मुद्रा में हाथ जोड़े ,वह धीमें -धीमें अपनी कमर मोड़कर झुका और बोला "नमस्ते गाँधी 'देखने वालों ने समझा कि कोई भल-मानुष है जो गांधीजी के चरणों में नमन करना चाहता है ...मनु ने कहा भाई बापू को देर हो रही है प्रार्थना में ..जरा रास्ता दो ...उसी क्षण नाथूराम ने अपने बाएं हाथ से मनु को धक्का दिया ...उसके दायें हाथ में पिस्तौल चमक उठी .उसने तीन बार घोडा दवाया ...प्रार्थना स्थल पर तीन धमाके सुने गए ...महात्मा जी कि मृत देह को बिरला भवन के अंदर ले जाया गया, आनन् -फानन लार्ड माउन्ट बेटन, सरदार पटेल, पंडित नेहरु और अन्य हस्तियाँ उस शोक संतृप्त माहोल के बीच पहुंचे ...जहां श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए अंतिम ब्रिटिश प्रतिनिधि ने ये उदगार व्यक्त किये .....'महात्मा गाँधी को ...इतिहास में वो सम्मान मिले जो बुद्ध ,ईसा को प्राप्त हुआ ....
श्रीराम तिवारी
उस वैश्विक शोक काल में तत्कालीन सूचना और संचार माध्यमों ने जिस नेकनीयती और मानवीयता के साथ सच्चे राष्ट्रवाद का परिचय दिया वह भारत के परिवर्ती-सूचना और संचार माध्यमों का दिक्दर्शन करने का प्रश्थान बिंदु है. यदि गाँधी जी का हत्यारा कोई अंग्रेज या मुस्लिम होता तो भारतीय उपमहादीप की धरती रक्तरंजित हो चुकी होती. तमाम आशंकाओं के बरक्स आल इण्डिया रेडिओ और अखवारों की तात्कालिक भूमिका के परिणाम स्वरूप देश एक और महाविभीशिका से बच गया .........
लेरी कार्लिस और डोमनिक लेपियर द्वारा १९७५मे लिखी पुस्तक 'फ्रीडम एट मिडनाइट' में भारतीय स्वाधीनता संग्राम की आद्योपांत कहानी का वर्णन है ...इसमें गांधी जी की हत्या का विषद और प्रमाणिक वर्णन भी है .....
मोहनदास करमचंद गाँधी के जीवन का अंतिम दिन -की दिन चर्या में सूर्योदय से पहले लगभग ०३.३० बजे उनका जागना और ईश्वर आराधना .दोपहर के आराम के बाद वे १०-१२ प्रतीक्षारत आगंतुको से मिले ,बातचीत की .अंतिम मुलाकाती के साथ चर्चा उनके लिए घोर मानसिक वेदना दायक रही .वे अंतिम मुलाकाती थे सरदार वल्लव भाई पटेल . उन दिनों पंडित जी और पटेल के बीच नीतिगत मतभेद चरम पर थे . पटेल तो संभवत: नेहरु मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देने के मूड में थे ; लेकिन गांधीजी उन्हें समझा रहे थे कि यह देश हित में नहीं होगा .
गांधीजी ने समझाया कि नवोदित स्वाधीन भारत के लिए यह उचित होगा कि तमाम मसलों पर हम तीनो -याने गांधीजी .नेहरूजी और पटेल सर्वसम्मत राय बनाए जाने कि अनवरत कोशिश करेंगे .आपसी मतभेदों में वैयक्तिक अहम् को परे रखते हुए देश को विश्व मानचित्र पर पहचान दिलाएंगे .पटेल से बातचीत करते समय गांधीजी कि निगाह अपने चरखे और सूत पर ही टिकी थी .जब बातचीत में तल्खी आने लगी तो मनु और आभा जो श्रोता द्वय थीं ,वे नर्वस होने लगीं ,लगभग ग़मगीन वातावरण में उन दोनों ने गांधीजी को इस गंभीर वार्ता से न चाहते हुए भी टोकते हुए याद दिलाया कि प्रार्थना का समय याने पांच बजकर दस मिनिट हो चुके हैं .
पटेल से बातचीत स्थगित करते हुए गांधीजी बोले 'अभी मुझे जाने दो. ईश्वर कि प्रार्थना-सभा में जाने का वक्त हो चला है ' आभा और मनु के कन्धों पर हाथ रखकर गाँधी जी अपने जीवन कि अंतिम पद यात्रा पर चल पड़े ,जो बिरला हॉउस के उनके कमरे से प्रारंभ हुई और उसी बिरला हॉउस के बगीचे में समाप्त होने को थी .....
अपनी मण्डली सहित गांधीजी उस प्रार्थना सभा में पहुंचे जो लॉन के मध्य थी और जहाँ .नियमित श्रद्धालुओं कि भीड़ उनका इंतज़ार कर रही थी और उन्हीं के बीच हत्यारे भी खड़े थे .गांधीजी ने सभी उपस्थित जनों के अभिवादानार्थ नमस्कार कि मुद्रा में हाथ जोड़े ..... करकरे कि आँखें नाथूराम गोडसे पर टिकी थीं ...जिसने जेब से पिस्तौल निकालकर दोनों हथेलियों के दरम्यान छिपा लिया .....जब गांधीजी ३-४ कदम फासले पर रह गए तो नाथूराम दो कदम आगे आकर बीच रास्ते में खड़ा हो गया ...उसने नमस्कार कि मुद्रा में हाथ जोड़े ,वह धीमें -धीमें अपनी कमर मोड़कर झुका और बोला "नमस्ते गाँधी 'देखने वालों ने समझा कि कोई भल-मानुष है जो गांधीजी के चरणों में नमन करना चाहता है ...मनु ने कहा भाई बापू को देर हो रही है प्रार्थना में ..जरा रास्ता दो ...उसी क्षण नाथूराम ने अपने बाएं हाथ से मनु को धक्का दिया ...उसके दायें हाथ में पिस्तौल चमक उठी .उसने तीन बार घोडा दवाया ...प्रार्थना स्थल पर तीन धमाके सुने गए ...महात्मा जी कि मृत देह को बिरला भवन के अंदर ले जाया गया, आनन् -फानन लार्ड माउन्ट बेटन, सरदार पटेल, पंडित नेहरु और अन्य हस्तियाँ उस शोक संतृप्त माहोल के बीच पहुंचे ...जहां श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए अंतिम ब्रिटिश प्रतिनिधि ने ये उदगार व्यक्त किये .....'महात्मा गाँधी को ...इतिहास में वो सम्मान मिले जो बुद्ध ,ईसा को प्राप्त हुआ ....
श्रीराम तिवारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें