शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

चूँकि भारत विभाजित है इसलिए इंडिया इज़ शाइनिंग...

   आम तौर पर    भारत को हिंदी में भारत और अंग्रेजी में इंडिया कहते हैं; जहाँ तक लिखने  का सवाल है ,तो अंग्रेजी में भारत और हिंदी में इंडिया  भी धडल्ले से लिखा जाता है ;कोई संवैधानिक प्रतिबन्ध नहीं है ; जो जी में आये लिखो, किन्तु भारत राष्ट्र का शब्दार्थ दोनों में ही द्वैत का पृथक्करण दर्शाने लगा  है . इसमें कोई शक नहीं कि स्वाधीनता संग्राम में कुर्बानियों  ;बलिदानों;और क्रांतिकारी संघर्षों के दौरान इंडिया और भारत में हलकी सी दरार पड़ने लगी थी . इंडिया वाला हिस्सा तो आम तौर पर बड़े जमींदारों ,शहरी पूंजीपतियों और उन दलाल  नेताओं कि गिरफ्त में था जो ब्रिटिश साम्राज्य के पदारविन्दों को सम्मान से नवाजते थे. इसमें पाकिस्तान को रूप -आकार  और दर्शन की उटोपिया को जमीनी हकीकत में  बदलने बाले  कुटिल कलंकी भी शामिल थे .आम तौर पर इंडिया का बंटवारा  हो गया और  भारत का सिर्फ उतना भाग ही पाकिस्तान में जा सका जो क्रांतिकारियों की विरासत का हकदार नहीं था, शेष बचा इंडिया और भारत विगत ६४ वर्षों में भी एक नहीं हो पाए बल्कि दोनों के बीच दूरी या खाई बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है. वर्तमान पूंजीवादी राजनैतिक -आर्थिक -सामाजिक व्यवस्था ने दोनों का रूप-रंग और आकार पानी की लकीर से नहीं ;बालू की लकीर से भी नहीं अपितु पत्थर की लकीर से रेखांकित कर के रख छोड़ा है. आंतरिक द्वंदात्मकता के बीज भी इसी में विद्यमान हैं और आपस की खाई पाटने के सूत्र भी इसी में निहित हैं .
                           संयुक राष्ट्र संघ के तहत यूनेस्को की रिपोर्ट हो या यु पी ए  {१] की अर्जुनसेन गुप्ता रिपोर्ट हो या तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट हो,  सभी का निचोड़ यह है की भारत में गरीबी रेखा के नीचे आने वालों की संख्या बढ़ी है और औसतन   प्रति-व्यक्ति क्रय क्षमता घटी है जिसमें देश की ७७%आबादी आती है और इसके हिस्से में मात्र २०% सम्पदा ही बची है. इस आबादी के श्रम से ही देश ने लगातार तरक्की की है ,दुनिया में प्रतिष्ठा प्राप्त की है ,अनेक कुर्बानियों  देकर देश के दुश्मनों से रक्षा  की है ,यही  प्रजातंत्र की बुनियाद है, इसी का नाम भारत है और सत्ता प्रतिष्ठान के शिखर पर निरंतर चल रहे चौसर के खेल में इंडिया के हाथों पराजित होते रहने को अभिशप्त है, जो लोक विख्यात उस कथा का बुद्धिहीन छोटे भाई जैसा है जो जीवन भर एकमात्र  गाय के बटवारे में अगला भाग याने गौ माता के आहार की जिम्मेदारी भर उठाता  रहता है और दूसरा  चालाक भाई  गाय के पिछले हिस्से याने दूध उत्पादन पर कब्ज़ा कर मौज करता रहता  है-  इसी का  नाम इंडिया  है .
             इंडिया में- टाटा होता ,अम्बानी होता ,प्लेन होता ,बंगला होता गाड़ी होता .बैंक में करोड़ों रुपया होता,शेयर मार्केट होता .पूँजी निवेश होता, इलिम भी होता -फिलिम भी होता ,रिश्वत होता,लाबिंग होता,राजा होता, राडिया होता [होती ?} कब्जे में सरकार और क़ानून होता , इसमें बड़ा- बड़ा संत ,बड़ा- बड़ा बाबा लोग होता , बड़ा- बड़ा एन जी ओ  होता, बड़ा- बड़ा किसान होता ,बड़ा- बड़ा  क्रिकेटर होता ,बड़ा -बड़ा अधिकारी होता और बड़ा -बड़ा घपला होता .
       भारत में लगातार महंगाई बढ़ती, रोजगार घटते ,मशीनों से हाथ कटते .सड़कों पर एक्सीडेंट होते बिना  दवा के लोग बेमौत  मरते, भूख  -कुपोषण-अशिक्षा की  प्रचंड आंधी में गरीबों के झोपड़े उड़ते . ये भारत के ही लोग है जो इंडिया के सुख  साम्राज्य निर्माता होते .ये निर्धन भारत  -भूमि -भोजन -रोजगार के मुद्दों पर इंसानी बदमाशी को कभी भी समझ न पाए सो तथाकथित  ईश्वर और अल्लाह की मर्जी बताने बाले नजूमियों के झुण्ड -मीडिया ,मठ, मंदिर और महात्माओं के रूप में इफरात से पाले जाते हैं  .इसीलिये तमाम शक्तियों को धारण करने वाला इंडिया ,शाइनिंग होता इंडिया ,दुनिया के टॉप -१० पूंजीपतियों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका इंडिया भी भारत की बदरंग तस्वीर के साए से भी डरता है .
                        भारत में सूखा या शीत लहर की चपेट में  किसानो की फसलें बर्बाद होने ,गरीब किसानो  के द्वारा  आत्महत्या करने पर एक प्रदेश का मंत्री कहता है की ये तो तुम्हारे पूर्व जन्मों के पापों का परिणाम है .महंगाई के प्रश्न पर केंद्र का खाद्य मंत्री कहता है की प्याज और सब्जियों के भाव आगामी फसल के आने तक और बढ़ेंगे ,उनका ये भी एक बेतुका  तर्क है की वर्तमान में मावठा या बारिश  होने से फसलें ख़राब हुईं हैं, ये मंत्री महोदय वास्तव में व्यक्तिगत रूप से भी जमाखोरों,  कालाबाजारियों और मुनाफाखोरों के खेर्ख्वाह रहेहैं    .पूंजीवादी नव्य उदारवादी और भारत विरोधी नीतियों पर अंकुश लगा पाने के लिए बेहतर ,कारगर ,अनवरत संघर्ष चला सकें .ऐसे जन -संगठनों ,श्रम -संगठनों  की भारत में कोई कमी नहीं ;किन्तु देश की आम जनता आपस में बुरी तरह -जातिवाद; साम्प्रदायिकतावाद ;भाषावाद और क्षेत्रवाद में बँटी होने से इंडिया वास्तव में चेन से सो रहा है और भारत का चीत्कार ईश्वर को भी सुनाई नहीं दे रहा है
        श्रीराम तिवारी

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