पोस्ट अधिक लंबी नहीं है, परन्तु पैराग्राफ स्वरूप में लिखी गई है, इसलिये, लंबी दिखाई देती है। धन्यवाद।
हमारे जीवन में तीन तरह की ऊर्जा काम करती है।
ऊर्जा नम्बर एक। इस ऊर्जा के होने से, हमारा शरीर स्वस्थ रहता है, और काम करता है।
यह ऊर्जा किसी कारणवश उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा के बनने के पीछे कोई कार्य कारण होता है, जैसे किसी ने हमारी तारीफ कर दी, किसी काम में हम सफल हुए, तो, यह ऊर्जा उत्पन्न होती है, और हमारे मन को गतिमान रखती है। और, यदि कोई कारण नहीं बना, तो, यह ऊर्जा नहीं बनती, और, हम उदास और दुखी रहते हैं। यानी, हमारी इस ऊर्जा का उत्पन्न होना और इस ऊर्जा से उत्पन्न होने वाली हमारी खुशी, हमेशा दूसरों पर निर्भर होती है, और, परिणामस्वरूप, हम दूसरों के गुलाम बने रहते हैं।
इन दो तरह की ऊर्जाओं का, हम सभी को अनुभव है। पहली बड़ी स्थूल ऊर्जा है, दूसरी थोड़ी सूक्ष्म ऊर्जा है।
लेकिन, ऊर्जा नम्बर तीन, जिसे हम कहें आत्यंतिक जीवन, या कहें, हमारे जीवन का जो स्रोत है, जो स्वयं, अपने आप में ऊर्जा है, सूक्ष्मतम स्वरूप है ऊर्जा का, वह सर्वाधिक महत्वपूर्ण ऊर्जा है, हमारे जीवन के लिये।
इस ऊर्जा की, हमें सामान्य तौर पर, हमारे पूरे जीवन काल में, कोई अनुभव या अनुभूति नहीं मिल पाती। इस महत्वपूर्ण ऊर्जा के सूक्ष्मतम स्वरूप से, हमारा कोई परिचय नहीं हो पाता, और, हम इस तथाकथित जीवन से विदा ले लेते हैं।
यह ऊर्जा, हमारे लिए क्या कार्य करती है, सामान्यतः इस बात का भी हमें कोई ज्ञान नहीं हो पाता।
यही वह सूक्ष्मतम ऊर्जा है, जिससे, जब हमारा परिचय हो जाता है, अनुभूति हो जाती है, तब, यह हमें अकारण आनंद से भर देती है, अकारण प्रेम से भर देती है, अकारण श्रद्धा से भर देती है, अकारण करुणा से भर देती है, अकारण शांति से भर देती है, अकारण मस्ती से भर देती है, अकारण होश से भर देती है, अकारण उत्साह से भर देती है। अकारण होने से ये सारी अनुभूतियां हमारे अन्तरतम में सतत बनी रहती है।
लेकिन, यह सब, वह ऊर्जा, तभी कर पाती है, जब हम उसे जागृत करते हैं। जब यह सूक्ष्मतम ऊर्जा, हमारे अंदर सोई हुई अवस्था से निकलकर जागृत अवस्था में आती है, तब ही, हम सतत, अकारण आनंद, प्रेम, शांति, श्रद्धा, करुणा, मस्ती, होश, और उत्साह की अखंडित अवस्था को अनुभूत करते हैं, जीते हैं।
जब तक, यह ऊर्जा का सूक्ष्मतम स्वरूप जागृत नहीं किया जाता, तब तक, हम सर्वाधिक कीमती अनुभूतियों से अनजान रहते हुए ही, अपना पूरा तथाकथित जीवन बिता देते हैं, और, एक दिन दुखी अवस्था में ही इस शरीर से विदा ले लेते हैं।
ऊर्जा के, इस सूक्ष्मतम स्वरूप को ही हम चैतन्य के नाम से, चेतना के नाम से, आत्मा के नाम से, परमात्मा के नाम से, जानते हैं।
इस चैतन्य की जागृत अवस्था की अनुभूति के लिए ही, हम इस शरीर और इस पृथ्वी पर आए हैं, ना की स्कूल, कॉलेज, शादी, नौकरी, बिजनेस, बच्चे, परिवार, समाज, देश, दुनिया, के लिए। ये सारे घटक, सिर्फ सहयोगी घटक हैं, उस चैतन्य की अनुभूति में, मुख्य घटक, तो चैतन्य की अनुभूति ही है, और, उसी को भूल कर हम भलते ही चले जा रहे हैं। धन्यवाद।
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