भारत में सत्तारूढ़ नेताओं द्वारा तथा अफसरों द्वारा धनाड्य वर्ग के रिश्तेदारों एवं उनकी ओलादों को उपकृत किये जाने की परम्परा कोई नयी या आकस्मिक घटना नहीं है।सिर्फ लालू यादव का परिवार ही भ्रस्ट नही है! हर्षद मेहता,बंगारू,जुदेव, एदुरप्पा , रेड्डी बंधु ,विजय माल्या,सुब्रतो सहारा,ललित मोदी,करूँणाकरन, डीएम् के परिवार, जय ललिता इत्यादी भी हांडी के दोचार चावल मात्र हैं !असल भ्रष्ट तो अभी भी परदे के पीछे हैं !
मानव सभ्यता के इतिहास में सबल मनुष्य द्वारा निर्बल मनुष्य का शोषण ,सबल समाज द्वारा निर्बल समाज का शोषण और सबल राष्ट्र द्वारा निर्वल राष्ट्र के शोषण का सिलसिला जितना पुराना है। भाई-भतीजावाद और भृष्ट तत्वों के अनेतिक संरक्षण का इतिहास भी उतना ही पुराना है। भ्रस्टाचार का यह दस्तूर आजादी और लोकतंत्र से भी पहले से इस भूभाग पर चला आ रहा है। इसका सिलसिला तो तुगलकों, खिुलजियों और सल्तनतकाल जमाने से ही चला आ रहा है ।
जब सात समंदर पार से योरोपियन व अंग्रेज पधारे तो उन्होंने भी २०० साल तक भारतीय जनता को 'क्लर्क' के लायक ही समझा। वह भी तब ,जब १८५७ की क्रांति या विद्रोह असफल हुआ और महारानी विक्टोरिया हिन्दुस्तान की मलिका बनी ! क्वीन् ने देशी हिन्दुस्तानियों को और कुछ देशी राजाओं को अपनी नौकरशाही में छोटे पदों पर 'सेवाओं' की इजाजत दी।बाद में उन्हीं में से कुछ वकीलों और बॅरिस्टरों ने देश को आजाद कराने का सपना देखा!
आजादी के बाद कांग्रेस और भाजपा के नेताओं ने तथा देश के चालाक सभ्रांत वर्ग ने इसी परम्परा को परवान चढ़ाया।
आज विपक्ष में आकर कांग्रेस हरिश्चंद्र बन रही है। लेकिन उसका अतीत बेदाग नही है !एमपी में व्याप्त व्यापम के खिलाफ कांग्रेस ने कोई खास आंदोलन नही किया !विगत भारत बंद में भी उसने केवल 'वाम मोर्चे' की नकल की है।
इसी कांग्रेस के ६० सालाना दौर में आजादी के बाद वर्षों तक देशी पूंजीपतियों -भूस्वामियों और कांग्रेस के नेताओं के खानदानों को ही शिद्द्त से उपकृत किया जाता रहा है। एमपी और छग में द्वारिकाप्रसाद मिश्रा से लेकर शुक्ल बंधूओं तक ,अर्जुनसिंह से लेकर ,प्रकाश चंद सेठी तक , शिव भानु सोलंकी , सुभाष यादव और जोगी से लेकर दिग्विजयसिंह तक कोई भी उस 'अग्निपरीक्षा' में सफल होने का दावा नहीं कर सकता। जिसके लिए उन्होंने बार-बार संविधान की कसमें खाईं होंगी कि -''बिना राग द्वेष,भय, पक्षपात के अपने कर्तव्य का निर्वहन करूंगा ......." !
अब यदि मोदी युग में 'संघ परिवार' वाले और उसके अनुषंगी भाजपाई भी उसी 'भृष्टाचारी परम्परा' का शिद्द्त से निर्वाह किये जा रहे हैं ,जो परम्परा और 'कुलरीति' कांग्रेस ने बनाई है तो किसी को आश्चर्य क्यों ? सवाल किया जा सकता है कि कांग्रेस और भाजपा के भृष्टाचार में फर्क क्या है ? जो लोग कभी कांग्रेस को 'चोर' कहा करते थे वही लोग इन दिनों भाजपा को 'डाकू' कहने में जरा भी नहीं हिचकते। चोर और डाकु में जो भी फर्क है वही कांग्रेस और भाजपा का चारित्रिक अंतर है।
कुछ लोगों को इन दोनों में एक फर्क 'संघ' की हिंदुत्व वादी खंडित मानसिकता का ही दीखता है। वैसे तो कांग्रेस ने पचास साल तक पैसे वालों व जमीन्दारों को ही तवज्जो दी है। किन्तु यूपीए के दौर में वाम के प्रभाव में कुछ गरीब परस्त काम भी किये गए। यदि आज आरटीआई ,मनरेगा और मिड डे मील दुनिया में प्रशंसा पा रहे हैं तो उसका कुछ श्रेय तो अवश्य ही वामपंथ को जाता है । लेकिंन जनता को और मीडीया को कांग्रेस और भाजपा से आगे कुछ भी नजर नही आता !
