शनिवार, 31 जुलाई 2010

प्रेमचंद का वैचारिक अवदान।


लमही ग्राम से बॉम्बे तक की जीवन यात्रा में धनपतराय ने हिंदी जगत में अश्वमेध का जो विजयी घोड़ा छोड़ा था उसने उन्हें कथा, समसामयिक लेखन का, मुंशी प्रेमचंद के नाम से उपन्यास सम्राट बना दिया. वे हंस, सरस्वती के रथ पर सवार होकर साहित्य जगत के दैदीप्यमान नक्षत्र बनकर न केवल हिंदी अपितु उर्दू दुनिया के भी बेताज बादशाह बनकर इस संसार से विदा हो गए. आज उनकी जयंती पर पूरे साहित्य जगत में उनके व्यक्तित्व, कृतित्व, साहित्य विधा एवं वैचारिकता की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए देश भर के साहित्यकार बुद्धिजीवी तथा राजनीतिज्ञ उन्हें स्मरण कर रहे हैं । आज जबकि वैश्विक चुनौतियों के सामने सारे चिंतन और विचार असफल हो रहे हैं, सोवियत पराभव उपरांत एक ध्रुवीय विश्व पूंजीवादी साम्राजवादी व्यवस्था का पूरे भूमंडल पर शिकंजा कस चूका है तथा सभ्यताओं के संघर्ष परवान चढ़ रहे हैं, ऐसे विषम कठिन दौर में विश्व के सामने मुंशी प्रेमचंद अपना वैचारिक दृष्टिकोण लेकर अजर अमर हैं। उन्होंने मार्क्सवादी द्वंदात्मक भौतिकवाद को भारतीय चिंतन अर्थात गांधीवाद से योग करके समाज, राष्ट्र और विश्व को जो सन्देश दिया संभवत विश्व को व्यवस्थित करने, अमन शांति स्थापित करने एवं शोषण मुक्त शासन व्यवस्था के निर्माण में वही अंतिम विकल्प साबित होगा। उनका सम्पूर्ण साहित्य न केवल हिंदी-उर्दू अपितु सारे संसार की धरोहर है।

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