बुधवार, 18 अक्टूबर 2023

वह ज़हर घोलता है फ़िज़ाओं में रात-दिन,

 वह शख़्स देखने में तो लगता ज़हीन है,

अन्दर से हो ज़हीन, न होता यक़ीन है ।
कहने को तो हसीन वह ,चेहरा रँगा-पुता,
दिल से भी हो हसीन तो, सच में हसीन है।
सच बोल कर मैं सच की दुहाई भी दे रहा
वह शख़्स झूठ बोल के भी मुतमईन है ।
वह ज़हर घोलता है फ़िज़ाओं में रात-दिन,
उसका वही ईमान है, उसका वो दीन है ।
ज़ाहिद ये तेरा फ़ल्सफ़ा अपनी जगह सही,
गर हूर है उधर तो इधर महजबीन है ।
क्यों ख़ुल्द से निकाल दिए इस ग़रीब को,
यह भी जमीं तो आप की अपनी जमीन है।
’आनन’ तू बदगुमान में, ये तेरा घर नहीं,
यह तो मकान और का, बस तू मकीन है।

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