लगभग १५० साल पूर्व महान अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री और दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने अपने विश्व विख्यात ग्रन्थ "दास कैपिटल " में एक स्थापना दी थी ,कि "यदि लाभ समुचित है तो पूँजी {कैपिटल } साहसी हो उठती है ,यदि १०% लाभ कि सम्भावना हो तो पूँजी कहीं भी मुहँ मारने से नहीं हिचकिचाती, यदि लाभ २०% सम्भावित हो तो पूँजी उद्दाम हो उठती है, लाभ यदि ५०% हो तो पूँजी दुस्साहसी हो जाती है, और लाभ यदि १००% होने कि सम्भावना हो तो पूँजी हर किस्म के क़ानून -नियम -कायदों और नैतिकता को पैरों कुचलने को मचलने लगती है "
विगत नवम्बर -२०१० में इस बात कि देश और दुनिया में धूम रही कि 'भारत एक ऐसा अमीर देश है जिसमें ७६% जनता के पास स्थाई आजीविका नहीं और ३३% निर्धनतम लोगों के पास वैश्विक मानक जीवन स्तर नहीं . फोर्व्ज मैगजीन के अनुसार डालर अरबपतियों {एक अरब अमरीकी डालर से ऊपर यानि ४६०० करोड़ रूपये के लगभग }कि संख्या २००९ में सिर्फ ९ थी लेकिन २०१० के अंत तक बढ़ते -बढ़ते यह संख्या ५६ हो गई .पढ़ सुनकर कुछ उसी तरह का आनंदातिरेक भी हुआ कि, ईश्वर का शुक्रिया - मेरे भारत कि नाक ऊँची हुई और दुनिया के टॉप -१० में भारत के एक -दो नहीं तीन -तीन नौनिहाल इस वैश्विक सूची में प्रतिष्ठित हैं .अंतर-राष्ट्रीय भूंख सूचकांक में भले ही हम पाकिस्तान ,चीन भूटान और श्रीलंका से भी बदतर हों{सूची में भारत ६७ वें स्थान पर पाकिस्तान ६४ श्रीलंका ५६ और चीन ९ वें स्थान पर है } किन्तु मेरे महान पूंजीवादी प्रजातंत्र की बलिहारी कि हमारा एक -एक पूंजीपति ही इन राष्ट्रों {चीन को छोड़कर ]को खरीदकर जेब में रखने कि क्षमता रखता है .जय भारत ...जय हिंद ...जय अम्बानी ,जय टाटा .जय बिडला .जय भारती ...प्राइवेट सेक्टर -जिन्दावाद ...नंगी- भूंखी ठण्ड से ठिठुरती ,महंगाई से जूझती .जातिवाद के नाम पर आरक्षण के लिए रेल की पटरियां उखाड़टी ,दवा के अभाव में -साधनों के अभाव में पाखंडी बाबाओं की चौखट पर नाक रगडती ,प्रजातंत्र के चारों पिल्लरों का बोझ उठाती,राजनीति में सिर्फ वोटर की हैसियत रखने वाली कोटि -कोटि जनता .....वाद ....
अक्सर यह प्रचारित किया जाता है की आर्थिक सुधार या उदारीकरण की नीतियां तो इसी गरीब -मेहनत कश जनता के हितार्थ है .आर्थिक सुधारों का मतलब निजी क्षेत्र को भरपूर लूट का अधिकार याने बकरी और बाघ की स्पर्धा ,अब ये तो अति सामान्य मूढमति भी जानता है की इस संघर्ष में बकरी को ही हलाल होना है .इसमें किसी को संदेह नहीं कि अर्थ व्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है ;मेरा मंतव्य ये है कि इसका लाभ सिर्फ चंद लोगों को ही मिल रहा है .जो संगठित हैं ,जिनके वोट बैंक हैं ,जब वे भी अपने हिस्से के लिए जमीन आसमान एक किये दे रहे हैं तो असंगठित क्षेत्र के १८ करोड़ लोगों का जीवन संघर्ष पूर्ण रूपेण अहिसक होगा इसकी क्या गारंटी है ?
