बुधवार, 25 अक्तूबर 2023

लिखा था 'आहत' होना मेरी तक़दीर में शायद,

 ग़ज़ल

तड़प दिल में जरूरी है आंखों में नमी होना,
किसी की आरज़ू में लाजिमी है बेबसी होना।
अब समझ आया कि बेखौफ होकर सच बोलो,
नहीं अब चाहिए इसमें ज़रा सी भी कमी होना।
अंधेरी रात उस पर भी घुमड़ आयी काली घटा,
कि अब तो है जरूरी बादलों में बीजुरी का होना
चिरागों को खबर कर दो ये आंधियों का दौर है,
कोई मतलब नहीं बिना रोशनी के घर का होना।
वतनपरस्तो एक हो जाओ अभी भी वक्त है कुछ,
अभी तक जो बचे बाकी उन्हें ही है सजग होना।
जिसके जुल्म से अतीत में बही आँसुओं की नदी,
किसी भी हाल में यारो भला उनका नहीं होना।
नहीं तुम पोंछ सकते गर किसी की आंख का आंसू,
गले मिल साथ में रो लो यही है ज़िन्दगी का होना।
लिखा था 'आहत' होना मेरी तक़दीर में शायद,
बहुत मुश्किल हुआ है आदमी का आदमी होना।
श्रीराम तिवारी { आहत इंदौरी }

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