पुरानी कहावत है कि ''यदि बागड़ खेत चरने लगे तो उसे आग के हवाले करना ही ठीक है '' कहावत को समझने में माथापच्ची की अधिक जरूरत नहीं। यहाँ बागड़ को वर्तमान सत्तारूढ़ नेतत्व मान लें और आग को एक जन 'क्रांति'की मशाल मानकर चलें तो वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की असलियत उसके दिगम्बर रूप में साकार हो जायेगी ! वरिष्ठ वकील और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली से यह उम्मीद तो विचारे शिवसैनिकों या संघियों को भी नहीं होगी कि वे मराठा एम्पायर के महान गौरवशाली न्याय मंत्री 'राम'शास्त्री जैसे निर्भीक और न्यायप्रिय हाकिम होकर दिखाएँ !लेकिन उनका इतना नैतिक पतन होगा इसकी उम्मीद भी विपक्षी दलों और जेटली विरोधियों को नहीं होगी !
११ मई-२०१६ को राज्य सभा में श्रीमान अरुण जेटली साहब ने न्याय पालिका पर पानी-पी-पीकर हल्ला बोला। उन्होंने न्यायपालिका पर खुल्लमखुल्ला आरोप लगाया है कि न्यायिक सक्रियता के आवेग में वह अपनी सीमाओं का अतिक्रमण कर रही है। यदि कोई साधारण आदमी न्यायपालिका के विवेक पर सवाल खड़ा करता ,तो उसे अवमानना से लेकर 'राष्ट्रद्रोह' तक के आरोपों का सामना करना पड़ता । किन्तु अपनी वकालत की रौ और मोदी जी की शै पाकर जेटली जी ''समरथ कहँ नहिं दोष गुसाईं '' का अप्रिय उदाहरण पेश कर रहे हैं। वे शायद यह भूल रहे हैं कि वे दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक राष्ट्र के वित्त मंत्री हैं। भले ही वे हिन्दुत्ववादी आदर्श न बन सके ,किन्तु यदि वे अटलबिहारी मंत्रीमंडल वाले जेटली ही बने रहते तो भी गनीमत होती ! वास्तव 'मोदी प्रभाव' में जेटली जी फासीवादी भाषा बोलने लगे हैं। इस तरह की आक्रामक भाषा तो घूसखोरों ,हत्यारों ,बलात्कारियों , चोट्टे -माल्याओं ,ललित मोदियों और भृष्ट कारपोरेट हाउसेस के वकील भी नहीं बोला करते हैं।
अरुण जेटली और सम्भवतः मोदी जी को शायद गलत फहमी है कि वे सर्वशक्तिमान हैं ! उन्हें शायद यह भी भरम है कि वे न्याय और कानून से ऊपर हैं। और तमाम न्याय पालिका उनकी चिरौरी के लिए साष्ट्रांग मुद्रा मैं हमेशा तैयार रहेगी । जेटली जी ने न्यायपालिका पर हलकट आरोप लगाये हैं कि न्यायपालिका अपनी हद से बाहर जाकर फैसले कर रही है ,अपनी सीमाओं का अतिक्रमण कर रही है। जेटली की यह असंवैधानिक या अपवित्र भड़ास अकारण नहीं है। लेकिन सवाल उठना चाहिए कि है कि क्या वाकई न्यायपालिका अपनी सीमाओं का अतिक्रमण कर रही है ?
चूँकि उत्तराखंड की हरीश सरकार को गिराने में मोदी जी के इंतजाम अली विफल रहे हैं। और इस सरकार गिराऊ उठापटक प्रकरण में उत्तराखंड हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट पूरी मुस्तैदी से संविधान के साथ खड़ा दिखा।क्या न्यायपालिक का यह स्टेण्ड संविधान से बाहर है ? क्या यह बाकई न्यायिक सक्रियता है ? नहीं ! अपितु यह तो शुद्ध न्यायिक सजगता ही है ? प्रायः हर नाजुक मौके पर भारतीय न्यायपालिका अपनी अग्नि परीक्षा में खरी उत्तरी है। इसपर हमें गर्व होना चाहिए ! इस फैसले से तो भारत की न्याय व्यवस्था का झंडा दुनिया में बुलंद ही हुआ है। लेकिन जेटली जी की न्यायिक सक्रियता की मुराद क्या है ? इसके लिए देश के प्रबुद्ध जनों को उनकी मंशा-मनोदशा का विश्लेषण अवश्य करना चाहिए !
दिल्ली पुलिस जो कि केंद्र सरकार के अधीन है यदि उसकी नाकामी पर कोर्ट ने सवाल उठाया है तो इसमें गलत क्या है ? यह तो केंद्र सरकार और भाजपा की असफलता है। जेएनयू छात्रों के संदर्भ में मानव संसाधन मंत्रालय की सनक इकतरफा नहीं चली। कोर्ट ने सभी पक्षों को समान अवसर प्रदान किये हैं ,क्या यह गलत है ? श्री श्री के कार्क्रम में उनके अनुयाईओं ने यमुना को बर्बाद किया , दिल्ली को कूड़ा किया ,यदि न्यायपालिका ने उन्हें दण्ड भरने को कहा तो क्या यह गलत है ? देश में पीने का पानी नहीं ,सूखे से देश जर्जर हो चला है ,यदि कोर्ट ने आईपीएल खेलों में पानी के दुरूपयोग पर सवाल उठाया तो क्या गलत है ? सुप्रीम कोर्ट ने यदि सूखे को लेकर गुजरात ,हरियाणा,महाराष्ट्र और बिहार सरकार के रवैये पर कड़ा एतराज जताया तो जेटली के पेट में दर्द क्यों ? मनी लांड्रिंग में फंसा भगोड़ा विजय माल्या यदि अपने मित्र जेटली के मंत्री होने के वावजूद न्यायपालिका की निगाह मेंअपराधी है तो इसमें न्यायिक सक्रियता क्या है ? अमिताभ बच्चन और उनका केबीसी ,सलमान खान और उनके हिंसक कारनामें यदि न्यायपालिका की जद में अभी भी हैं तो जेटली जी को गुस्सा क्यों आ रहा है ?
श्रीराम तिवारी
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