मंगलवार, 6 जुलाई 2010

ग़ैर-कांग्रेसवाद का नया दौर ।


उत्तर आधुनिक जनांदोलनो के विखराव की परिणिति यूपीए को सत्तारूढ़ कराने में मददगार साबित हुई .यूपीए प्रथम तो अवाम के उस राष्ट्रीय जनौभार की उपज थी जो भाजपा नीत एनडीए गठबंधन की असफलताओं को ध्वनित करने में कामयाब रहा .तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेई जी को इंडिया शाइनिंग तथा फील गुड का ही नहीं बल्कि विपक्ष के उस विखराव का भी खमियाज़ा भुगतना पढ़ा जिसकी प्रष्ठभूमि स्वयं आर एस एस ने तैयार की थी। धर्मान्धता के मद में ;सत्ता के नशे में चूर होकर संघ परिवार ने आंतरिक और बाह्य दोनों मोर्चों पर देश को भारी नुक्सान पहुंचाया। देश के अन्दर धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का उपहास किया ;बाहर भी नाक कटाई। यही वजह थी की गेहूं के साथ घुन भी पिस गया तेलगुदेशम इत्यादि भी सस्ते में आउट हो गए ।
एनडीए के सपने द्वारा सत्ता में आने के चूर चूर हो गए। तथाकथित पी एम इन वेटिंग श्री आडवानी जी न केवल २००४ में अपितु २००९ में भी हाथ मलते रह गए। यूपीए को न तो पहले वाले दौर में बहुमत था और न ही दुसरे दौर में। पहले दौर में चूँकि मजदूरों -किसानों की आवाज़ के रूप में वामपंथ निर्णायक ताकत था अतः एनडीए की पूंजीवादी सम्प्रदायवादी नीतियों के खिलाफ मजबूरी में कांग्रेसनीत यूपीए गठबंधन को बाहर से समर्थन देना पड़ा। विपक्ष की (गैर-कांग्रेसवादी) यह दुखद त्रासद फूट की घटना न केवल वामपंथ अपितु धर्मनिरपेक्ष जनतांत्रिक व्यक्तियों और दलों के लिए प्रत्येक उस दौर में याद रखना लाजमी होगी जब जब गैरकांग्रेसवाद की ललक देश की आवाम को होगी। विगत माह जून २०१० में पेट्रोलियम रसोई गैस केरोसिन समेत तमाम जीवनोपयोगी वस्तुओं की कीमतों में भारी वृध्दि के परिणामस्वरूप सारा विपक्ष आंदोलित हो रहा है। केंद्र सरकार के प्रवक्ता भले ही इन आम हड़तालों तथा भारत बंद की सफलता को राजनीति से प्रेरित बताएं किन्तु संघर्ष का सिलसिला इसी तरह जारी रहा और भाजपा ने संघ से मुह मोड़ा तो गैर कांग्रेस विपक्ष की एकता पुनः परवान चढ़ सकती है। देश को बेहतर सुशासन देने के सफल प्रयास अतीत में भी हो चुके हैं। स्वर्गीय श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के समय वाम और दक्षिण की ताकत से ही कांग्रेस को सत्ताच्युत किया जा सका था । वाम और भाजपा का आम चुनावों में सीधा टकराव न होकर नीतिगत टकराव है, इसका सबसे बड़ा मुद्दा संघ की फासिस्ट सोच ही है। अतः गैरकांग्रेस विपक्ष की एकता में बाधाएं दूर करने की जिम्मेदारी भाजपा और एनडीए की है। भाजपा को स्वीकार करना ही होगा की बहुदलीय राजनैतिक व्यवस्था का एक लम्बा दौर इस देश में जारी रहेगा माकपा के नेतृत्व में वामपंथ के सहयोग बिना सम्पूर्ण विपक्ष अधूरा है। बिना एकजुट विपक्ष के भारतीय लोकतंत्र अधूरा है.

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