मंगलवार, 12 नवंबर 2024

द्वंदात्मक भौतिकवाद बनाम मार्क्सवादी दर्शन :-

 द्वंदात्मक भौतिकवाद और ऐतिहासिक भौतिकवाद बनाम मार्क्सवादी दर्शन :-

मार्क्सवादी दर्शन उन्नीसवीं सदी के लगभग मध्य में प्रकट हुआ। किन्तु इसने प्रकृति और समाज के विकास के नियमों का उद्घाटन कर प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञान की विविध शाखाओं के अध्ययन को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया।
दर्शनों की बातें प्रायः अटकलें ही रह जाती यदि विज्ञान की कसौटी पर वह खरी न उतरती।मार्क्सवादी दर्शन की बहुत बड़ी विशेषता यह है कि उसके निष्कर्षों को विज्ञान ने सत्यापन कर प्रमाणित कर दिया !
ऐसा नहीं है कि मार्क्स के पहले के सभी दार्शनिकों की सारी बातें असत्य थीं। लेकिन उन सबकी एक कमजोरी यह थी कि वह सभी मूलतः आदर्शवादी (आध्यात्मवादी, विचारवादी और प्रत्ययवादी और भाववादी आदि) थे।
यहां तक कि मार्क्स के पहले के भौतिक वादी भी भाववादी ही थे।वह प्रकृति के रहस्य का उद्घाटन तो भौतिकवादी नजरिए से करते थे किन्तु मनुष्य ,मानव समाज और उसके इतिहास का अध्ययन करते समय भाववादी या आदर्शवादी हो जाते थे।अर्थात यह मानते थे कि समाज अच्छे अच्छे विचारों से ही चलता है।इसके उलट मार्क्सवाद व्यवस्था के बदलाव के साथ ही अच्छे विचारों की सार्थकता की बात करता है।
लुडविग फायर बाख जैसे भौतिक वादी ने भी मानव समाज का अध्ययन भाववादी नजरिए से ही किया था।उसने प्रकृति के मामले में तो वस्तु को प्राथमिकता दी किन्तु समाज के मामले में चेतना को।
मार्क्स ने वस्तुगत या पदार्थिक और चेतना दोनों को प्राकृतिक कहा। वस्तु और चेतना दोनों को महत्व दिया।किन्तु वस्तु यावस्तुगत स्थिति को प्राथमिक और चेतनाको द्वितीयक माना।वस्तु को आधार और चेतनाको शिखर माना।
मार्क्स ने यह माना कि चेतना या भाव वस्तु से उपजते हैं.वस्तु ही चेतना को प्रभावित करती है ! किन्तु अपनी बारी में चेतना भी वस्तु पर अपना असर डालती है, उसे प्रभावित करती है।
मार्क्सवादी दर्शन की एक मौलिक बात यह है कि वस्तु चेतना से वह सदा स्वतंत्र होती है ,किन्तु चेतना वस्तु से स्वतंत्र नहीं होती।वस्तु चेतना के बाहर अस्तित्व रखती है।किन्तु चेतना वस्तु के नियमों को समझ कर उसे नियंत्रित कर सकती है।#(#न्यूटन के गतिज नियम )
:-श्रीराम तिवारी
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मोदी के हाथ मजबूत करें।जय हिंद। वंदेमातरम्।

 आज हर हाथ में स्मार्टफोन है, थोड़ी से दूर जाना हो तो आदमी बाइक से जाता है, देश में रिकॉर्ड तोड़ जीएसटी कलेक्शन हो रहा है,देशमें आर्थिक मंदी की कोई आशंका नहीं आई है, इस्लामिक आतंक और सुपर मुनाफा खोरी के बाबजूद भारत की विकास दर दुनिया में सर्वोच्च है।

कोई भले ही नरेंद्र मोदी की राजनीतिक विचारधारा को कुछ लोग न मानते और वेशक मोदीजी के राज में गरीब और ज्यादा गरीब हुए हैं मध्यम वर्ग की बचत कम होती जा रही है एवं अमीर और ज्यादा अमीर बन रहे हैं,किंतु यह हमें यह तो मानना ही पड़ेगा कि फिलहाल सारी दुनिया में नरेंद्र मोदी का डंका बज रहा है और बहरहाल दुनिया में उनकी टक्कर का दूसरा कोई नही है।

