रविवार, 16 जुलाई 2017

नौरत्नों की हत्या का राष्ट्रघाती संकल्प !

कुछ सत्ता शुभचिंतकों और दकियानूसी अंधभक्तों को हमेशा शिकायत रहती है कि कुछ लेखक,कवि,और पत्रकार सत्ता प्रतिष्ठान के प्रतिकूल अप्रिय सवाल क्यों उठाते हैं ? ये पढ़े लिखे विवेकशील लोग भी अंधभक्तों की तरह 'भेड़िया धसान' होकर सत्ता समर्थक जयकारे में शामिल क्यों नहीं हो जाते ? एतद द्व्रारा उन अभागों को सूचित किया जाता है कि मौजूदा शासकों से उनकी कोई व्यक्तिगत शत्रुता नहीं है। मोदीजी जब पहली बार संसद पहुंचे और सीढ़ियों को मत्था टेका,तब वे सभी को अच्छे लगे!जब कभी उन्होंने राष्ट्रीय विकास की बात की ,युवाओं के भविष्य की बात की ,विदेश में जाकर हिंदी का मान बढ़ाया ,और जब वे नामवरसिंह जैसे वरिष्ठ साहित्यकार को प्रणाम करते दिखे तब भी मोदीजी सभी को प्रिय लगे !लेकिन सवाल किसी वर्ग विशेष की अभिरुचि या विमर्श का नहीं है। सवाल समग्र राष्ट्र के, समग्र समाज के हित का है !और इस कसौटी पर मोदी सरकार नितांत असफल होती जा रही है। इन हालात में भारत के प्रबुद्ध जन यदि मौजूदा शासन प्रशासन के कामकाज पर पैनी नजर रखते हैं,उसकी तथ्यपरक शल्य क्रिया करते हैं और वैकल्पिक राह सुझाते हैं तो उनको गंभीरता से लिया जाना चाहिए ! उनका सम्मान किया जाना चाहिए। बजाय इसके कि अंधभक्त लोग विपक्ष एवं आलोचकों से गाली गलौज करें !

देश के राजनैतिक विपक्ष को कमजोर बनाने वाले आमजन मूर्ख हैं। वैसे भी भारत की वर्तमान राजनैतिक स्थिति किसी आपातकाल से बेहतर नहीं है। यदि राष्ट्रपति 'यस सर'की प्रवृत्ति वाला होगा तो कहीं भी कभी भी साइन कर देगा। देश में फिलवक्त शिकायत सिर्फ साम्प्रदायिक हिंसा की,अल्पसंख्यक असुरक्षा की और प्रतिगामी कुचाल की ही नहीं है। बल्कि मोदी सरकार ने नीति आयोग की अनुशंसा के तहत भारत के प्रमुख नौरत्नों की हत्या का संकल्प भी ले रखा है। जिन नवरत्नों ने अतीत में भारत को कभी भी आर्थिक मंदी में फिसलने नहीं दिया,जिन नौरत्नों की बदौलत हमारे नेता  इतराते फिरते हैं उन सार्वजनिक उपक्रमों को अब मौजूदा मोदी सरकार ठिकाने लगाने जाए रही है। मोदी सरकार खुद की कंपनियों को चूना लगा रही है और उसने रिलायंस के मैनेजरों को ठेका दिया है कि वे  देश के नौरत्नों को शीघ्र ठिकाने लगाएं ! देश के वर्तमान शासकों ने अपने ही वतन के आर्थिक तंत्र को कमजोर करने की सुपारी देशी विदेशी बदमाश पूँजीपतियों को दे रखी है. इससे न केवल लाखों मजदूरों का अहित होगा,न केवल वेरोजगारी बढ़ेगी, बल्कि राष्ट्र की वित्तीय स्थति की अनिश्चितता भी बढ़ेगी और स्थिति भंवर में होगी। नवरत्न रुपी राष्ट्रीय धरोहर की स्वायत्तता खत्म होते ही वे खुद ख़त्म हो जायेंगे।

राजनीती के एरिना में जो लोग बात बात पर 'हर हर मोदी' करते रहते हैं और जो लोग बात बात में 'अल्लाहो अकबर' घुसेड़ते रहते हैं, ये निम्न कोटि के उजबक कलंकी इतिहास के खंडहरों की भटकती दुरात्माएं हैं।  मेहनतकश आवाम को 'हंस' की मानिंद खुद ही नीर क्षीर करना आना चाहिए ,कि क्रांति की लौ बुझने न पाए। इस बाबत युवा सुशिक्षित पीढ़ी को क्रांतिकारी विचारों  की थाती संभालना चाहिये और अन्याय शोषण के खिलाफ संघर्ष की गगनभेदी आवाज बुलंद करनी चाहिए। वर्तमान युवा पीढ़ी को इस बाबत  देश और दुनिया का आर्थिक ,सामाजिक ,राजनैतिक और क्रांति संबंधी  अध्यन अवश्य चाहिए।     

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