मानव सभ्यता के इतिहास में सबल मनुष्य द्वारा निर्बल मनुष्य का शोषण ,सबल समाज द्वारा निर्बल समाज का शोषण और सबल राष्ट्र द्वारा निर्वल राष्ट्र के शोषण का सिलसिला जितना पुराना है। भाई-भतीजावाद और भृष्ट तत्वों के अनेतिक संरक्षण का इतिहास भी उतना ही पुराना है। भ्रस्टाचार का यह दस्तूर आजादी और लोकतंत्र से भी पहले से इस भूभाग पर चला आ रहा है। इसका सिलसिला तो तुगलकों, खिुलजियों और सल्तनतकाल जमाने से ही चला आ रहा है ।
जब सात समंदर पार से योरोपियन व अंग्रेज पधारे तो उन्होंने भी २०० साल तक भारतीय जनता को 'क्लर्क' के लायक ही समझा। वह भी तब ,जब १८५७ की क्रांति या विद्रोह असफल हुआ और महारानी विक्टोरिया हिन्दुस्तान की मलिका बनी ! क्वीन् ने देशी हिन्दुस्तानियों को और कुछ देशी राजाओं को अपनी नौकरशाही में छोटे पदों पर 'सेवाओं' की इजाजत दी।बाद में उन्हीं में से कुछ वकीलों और बॅरिस्टरों ने देश को आजाद कराने का सपना देखा!
आजादी के बाद कांग्रेस और भाजपा के नेताओं ने तथा देश के चालाक सभ्रांत वर्ग ने इसी परम्परा को परवान चढ़ाया।
आज विपक्ष में आकर कांग्रेस हरिश्चंद्र बन रही है। लेकिन उसका अतीत बेदाग नही है !एमपी में व्याप्त व्यापम के खिलाफ कांग्रेस ने कोई खास आंदोलन नही किया !विगत भारत बंद में भी उसने केवल 'वाम मोर्चे' की नकल की है।
इसी कांग्रेस के ६० सालाना दौर में आजादी के बाद वर्षों तक देशी पूंजीपतियों -भूस्वामियों और कांग्रेस के नेताओं के खानदानों को ही शिद्द्त से उपकृत किया जाता रहा है। एमपी और छग में द्वारिकाप्रसाद मिश्रा से लेकर शुक्ल बंधूओं तक ,अर्जुनसिंह से लेकर ,प्रकाश चंद सेठी तक , शिव भानु सोलंकी , सुभाष यादव और जोगी से लेकर दिग्विजयसिंह तक कोई भी उस 'अग्निपरीक्षा' में सफल होने का दावा नहीं कर सकता। जिसके लिए उन्होंने बार-बार संविधान की कसमें खाईं होंगी कि -''बिना राग द्वेष,भय, पक्षपात के अपने कर्तव्य का निर्वहन करूंगा ......." !
अब यदि मोदी युग में 'संघ परिवार' वाले और उसके अनुषंगी भाजपाई भी उसी 'भृष्टाचारी परम्परा' का शिद्द्त से निर्वाह किये जा रहे हैं ,जो परम्परा और 'कुलरीति' कांग्रेस ने बनाई है तो किसी को आश्चर्य क्यों ? सवाल किया जा सकता है कि कांग्रेस और भाजपा के भृष्टाचार में फर्क क्या है ? जो लोग कभी कांग्रेस को 'चोर' कहा करते थे वही लोग इन दिनों भाजपा को 'डाकू' कहने में जरा भी नहीं हिचकते। चोर और डाकु में जो भी फर्क है वही कांग्रेस और भाजपा का चारित्रिक अंतर है।
कुछ लोगों को इन दोनों में एक फर्क 'संघ' की हिंदुत्व वादी खंडित मानसिकता का ही दीखता है। वैसे तो कांग्रेस ने पचास साल तक पैसे वालों व जमीन्दारों को ही तवज्जो दी है। किन्तु यूपीए के दौर में वाम के प्रभाव में कुछ गरीब परस्त काम भी किये गए। यदि आज आरटीआई ,मनरेगा और मिड डे मील दुनिया में प्रशंसा पा रहे हैं तो उसका कुछ श्रेय तो अवश्य ही वामपंथ को जाता है । लेकिंन जनता को और मीडीया को कांग्रेस और भाजपा से आगे कुछ भी नजर नही आता !
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