ये सब क्या दर्शाता है? यही कि भारत में गरीबी तेजी से कम हो रही है? प्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश के तथाकथित गरीबों को ५ साल तक मुफ्त अनाज दिये जाने की घोषणा कोई दिवा स्वपन नही है। इसके बावजूद कुछ जाहिल विघ्न संतोषी और असमाजिक तत्व भारत की इस खुशहाली से दुखी हैं। वे राज्य विधानसभा चुनावों के बहाने * मोदी सरकार *को बदनाम कर रहे हैं। सनातन पर हमले कर रहे हैं।
इसलिए भारत के तमाम वतनपरस्त नर नारियों को, खास तौर से हिंदु कौम को चाहिए कि नरेंद्र भाई मोदी के हाथ मजबूत करें।जय हिंद। वंदेमातरम्।

अंधभक्त

 अंधभक्त - मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है,देख रहे हो 2050 तक हिन्दू समाज अल्पसंख्यक हो जायेगा!

साधारण आदमी - ठीक हैं तो फिर आप अपनी मोदी सरकार से कहें कि जनसंख्या नियंत्रण का कानून बनायें.
अंधभक्त - देखो मुसलमान कितने जालिम होते हैं,अपनी औरतों को तीन तलाक दे देते हैं,उनसे इद्दत और हलाला करवाते हैं,बुर्के पर्दे में रखते हैं.
साधारण आदमी - ठीक हैं तो फिर मोदी जी कहो कि संसद में युनीफार्म सिविल कोड लायें!.
अंधभक्त- देखो कांग्रेस,वामपंथी,बसपा, सपा के सारे नेता चोर बेईमान थे, देश को लूट रहे थे.
साधारण आदमी - ठीक हैं तो फिर सारे लुटेरों को जेल भिजवाओ, जेल की चक्की पिसवाओ और विदेशों में जमा काला धन वापस लेकर आओ.लोगों के खाते में जमा कराओ.
अंधभक्त-अरे भाई आप समझ नहीं रहे हैं!
साधारण आदमी - बेटा हम सब समझ रहे हैं, तन्ने करना धरना कुछ नहीं,खाली फोकट भाषण देना हैं.सरकार तुम्हारी हैं ,संसद में बहुमत तुम्हारा हैं,लगभग बीस राज्यों में सरकार तुम्हारी है, राष्ट्रपति-तुम्हारा हैं,लोक सभा स्पीकर सब तुम्हारा है,फिर भी कुछ करने के बजाय तुम यही चाहते हो कि हम और हमारी आनेवाली पीढ़ियां सनातन काल तक मुसलमानों से डरकर जियें और सिर्फ तुम्हें वोट करती रहे!
जब तुम्हारी भाजपा सरकार जनसंख्या का कानून बनाकर आबादी को रोक सकते है,
युनिफार्म सिविल कोड लाकर पर्सनल ला खत्म कर सकती है,संसद में कानून बनाकर स्विस बैंक में जमा काला धन ला सकती है, और जिन जिन पर भ्रष्टाचार के तुम लोगों ने आरोप लगाये हैं,उनपर मुकदमे दर्ज कर जेल भिजवा सकती है!तो यह सब करती क्यों नहीं?
याद है न जब एंट्रोसिटी एक्ट में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के कुछ गलत और नकारात्मक प्रावधानों को शिथिल किया था, तब वोटबैंक की ख़ातिर तुम्हारे नेताओं ने उसे रातों रात कैसे निष्प्रभावी कर दिया था?

वामन और विराट

 ऋषि कश्यप,बृहस्पति,वामन अवतार, शुक्राचार्य, गर्ग,गौतम,शांडिल्य,उद्दालक,श्वेतकेतु,कपिलमुनि,भृगू,अंगिरा,भारद्वाज,कण्व,याज्ञ्यवलक्य,वेद व्यास शुकदेव,बादरायण,पाणिनि,पतंजलि,महान सम्राट पुष्यमित्र शुंग* ऋषि शौनक,सायणाचार्य, स्वामी महीधराचार्य,मध्वाचार्य,आदि शंकराचार्य, समर्थ रामदास,सम्राट दाहिरसेन और उनकी वीरांगना पुत्रियां, महान रानी झांसी,पेशवा बाजीराव,मंगल पांडे,चंद्रशेखर आजाद (तिवारी), पंडित रामप्रसाद बिस्मिल,पंडित मदनमोहन मालवीय,पंडित कैलाश नाथ काटजू गोविन्दवल्लभ पंत, करपात्री जी महाराज और सनातन धर्म की रक्षा करने वाले,अन्य अनगिनत ब्राह्मण शहीद बलिदानियों- 'महान पूर्वजों' पर गर्व करने के बजाय पता नहीं कब किसने अकेले 'भगवान परशुराम'को ब्राह्मणों का एकमेव आईकान याने प्रमुख आराध्य बना दिया? ज्ञातव्य है कि भगवान परशुराम की मां रेणुका एक क्षत्रिय कन्या थी ।और भगवान परशुराम के मामा ऋषि विश्वामित्र (क्षत्रिय)थे। वास्तव में परशुराम जी में ब्राह्मणत्व कम और क्षत्रिय गुण अधिक था। जबकि दैत्यराज बलि से तीन पग धरती दान में मांगने वाले भगवान ने पहले वामन (ब्राह्मण) फिर विराट रुप धारण कर अपने भक्त राजा बलि से इंद्रासन क्षीनकर देवराज इन्द्र को वापिस दिलाया।

