बदलते नहीं मौसम ताकत या तकदीर से ।
उदित होता जब रवि ;तब इठलाती भोर है ।
अगम को सुगम बनाता कोई कर्मवीर ।
मंजिल पे जा बैठता वंदा कोई और है ।
घोर यातना संत्रास भोगते हैं क्रांतिवीर ।
स्वतंत्रता के फल चख रहा कोई और है।
जिनका रहा सदा ही पूंजी से रिश्ता ।
आज फिर उन्ही से लुटने का दौर है।
बहाता पसीना खेतों में कोई ।
समाता उदार जिसके वो तो कोई और है।
चमकती है दामिनी कहीं गरजते हैं बादल ।
गाज जिस पे गिर जाये अभागा कोई और है।
पिघलते ग्लेशियर मचलतीं हैं नदियाँ
महिमा है जिसकी वो सागर कोई और है ।
क्रांतिपथ के साथियो एकजुट बढे चलो ।
आंधी तूफान का छोटा सा दौर है ।
श्रीराम तिवारी -
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