शनिवार, 17 जुलाई 2010

करता कोई ;और भरता कोई और है .


बदलते नहीं मौसम ताकत या तकदीर से ।


उदित होता जब रवि ;तब इठलाती भोर है ।


अगम को सुगम बनाता कोई कर्मवीर ।


मंजिल पे जा बैठता वंदा कोई और है ।


घोर यातना संत्रास भोगते हैं क्रांतिवीर ।


स्वतंत्रता के फल चख रहा कोई और है।


जिनका रहा सदा ही पूंजी से रिश्ता ।


आज फिर उन्ही से लुटने का दौर है।


बहाता पसीना खेतों में कोई ।


समाता उदार जिसके वो तो कोई और है।


चमकती है दामिनी कहीं गरजते हैं बादल ।


गाज जिस पे गिर जाये अभागा कोई और है।


पिघलते ग्लेशियर मचलतीं हैं नदियाँ


महिमा है जिसकी वो सागर कोई और है ।


क्रांतिपथ के साथियो एकजुट बढे चलो ।


आंधी तूफान का छोटा सा दौर है ।


श्रीराम तिवारी -

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें