शनिवार, 7 अगस्त 2010

कामरेड फिदेल कास्त्रो- सर्वहारा का सच्चा सिपाही .


दुनिया में आज उसके मित्रों की संख्या और बढ़ गई है। वह एक ऐसा व्यक्ति है जिसने द्वितीय विश्व युद्ध से अब तक; लगातार अमेरिकन साम्राज्यवाद का हर आक्रमण विफल किया है .उसने अनेक अमेरिकन राष्ट्रपतियों को नाकों चने चबवाए। सोवियत कामरेडों को प्रभावित किया। किसी राष्ट्र विशेष में लगातार पचास सालों तक राष्ट्राध्यक्ष के रूप में प्रतिष्ठित रहने के बावजूद वे अपनी जवानी के दिनों में प्रेसिडियम में सिर्फ दो घंटों में सारा कागजी काम निबटाकर सामूहिक खेती वाले खेतों में स्वयं चार घंटे गन्ने की कटाई या सार्वजनिक शुगर मिलों में पिराई का काम अवैतनिक मजदूर के रूप में करते थे। ऐसा रिकॉर्ड बनाने वाले मजदूर राष्ट्रपति को न केवल क्यूबा बल्कि अमेरिका,रूस, चीन और भारत जैसे मुल्कों में इतनी लोकप्रियता प्राप्त थी की भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गाँधी ने उसे अपना भाई माना और शीत युद्ध के दिनों में दोनों महाशक्तियों से पृथक अपना गुट निरपेक्ष आन्दोलन खड़ा करने में श्रीमती गाँधी के अलावा जिस का सर्वाधिक सहयोग था; उस शख्श का नाम है -फिदेल कास्त्रो

पूरा नाम अलाक्सेंदेर्राओ कास्त्रो.... विगत २००८ में कास्त्रो ने राजनीति से संन्यास लेते वक्त घोषणा की थी की वे आइन्दा किसी पद पर नहीं रहेंगे । इतनी लम्बी अवधि तक बिना किसी चुनौती के संघर्ष कालीन सत्ता सम्भालने वाले; गैर-सामंती; गैर पूंजीवादी शासक का, फिदेल कास्त्रो अपने आप में एक अध्येत अद्वितीय इतिहास हैं। ताजिंदगी जिन से वे संघर्षों में सर्वहारा का नेतृत्व करते रहे वे उन पूंजीवादी साम्राज्यवादी शासकों की रातों की नींद और दिन का चैन छीनकर पेंटागन को चुनौती देते रहे ।