दरसल भगवान परशुराम को ब्राह्मणों का प्रमुख आईकान बना देने से 'सकल हिंदू समाज'का बहुत नुक्सान हो रहा है। चूंकि परशुराम जी केवल ब्राह्मणों के होकर रह गये इस जाति पुनरोत्थान के दौर में भगवान परशुराम को केवल क्षत्रिय संहारक (सहस्त्रबाहु बधिक)प्रचारित किया जा रहा है। जबकि वे सनातन धर्म के २४ अवतारों में सर्वमान्य हैं। वेशक उनका प्रातः नित्य स्मरण करने से शौर्य, तेज,बल में वृद्धि होती है ।
किंतु सप्त ऋषियों को याद करने से, ब्राह्मणत्व जागृत होता है,पुष्यमित्र शुंग, चंद्रशेखर आजाद (तिवारी), पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, झांसी की रानी और पेशवा बाजीराव को याद करने से देशभक्तिपूर्ण विवेक जागृत होता है।
श्रीराम तिवारी

एक मित्र को दिया गया जवाब।

 

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एक मित्र को दिया गया जवाब। पोस्ट पढ़कर, उन मित्र का कहा आप समझ जाएंगे।
Rajesh Bijarnia 🙏❤️💐💐 शॉर्ट में ही कहूंगा, कि, 500 साल पहले व्यक्ति सरल हृदय न होता, तो, पिछले 500- 700 सालों में भक्त संतो की इतनी बाढ़ नहीं आती, जितनी हम जानते हैं। पूरे देश में, देश के सभी हिस्सों में भक्त संतो का ही बोलबाला था। भक्ति अपने चरम पर थी। इतने भक्त संतो की संख्या तभी हो सकती है, जब सर्वसाधारण मनुष्य लाखों करोड़ों की संख्या में सरल हृदय हों। जहां तक सवाल है, सरल हृदय होने का, सरल हृदय को भी हमें दो भागों में बांटकर देखना होगा, एक, वह जो परम भक्ति या सत्य को उपलब्ध हो गया है, और, दो, जो परम भक्ति या सत्य के मार्ग पर चलने की तैयारी रखता है। जहां तक सवाल है, अनपढ़ अशिक्षित, बुनियादी सुविधाओं से जूझता हुआ लाचार आदमी, तो वह तो, जो परम भक्ति या सत्य को उपलब्ध हो गया, वह भी रह सकता है, और, दूसरे तरह का सरल हृदय व्यक्ति भी रह सकता है। ऐसा नहीं है, कि, परम भक्ति या सत्य को उपलब्ध व्यक्ति की लाचारी या उसका अशिक्षित होना समाप्त हो जाएगा, बाह्य जीवन जैसा था, वैसा ही चलता रह सकता है। अंतर में हुए परिवर्तन से, अनिवार्य रूप से बाह्य में परिवर्तन होना आवश्यक नहीं है। इस बात को, आप भक्त संतो के जीवन गाथा को पढ़कर कन्फर्म भी कर सकते हैं। संयोगवशात, मुझे मौका मिला, इन सब स्थितियों को जानने समझने का, इसलिए, कह पा रहा हूं, क्योंकि, संयोगवशात, मेरे जीवन में किसी भी प्रकार की पढ़ाई लिखाई का बहुत योगदान नहीं रहा है, रहा है तो, अनुभव/अनुभूति या तो अज्ञान, बस। जो भी लिखना होता है, अनुभव/अनुभूति से ही हो पाता है, कुछ भी पढ़ा लिखा नहीं।
बहुत बहुत धन्यवाद, इस लिखे में आपके सहयोगी होने के लिए। धन्यवाद।🙏❤️💐💐