१९९१ से भारत में जिस अर्थ-नीति को अनुप्रयुक्त किया जाता रहा उसके तथाकथित राम बाण औशधि सावित होने में स्वयम वे लोग आशंकित हैं जो इस अर्थ-नीति के आयात कर्ता हैं .वैश्वीकरण -उदारीकरण -निजीकरण से देश को और देश कि जनता को कितना क्या मिला ये तो विगत माह अंतर राष्ट्रीय खाद्द्य नीति शोध -संस्थान कि रिपोर्ट से जाहिर हो चुका है जिसमें कहा गया है कि "भारत में ऊँची आर्थिक वृद्धि दर से गरीबी में कोई कमी नहीं आई है " इसमें ये भी कहा गया है कि भारत में पर्याप्त खाद्द्यान्न होने के वावजूद देश में बेहद गरीबी और जीवन स्तर में गिरावट दर्ज कि गई .इससे से ये भी जाहिर हुआ कि आबादी के विराट हिस्से कि औसत आय का स्तर इतना नीचे है कि अन्न के भंडार भरे पड़े है ,गेहूं कई जगह सड़ रहा है .सब्जियां निर्यात हो रहीं हैं किन्तु देश कि निम्न वित्त भोगी जनता कि क्रय-शक्ति से ये चीजें दूर होते जा रही हैं ,और सर्वहारा वर्ग कि क्रय शक्ति का आकलन तो अर्जुन सेनगुप्ता से लेकर मोंटेकसिंह अहलूवालिया तक और सुरेश तेंदुलकर से लेकर प्रणव मुखर्जी को मालूम है किन्तु श्रीमती सोनिया गाँधी ,श्री राहुल गाँधी और प्रधान मंत्री मनमोहनसिंह जी को मालुम है कि नहीं ये मुझे नहीं मालूम .
कहीं ऐसा न हो कि २-G ,३-G ,के बाद ४-G का भांडा फूटे या भृष्टाचार का कोई और कीर्तीमान बने तो पी एम् महोदय कहें की "ये भ्रष्टाचार मेरी जानकारी में नहीं हुआ ,या की में निर्दोष हूँ "
इस बात को सारा देश जानता है की प्रधानमंत्री जी आप वाकई ईमानदार हैं किन्तु ऐसा कैसे हो सकता है की रादियाएं, बरखायें, अबलायें आपके अधीनस्थों और निजी क्षेत्र के सम्राटों के बीच लोबिंग करती रहें और आपको पता ही न चले .जो बात प्रेस को मालूम ,विपक्ष को मालूम विदेशी जासूसों को मालूम वो चीज राजा के बारे में हो या स्पेक्ट्रम के बारे में हो या १-२-३-एटमी करार पर .संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सीट के सवाल पर हिलेरी क्लिंटन पकिस्तान में हमारा मजाक उड़ाती रहे ये विकिलीक्स को मालूम पर आपको नहीं मालूम ऐसा कैसे हो सकता ? यदि ऐसा वास्तव में है तो आप अपनी अंतरात्मा से पूंछे की आपको क्या करना चाहिए ?
श्रीराम तिवारी
विगत नवम्बर -२०१० में इस बात कि देश और दुनिया में धूम रही कि 'भारत एक ऐसा अमीर देश है जिसमें ७६% जनता के पास स्थाई आजीविका नहीं और ३३% निर्धनतम लोगों के पास वैश्विक मानक जीवन स्तर नहीं . फोर्व्ज मैगजीन के अनुसार डालर अरबपतियों {एक अरब अमरीकी डालर से ऊपर यानि ४६०० करोड़ रूपये के लगभग }कि संख्या २००९ में सिर्फ ९ थी लेकिन २०१० के अंत तक बढ़ते -बढ़ते यह संख्या ५६ हो गई .पढ़ सुनकर कुछ उसी तरह का आनंदातिरेक भी हुआ कि, ईश्वर का शुक्रिया - मेरे भारत कि नाक ऊँची हुई और दुनिया के टॉप -१० में भारत के एक -दो नहीं तीन -तीन नौनिहाल इस वैश्विक सूची में प्रतिष्ठित हैं .अंतर-राष्ट्रीय भूंख सूचकांक में भले ही हम पाकिस्तान ,चीन भूटान और श्रीलंका से भी बदतर हों{सूची में भारत ६७ वें स्थान पर पाकिस्तान ६४ श्रीलंका ५६ और चीन ९ वें स्थान पर है } किन्तु मेरे महान पूंजीवादी प्रजातंत्र की बलिहारी कि हमारा एक -एक पूंजीपति ही इन राष्ट्रों {चीन को छोड़कर ]को खरीदकर जेब में रखने कि क्षमता रखता है .जय भारत ...जय हिंद ...जय अम्बानी ,जय टाटा .जय बिडला .जय भारती ...प्राइवेट सेक्टर -जिन्दावाद ...नंगी- भूंखी ठण्ड से ठिठुरती ,महंगाई से जूझती .जातिवाद के नाम पर आरक्षण के लिए रेल की पटरियां उखाड़टी ,दवा के अभाव में -साधनों के अभाव में पाखंडी बाबाओं की चौखट पर नाक रगडती ,प्रजातंत्र के चारों पिल्लरों का बोझ उठाती,राजनीति में सिर्फ वोटर की हैसियत रखने वाली कोटि -कोटि जनता .....वाद ....
