शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

अनेकता में एकता ही भारतीय संस्कृति की .मूलभूत विशेषता है ..




वर्तमान दौर में अंतर राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक मसलों की चर्चा प्रमुख ता से की जा रही है .इसके बाद वैश्विक आतंक को विमर्श का दर्ज़ा प्राप्त हो चूका है .बिभिन्न धर्मों के अनुयाइयों को अपने अपने धर्म गुरुओं द्वारा बहलाया .फुसलाया .उकसाया जा रहा है .भारत के सन्दर्भ में स्थिति भयावह होती जा रही है .इस्लामिक आतंकवाद के बरक्स्स हिदू आतंकवाद और हिदू आतंकवाद के बरक्स्स आस्ट्रलिया जैसे देशों में नस्लीय हमले ।
इस्लामिक उग्रपंथ को भारत में उतना दुर्दमनीय नहीं माना जाता जितना की मुस्लिम जगत में ।
भारत में धरम के आधार पर संगठित कोई भी जमात या कोम स्वयम के अंदरूनी द्वंद से मुक्त नहीं है .कमोवेश जागतिक परिदृश्य भी येंसा ही है .इस्लाम में शिया -सुन्नी -बोहरा -अहमदिया -कादियानी इत्यादि पंथ हैं ।
ईसाईयों में केथोलिक -आर्थोडोक्स के अलावा भी दीगर मत -मतान्तर हैं .हिन्दू धरम जो की भारत के अलावा नेपाल .इंडोनेसिया .सूरीना .गुयाना तथा मारीशस इत्यादि में बहुलता से और अरब देशों को छोड़ बाकि सारे संसार में विरलता से फेला हुआ है .इसके प्रमुख मत हैं -आर्य अनार्य -शैव शाक्त -वैदिक सांख्य चार्वाक लोकायत वोक्लिंगा .जैन बौद्ध सिख वैष्णव कवीर पंथी सतनामी इत्यादि सेकड़ों अनुषंगी ।
इन तमाम मत मतान्तरों की जननी एक ही है -भारत भूमि ....इन सबको एक ही कोड़े से हांकने की दुष्प्रवृत्ति का नाम है ...धर्मान्धता .चूँकि में हिदू हूँ अतः उन स्वनामधन्य हिदू धर्म रक्षकों से निवेदन करूँगा की ..अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की मूल भूत विशेषता है ...के एतिहासिक साहसिक दृष्टिकोण
को ह्र्दय्गाम्य करके ही दीगर सम्पदायों की कट्टरता का शमन कर सकोगे ।
वर्तमान में कतिपय बाबा .मठाधीश और कमंडल धारी कैसे -कैसे गुल खिला रहे हैं ;भोग विलाश में लीं न हैं ।
दुनिया भर में हिन्दू धर्म की बदनामी करा रहे हैं .कुछ बाबा लोग योग के नाम पर अछि खासी प्रसिद्धि और धन अर्जित कर चुके हैं .देश विदेश में स्वामी विवेकानंद जैसे कर्मयोगी पहले ही जिसको उरोप और अमरीका में
विख्यात कर गए उसका श्र्येय लेने बाले इस दौर के कतिपय सम्प्दाभोगियों को चाहिए की हिदू धर्म के नाम पर आर्थिक राजनेतिक लाभ जितना चाहे लेते रहें किसी को उज्र नहीं क्योंकि ये तो एक बाजारी उत्पाद बना कर रख दिया है किन्तु हिंदुत्व में कट्टरता प्रतिहिंसा का बीजारोपण करने से बाज आयें ।
हिन्दू धर्म या समाज की व्यख्या करने का adhikar सिर्फ उन्हें ही होना चाहिए जो स्वमी विवेकनद महात्मा गाँधी तथा रामकृष्ण परम हंस द्वारा प्रणीत धार्मिक समन्वयता के पक्षधर हैं ..भारत में कितनी जातियां .कितने वर्ण .कितनी भाषाएँ .कितनी बोलियाँ .कितने दीगर धर्मी .कितनी आस्थाएं .कितने भोतिक वादी .कितने विज्ञानवादी और कितने अनीश्वरवादी हैं .इसके मद्द्ये नज़र ही सहिष्णुता पूर्ण ढंग से न केवल हिदुओं को अपितु अन्य धर्मावलम्बियों को भी अपनी मान्यताओं आस्थाओं एवं पूजा पद्धति को अपडेट कर लेना चाहिए
जो विज्ञानं के दौर में अवैगयानिक कालातीत अन्धानुकरण का तलबगार होगा .उसे इतिहास की आसन्न जन क्रांतियाँ माफीनामा लेकर नहीं आएंगीं

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