क्या आईएसआईएस,तालिवान,अलकायदा हमास,बोकोहराम्,जमात-उद-दावा,हक्कानी ग्रुप की तुलना में भारत के किसी भी हिन्दू - साम्प्रदायिक संगठन से नही की जा सकती है ? क्या भारत में इन वैश्विक आदमखोरों से भी ज्यादा असहिष्णुता है ? नहीं ! कदापि नहीं !
देश के 100 करोड़ हिन्दुओं में से तथाकथित संगठित हिन्दुओं की संख्या बमुश्किल ४०-५०- हजार से ज्यादा नहीं होगी। यदि हिन्दुत्ववादी इतने ही ताकतवर और संगठित होते तो वे हिन्दू बहुल दिल्ली और बिहार में चुनाव क्यों हारते ? वेशक कुछ हिन्दू धर्मावलंबी अंधश्रद्धा के शिकार हमेशा ही रहे हैं और यह सिलसिला तबभी जारी था जब देश गुलाम था या आरएसएस नहीं था।इस दौर में जो हिंदूवादी संगठनों की बाढ़ सी आ गयी है ,उसके लिए वोट की राजनीती जिम्मेदार है। इन आधुनिक हिन्दुत्ववादी दुकानों में सनातन सभा ,संघ परिवार ,शिवसेना और विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े हिन्दू - कटट्रपंथियों की कुल तादाद बमुश्किल ५० लाख भी नहीं होगी। जबकि भारत में सहिष्णु हिन्दुओं की तादाद करोड़ है। एनडीए को जो बहुमत मिला और केंद्र की मोदी सरकार को जो सत्ता का चान्स मिला है उसके लिए हिन्दू या मुस्लमान नहीं बल्कि कांग्रेसी सरकारों की असफलता ,भृष्टाचार और महँगाई जैसे कारक ही जिम्मेदार हैं। हालाँकि राजनैतिक ध्रवीकरण में हिन्दुत्ववादी संगठनों का कुछ तो असर है. कि देश के ३२% लोगों के वोट पाकर भाजपा की मोदी सरकार आज सत्ता में विराजमान है। जबकि आपस में बटे होने से 6८% वोट पाकर भी भारत का राजनैतिक विपक्ष सत्ता से बाहर है। शायद यह पीड़ा ही 'सहनशीलता ' की जन्मदात्री है।
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