अटलांटिक महासागर, मेक्सिको की खाड़ी, कैरिबियन सागर के बीच के द्वीप समूह का नाम है क्यूबा। अमेरिका के दक्षिण पूर्व में स्थित यह देश हैती, बहामा, और मैक्सिको के निकट है। कोलंबस ने अमेरिका की खोज के समय १४९२ में इसका पता लगाया था ईसवीं १५११ में इस पर स्पेन ने कब्ज़ा कर लिया था। प्रथम विश्व युद्ध ने क्यूबा की अवाम को क्रान्तिकारी सोच के दायरे में खड़ा कर दिया था। सोवियत क्रांती के सन्देश प्रभावित करने लगे थे, तत्कालीन शासक बतिस्ता शुरुआत में साम्यवादी संघों के समर्थन से राष्ट्रपति बना था, उसके नियंत्रण से शासन-व्यवस्था कुख्यात माफियाओं के कब्जे में चली गई। केवल प्रजातंत्र का मुखौटा भर रह गया तब राजनीतिक विप्लवता का दौर चला। इसी दौरान फिदेल कास्त्रो ने अपने क्रांतिकारी जीवन का शुभारम्भ किया। संघर्ष के दरम्यान मैक्सिको भी विस्थापित होना पड़ा। १९५६ में वापिस क्यूबा लौटे और बतिस्ता के कुशासन को खत्म किया अमेरिका ने लगातार धौंस दमन की कार्यवाहियां कीं किन्तु फिदेल नहीं झुके। क्रांतिपथ पर अनवरत चलते रहे। अमेरिका के प्रभाव से तब सारी दुनिया ने क्यूबा से नाता तोड़ लिया, किन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आज सारा संसार क्यूबा के साथ है। क्यूबा के बुरे दिनों में भी भारत की लगभग सभी राजनैतिक पार्टियों ने फिदेल का साथ दिया। इंदिराजी तो क्यूबा की लोकप्रिय हस्ती हो गईं थीं चौधरी चरण सिंह, अटलबिहारी वाजपेई, जनेश्वर मिश्र तथा भारत का सम्पूर्ण वामपंथ क्यूबा की क्रांतिकारी जनता का हमराह था, क्यूबा की जनता ने भी हमेशा भारत का साथ दिया। चाहे १९७१ की बँगला देशी समस्या हो, चाहे पाकिस्तान, अमेरिका या किसी अन्य देश का भारत के खिलाफ यु एन ओ में मताधिकार का प्रयोग हो कामरेड फिदेल कास्त्रो सदैव भारत की जनता के शुभचिंतक रहे। सोवियत साम्यवादी व्यवस्था को नष्ट करने में अमेरिकन पूंजीवाद, पोलैंड का आर्च्विशाप और रोम का पोप जिम्मेदार थे। गोर्वाचेव तथा तत्कालीन सोवियत नेताओं को फिदेल ने आगाह भी किया; किन्तु महान अक्टूबर क्रांति के हत्यारे मानवमात्र के, सभ्यता के और सारे संसार के सर्वहारा को सदियों पीछे धकेलने के साथ साथ शोषित जन गन के वर्ग शत्रुओं को कुछ गद्दार मिल ही गए। फिदेल ने सोवियत क्रांति के पराभव की बेला में भी साहस और उम्मीद नहीं छोड़ी थी। इसी का परिणाम है की जहाँ एक ओर सारे संसार की पूंजीवादी सामंती ताकतें अमेरिका के नेतृत्व में निजीकरण, उदारीकरण, भूमंडलीकरण के नाम पर लूटखोरी को बढ़ावा देकर भयानक आर्थिक मंदी के जाल में फंस गई हैं; वहीँ क्यूबा, गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों को वैकल्पिक साम्यवादी अर्थ व्यवस्था के जन-कल्याणकारी आर्थिक नियोजनों का उदाहरण बन चुका है। वहाँ का अधिकतम विकास सार्वजनिक उपक्रमों के माध्यम से हुआ है। आर्थिक -औद्योगिक विकास के क्यूबाई मॉडल का भारतीय संसदीय प्रतिनिधि मंडल ने मुक्त कंठ से सराहना तो की किन्तु संसद के पटल पर कोई उल्लेखनीय सुझावों पर अमल करवाने की जुगत लगाने के बजाय मनमोहनी आर्थिक वितंडावाद में उलझ गए। कामरेड फिदेल कास्त्रो की विचारधारा से प्रभावित होकर श्रीमती इंदिरा गाँधी ने भारत में सार्वजनिक क्षेत्र को मज़बूत किया था। इन सार्वजनिक उपक्रमों को नेहरूजी ने सोवियत प्रेरणा से स्थापित किया था। वे इन्हें आधुनिक भारत के नव रत्न या मंदिर कहा करते थे । जिन्हें आज के दौर के पूंजीवादी शासक ख़त्म करने पर तुले हैं .क्युओं की ऐसा अमेरिका चाहता है ।

हुगो चावेज ने फिदेल की विचारधारा को सम्पूर्ण कैरिबियाई, लातिनी अमेरिकी देशों में नये जोश, नये उत्साह के साथ पहुंचा दिया है। ये सभी राष्ट्र अपनी अपनी मुद्रा को परिवर्तनीय बनाकर अंतर राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक के समानातंर विराट "बेंको देलो शूर" बैंक स्थापित कर महंगाई बेरोजगारी तथा मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण करने में सफल रहे हैं। वे राष्ट्रीय संपत्तियों को निजी क्षेत्र के लिए चारागाह नहीं बनाते ।

यह फिदेल काश्त्रो के त्याग तथा उनके अनन्य सहयोगी चे गुवेरा के बलिदान की महानतम उपलब्धि है। श्रीमती इंदिरा गाँधी, ई. एम. एस. नम्बूदिरिपाद, हरिकिशन सिंह सुरजीत, ज्योति बसु, अटलबिहारी बाजपेई, नेल्सन मंडेला जैसे राजनीतिज्ञ तथा सार्वदेशिक बौद्धिक हस्तियों में मजदूर -किसानों में दुनिया के हरावल दस्तों में फिदेल कास्त्रो उनका अपना विश्वसनीय साथी है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आज मैंने आपका ब्लॉग देखा और कुछ चीजें पढ़ी भी हैं। बेहद अच्छा लगा।

    जवाब देंहटाएं
  2. राजनैतिक, आर्थिक, संस्कृतिक मुद्दो और आम आदमी के सवालो पर सार्थक हस्तक्षेप
    के लिये बहुत शीघ्र आ रहा है

    http://hastakshep.com/

    जवाब देंहटाएं