अक्सर यह प्रचारित किया जाता है की आर्थिक सुधार या उदारीकरण की नीतियां तो इसी गरीब -मेहनत कश जनता के हितार्थ है .आर्थिक सुधारों का मतलब निजी क्षेत्र को भरपूर लूट का अधिकार याने बकरी और बाघ की स्पर्धा ,अब ये तो अति सामान्य मूढमति भी जानता है की इस संघर्ष में बकरी को ही हलाल होना है .इसमें किसी को संदेह नहीं कि अर्थ व्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है ;मेरा मंतव्य ये है कि इसका लाभ सिर्फ चंद लोगों को ही मिल रहा है .जो संगठित हैं ,जिनके वोट बैंक हैं ,जब वे भी अपने हिस्से के लिए जमीन आसमान एक किये दे रहे हैं तो असंगठित क्षेत्र के १८ करोड़ लोगों का जीवन संघर्ष पूर्ण रूपेण अहिसक होगा इसकी क्या गारंटी है ?
१९९१ से भारत में जिस अर्थ-नीति को अनुप्रयुक्त किया जाता रहा उसके तथाकथित राम बाण औशधि सावित होने में स्वयम वे लोग आशंकित हैं जो इस अर्थ-नीति के आयात कर्ता हैं .वैश्वीकरण -उदारीकरण -निजीकरण से देश को और देश कि जनता को कितना क्या मिला ये तो विगत माह अंतर राष्ट्रीय खाद्द्य नीति शोध -संस्थान कि रिपोर्ट से जाहिर हो चुका है जिसमें कहा गया है कि "भारत में ऊँची आर्थिक वृद्धि दर से गरीबी में कोई कमी नहीं आई है " इसमें ये भी कहा गया है कि भारत में पर्याप्त खाद्द्यान्न होने के वावजूद देश में बेहद गरीबी और जीवन स्तर में गिरावट दर्ज कि गई .इससे से ये भी जाहिर हुआ कि आबादी के विराट हिस्से कि औसत आय का स्तर इतना नीचे है कि अन्न के भंडार भरे पड़े है ,गेहूं कई जगह सड़ रहा है .सब्जियां निर्यात हो रहीं हैं किन्तु देश कि निम्न वित्त भोगी जनता कि क्रय-शक्ति से ये चीजें दूर होते जा रही हैं ,और सर्वहारा वर्ग कि क्रय शक्ति का आकलन तो अर्जुन सेनगुप्ता से लेकर मोंटेकसिंह अहलूवालिया तक और सुरेश तेंदुलकर से लेकर प्रणव मुखर्जी को मालूम है किन्तु श्रीमती सोनिया गाँधी ,श्री राहुल गाँधी और प्रधान मंत्री मनमोहनसिंह जी को मालुम है कि नहीं ये मुझे नहीं मालूम .
कहीं ऐसा न हो कि २-G ,३-G ,के बाद ४-G का भांडा फूटे या भृष्टाचार का कोई और कीर्तीमान बने तो पी एम् महोदय कहें की "ये भ्रष्टाचार मेरी जानकारी में नहीं हुआ ,या की में निर्दोष हूँ "
इस बात को सारा देश जानता है की प्रधानमंत्री जी आप वाकई ईमानदार हैं किन्तु ऐसा कैसे हो सकता है की रादियाएं, बरखायें, अबलायें आपके अधीनस्थों और निजी क्षेत्र के सम्राटों के बीच लोबिंग करती रहें और आपको पता ही न चले .जो बात प्रेस को मालूम ,विपक्ष को मालूम विदेशी जासूसों को मालूम वो चीज राजा के बारे में हो या स्पेक्ट्रम के बारे में हो या १-२-३-एटमी करार पर .संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सीट के सवाल पर हिलेरी क्लिंटन पकिस्तान में हमारा मजाक उड़ाती रहे ये विकिलीक्स को मालूम पर आपको नहीं मालूम ऐसा कैसे हो सकता ? यदि ऐसा वास्तव में है तो आप अपनी अंतरात्मा से पूंछे की आपको क्या करना चाहिए ?
श्रीराम तिवारी
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