मंगलवार, 12 नवंबर 2024

एक मित्र को दिया गया जवाब।

 

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एक मित्र को दिया गया जवाब। पोस्ट पढ़कर, उन मित्र का कहा आप समझ जाएंगे।
Rajesh Bijarnia 🙏❤️💐💐 शॉर्ट में ही कहूंगा, कि, 500 साल पहले व्यक्ति सरल हृदय न होता, तो, पिछले 500- 700 सालों में भक्त संतो की इतनी बाढ़ नहीं आती, जितनी हम जानते हैं। पूरे देश में, देश के सभी हिस्सों में भक्त संतो का ही बोलबाला था। भक्ति अपने चरम पर थी। इतने भक्त संतो की संख्या तभी हो सकती है, जब सर्वसाधारण मनुष्य लाखों करोड़ों की संख्या में सरल हृदय हों। जहां तक सवाल है, सरल हृदय होने का, सरल हृदय को भी हमें दो भागों में बांटकर देखना होगा, एक, वह जो परम भक्ति या सत्य को उपलब्ध हो गया है, और, दो, जो परम भक्ति या सत्य के मार्ग पर चलने की तैयारी रखता है। जहां तक सवाल है, अनपढ़ अशिक्षित, बुनियादी सुविधाओं से जूझता हुआ लाचार आदमी, तो वह तो, जो परम भक्ति या सत्य को उपलब्ध हो गया, वह भी रह सकता है, और, दूसरे तरह का सरल हृदय व्यक्ति भी रह सकता है। ऐसा नहीं है, कि, परम भक्ति या सत्य को उपलब्ध व्यक्ति की लाचारी या उसका अशिक्षित होना समाप्त हो जाएगा, बाह्य जीवन जैसा था, वैसा ही चलता रह सकता है। अंतर में हुए परिवर्तन से, अनिवार्य रूप से बाह्य में परिवर्तन होना आवश्यक नहीं है। इस बात को, आप भक्त संतो के जीवन गाथा को पढ़कर कन्फर्म भी कर सकते हैं। संयोगवशात, मुझे मौका मिला, इन सब स्थितियों को जानने समझने का, इसलिए, कह पा रहा हूं, क्योंकि, संयोगवशात, मेरे जीवन में किसी भी प्रकार की पढ़ाई लिखाई का बहुत योगदान नहीं रहा है, रहा है तो, अनुभव/अनुभूति या तो अज्ञान, बस। जो भी लिखना होता है, अनुभव/अनुभूति से ही हो पाता है, कुछ भी पढ़ा लिखा नहीं।
बहुत बहुत धन्यवाद, इस लिखे में आपके सहयोगी होने के लिए। धन्यवाद।🙏❤️💐💐

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