मंगलवार, 24 मई 2016

एक खास परिवार के भरोसे रहने के कारण कांग्रेस लोकतंत्र से महरूम हो गयी है।


  कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने टवीट किया है कि ''कांग्रेस उस बरगद के बृक्ष की तरह है ,जिसकी छाँव हिन्दू,मुस्लिम ,सिख ,ईसाई सबको बराबर मिलती है ,जबकि भाजपा तो जात -धर्म  देखकर  छाँव देती है। ''

  बहुत सम्भव है कि खुद कांग्रेस समर्थक प्रबुद्ध जन ही मनु अभिषक संघवी से सहमत नहीं होंगे ! इस विमर्श में भाजपा वालों के समर्थन की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती। उन्होंने ऐंसी साम्प्रदायिक घुट्टी पी रखी है कि जिसके असर से उन्हें 'भगवा' रंग के अलावा  'चढ़े न दूजो रंग '! दरसल मनु अभिषेक ने अपने ट्वीट में जो कहा वह तो कांग्रेस के विरोधी अर्से से कहते आ रहे हैं। इसमें नया क्या है ? कांग्रेस रुपी नाव में ही छेद करते हुए सिंघवी यह भूल गए कि भारतीय कांग्रेस  महज एक राजनीतिक पार्टी नहीं बल्कि एक खास विचारधारा का नाम है। खैर कांग्रेस की चिंता जब कांग्रेसियों को नहीं तो हमारे जैसे आलोचकों को क्या पडी कि व्यर्थ शोक संवेदना व्यक्त करते रहें !

मनु अभिषेक सिंघवी  ने शायद हिंदी की  यह  मशहूर कहावत नहीं सुनी  की ''बरगद के पेड़ की छाँव में हरी दूब भी नहीं उगा करती '' अर्थात  किसी विशालकाय व्यक्ति ,वस्तु या गुणधर्म के समक्ष  नया विकल्प पनप नहीं सकता ! कुछ पुरानी चीजें ऐंसी होतीं हैं कि कोई नई चीज कितनी भी चमकदार या उपयोगी क्यों न हो ,किन्तु फिर भी वह  पुरानी के सामने  टिक ही नहीं पाती। राजनीती  में इसका भावार्थ यह भी है कि  कुछ दल या नेता   ऐंसे  भी होते हैं कि उनकी शख्सियत के सामने  नए-नए दल या नेता पानी भरते हैं। इसका चुनावी जीत-हार से कोई लेना-देना नहीं। समाज में इस कहावत का तातपर्य यह है कि दवंग व्यक्ति या  दवंग समाज के नीचे दबे हुए व्यक्ति या समाज का उद्धार  तब तक सम्भव नहीं ,जब तक वे उसके आभा मंडल से मुक्त न हो  जाए ।

 हालाँकि काग्रेस  की उपमा बरगद के पेड़ से  करना एक कड़वा सच है ,किन्तु सिंघवी द्वारा कहा जाना एक बिडंबना है।  यह आत्मघाती गोल करने जैसा कृत्य है।  मनु अभिषेक सिंघवी जैसा आला दर्जे का बकील  यदि  कांगेस को बरगद बताएगा तो कांग्रेस मुक्त भारत की  कामना  करने वालों की तमन्ना पूर्ण होने में संदेह क्या ?  वैसे भी आत्म हत्या करने वाले गरीब किसान ,वेरोजगार युवा ,गरीब छात्र और असामाजिकता से पीड़ित कमजोर वर्ग के नर-नारियों  की नजर में कांग्रेस और भाजपा एक ही सिक्के के दो  पहलु  हैं। लेकिन मेरी नजर में भाजपा और कांग्रेस में  बहुत अंतर् है। भाजपा घोर साम्प्रदायिक दक्षिणपंथी पूँजीवादी  पार्टी  है ,जो मजदूरों ,अल्पसंख्यकों और प्रगतिशील वैज्ञानिकवाद से घ्रणा करती है ,और  अम्बानियों-अडानियों ,माऌयाओं की सेवा में यकीन रखती है।  कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष  उदारवादी पूंजीवादी पार्टी  है। एक खास परिवार के भरोसे  रहने के कारण  वह लोकतंत्र से महरूम हो गयी है।  वैसे कांग्रेस वालों को बिना जोर -जबर्जस्ती  के जो कुछ मिला उसी में संतोष कर लिया करते हैं । उन्होंने ईमानदारी या देशभक्ति का ढोंग भी नहीं किया। देशभक्ति का झूंठा हो हल्ला भी नहीं मचाया। जबकि भाजपा वाले  कंजड़ों की भांति दिन दहाड़े डाके डालने में यकीन करते हैं।  इसका एक उदाहरण तो यही है कि जब  घोषित डिफालटर अडानी को आस्ट्रेलिया में किसी उद्द्य्म के लिए बैंक गारंटी की जरूरत पडी तो एसबीआई चीफ अरुंधति भट्टाचार्य और खुद पीएम भी साथ गए थे। क्या कभी इंदिरा जी राजीव जी या मनमोहन सिंह ने ऐंसा किया ? देश के १०० उद्योगपति ऐंसे हैं जो भारतीय बैंकों के डिफालटर हैं और बैंकों का १० लाख करोड़  रुपया डकार गए हैं ।  कोई  भी लुटेरा पूँजीपति  एक पाई लौटाने को  तैयार नहीं है ,सब विजय माल्या के बही बंधू हैं। जबकि गरीब किसान को हजार-पांच सौ के कारण बैंकों की कुर्की का सामना करना पड़ रहा है ,आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। मोदी सरकार बिना कुछ किये धरे ही अपने  दो साल की काल्पनिक उपलब्धियों के बखान में राष्टीय कोष का अरबों रुपया  विज्ञापनों में बर्बाद कर रही है। दलगत आधार पर साम्प्रदायिकता की भंग के नशे में चूर होकर  हिंदुत्व के ध्रुवीकरण में व्यस्त हैं ,मदमस्त हैं । जबकि मनु अभिषेक सिंघवी,दिग्गी राजा ,थरूर और अन्य दिग्गज कांग्रेसी केवल आत्मघाती गोल दागने में व्यस्त हैं।  कांग्रेस की मौसमी हार से भयभीत लोग भूल रहे हैं कि  कांग्रेस ने स्वाधीनता संग्राम का अमृत फल चखा है उसे  कोई नष्ट नहीं कर सकता , खुद गांधी ,नेहरू,पटेल भी  नहीं ! मोदी जी और संघ परिवार तो  कदापि नहीं ! श्रीराम  तिवारी

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