जिस किसी ने भौतिकी,रसायन ,जीवविज्ञान का अध्यन किया है और यदि उसे 'विश्व इतिहास 'तथा डार्विन के 'विकासवादी' सिद्धांत की जानकारी है तो वह व्यक्ति कभी 'धर्मांध' नहीं हो सकता।जिन्होंने भारतीय वेदांतदर्शन ' साँख्य ,योग ,मीमांसा ,वैशेषिक और न्याय दर्शन का अध्यन किया है ,वे यदि 'डार्विन के विकासवाद' और मार्क्स के 'ऐतिहासिक द्वंदात्मक भौतिकवाद' को समझ लें तो वे 'आस्तिक' होते हुए भी महान क्रांतिकारी हो सकते हैं ।
वैदिक धर्मसूत्र स्वाभाविक रूप से 'धर्मनिरपेक्ष' ही हैं। यही कारणथा कि स्वामी विवेकानंद,स्वामी श्रद्धानंद,लाला
लाला लाजपतराय ,तिलक,गाँधी जैसे आस्तिकभी महान 'धर्मनिरपेक्ष' स्वाधीनता सेनानी हुए हैं।पांच वक्तके पक्के नमाजी मौलाना आजाद ,सीमान्त गांधी अब्दुल गफ्फरखां और मुजफ्फर अहमद जैसे महान क्रांतिकारी हुए हैं। भगतसिंह तो किसी संत महात्मा या 'अवतार'से कम नहीं थे किन्तु बड़े गर्व से अपने आप को ' नास्तिक'कहते थे !
आपका धर्म-मजहब और ईश्वर में विश्वास रखना तब तक गलत नहीं है जब तक आपकी आस्तिकता अथवा 'आस्था' से किसी दूसरे का अहित न होता हो !कतिपय पढ़े-लिखे युवा या आधुनिक साइंस टेक्नालॉजी विषय में उच्च शिक्षित इंजीनियरभी जब धर्मान्धता में डूबजाएँ ,मजहबी आतंकवाद के गटर में कूंदते नजर आएं ,तो समझ लेना चाहिए कि उन्हें धर्म-मजहब की कोई जानकारी नहीं हैं। वे केवल जर खरीद गुलाम हैं।वे 'कसाब 'या गोडसे हो सकतेहैं ! ऐंसे आत्मघाती 'धर्मध्वज' अथवा जेहादी पूर्णतः पाखण्डी होतेहैं। वास्तवमें इन मूर्खोंका धर्म-मजहब से कोई वास्ता नहीं होता। ये धर्मान्धता और आतंकवाद के पुर्जे जैसे होते हैं। इनकी धर्म-मजहब में कोई आस्था नहीं होती । ये अपने वतन के संविधान का भी आदर नहीं करते। ये दंगा फसाद और गृह युध्द के काम आते हैं। ये लोकतंत्र ,धर्मनिर्पेक्षता ,समाजवाद,साम्यवाद , मानवतावाद और सर्वहारा क्रांति का अभिप्राय नहीं समझते।
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