बन बाग़ खेत मैढ़ चारों ओर हरियाली ,
उद्भिज गगन अमिय झलकावै है।
पिहुँ -पिहुँ बोले पापी पेड़ों पै पपीहरा ,
चिर-बिरहन मन उमंग जगावै है।।
जलधि मिलन चलीं इतराती सरिताएँ,
गजगामिनी मानों पिया घर जावै है।
झूम-झूम वर्षें पावस गहन घन ,
झूलनों पै गोरी मेघ मल्हार गावै है।।
.... अपने प्रथम काव्य संग्रह [अनामिका ] से उद्धृत ;-श्रीराम तिवारी
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